शुक्रवार और शनिवार की दरमनियानी रात को हुए ईरान पर इसराइल के हमले के बाद से मध्य पूर्व में युद्ध का संकट और गहरा हो गया है.
ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई और उनके प्रमुख सलाहकार जो फ़ैसले ले रहे हैं, उसके केंद्र में इलाक़े में और भी बदतर हालात पैदा होने से बचना या जोखिम उठाना शामिल हो सकता है.
उन्हें कई मुश्किल विकल्पों में से सबसे कम बुरे विकल्प पर फै़सला करना होगा.
इसके एक फ़ैसले में बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ एक और जवाबी हमले का विकल्प है, लेकिन इसराइल ने पहले ही चेतावनी दी है कि अगर ऐसा हुआ तो वह फिर से जवाबी हमला करेगा.
ईरान के लिए जोखिम यह है कि अगर वह अपने ग़ुस्से पर क़ाबू कर लेता है; तो वह कमज़ोर, डरा हुआ और अमेरिकी समर्थन वाली इसराइल की सैन्य ताक़त और राजनीतिक दृढ़ संकल्प से डरा हुआ दिखाई देगा.
आख़िर में ईरान के सर्वोच्च नेता और उनके सलाहकार संभवतः वही फ़ैसला लेंगे जो उनके विचार में ईरान के इस्लामी शासन के अस्तित्व को कम से कम नुक़सान पहुंचाएगा.
खोखली धमकियां?
इसराइल के हमलों से पहले और बाद के घंटों में ईरान के आधिकारिक मीडिया ने कई निडर बयान दिए हैं. ये पहली नज़र में दिखाते हैं कि ईरान की तरफ से इसराइल को जवाब देने का फ़ैसला पहले ही ले लिया गया था.
इसकी भाषा इसराइल से मिलती-जुलती है, जिसमें हमले के ख़िलाफ़ ख़ुद की रक्षा करने के अपने अधिकार का हवाला दिया गया है.
लेकिन ये दांव इतने बड़े हैं कि ईरान अपनी धमकियों को वापस लेने का फ़ैसला भी कर सकता है.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर को भी ऐसी ही उम्मीद है. वो अमेरिका के इस तर्क से सहमत हैं कि इसराइल ने यह कार्रवाई आत्मरक्षा में की है.
किएर स्टार्मर ने कहा, “मैं इस बात पर स्पष्ट हूं कि इसराइल को ईरानी आक्रामकता के ख़िलाफ़ ख़ुद की रक्षा करने का अधिकार है. ईरान को जवाब नहीं देना चाहिए. हमें आगे क्षेत्रीय तनाव से बचना चाहिए और सभी पक्षों से संयम बरतने का आग्रह करना चाहिए.”
एक अक्तूबर को इसराइल पर बैलिस्टिक मिसाइल दागे़ जाने के बाद से ईरान के बयान लगातार एक जैसे रहे हैं.
एक हफ़्ते पहले ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने तुर्की के एनटीवी नेटवर्क से कहा था कि “ईरान पर कोई भी हमला हमारे लिए लाल रेखा को पार करने जैसा माना जाएगा. इस तरह के हमलों का जवाब दिया जाएगा.”
इसराइली हमलों से कुछ घंटे पहले ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बाकई ने कहा, “ईरान के ख़िलाफ़ इसराइल के किसी भी हमले का जवाब पूरी ताक़त के साथ दिया जाएगा. यह सुझाव देना बेहद भ्रामक और निराधार है कि ईरान इसराइल के सीमित हमले का जवाब नहीं देगा.”
जब इसराइली विमान वापस अपने बेस की ओर जा रहे थे तब ईरान के विदेश मंत्रालय ने “संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 में निहित आत्मरक्षा” के अपने अधिकार का हवाला दिया.
उसके एक बयान में कहा गया कि ईरान का मानना है कि विदेशी आक्रामकता का जवाब देना उसका अधिकार और दायित्व दोनों है.
रविवार को ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने सोशल मीडिया पर लिखा कि इसराइल ने ग़लत कदम उठाया है, हमें उन्हें ईरान के लोगों की ताकत, दृढ़ संकल्प और पहल के बारे में बताना होगा.
दोनों तरफ़ से घातक हमले
इसराइल ने महीनों पहले ही हमले की गति तय कर दी थी. वो मानता है कि बीते साल अक्टूबर में हुए हमलों को अंजाम देने वाले हमास नाम के गुट का ईरान अहम समर्थक है. 7 अक्तूबर 2023 को हुए इन हमलों में क़रीब 1200 लोग मारे गए थे. मरने वालों में अधिकांश इसराइली थे, वहीं 70 से ज़्यादा विदेशी नागरिक भी शामिल थे.
इस डर से कि इसराइल हमला करने का मौक़ा तलाश रहा है, ईरान ने कई बार संकेत दिया कि वह इसराइल के साथ पूरी तरह से युद्ध नहीं चाहता.
इसका मतलब यह नहीं था कि इसराइल और उसके सहयोगियों पर उसकी वजह से पड़ रहे दबाव को रोकने के लिए ईरान तैयार था. ईरान के लोगों को लगा कि उनके पास पूर्ण युद्ध से बेहतर उपाय है.
इसकी बजाय ईरान ने अपने कथित सहयोगियों और “एक्सिस ऑफ़ रेज़िस्टेंस” यानी प्रॉक्सी का इस्तेमाल करके इसराइल पर हमला किया.
यमन में हूती विद्रोहियों ने लाल सागर के रास्ते आने-जाने वाले जहाज़ों को रोका और उन्हें तबाह किया. लेबनान से हिज़्बुल्लाह के रॉकेट हमलों ने उत्तरी इसराइल में कम से कम 60 हज़ार इसराइलियों को अपने घरों से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया.
युद्ध के छह महीने बाद इसराइल की जवाबी कार्रवाई की वजह से इससे दोगुना लोगों को दक्षिण लेबनान में अपने घरों को छोड़ना पड़ा.
इसराइल इससे कहीं ज़्यादा बड़ी कार्रवाई करने की तैयारी थी. उसने चेतावनी दी कि अगर हिज़्बुल्लाह ने इसराइल में गोलाबारी बंद नहीं की और सीमा से पीछे नहीं हटा तो वह कार्रवाई करेगा.
जब ऐसा नहीं हुआ तो इसराइल ने ईरान की ओर से तैयार किए गए सीमित, लेकिन विनाशकारी जंग का दायरा बढ़ाने का फ़ैसला किया. उसने कई ताक़तवर हमले किए, जिससे ईरान में इस्लामी शासन का संतुलन बिगड़ गया और उसकी रणनीति बिखर गई.
यही वजह है कि इसराइल के हालिया हमलों के बाद, ईरानी नेताओं के पास केवल मुश्किल विकल्प ही बचे हैं.
पूरी तरह से युद्ध से दूर रहने की ईरान की इच्छा को इसराइल ने कमज़ोरी के रूप में समझा है. उसने ईरान और उसके प्रतिरोधी सहयोगियों पर दबाव बढ़ा दिया है.
इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और इसराइल के कमांडर जोखिम उठाने का ख़तरा मोल ले सकते थे.
इसमें उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का भी स्पष्ट समर्थन हासिल था. उनके पास अमेरिकी सुरक्षा का एक कवच था जो हथियारों की भारी आपूर्ति के रूप में भी आया.
इसके अलावा इसराइल की रक्षा के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धता के तौर पर मध्य पूर्व में ख़ास समुद्री और हवाई अमेरिकी मदद भेजने के उनके फ़ैसले के रूप में भी आया.
इसी साल एक अप्रैल को इसराइली हवाई हमले में सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के राजनयिक परिसर का एक हिस्सा नष्ट हो गया था.
इसमें ईरान के शीर्ष कमांडर ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद रज़ा ज़ाहेदी के साथ-साथ ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के अन्य वरिष्ठ अधिकारी मारे गए थे.
अमेरिका इस बात से नाराज़ था कि उसे इसकी चेतावनी नहीं दी गई और अपनी सेना को अलर्ट पर रखने का समय नहीं दिया गया.
लेकिन जो बाइडन का समर्थन तब भी कम नहीं हुआ जब इसराइल को अपनी कार्रवाई के नतीजों का सामना करना पड़ा.
ईरान ने 13 अप्रैल को ड्रोन, क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइलों से इसराइल पर हमला किया, इनमें से ज़्यादातर को इसराइल ने मार गिराया. इसमें उसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जॉर्डन की सशस्त्र सेना से काफ़ी मदद मिली.
ज़ाहिर तौर पर बाइडन ने इस उम्मीद के साथ इसराइल को “जीत का श्रेय” लेने के लिए कहा कि इससे मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के सबसे ख़तरनाक समय को रोका जा सकेगा. जब इसराइल ने अपनी प्रतिक्रिया को ईरान में हवाई सुरक्षा ठिकानों पर हमले तक सीमित रखा, तो बाइडन की योजना काम करती दिखी.
लेकिन गर्मियों के बाद यानी सितंबर में इसराइल ने ईरान और उसके सहयोगियों और प्रॉक्सी के साथ जंग को बार-बार बढ़ाया है.
ईरान को सबसे बड़ा झटका लेबनान में ईरान के सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ एक बड़े हमले से लगा.
ईरान ने अपनी रक्षा के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में हिज़्बुल्लाह के हथियारों के ज़खीरे को तैयार करने में कई साल लगाए थे.
उसका विचार यह था कि ईरान पर इसराइल के हमले को इस जानकारी से रोका जाएगा कि हिज़्बुल्लाह लेबनान में सीमा के ठीक पार से इसराइल पर हमला करेगा.
लेकिन इसराइल ने सबसे पहले कदम उठाया और उसने साल 2006 के हिज़्बुल्लाह के साथ हुए जंग के बाद से बनाई योजना को लागू किया. उसने हिज़्बुल्लाह को धोखे से बेचे गए पेजर और वॉकी-टॉकी को उड़ा दिया, फिर दक्षिणी लेबनान पर हमला किया और हिज़्बुल्लाह के नेता शेख़ हसन नसरल्लाह को मार डाला.
हसन नसरल्लाह कई दशक से इसराइल के ख़िलाफ़ प्रतिरोध के प्रतीक थे. बेरूत के अधिकारियों का कहना है कि लेबनान में इसराइल के हमले में अब तक 2500 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और 12 लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.
इससे एक ऐसे देश को भारी नुकसान पहुँचा है जो पहले से ही अपनी अर्थव्यवस्था के बड़े पैमाने पर ढह जाने की वजह से घुटनों पर है.
हिज़्बुल्लाह अभी भी लेबनान के अंदर इसराइली सैनिकों से लड़ रहा है. वह बड़ी संख्या में रॉकेट दाग़ रहा है. लेकिन हिज़्बुल्लाह अपने नेता और अपने ज़्यादातर शस्त्रागार को खोने के बाद सदमे में है.
अपनी रणनीति के लगभग बिखरते हुए देखकर ही ईरान ने निष्कर्ष निकाला कि उसे जवाबी हमला करना ही होगा. अपने सहयोगियों को बिना जवाब दिए, उन्हें लड़ने और मरने के लिए छोड़ देने से क्षेत्र में इसराइल विरोधी और पश्चिम विरोधी ताक़तों के नेता के तौर पर वह ख़त्म हो जाएगा.
इसी के जवाब के तौर पर उनसे एक अक्तूबर को इसराइल पर बैलिस्टिक मिसाइल दाग़ कर हमला किया था.
उसके बाद 25 अक्तूबर यानी शुक्रवार की रात हुए हवाई हमले इसराइल की प्रतिक्रिया थे. कई लोगों को लगा कि इसराइल की प्रतिक्रिया आने में उम्मीद से ज़्यादा समय लगा. इसकी एक वजह इसराइल की योजना का लीक होना हो सकता है.
इसराइल उत्तरी गज़ा में भी एक बड़ा हमला कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर तुर्क ने इसे ग़ज़ा युद्ध का सबसे काला दौर बताया है, जिसमें इसराइली सेना ने एक पूरी आबादी को बमबारी, घेराबंदी और भुखमरी के ख़तरे में डाल दिया है.
किसी बाहरी व्यक्ति के लिए यह जान पाना असंभव है कि क्या ईरान पर इसराइल के हमलों का समय उत्तरी ग़ज़ा से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए चुना गया था. लेकिन हो सकता है कि यह उसके जोड़-तोड़ का हिस्सा रहा हो.
बढ़ते तनाव को रोकना
जब तक ईरान और इसराइल को लगेगा नहीं कि अगर वो जवाब नहीं देंगे तो उन्हें कमज़ोर और हारा हुआ माना जाएगा, तो हमलों और जवाबी हमलों के लगातार दौर को रोकना मुश्किल है.
ऐसे ही हालात युद्ध नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं.
अब सवाल यह है कि क्या ईरान, कम से कम युद्ध के इस मोड़ पर इसराइल को अंतिम चेतावनी देने के लिए तैयार है? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक अक्तूबर के बाद से ही जवाबी कार्रवाई करने के इसराइल के फै़सले का समर्थन किया था.
लेकिन एक बार फिर उन्होंने इसके घातक विस्तार को रोकने की कोशिश की और इसराइल से सार्वजनिक तौर पर कहा कि वह ईरान की सबसे महत्वपूर्ण संपत्तियों, उसके परमाणु, तेल और गैस ठिकानों पर बमबारी न करे.
बाइडन ने इसराइल में टीएचएएडी एंटी-मिसाइल सिस्टम तैनात करके इसराइल की सुरक्षा को बढ़ाया और प्रधानमंत्री नेतन्याहू उनकी सलाह मानने पर सहमत हुए.
अगले महीने 5 नवंबर को होने वाले अमेरिकी चुनाव इसराइल और ईरान दोनों के लिए ख़ास है क्योंकि ये तय कर सकते हैं कि अब आगे क्या होगा.
चुनावों में अगर डोनाल्ड ट्रंप को एक बार फिर चुना जाता है तो वो ईरान के परमाणु कार्यक्रम, तेल और गैस संयंत्रों पर हमले से बाइडन की तुलना में कम चिंतित हो सकते हैं.
एक बार फिर मध्य पूर्व इंतज़ार कर रहा है कि कम से कम राजनयिकों को अपना काम करने के लिए पर्याप्त समय मिलने तक, ईरान की सबसे कीमती संपत्तियों पर हमला न करने का इसराइल का फ़ैसला, शायद ईरान को अपनी प्रतिक्रिया रोकने का मौक़ा दे सकता है.
पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में ईरान ने सुझाव दिया था कि वह परमाणु वार्ता के एक नए दौर के लिए तैयार है.
यह सब मध्य पूर्व के बाहर की दुनिया के लिए बहुत मायने रखता है. ईरान ने हमेशा इस बात से इनकार किया है कि वो परमाणु बम बनाना चाहता है. लेकिन परमाणु मामलों में उसकी जानकारी और यूरेनियम संवर्धन ने परमाणु हथियार उकी पहुंच में उपलब्ध करा दिया है.
इस बीच ईरान के नेता अपने दुश्मनों को रोकने के लिए कोई नया तरीका तलाश रहे होंगे. अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए परमाणु हथियार विकसित करना उनके एजेंडे में हो सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित