इसराइल ने लेबनान में हिज़्बुल्लाह के कथित ठिकानों पर हमले के बाद अब उसके ख़िलाफ़ ज़मीनी हमला शुरू किया है.
इसराइल ने कहा है कि उसके इस ऑपरेशन के तहत एक सीमित दायरे में हमले किए जाएंगे.
ये पहली बार नहीं है जब इसराइल ने इस तरह के हमले किए हों.
इससे पहले भी इस तरह के अभियान चले हैं और इसके मिले-जुले नतीजे रहे हैं.
तो इस बार का इसराइली हमला पहले के अभियानों से अलग कैसे है? आइए समझने की कोशिश करते हैं.
1978 : पहला हमला
पहली बार 1978 में इसराइली सैनिकों ने दक्षिणी लेबनान पर हमला किया था. इसे ‘लितानी ऑपरेशन’ कहा गया था.
दरअसल 1948 में इसराइल की स्थापना के बाद लेबनान फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए प्रमुख ठिकाना बन गया था.
इन शरणार्थियों में पीएलओ जैसे संगठनों के सदस्यों के साथ ही दूसरे फ़लस्तीनी मिलिशिया भी शामिल थे.
इन लड़ाकों ने लेबनान से इसराइल पर हमला बोल दिया था. इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई थी.
इसराइल ने 1978 में पहली बार लेबनान पर आक्रमण तब किया जब फ़लस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) के अर्द्धसैनिक दल ने उस पर हमला किया.
पीएलए के इस दल ने समुद्र तट पर उतरने के बाद एक बस पर कब्जा कर लिया था.
इस दौरान हुए संघर्ष में 38 इसराइली नागरिक मारे गए थे. इसराइल में इसे समुद्र तट पर किए गए जनसंहार के तौर पर जाना गया.
इसके बाद इसराइली सेना दक्षिणी लेबनान पहुंच गई. लेकिन दो महीने बाद ही लौट आई.
फिर इसने लेबनान के साथ एक बफर जोन बना लिया. इसराइल की सेना वहां साल 2000 तक मौजूद रही.
इसराइल ने जब पहली बार लेबनान पर हमला किया था तो वहां 2000 लड़ाके और आम नागरिक मारे गए थे. जबकि इसराइल के सिर्फ़ 18 सैनिकों की मौत हुई थी.
1982 : सबसे बड़ा हमला
लेबनान में इसराइल का सबसे बड़ा ऑपरेशन 1982 में हुआ था. ये लेबनान में गृहयुद्ध का दौर था.
उस समय हजारों इसराइली सैनिकों ने सैकड़ों टैंकों और हथियारबंद गाड़ियों के साथ बॉर्डर पार किया था.
इस ऑपरेशन का मुख्य मकसद पीएलओ को पीछे धकेलना था जो लेबनान पर इसराइली पर हमले जारी रखे हुए था.
उस दौरान इसराइल ने लेबनान के बंदरगाह शहर सिदोन पर कब्जा कर लिया था. इसराइल का मकसद था पीएलओ के ठिकानों पर हमले करना ताकि वो उस पर हमले न कर सके.
इसराइली सेना पीएलओ की कई चौकियों को भेदने में कामयाब हो गई थी और एक सप्ताह के भीतर लेबनान की राजधानी बेरूत पहुंच गई थी.
इस ऑपरेशन के दौरान इसराइली सैनिकों को फ़लस्तीनी शरणार्थियों के जनसंहार का ज़िम्मेदार ठहराया गया था.
इस हमले के तीन महीने बाद इसराइली सेना वापस लौट गई थी लेकिन जाने से पहले इसने लेबनान में ही एक बफर जोन बना दिया था.
दूसरी ओर लेबनान के 20 हजार लोग मारे गए थे. इनमें से ज्यादातर आम नागरिक थे. इसराइल के 654 सैनिकों की मौत हुई थी.
1996 : नया दुश्मन,नया हमला
1982 में लेबनान पर इसराइल का हमला पीएलओ को वहां से हटाने में कामयाब रहा.
इस हमले के बाद ही पीएलओ अपना मुख्यालय लेबनान से ट्यूनीशिया ले गया. इसके बाद आक्रामक अर्द्धसैनिक संगठन हिज़्बुल्लाह का गठन हुआ.
ये भी इसराइल को अपना दुश्मन मानता है और उस पर हमले की हिमायत करता है.
अप्रैल 1996 में इसराइल ने पहली बार हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला.
उस समय हिज़्बुल्लाह ने इसराइल पर रॉकेट से हमले किए थे. इसके ख़िलाफ़ इसराइल का ऑपरेशन सीमित था और ये सिर्फ दो सप्ताह से थोड़ा ज्यादा चला था.
इस संघर्ष में भी सबसे ज़्यादा नुकसान नागरिकों को हुआ. लेबनान में हिज़्बुल्लाह के 13 लड़ाके मारे गए. वहां कम से कम 250 नागरिकों की मौत हो गई. जबकि इसराइल को कोई नुकसान नहीं हुआ.
इसके बाद इसराइल और हिज़्बुल्लाह एक दूसरे के ख़िलाफ़ ही रहे. दोनों के बीच कई बार तनातनी हुई.
हिज़्बुल्लाह चरमपंथियों ने उस पर रॉकेट से हमले किए और इसराइली वायुसेना ने उन पर बमबारी की.
2006 : 34 दिनों का युद्ध
2006 के जुलाई महीने की बात है.
सीमा से इसराइली शहरों पर बमबारी करने के साथ ही हिज़्बुल्लाह के लड़ाके आगे बढ़ते रहे और उन्होंने इसराइली सेना के दो वाहनों पर हमला कर आठ सैनिकों को मार दिया. दो को बंधक बना लिया.
इसके जवाब में इसराइल ने लेबनान में हिज़्बुल्लाह के कई ठिकानों पर हमले किए.
इन ठिकानों पर हवाई हमले किए गए और तोप के गोले छोड़े गए. इसराइल सेना ने वायु क्षेत्र और समुद्र की नाकेबंदी कर दी. इसके साथ ही दक्षिणी लेबनान में ज़मीनी हमले किए.
ये लड़ाई 34 दिनों में ख़त्म हो गई. इसके बाद युद्ध-विराम हुआ.
इस संघर्ष में लेबनान में 1191 लोग मारे गए. इनमें से ज्यादातर आम नागरिक थे. जबकि इसराइल के 121 सैनिक और 44 नागरिक मारे गए थे.
सैन्य विशेषज्ञों का क्या कहना है
लेबनान में इसराइल की हालिया कार्रवाई ने फिलहाल दोनों देशों के बीच शक्ति संतुलन को बदल दिया है.
बीबीसी के अंतरराष्ट्रीय संपादक जेरेमी बोवेन कहते हैं, ”अमेरिकी और इसराइली अधिकारियों के मुताबिक़ पिछले कुछ हफ़्तों में इसराइल ने हिज़्बुल्लाह के नेतृत्व को लगभग ख़त्म कर दिया है.उसके आधे हथियारों को नष्ट कर दिया और लेबनान पर हमला बोल दिया है.”
सैन्य विश्लेषक योआव स्टर्न ने बीबीसी से कहा कि उनका मानना है कि इसराइल की इस बार की रणनीति भी 2006 जैसी ही है.
इस बार का हमला भी पहले की तरह सीमित हमला है. इस बार भी ये इस संघर्ष की दिशा तय करेगा. जबकि 1982 में इसराइल ने बड़ी तादाद में अपने सैनिकों को उतारा था.
स्टर्न ने कहा, ”इसराइल का इस बार का हमला धीमा, सतर्क और सोच-समझ कर उठाया गया कदम होगा. इसके तहत इसराइल दक्षिण लेबनान में एक बाद एक शहरों पर कब्जा करता जाएगा. इसराइल लेबनान में हिज़्बुल्लाह के प्रमुख ठिकानों पर व्यापक के बदले धीमा और सतर्क हमले करते हुए आगे बढ़ना चाहेगा.”
उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह दक्षिणी लेबनान के शहरों में लंबे समय से जमा हुआ है. इसलिए लगता नहीं है कि इसराइल यहां कब्जा कर इसे जल्द छोड़ कर जाएगा.
हालांकि हमास के 7 अक्टूबर के हमलों के बाद लेबनान के हालात और ग़ज़ा में इसराइल की कार्रवाई में अंतर है.
ऐसा लगता है कि इसराइल की ताकत हमास के प्रतिरोध को लगातार कमजोर करती जा रही है.
लेकिन लेबनान में इस समय की स्थिति इसराइल के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है.
भले ही इसराइल ने हिज़्बुल्लाह के इन्फ्रास्ट्रक्चर और इसके नेतृत्व पर सफल हमलों को अंजाम दिया है.
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में मध्यपूर्व मामलों के विशेषज्ञ अमीन सईकल ने कहा, ”हिज़्बुल्लाह हमास नहीं है. उसे नुकसान हुआ है लेकिन अभी भी उसके पास काफी हथियार हैं और उसकी रणनीतिक मौजूदगी भी बेहतर है.”
वो कहते हैं, ”हिज़्बुल्लाह इसराइली कब्जे़ के ख़िलाफ़ निरंतर प्रतिरोध को जारी रखने की क्षमता रखता है. इससे इसराइल को जान-माल का काफी नुकसान हो सकता है.”
जेरेमी बोवेन कहते हैं कि इसराइल ग़ज़ा में अपने अभियान के अहम उद्देश्यों में से एक को अभी भी हासिल नहीं कर सका है.
उन्होंने कहा, ”हिज़्बुल्लाह के पास दक्षिण लेबनान में सुरंगों और दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर का एक बड़ा नेटवर्क है. हमास के पास भी ऐसी ही सुविधाएं है. इसराइल ने जब ग़ज़ा में प्रवेश किया था तो उसका इरादा इस नेटवर्क को ध्वस्त करने का था. लेकिन एक साल बाद भी वो इसे अंजाम नहीं दे सका है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित