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इसराइल सोमालिया से अलग हुए क्षेत्र सोमालीलैंड को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है.
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस बारे में एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि इसराइल कृषि, स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग को तुरंत विस्तार देने का इरादा रखता है.
इसराइली पीएम के ऑफ़िस की ओर से जारी एक वीडियो में नेतन्याहू ने कहा कि वह सोमालीलैंड की अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होने की इच्छा के बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जानकारी देंगे.
2020 में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को ने इसराइल से राजनयिक संबंध कायम किए थे और इसे ही अब्राहम अकॉर्ड कहा जाता है. यह ट्रंप के पहले कार्यकाल में हुआ था और उनकी अहम भूमिका थी.
अब्दुल्लाही ने भी एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होने के लिए सोमालीलैंड तैयार है.
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हालांकि, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा कि वह सोमालीलैंड को मान्यता देने के फ़ैसले का पालन नहीं करेंगे, लेकिन वह इस मामले को देखेंगे.
ट्रंप से न्यूयॉर्क पोस्ट ने पूछा कि क्या वह सोमालीलैंड को मान्यता देंगे, तो ट्रंप ने शुरुआत में कहा “नहीं अभी नहीं.” हालांकि, बाद में उन्होंने जवाब बदलते हुए सिर्फ़ ‘नहीं’ कहा.
ट्रंप ने ही सवाल किया कि क्या सच में किसी को पता भी है कि सोमालीलैंड कहां है?
अमेरिकी राष्ट्रपति से पूछा गया कि क्या सोमालिया से अलग हुए इस देश में अमेरिका का सैन्य अड्डा भी होगा? तो जवाब में उन्होंने कहा, “बड़ी बात नहीं.”
ट्रंप ने कहा, “सबकुछ देखा जा रहा है. हम इसका अध्ययन करेंगे. मैं बहुत कुछ देखता हूं और हमेशा बेहतरीन फ़ैसले लेता हूं और ये सही साबित होते हैं.”
सोमालीलैंड, सोमालिया से अलग हुआ एक क्षेत्र है, जो 1991 से स्वतंत्र देश के तौर पर काम कर रहा है.
इस बीच, मिस्र के विदेश मंत्री ने इसराइल की घोषणा सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सोमालिया, तुर्की और जिबूती में अपने समकक्षों के साथ अलग-अलग फोन पर बातचीत की है.
एक बयान में मिस्र के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चारों देशों ने सोमालिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपने समर्थन की पुष्टि की और ऐसे एकतरफ़ा क़दमों के ख़िलाफ़ चेतावनी दी जो स्थिरता को कमज़ोर कर सकते हैं.
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संप्रभु देशों के किसी हिस्से की स्वतंत्रता को मान्यता देना अंतरराष्ट्रीय क़ानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत एक ख़तरनाक मिसाल कायम करेगा.
इसराइल पिछले कई सालों से मध्य-पूर्व और अफ्रीका के देशों के साथ संबंध मज़बूत करने की कोशिश करता रहा है लेकिन ग़ज़ा में युद्ध और ईरान के ख़िलाफ़ संघर्ष सहित हालिया युद्ध उसकी इस कोशिश के ख़िलाफ़ गए.
सोमालीलैंड की स्थिति अदन की खाड़ी पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और उसके पास अपनी मुद्रा, पासपोर्ट और पुलिस बल है.
1991 में पूर्व तानाशाह जनरल सियाद बर्रे के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम के बाद अस्तित्व में आए इस क्षेत्र को तब से लेकर अब तक दशकों के अलगाव का सामना करना पड़ा है.
लगभग 60 लाख की आबादी वाले इस स्वघोषित गणराज्य के कारण हाल के वर्षों में सोमालिया, इथियोपिया और मिस्र से जुड़े कई क्षेत्रीय विवाद भी सामने आए हैं.
पिछले वर्ष, लैंडलॉक्ड इथियोपिया और सोमालीलैंड के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत इथियोपिया को एक बंदरगाह और सैन्य अड्डे के लिए कोस्टलाइन का एक हिस्सा पट्टे पर देने की बात थी, जिससे सोमालिया नाराज़ हो गया था.

क्यों अहम है इसराइल का ये फ़ैसला?
इसराइल के विदेश मंत्री गिदोन सार ने भी शुक्रवार को अब्दुल्लाही से फ़ोन पर द्विपक्षीय संबंधों को लेकर चर्चा की.
वहीं, सोमालिया के विदेश मंत्रालय ने इस मान्यता की निंदा की और इसे अपनी संप्रभुता पर ‘जानबूझकर किया गया हमला’ और ‘इसराइल की ओर से उठाया अवैध क़दम’ बताया.
सोमालिया के अलावा, तुर्की, सऊदी अरब, मिस्र, इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी समेत कई मुल्कों ने इसराइल के इस कदम पर आपत्ति जताई है.
हालांकि, सोमालीलैंड ने तुर्की की आलोचना को ख़ारिज करते हुए कहा है, ”तुर्की की आपत्ति ज़मीनी हक़ीक़त को नहीं दर्शाता है. इसराइल ने सोमालीलैंड गणराज्य को मान्यता दी है,जो पिछले 34 वर्षों से सोमालिया का हिस्सा नहीं रहा है. सोमालीलैंड के राष्ट्रपति लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित हैं और प्रमुख शहरों में हुए उत्सव जनता की इच्छा को दर्शाते हैं. हम तुर्की से अपील करते हैं कि वह सोमालीलैंड के लोगों का सम्मान करे.”
सोमालीलैंड कई सालों से कूटनीतिक मान्यता पाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन हाल के समय में उसने इन कोशिशों को और तेज़ किया है. इसका एक उदाहरण बीते अक्तूबर में अब्दुल्लाही की इथियोपिया की यात्रा है.
हालांकि, शुक्रवार तक सोमालीलैंड को किसी भी देश से पूर्ण मान्यता नहीं मिली थी. फिर भी वह इथियोपिया, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) समेत कई देशों के साथ कूटनीतिक संपर्क बनाए हुए है और इन देशों के अधिकारियों के साथ बैठकें करता रहा है.
अरब देशों के प्रमुख मीडिया आउटलेट अल-मॉनिटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी सेना के अफ़्रीका कमांड यानी US AFRICOM के प्रमुख जनरल डैगविन एंडरसन ने भी सोमालिलैंड का दौरा किया और अब्दुल्लाही के साथ बातचीत की थी.
सोमालीलैंड के अधिकारियों ने फ़रवरी में दुबई में आयोजित वर्ल्ड गवर्नमेंट समिट में हिस्सा लिया और इससे इतर यूएई के अधिकारियों के साथ बैठके की थीं. जिसकी जानकारी उस समय सोमालीलैंड के विदेश मंत्रालय ने दी थी.
ख़बरें हैं कि यूएई का सोमालीलैंड में एक सैन्य अड्डा है. हालांकि, यूएई ने इसकी पुष्टि कभी नहीं की है. वहीं, यूएई की बड़ी पोर्ट कंपनी डीपी वर्ल्ड का सोमालीलैंड के शहर बेरबेरा में एक बंदरगाह भी है.

समझौते का है यूएई कनेक्शन?
अफ़्रीकी मामलों के जानकार और विश्लेषक कैमरन हडसन ने एक्स पर लिखा, “बीबी ने वह बात खुलकर कह दी जो आमतौर पर दबी आवाज़ में कही जाती है. सोमालीलैंड को मान्यता देने को अब्राहम अकॉर्ड से जोड़कर इसराइल इस सौदे के पीछे यूएई के प्रभाव और समर्थन को भी रेखांकित कर रहा है. वह देश, जिसने हाल के सालों में अफ़्रीका के हॉर्न क्षेत्र (उत्तर पूर्वी हिस्से) को नए सिरे से गढ़ने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है.”
संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन 2020 में इसराइल के साथ अब्राहम समझौतों में शामिल होने वाले पहले देश थे.
वहीं, अफ़्रीका का हॉर्न क्षेत्र लाल सागर और बाब अल-मंदेब स्ट्रेट से पास होने की वजह से रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस समुद्री मार्ग से दुनिया के कारोबार में इस्तेमाल होने वाले लगभग 30 फ़ीसदी कंटेनर गुज़रते हैं.
इसराइल सब-सहारन अफ़्रीकी देशों के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहा है. उसे साल 2021 में अफ़्रीकन यूनियन में पर्यवेक्षक का दर्जा मिला था, लेकिन कई सदस्य देशों के विरोध के कारण 2023 में इसे निलंबित कर दिया गया.
अरब लीग का सदस्य होने के कारण सोमालिया के इसराइल के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं हैं.
इसराइल के क़दम के पीछे क्या हैं कारण?
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विश्लेषकों का कहना है कि सोमालीलैंड को मान्यता देने के पीछे रणनीतिक कारण हैं.
इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज़ ने पिछले महीने जारी एक रिपोर्ट में कहा, “इसराइल को लाल सागर क्षेत्र में कई रणनीतिक कारणों से सहयोगियों की ज़रूरत है. इनमें से एक कारण भविष्य में हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ उसका संभावित अभियान भी शामिल है.” हालांकि, यह टिप्पणी यमन के ईरान-समर्थित विद्रोहियों के संदर्भ में की गई थी.
इसी रिपोर्ट में कहा गया, “सोमालीलैंड ऐसे सहयोग के लिए आदर्श देश है. क्योंकि यह इसराइल को संघर्षरत क्षेत्र के क़रीब एक ऑपरेशनल एरिया तक पहुंच दे सकता है.” रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इसके पीछे आर्थिक कारण भी हैं.
वहीं, अंतरराष्ट्रीय मान्यता न मिलने से सोमालीलैंड को विदेशी कर्ज़, सहायता और निवेश तक पहुंच में मुश्किलें आई हैं और यह इलाक़ा अब भी ग़रीबी से बुरी तरह जूझ रहा है.
भू-राजनीतिक विषयों पर लिखने वालीं वेलीना चाकरोवा ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “इसराइल की सोमालीलैंड को संप्रभु राष्ट्र के तौर पर ऐतिहासिक मान्यता एक अहम रणनीतिक क्षेत्र का दरवाज़ा खोलती है: इससे बेरबेरा बंदरगाह तक सीधे पहुंच, हूतियों के ख़तरे के बीच लाल सागर की सुरक्षा में सुधार और ईरानी प्रभाव का मुक़ाबला करने में मदद मिलेगी.
उन्होंने लिखा कि अब आगे यह देखना है कि क्या बेरबेरा शहर में भारी निवेश और सैन्य उपस्थिति वाला यूएई और ट्रंप प्रशासन इसका समर्थन करते हैं या नहीं.
इस्लामिक देशों का विरोध
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इस मान्यता से तुर्की, सऊदी अरब, मिस्र, ओमान, जॉर्डन समेत कई देशों में नाराज़गी देखी गई है.
सोमालिया के राष्ट्रपति मोहम्मद फर्माजो ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत इसराइल को सोमालिया की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना होगा. सोमालिया के किसी हिस्से को मान्यता देना इस क़ानून का पूरी तरह उल्लंघन करना है. सोमालीलैंड सोमालिया का अभिन्न हिस्सा है. हमारे लोग अपनी संप्रभुता की रक्षा में दृढ़ता से एकजुट हैं.”
अफ़्रीकन यूनियन ने भी सोमालीलैंड को किसी भी तरह की मान्यता को ख़ारिज किया है. सोमालिया भी इस यूनियन का सदस्य देश है.
इसके प्रमुख महमूद अली यूसुफ़ की ओर से जारी बयान में कहा गया, “सोमालिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को कमज़ोर करने का कोई भी प्रयास, पूरे महाद्वीप में शांति और स्थिरता पर दूरगामी असर डालेगा और ये एक ख़तरनाक उदाहरण है.”
वहीं, सोमालिया के क़रीबी देश तुर्क़ी के सांसद और टर्किश संसद में अंतरराष्ट्रीय मामलों की कमिटी के डिप्टी चेयर सी कैनी तोरुन ने सोमालीलैंड को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता देने पर तुर्की के लिए गहरा झटका बताया है.
उन्होंने एक्स पर लिखा है, ”सोमालिया से अलग होने की घोषणा कर चुके सोमानीलैंड को इसराइल की ओर से आधिकारिक रूप से मान्यता देने घोषणा न केवल पूर्वी अफ़्रीका के लिए बल्कि तुर्की के लिए भी अहम घटनाक्रम है. इसराइल के ऐसा करने से न केवल लाल सागर, हॉर्न ऑफ अफ़्रीका और पूर्वी अफ़्रीका की स्थिरता बाधित होगी बल्कि यहाँ कई तरह के संघर्षों को बढ़ावा मिलेगा.”
तोरुन ने लिखा है, ”तुर्की 2011 से सोमालिया में निवेश कर रहा है. तुर्की सोमालिया का सबसे मज़बूत आर्थिक और सैन्य साझेदार है. मेरे राजदूत रहते हुए 2013 में शुरू की गई सोमालिया–सोमालीलैंड वार्ताओं ने एकीकरण की दिशा में उठाए गए क़दमों को मज़बूती दी थी.”
”लेकिन आज हम जिस बिंदु पर पहुँच चुके हैं, वहाँ यह फ़ैसला क्षेत्रीय संतुलन को बदल देगा और दुर्भाग्यवश क्षेत्र में इसराइल और अमेरिका के प्रभाव को बढ़ाएगा. तुर्की को तत्काल ऐसी नीति अपनाने की ज़रूरत है, जिसके तहत वह क्षेत्र के अन्य देशों को साथ लेकर चले ताकि अन्य देशों द्वारा भी इस मान्यता को दिए जाने से रोका जा सके.”
वहीं, सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में भी कहा गया है कि वह सोमालिया की संप्रभुता का पूरा समर्थन करता है. उसने इसराइल के क़दम को अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन क़रार देते हुए इसे ख़ारिज किया है.
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ओआईसी ने एक बयान जारी कर कहा है, ”सोमानीलैंड को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने की हम कड़ी निंदा करते हैं और यह हमें मंज़ूर नहीं है. यह सोमालिया की संप्रभुता, राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है. हम सोमालिया की संप्रभुता का समर्थन करते हैं.”
गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल यानी जीसीसी ने भी इसे लेकर अपना विरोध जताया है. जीसीसी के महासचिव जासिम मोहम्मद अल-बुदैवी ने एक बयान जारी कर कहा कि वह इसराइल के फ़ैसले की निंदा करते हैं क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है.
जीसीसी महासचिव ने कहा, ”यह मान्यता एक ख़तरनाक मिसाल कायम करती है, जो हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका क्षेत्र में स्थिरता की नींव को कमज़ोर करेगी. इससे तनाव और नए संघर्षों को बल मिलेगा. यह क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मज़बूत करने के मक़सद से किए जा रहे क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के उलट है.”
जीसीसी में कुल छह देश हैं- बहरीन, ओमान, कुवैत, क़तर, सऊदी अरब और यूएई.
बीबीसी हिन्दी के लिए कलेक्टिवन्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.