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सन 1974 में जब अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की दमिश्क में सीरिया के राष्ट्रपति हाफ़िज़ अल-असद से मुलाक़ात हुई थी तो निक्सन ने असद को ‘एक रहस्यपूर्ण व्यक्ति’ पाया जिसके पास ‘असीम ऊर्जा और बेइंतहा आकर्षण’ था.
यरूशलम विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे मोशे माओज़ ने अपनी किताब ‘असद: द स्फ़िंक्स ऑफ़ डमैस्कस’ में लिखा, ‘निक्सन सीरिया के राष्ट्रपति से बहुत अधिक प्रभावित हुए थे.’
उन्होंने कहा था, “वो कुल मिलाकर दमदार शख़्स हैं. इस समय जबकि उनकी उम्र 44 साल है, अगर उनकी ज़िंदगी सुरक्षित रहे और वो ख़ुद को सत्ता से बेदख़ल होने से बचा लेते हैं तो वो दुनिया के इस हिस्से के एक बड़े नेता साबित होंगे.”
क़रीब तीन दशक तक सत्ता में रहने के बाद हाफ़िज़ असद रिचर्ड निक्सन की इस भविष्यवाणी पर खरे उतरे थे.
‘दिन में 14 घंटे काम करते थे हाफ़िज़ असद’
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असद को हमेशा से भीड़ पसंद नहीं थी. बहुत कम ऐसे मौक़े आते थे जब वो अपनी जनता के सामने जाते थे. लेकिन सीरिया के लोगों को हमेशा याद दिलाया जाता था कि हाफ़िज़ असद ही उनके नेता हैं.
असद हमेशा से ही गोपनीय ज़िंदगी जीने के आदी रहे थे. सन 1958 में अनीसा मख़लाफ़ से उनका विवाह हुआ था, लेकिन उनकी पत्नी कभी-कभार ही घर के बाहर देखी जाती थीं.
चार्ल्स पैटर्सन अपनी किताब ‘हाफ़िज़ अल-असद ऑफ़ सीरिया’ में लिखते हैं, ”असद हमेशा से ही बहुत मेहनती थे. वो दिन में 14 घंटे काम किया करते थे और बहुत कम सोते थे. उनको कभी छुट्टियों पर जाते नहीं देखा गया. उनके पास अपने बच्चों के साथ खाना खाने तक का समय नहीं होता था. संकट के दिनों में वो कई कई दिनों तक अपने बच्चों से नहीं मिलते थे.”
सालह जदीद को सत्ता से हटाया
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असद ने सन 1951 में अपना सैनिक करियर शुरू किया था. वो सीरिया के उन पंद्रह लोगों मं शामिल थे जिन्हें फ़्लाइंग स्कूल में पायलट ट्रेनिंग के लिए चुना गया था.
कहा जाता है कि मिस्र के काहिरा में छह महीने के अपने ट्रेनिंग कोर्स के दौरान वो मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर और उनके अरब राष्ट्रवाद से बहुत प्रभावित हुए थे.
सन 1964 में असद को सीरिया की वायुसेना का कमांडर बनाया गया. सन 1966 में हुए सैनिक विद्रोह में बाथिस्ट सत्ता में आए और असद को नई सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया.
रक्षा मंत्री के रूप में हाफ़िज़ असद की सबसे बड़ी चुनौती थी साल 1967 में इसराइल के साथ चला छह दिन का युद्ध.
इस लड़ाई में इसराइल ने न सिर्फ़ गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा किया बल्कि क़ुनैतरा शहर भी उनके नियंत्रण में आ गया. 16 नवंबर, 1970 को जब बाथिस्ट पार्टी की आपात बैठक चल रही थी, हाफ़िज़ असद ने अपने सैनिकों को सभास्थल को घेरने का आदेश दिया.
उन्होंने पार्टी के नेता सालह जदीद को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया. चूँकि जदीद की सरकार सीरिया में अपनी लोकप्रियता खो चुकी थी, इसलिए सीरियावासियों ने हाफ़िज़ असद के सत्ता में आने का स्वागत किया.
1971 में सीरिया के राष्ट्रपति बने
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पूर्व शासकों के उलट हाफ़िज़ ने सीरिया के गाँवों में जाकर उनकी समस्याएं सुनने की शुरुआत की.
चार्ल्स पैटर्सन लिखते हैं, ”शुरू में असद ने सरकार में सर्वोच्च पद न लेते हुए पर्दे के पीछे से शासन करना पसंद किया. सैनिक विद्रोह के बाद उन्होंने एक अनजान सुन्नी अध्यापक को शासनाध्यक्ष बना दिया. उन्होंने ख़ुद कम महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री का पद संभाला, लेकिन सत्ता की सारी शक्तियाँ उनके ही पास रहीं.”
“हालाँकि पर्दे के पीछे रहना असद की फ़ितरत नहीं थी. वो 22 फ़रवरी, 1971 को सीरिया के राष्ट्रपति बन गए. उन्होंने 22 मार्च, 1971 को जनमत संग्रह कराया जिसमें 99.2 फ़ीसदी लोगों ने उनके राष्ट्रपति बनने का समर्थन किया.”
चार्ल्स पैटर्सन के मुताबिक़, “इसी तरह साल 1978, 1985 और 1992 में हुए जनमत संग्रह में सीरिया के लोगों ने हाफ़िज़ असद के राष्ट्रपति बनने का समर्थन किया. ये जनमत संग्रह असली चुनाव नहीं थे क्योंकि राष्ट्रपति पद के लिए कोई दूसरा उम्मीदवार खड़ा नहीं किया गया था.”
प्रतिद्वंदी मोहम्मद उमरान को रास्ते से हटाया
सत्ता में आने के बाद उन्होंने नया संविधान बनाया जिसके अनुसार असद सरकार के प्रमुख होने के साथ साथ सेना के भी कमांडर बन गए. इसके अनुसार सीरिया मध्यपूर्व में सबसे केंद्रीकृत सरकार बन गई और असद की शक्तियों में और बढ़ोत्तरी हो गई.
हाफ़िज़ असद के एक प्रतिद्वंदी मोहम्मद उमरान ने लेबनान के त्रिपोली शहर से असद की सरकार को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई.
जॉन डेवलिन अपनी किताब ‘सीरिया मॉडर्न स्टेट इन द एनशियेंट लैंड’ में लिखते हैं, “मोहम्मद उमरान से एक ग़लती ये हुई कि उन्होंने असद को पत्र लिखकर अपनी इस योजना के बारे में बता दिया. सीरिया में उनकी वापसी से एक हफ़्ते पहले दो बंदूकधारियों ने उनके घर में घुसकर उनकी हत्या कर दी. हालाँकि इन हत्यारों का कभी पता नहीं चला लेकिन बहुत से लोगों को संदेह था कि इस हत्या के पीछे हाफ़िज़ असद का हाथ था.”
देश का 70 फ़ीसदी बजट रक्षा में लगाया
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असद ने सत्ता में आने के बाद जो कदम उठाए उससे लगता था कि वो इसराइल के ख़िलाफ़ साल 1967 में हुई हार को कभी नहीं भूल पाए. उस समय वो सीरिया के रक्षा मंत्री थे. सन 1970 में सत्ता में आने के बाद से ही वो इस हार का बदला लेने की योजना बनाने में लग गए.
माजिद ख़द्दूरी अपनी किताब ‘अरब पर्सनालिटीज़ इन पॉलिटिक्स’ में लिखते हैं, “सन 1971 में असद ने सीरिया के बजट का 70 फ़ीसदी सैन्य बलों के लिए तय किया. जो पैसा स्कूलों, सड़कों और अस्पतालों के लिए ख़र्च होना था सैनिक कार्यों के लिए ख़र्च किया गया.”
“सन 1972 में वो सोवियत संघ से सैनिक समझौता करने मास्को गए. उन्होंने मिग-21 विमान और सैम विमान भेदी मिसाइलों को ख़रीदने के लिए 70 करोड़ डॉलर ख़र्च किए.”
सोवियत संघ ने सीरिया को हथियारों के साथ साथ सैनिक सलाहकार भी भेजे. जल्दी ही सीरिया में सोवियत सैनिक सलाहकारों की संख्या सात सौ से बढ़ कर तीन हज़ार हो गई. लेकिन जब सीरिया ने सोवियत संघ से आधुनिकतम मिग-23 विमानों की माँग की, सोवियत संघ ने उनके इस अनुरोध को नहीं माना.
मिस्र के साथ मिल कर इसराइल पर हमले की योजना बनाई
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फ़रवरी, 1973 में जब मिस्र के युद्ध मंत्री इसराइल के ख़िलाफ़ मिस्र-सीरिया युद्ध योजना लेकर आए तो असद इसके लिए फ़ौरन राज़ी हो गए.
चार्ल्स पैटर्सन लिखते हैं, “दरअसल तत्कालीन मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात मई में ही इसराइल पर हमला करना चाहते थे लेकिन असद इसके लिए तैयार नहीं थे. इसलिए असद की सलाह में सादात हमले को अक्तूबर तक टालने के लिए राज़ी हो गए.”
“असद मिस्र और सोवियत संघ के रिश्तों को पुख़्ता बनाने के लिए मास्को गए. इससे पहले सन 1972 में सादात सोवियत सैनिक सलाहकारों को अपने देश से निकाल चुके थे. लेकिन इसराइल के ख़िलाफ़ लड़ाई में उन्हें एक बार फिर सोवियत संघ की ज़रूरत आ पड़ी. सादात ने इसके लिए असद का सहारा लिया.”
चार्ल्स पैटर्सन के मुताबिक़, “चूँकि जॉर्डन की इसराइल के साथ लंबी सीमा थी, इसलिए असद गोलान हाइट्स के साथ साथ जॉर्डन के ज़रिए इसराइल पर हमला करना चाहते थे लेकिन जॉर्डन इसके लिए तैयार नहीं हुआ. हालांकि सीरिया के युद्ध प्रयासों में सहायता के लिए जॉर्डन ने अपनी दो ब्रिगेड्स गोलान हाइट्स में इसराइल के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए भेजी.”
इसराइल पर पैंतीस हज़ार सैनिकों और आठ सौ टैंकों के साथ हमला
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इसराइल को भ्रम में रखने के लिए हाफ़िज़ अल-असद ने मध्यपूर्व समस्या के शाँतिपूर्ण समाधान के प्रयासों के तहत संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कर्ट वाल्डहाइम की दमिश्क में अगवानी की.
जबकि 6 अक्तूबर 1973 की सुबह मिस्र ने अचानक इसराइल पर हमला बोल दिया. असद एक भूमिगत वॉर रूम में चले गए.
मोशे माओज़ लिखते हैं, “असद इस हमले में इतने ज़्यादा मशग़ूल थे कि वो भूल गए कि 6 अक्तूबर उनके लिए दूसरी वजहों से महत्वपूर्ण है. बाद में जब किसी ने उन्हें याद दिलाया कि ये उनकी 43वीं सालगिरह थी तो उन्होंने कहा, आपने सही फ़र्माया. मुझे उसका ख़्याल ही नहीं रहा.”
पहले से तय किए गए समय पर मिस्र और सीरिया ने इसराइल पर दोतरफ़ा हमला बोल दिया. गोलान हाइट्स पर सीरिया ने 35 हज़ार सैनिकों और 800 टैंकों के साथ इसराइल पर हमला बोला. शुरू में असद को लगा कि वो 1967 में खोई भूमि पर दोबारा कब्ज़ा करने के बहुत क़रीब हैं. जब मिस्र ने भी इसराइल पर चार हज़ार तोपों और ढाई सौ विमानों के साथ अचानक हमला बोला तो शुरुआती लड़ाई में इसराइल के तीन सौ टैंक नष्ट हो गए.
मिस्र के रवैये से निराशा
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इन शुरुआती हमलों की सफलता ने रातों-रात सादात और असद को अरब जगत का हीरो बना दिया. लेकिन अरबों को मिली शुरुआती जीत थोड़े दिनों के लिए ही क़ायम रही.
पैट्रिक सील अपनी किताब ‘असद: द स्ट्रगल फॉर द मिडिल ईस्ट’ में लिखते हैं, “असद को इस बात से धक्का लगा कि मिस्र ने स्वेज़ नहर पार करने के बाद अपने हमलों की धार कम कर दी. मिस्र की रेगिस्तान में आगे बढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि वो अपने सैनिकों को इसराइल की बेहतर वायुसेना के सामने पड़ने नहीं देना चाहते थे.”
“जबकि असद चाहते थे कि मिस्र 7 से 14 अक्तूबर के बीच इसराइल पर हमले तेज़ कर दे लेकिन मिस्र ने ऐसा नहीं किया. मिस्र से असद की निराशा कटुता में बदल गई और सीरिया को इसराइल के जवाबी हमले की पूरी ताकत अकेले झेलनी पड़ी.”
इसराइल ने अपने रॉकेट्स, मिसाइलों, टैकों और विमानों से सीरिया पर इतना ज़बरदस्त जवाबी हमला किया कि उन्हें पीछे हटना पड़ा. बाद में मिस्र के रवैये की आलोचना करते हुए असद ने कहा कि उनके लिए ये युद्ध की सबसे बड़ी निराशा थी.
असद एक सख़्त वार्ताकार
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मिस्र ने14 अक्तूबर को इसराइल के ख़िलाफ़ अपने प्रयास बढ़ाए लेकिन तब तक इसराइल न सिर्फ़ शुरू में खोई हुई गोलान हाइट्स पर फिर से कब्ज़ा कर चुका था बल्कि वो सीरिया की राजधानी दमिश्क के बहुत करीब पहुंच गया था.
इस तरह असद का गोलान हाइट्स को आज़ाद करवाने और मध्यपूर्व के शक्ति संतुलन को बदलने का सपना चूर-चूर हो गया. जब अमेरिका और सोवियत संघ की पहल पर युद्ध विराम का प्रस्ताव लाया गया तो उसे इसराइल और मिस्र ने तो उसे तुरंत स्वीकार कर लिया लेकिन असद उसे मानने के लिए तैयार नहीं हुए.
जब इसराइल की तोपें दमिश्क से सिर्फ़ 20 मील दूर रह गईं तो असद को भी युद्ध-विराम स्वीकार करना पड़ा. युद्ध के बाद हेनरी किसिंजर ने इसराइल, मिस्र और सीरिया के बीत समझौते के लिए मुख्य वार्ताकार की भूमिका निभाई.
उन्होंने अपनी किताब ‘इयर्स ऑफ़ रिनुवल’ में लिखा, “असद ने कड़ा रुख़ अपनाया. उन्होंने माँग की कि इसराइल साल 1973 में जीती गई सारी ज़मीन और 1967 में जीती गई ज़मीन का बड़ा हिस्सा उसे वापस करे.”
“चूँकि अनवर सादात ने असद के साथ कोई समन्वय नहीं बैठाया था इसलिए असद को इसराइल से मेरे ज़रिए अलग समझौते की बात करनी पड़ी. मेरी नज़र में असद एक बहुत स्वाभिमानी, सख़्त और चतुर वार्ताकार थे.”
हेनरी किसिंजर लिखते हैं, “हाँलाकि असद वो सब नहीं पा पाए जिसकी उन्होंने माँग की थी लेकिन वो 1973 में खोई गई सारी ज़मीन को वापस पाने में कामयाब रहे. असद इसराइल से कुनैतरा शहर भी वापस पाने में कामयाब रहे जिसे सीरिया ने 1967 की लड़ाई में खोया था. इसका जश्न उन्होंने ख़ुद कुनैतरा जा कर और वहाँ सीरियाई झंडा फहरा कर मनाया था.”
ईरान-इराक़ युद्ध में ईरान का समर्थन
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असद ने लेबनान के गृह युद्ध में सरकारी और विरोधी पक्ष दोनों को सहायता दी. लेबनानी नेता कमाल जुम्बलात की हत्या में असद के एजेंटों का हाथ बताया गया.
उन्होंने फ़लस्तीनी नेता यासेर अऱाफ़त को आगाह किया कि वो लेबनान के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करें. उन्होंने उनसे कहा कि वो जुम्बलात और सीरिया में से एक को चुन लें. जब अराफ़ात ने जुम्बलात का साथ देने का फ़ैसला किया तो उन्होंने पीएलओ के ख़िलाफ़ अपनी सेना लगा दी.
जब सन 1980 में ईरान और इराक़ के बीच युद्ध शुरू हुआ तो उन्होंने ईरान का समर्थन कर सारे अरब जगत को अपने ख़िलाफ़ कर दिया.
निकोलस वैन डैम अपनी किताब ‘द स्ट्रगल फॉर पावर इन सीरिया’ में लिखते हैं, “सीरिया के ग़ैर-अरब ईरान के समर्थन ने सऊदी अरब और खाड़ी के देशों को उसके ख़िलाफ़ कर दिया. एक बार फिर सीरिया ने अपनी आज़ाद विदेश नीति का नमूना दिखाया हालांकि इसकी वजह से वो अरब जगत में बहुत अलोकप्रिय हो गए.”
मानवाधिकार के क्षेत्र में ख़राब रिकॉर्ड
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असद इसराइल को कभी भी लड़ाई में हरा नहीं पाए लेकिन उन्होंने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया, उनको कई असफलताओं का भी सामना करना पड़ा. उनकी सरकार पर अक्सर बर्बादी, अकुशलता और भृष्टाचार के आरोप लगते रहे.
मानवाधिकार के मामले में भी उनका रिकॉर्ड ख़राब ही रहा. उनके शासनकाल में सीरियावासियों को सरकार के ख़िलाफ अपने विचार रखने की आज़ादी नहीं थी.
पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक बार असद को ‘मध्य पूर्व का सबसे दिलचस्प शख़्स’ कहा था. मध्य पूर्व की राजनीतिक हत्याओं, धार्मिक उन्माद और क्षेत्रीय हिंसा की दुनिया में 29 साल तक सत्ता में बने रहना कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी.
ऐसे हुआ असद का निधन
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90 के दशक में असद का स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो गया. अमेरिकी राजनयिकों ने नोट किया कि उन्हें किसी चीज़ पर ध्यान फ़ोकस करने में दिक्कत महसूस होने लगी.
10 जून, 2000 को जब वो टेलिफ़ोन पर लेबनान के प्रधानमंत्री सलीम अल-हस से बात कर रहे थे तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई.
उस समय उनकी उम्र 69 साल थी. तीन दिन बाद उनको उनके पुश्तैनी शहर क़रदहा में दफ़नाया गया.
11 दिसंबर, 2024 को जब उनके बेटे बशर अल-असद को सत्ता से हटाया गया तो विद्रोहियों ने हाफ़िज़ असद की समाधि में आग लगा दी. कुछ दिनों बाद अज्ञात लोगों ने उनके शव को उनकी समाधि से निकाल कर किसी अनजान जगह पर दफ़ना दिया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित