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क़तर की राजधानी दोहा में अरब-इस्लामी देशों ने आपातकालीन शिखर सम्मेलन किया है. यह सम्मेलन दोहा में इसराइली हमले के बाद हुआ है.
सोमवार का आपातकालीन शिखर सम्मेलन क़तर के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बुलाया गया था.
इस मौक़े पर क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमाद अल-थानी ने कहा है कि इसराइल का हमास के वार्ताकारों पर हमला करना साबित करता है कि वह झूठ बोल रहा है. दरअसल वो झूठ बोल रहा है कि उसका मक़सद हमास के क़ब्ज़े में मौजूद बंधकों को छुड़ाना है.
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बीते मंगलवार को इसराइल ने दोहा में एक घर में मौजूद हमास नेताओं को निशाना बनाया था.
फ़लस्तीनी संगठन हमास का कहना है कि इस हमले में उसके पांच सदस्य और क़तर के एक सुरक्षा अधिकारी की मौत हो गई. इसे लेकर अरब-इस्लामी देशों में ग़ुस्सा है.
हमास ने कहा था कि इस हमले में उसके वार्ताकारों की टीम की हत्या करने की नाकाम कोशिश की गई.
वहीं, इसराइल ने कहा कि अमेरिका और क़तर को हमले से पहले ही सूचना दे दी गई थी.
इस्लामी देशों ने इसराइल को दी चेतावनी
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दोहा के शिखर सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप्प अर्दोआन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मुझे उम्मीद है कि आज क़तर की राजधानी दोहा में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन और अरब लीग के विशेष शिखर सम्मेलन में लिए गए हमारे फ़ैसले इसराइली ख़तरे का सामना करने के लिए नए प्रयासों की ओर ले जाएंगे और हमारी बैठक के नतीजों पर बारीकी से अमल किया जाएगा.”
उनका कहना है, “फ़लस्तीन के बाद इसराइल ने लेबनान, यमन, ईरान और सीरिया पर हमला किया है. उसने ट्यूनीशिया के तट के पास नागरिक जहाज़ों को निशाना बनाया.इसराइल ने चुने हुए राजनेताओं और नेताओं की हत्या भी की है. अब उसने मध्यस्थ क़तर पर भी हमला किया है. यह ताज़ा हमला इसराइल के ग़ैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को एक नए स्तर पर ले गया है.”
सम्मेलन से इतर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान की मुलाकात हुई.
पेजे़श्कियान ने इस्लामी देशों से इसराइल से संबंध तोड़ने की अपील की.
उन्होंंने कहा कि इस्लामी देश इस ‘नकली’ देश से अपने रिश्ते तोड़ सकते हैं और आपसी एकता और सद्भाव बनाए रख सकते हैं.
पेजे़श्कियान ने कहा ”इसराइली हमला ‘बेशर्मी’ है. ये ‘योजनाबद्ध’ तरीके से किया गया और ‘कूटनीति पर हमला’ है. इसका मक़सद ग़ज़ा में जनसंहार को ख़त्म करने की कूटनीतिक कोशिशों को चोट पहुंचाना है. ये अमेरिका और कुछ देशों की मिलीभगत है. इसराइली नेताओं के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुक़दमा चलना चाहिए.”
उन्होंने कहा, ”क़तर पर हमला ये दिखता है कि अब कोई भी इस्लामी या अरब देश इसराइली हमले से सुरक्षित नहीं है.”
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इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के महासचिव हुसैन ताहा ने इसराइल पर हमले की निंदा की और कहा कि ये अंतरराष्ट्रीय क़ानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का सीधा उल्लंघन है. इसराइल को इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस शिखर सम्मेलन से अरब-इस्लामी एकजुटता और मजबूत होगी.
जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय ने कहा कि इसराइल ने टू-स्टेट समाधान की राह में बाधा डाली है और वेस्ट बैंक में अवैध कार्रवाइयों के ज़रिये न्यायपूर्ण तरीके से शांति हासिल करने की संभावनाओं को नुक़सान पहुंचाया है.
उन्होंने कहा “क़तर के ख़िलाफ़ इसराइल की ये आक्रामकता इस बात का सबूत है कि इसराइली ख़तरे की कोई सीमा नहीं है. इसराइल के ख़िलाफ़ हमारी कार्रवाई साफ़, निर्णायक और तीखी होनी चाहिए.”
उन्होंने कहा कि इस समस्या (इसराइल-फ़लस्तीन) के लिए कुछ हद तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी दोषी है.
इराकी प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने कहा कि इसराइली हमला इस समस्या को एक और ख़तरनाक मोड़ पर ले जा रहा है. इसराइल ने ये हमला कर इसराइल-फ़लस्तीन समस्या को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की कोशिश को जानबूझकर ख़त्म करने की कोशिश की है.
उन्होंने कहा कि ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में जो हो रहा है वो सिर्फ़ क़ानून का उल्लंघन नहीं है बल्कि उससे भी बढ़कर क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा करना है.
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अरब लीग के महासचिव अहमद अबुल घैत ने कहा, ”हम ऐसे समय में एक साथ आए हैं जब क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है.”
उन्होंने कहा, ” इसराइली आतंकवाद ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है और यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम फ़लीस्तीनियों के जनसंहार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं.”
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को युद्ध अपराधों के लिए इसराइल को दोषी ठहराना चाहिए.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि क़तर पर इसराइली हमले के ख़िलाफ़ पूरी एकुजटता दिखानी चाहिए. इसराइल ने अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन किया है.
उन्होंने इसराइल की संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता निलंबित करने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि उसे युद्ध अपराध का दोषी ठहराया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ”ग़ज़ा में मानवता कराह रही है. अगर हम सामूहिक बुद्धिमत्ता से कदम नहीं उठाएंगे तो इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा.”
इस सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “मलेशिया इसराइल के दोहा पर हवाई हमलों की कड़ी निंदा करता है. यह न केवल क़तर की संप्रभुता का उल्लंघन है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून के ढांचे को तोड़ने वाली निर्दयी और क्रूर कार्रवाई भी है. यह इलाक़े की स्थिरता और सुरक्षा के लिए गंभीर उकसावे की कार्रवाई है.”
उन्होंने कहा, “शेख़ तमीम बिन हमाद अल-थानी की अगुआई में क़तर शांति के लिए एक अहम मध्यस्थ की भूमिका निभाता रहा है. दोहा पर हमला उनके नेक प्रयासों को नष्ट करने जैसा है. इसे हम सब पर हमला माना जाना चाहिए, यानी पूरे अरब और इस्लामी जगत पर और उस अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर जो शांति के लिए दुआएं करता है.”
नेतन्याहू ने भविष्य में भी हमले का इरादा जताया
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इस बीच सोमवार को अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने यरूशलम में इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से मुलाकात की है.
इस मुलाक़ात के बाद इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और मार्को रूबियो ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
यरूशलम से बीबीसी के टॉम बेनेट ने बताया है कि इस दौरान नेतन्याहू ने भविष्य में भी हमास नेताओं पर हमले से इनकार नहीं किया है.
नेतन्याहू ने कहा, “उन्हें कोई छूट नहीं मिलेगी. चाहे वो जहां भी हों. हर देश को अपनी सीमा के पार अपनी सुरक्षा का अधिकार है.”
हमास के नेताओं पर इसराइली हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका काफी विरोध हुआ था और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इसकी आलोचना की.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हमले को लेकर अपने प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर ‘नाख़ुशी’ ज़ाहिर की थी. उन्होंने कहा था इस हमले से अमेरिका और इसराइल दोनों के ही लक्ष्य पूरे नहीं होते.
इस बीच व्हाइट हाउस के मुताबिक़ ट्रंप ने क़तर को भरोसा दिया है कि इस तरह की घटना आगे क़तर में नहीं होगी. ट्रंप के इस आश्वासन के एक दिन बाद ही नेतन्याहू का ताज़ा बयान आया.
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीबीसी ने सवाल किया कि दोहा में हुए हमले ने क्या इस क्षेत्र में अमेरिका के संबंधों को बिगाड़ा है?
मार्को रूबियो ने इस पर कहा कि अमेरिका खाड़ी के अपने सहयोगी देशों के साथ मज़बूत संबंधों को बनाकर रखता है.
रूबियो ने पहले कहा था, “ज़ाहिर है हम इससे खुश नहीं हैं. राष्ट्रपति भी इससे खुश नहीं थे. अब हमें आगे बढ़ना होगा और देखना होगा कि आगे क्या होता है.”
संयुक्त सेना बनाने के प्रस्ताव की चर्चा
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सम्मेलन से पहले मिस्र की ओर से दिए गए एक प्रस्ताव ने फिर से एक संयुक्त सुरक्षा बल की चर्चा को आगे बढ़ाया है.
‘द नेशनल’ अख़बार के अनुसार, मिस्र ने प्रस्ताव में नेटो जैसे एक सशस्त्र बल बनाए जाने की बात कही है, जिसकी अध्यक्षता अरब लीग के 22 देशों में बारी-बारी से सौंपी जाएगी और पहला अध्यक्ष मिस्र का होगा.
‘द न्यू अरब मीडिया’ के अनुसार, इस तरह का प्रस्ताव पहली बार 2015 में आया था, जब यमन में गृह युद्ध शुरू ही हुआ था और हूती विद्रोहियों ने सना पर कब्ज़ा कर लिया था.
उधर, दोहा हमलों के बाद तुर्क़ी में भी बेचैनी बढ़ी है.
तुर्की के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता रियर एडमिरल ज़ेकी अक्तुर्क ने चेताते हुए यह कहा कि ‘इसराइल अपने अंधाधुंध हमलों को बढ़ा सकता है, जैसा उसने क़तर में किया. वह ख़ुद को और इस पूरे क्षेत्र को आपदा की ओर धकेल सकता है.’
इस बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दोहा में इसराइली हमले को ‘क्षेत्रीय संप्रभुता का घोर उल्लंघन’ कहा.
वहीं क़तर के प्रधानमंत्री ने एक बयान जारी कर कहा, “क़तर के पास इसराइली हमले का जवाब देने का पूरा अधिकार है और अपनी सुरक्षा व क्षेत्रीय स्थिरता को ख़तरे में डालने वाली किसी भी लापरवाह कार्रवाई या आक्रामकता के ख़िलाफ़ वह कड़े कदम उठाएगा.”
इस हमले पर अरब देशों की सरकारों की ओर से तीख़ी प्रतिक्रिया आई और इन देशों की मीडिया में कहा गया कि इस हमले ने एक ‘नई हद’ पार कर दी है.
कुछ मीडिया रिपोर्टों में हमले के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को ज़िम्मेदार ठहराया. हालांकि ट्रंप ने कहा कि उन्हें हमले की जानकारी दी गई थी और उनके विशेष दूत ने इस बारे में क़तर को बताया था लेकिन तब तक ‘बहुत देर’ हो चुकी थी.
उधर, संयुक्त राष्ट्र में इसराइल के राजदूत ने कहा कि इसराइल हमेशा अमेरिका के हित के अनुसार कार्रवाई नहीं करता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित