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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिकी सेना ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- फ़ोर्दो, नतांज़ और इस्फ़हान पर हमले किए हैं. उन्होंने कहा कि ये हमले “सफल” रहे और इन ठिकानों को “तबाह” कर दिया गया.
इसराइल ने कहा है कि इन हमलों की योजना बनाने में उसके और अमेरिका के बीच “पूरी तरह समन्वय” था.
दूसरी तरफ़ ईरान के अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि इन ठिकानों को निशाना बनाया गया था. हालांकि उन्होंने इस दावे को ख़ारिज किया है कि इससे कोई बड़ा नुकसान हुआ है.
रविवार शाम को अमेरिका की तरफ़ से अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ और ज्वाइंट चीफ़्स ऑफ़ स्टाफ़ जनरल डैन केन ने ईरान के ख़िलाफ़ किए गए इस अभियान के बारे में विस्तार से जानकारी दी.
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पीट हेगसेथ और जनरल डैन केन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ नाम के इस सैन्य अभियान के बारे में जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि आख़िर इस हमले को कैसे अंज़ाम दिया गया और इसमें कितने एयरक्राफ़्ट शामिल किए गए. उन्होंने इस अभियान के मकसद के बारे में भी जानकारी दी.
ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले को कैसे अंजाम दिया गया?
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रविवार को हुई इस प्रेस ब्रीफिंग में अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने बताया कि हमले में किस तरह बी2 बमवर्षक और मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर (एमओपी, जिन्हें बंकर बस्टर भी कहा जाता है) का इस्तेमाल किया गया.
उन्होंने कहा, “अमेरिका के बी2 स्टेल्थ बमवर्षक ईरान में घुसे, परमाणु ठिकानों में हमला किया और वापस लौट आए. और दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगी.”
हेगसेथ ने आगे कहा, “इस हमले में 2001 के बाद की अब तक की सबसे लंबी बी2 स्पिरिट बमवर्षक उड़ान शामिल थी और पहली बार एमओपी यानी मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर का इस्तेमाल किया गया.”
वहीं ज्वॉइंट चीफ़्स ऑफ स्टाफ़ के चेयरमैन जनरल डैन केन ने बताया कि ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ में 125 अमेरिकी एयरक्राफ्ट शामिल थे, जिनमें सात बी2 स्टेल्थ बमवर्षक भी थे.
केन ने बताया कि अभियान में क़रीब 75 ‘सटीक निशाना लगाने वाले हथियारों’ का इस्तेमाल हुआ, जिनमें 14 मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर शामिल थे.
अमेरिका के ज्वॉइंट चीफ़्स ऑफ स्टाफ़ के चेयरमैन जनरल डैन केन ने कहा कि कुछ एयरक्राफ्ट अमेरिका से उड़ान भरकर 18 घंटे की यात्रा के बाद अपने टारगेट के पास पहुंचे, जबकि कुछ “ध्यान भटकाने” के लिए प्रशांत महासागर की ओर भेजे गए थे.
केन ने बताया कि तीनों ठिकानों को 6 बजकर 40 मिनट ईस्टर्न टाइम (भारतीय समयानुसार सुबह 4 बजकर 10 मिनट) से 7 बजकर 5 मिनट ईस्टर्न टाइम (भारतीय समयानुसार सुबह 4 बजकर 35 मिनट) के बीच निशाना बनाया गया.
केन ने आगे कहा, “ऐसा लगता है कि ईरान की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली हमें देख नहीं सकी.”
जनरल डैन केन ने कहा कि ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला करने के लिए सात बी-2 बमवर्षक आगे बढ़े. उनके ईरान के हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले अमेरिकी पनडुब्बी की ओर से इस्फ़हान पर दो दर्जन टोमाहॉक मिसाइलें दाग़ी गईं.
बी-2 बमवर्षक विमानों ने दो बड़े जीबीयू-57 एमओपी बम फोर्दो पर गिराए. केन ने कहा कि दो ठिकानों पर कुल मिलाकर 14 एमओपी गिराए गए.
उन्होंने बताया, “इस मिशन के दौरान जब अमेरिकी सेना के विमान वहां से निकल रहे थे, तब तक उन पर कोई गोलाबारी होने की जानकारी नहीं थी.”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि “इस योजना की जानकारी केवल कुछ योजना बनाने वालों और प्रमुख अधिकारियों को ही दी गई थी.”
सत्ता परिवर्तन मक़सद नहीं: अमेरिकी रक्षा मंत्री
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रविवार को हुई प्रेस ब्रीफिंग में अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ से जब ईरान को हुए नुक़सान के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि इसका आकलन अभी जारी है.
उन्होंने बताया, “हमारे सभी सटीक हथियार अपने लक्ष्य पर लगे हैं और उन्होंने उतना असर किया है जिसका आकलन किया गया था.”
हेगसेथ ने यह भी कहा, “यह ध्यान देना ज़रूरी है कि इस कार्रवाई में न तो ईरानी सैनिकों को निशाना बनाया गया और न ही आम लोगों को.”
जब हेगसेथ से पूछा गया कि क्या इस मिशन का मक़सद ईरान में सत्ता परिवर्तन था, तो उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “यह मिशन सत्ता बदलने के लिए नहीं था और न ही अब ऐसा कोई उद्देश्य है.”
उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति ने यह सटीक सैन्य कार्रवाई हमारे राष्ट्रीय हितों को ईरान के परमाणु कार्यक्रम से पैदा होने वाले ख़तरों को बेअसर करने और हमारे सैनिकों और हमारे सहयोगी इसराइल की सामूहिक आत्मरक्षा के लिए अधिकृत की है.”
इसके बाद उनसे पूछा गया कि अमेरिका और ईरान के बीच बातचीत को लेकर क्या कुछ चल रहा है, और क्या अब भी कूटनीतिक समाधान की गुंजाइश बची है.
इस सवाल के जवाब में हेगसेथ ने कहा कि अमेरिका ने कई बार तेहरान को बातचीत की मेज़ पर लौटने का न्योता दिया है.
हमलों पर ईरान ने क्या कहा?
अमेरिकी हमले के कुछ घंटों के भीतर ईरान ने इसराइल पर कई मिसाइलें दागीं, जो तेल अवीव और हाइफ़ा के कुछ हिस्सों पर गिरी.
ईरान ने अमेरिकी हमलों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन बताया.
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य अमेरिका ने ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला करके संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और एनपीटी का गंभीर उल्लंघन किया है.”
इसके कुछ घंटों बाद ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा है कि कूटनीति का रास्ता पहले इसराइल ने बंद किया और फिर अमेरिका ने उसे ख़त्म कर दिया.
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “बीते सप्ताह हम अमेरिका के साथ बातचीत कर रहे थे जब इसराइल ने हमला कर कूटनीति का रास्ता बंद करने का फ़ैसला किया.”
इसके बाद अराग़ची ने लिखा, “इस सप्ताह यूरोपीय मुल्कों और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत हो रही थी और इसी बीच अमेरिका ने कूटनीति का रास्ता बंद करने का फ़ैसला किया.”
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बीते सप्ताह अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते को लेकर छठे दौर की बातचीत होनी थी, लेकिन इसराइल के हमले के कारण बातचीत आगे नहीं बढ़ सकी.
अब्बास अराग़ची ने सवाल किया, “इससे आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?”
उन्होंने लिखा, ”हम ब्रिटेन और यूरोपीय प्रतिनिधियों से कहना चाहते हैं कि उन्हें लगता है कि ईरान को बातचीत की मेज़ पर आना चाहिए लेकिन ईरान उस जगह पर कैसे लौट सकता है जहां से वो कभी बाहर निकला ही नहीं.”
ईरान अब क्या कर सकता है?
बीबीसी के रक्षा संवाददाता फ्रैंक गार्डनर के मुताबिक़, अमेरिका के हमले के जवाब में अब ईरान के सामने तीन रणनीतिक रास्ते हैं.
पहला, कुछ न करना: इससे वह आगे के अमेरिकी हमलों से बच सकता है. वह कूटनीतिक रास्ता अपनाकर अमेरिका के साथ फिर से बातचीत में शामिल हो सकता है. लेकिन कोई कार्रवाई न करने से ईरानी शासन कमज़ोर नज़र आएगा, ख़ासकर जब उसने पहले गंभीर परिणामों की चेतावनी दी थी.
सरकार यह भी सोच सकती है कि इससे जनता पर उसकी पकड़ ढीली होने का जोख़िम आगे के अमेरिकी हमलों के ख़र्च से ज़्यादा है.
दूसरा, तेज़ और सख़्त जवाबी हमला: ईरान के पास अब भी बड़ी संख्या में बैलिस्टिक मिसाइलें हैं जिन्हें उसने सालों से बनाकर छिपा कर रखा है. उसके पास मध्य पूर्व में लगभग 20 अमेरिकी ठिकानों की सूची है जिन पर वह हमला कर सकता है. वह ड्रोन और टॉरपीडो नौकाओं से अमेरिकी नौसेना पर भी हमला कर सकता है.
तीसरा, अपने समय पर जवाब देना: इसका मतलब होगा कि ईरान इस समय तनाव के शांत होने का इंतज़ार करे और फिर तब हमला करे जब अमेरिकी बेस बहुत ज़्यादा सतर्क न हों. ऐसा हमला अचानक और हैरान करने वाला हो सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित