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- Author, जीन मैकेंज़ी
- पदनाम, बीबीसी सोल संवाददाता
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उत्तर कोरिया में मौत की सज़ा देने के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है और इनमें विदेशी फ़िल्मों और टेलीविज़न सीरियल देखने के लिए मौत की सज़ा भी शामिल है. ये बात संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में सामने आई है.
रिपोर्ट के अनुसार उत्तर कोरिया का नेतृत्व दुनिया से अलग-थलग है. यहां का तानाशाही शासन अपने नागरिकों पर ज़बरन मज़दूरी थोप रहा है और उनकी स्वतंत्रता के अधिकार को और सीमित कर रहा है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि पिछले एक दशक में उत्तर कोरिया ने “नागरिकों के जीवन के सभी पहलुओं” पर नियंत्रण और कड़ा कर दिया है.
रिपोर्ट के आख़िर में कहा गया है कि “आज की दुनिया में कोई और आबादी इतनी पाबंदियों में नहीं है.” साथ ही रिपोर्ट में ये कहा गया है कि यहां लोगों की निगरानी के लिए बनाई गई व्यवस्था “और ज़्यादा व्यापक” कर दी गई है, जिसका एक कारण तकनीक के क्षेत्र में हुआ विकास है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में क्या है?
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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कमिश्नर वोल्कर तुर्क ने कहा है कि अगर यह स्थिति लगातार जारी रही तो उत्तर कोरिया के लोग “और अधिक दर्द, बर्बर दमन और डर का सामना करेंगे, जो वे लंबे समय से झेल रहे हैं.”
ये रिपोर्ट उन 300 से अधिक लोगों के इंटरव्यू पर आधारित है जो पिछले 10 सालों में उत्तर कोरिया से जान बचाकर भागे हैं. उनका कहना है कि उत्तर कोरिया में मौत की सज़ा का इस्तेमाल बढ़ गया है.
साल 2015 से अब तक यहां कम से कम छह नए क़ानून लाए गए हैं जिनमें मौत की सज़ा का प्रावधान है.
उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन सूचनाओं तक लोगों की पहुंच सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं और अब विदेशी मीडिया कंटेन्ट जैसे फ़िल्में और टेलीविज़न सीरियल देखने और शेयर करने के मामले में भी मौत की सज़ा दी जा सकती है.
उत्तर कोरिया से भागे हुए लोगों ने संयुक्त राष्ट्र के शोधकर्ताओं को बताया कि 2020 के बाद से विदेशी कंटेन्ट डिस्ट्रिब्यूट करने को लेकर फांसी देने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने बताया कि यह सज़ाएं सार्वजनिक रूप से गोली मारकर दी जाती हैं ताकि लोगों में डर पैद किया जा सके और वे क़ानून का उल्लंघन न करें.
कांग ग्यूरी, 2023 में उत्तर कोरिया छोड़कर भागी थीं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि उनके तीन दोस्तों को दक्षिण कोरियाई कंटेन्ट के साथ पकड़े जाने पर मौत की सज़ा दी गई थी. 23 साल की उनकी एक दोस्त को मौत की सज़ा सुनाई गई थी. इस मुक़दमे की सुनवाई के दौरान ग्यूरी मौजूद थीं.
उन्होंने कहा, “मुक़दमे में उन्हें नशीले पदार्थों के अपराधियों के साथ रखा गया. ये अपराध अब एक जैसे माने जाते हैं.”
वो कहती हैं कि साल 2020 से लोगों के बीच डर और बढ़ गया है.
सरकार से उम्मीदें टूटी
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इस घटना के दशक भर पहले तक सरकार से लोगों को काफ़ी उम्मीदें थीं, लेकिन इस तरह के अनुभवों से उनकी उम्मीदें टूटती गईं.
उत्तर कोरिया से भागे हुए लोगों ने बताया कि साल 2011 में जब किम जोंग-उन ने देश की सत्ता संभाली थी, तब लोगों को उम्मीद थी कि उनकी ज़िंदगी सुधरेगी.
वो कहते हैं कि किम जोंग-उन ने वादा किया था कि अब उन्हें भूखे नहीं सोना पड़ेगा यानी उन्हें पर्याप्त खाने को मिलेगा. किम ने अर्थव्यवस्था का विकास करने और परमाणु हथियारों को विकसित कर देश की रक्षा करने का वादा किया था.
लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2019 में किम जोंग-उन ने पश्चिम और अमेरिका के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए. किम ने हथियार बनाने के कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया, जिसके बाद यहां लोगों की ज़िंदगी में तो मुश्किलें आईं, मानवाधिकार के स्तर में भी “गिरावट” आने लगी.
जिन लोगों से शोधकर्ताओं ने बात की उनमें से लगभग सभी ने बताया कि उनके पास पर्याप्त खाना नहीं था और दिन में तीन बार खाना मिलना “एक लग्ज़री” था.
कई लोगों ने बताया कि कोविड महामारी के दौरान खाने के सामान की गंभीर कमी देखी गई और पूरे देश में कई लोग भूख से मारे गए.
इस दौरान सरकार ने उन अनौपचारिक बाज़ारों पर भी रोक लगा दी जहां परिवार आपस में लेन-देन करते थे, जिससे उनके लिए गुज़ारा करना और मुश्किल हो गया. इसके साथ ही उत्तर कोरिया ने चीन से सटी अपनी सीमा पर कंट्रोल और कड़ा कर दिया. सरकार ने सेना को आदेश दिया कि सीमा पार करने की कोशिश करने वालों को गोली मार दी जाए.
साल 2018 में उत्तर कोरिया से भागी एक महिला ने कहा, “किम जोंग-उन के शुरुआती दिनों में हमें उम्मीद थी, लेकिन वह ज़्यादा देर तक नहीं रही. सरकार ने धीरे-धीरे लोगों को स्वतंत्र रूप से जीविका कमाने से रोक दिया और जीने का साधारण काम भी अब रोज़ाना की यातना बन गया.”
ये महिला उस वक्त 17 साल की थीं.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है, “पिछले 10 सालों में सरकार ने लोगों पर लगभग पूरा नियंत्रण कर लिया है. लोग अपने फैसले चाहे वह आर्थिक हों, सामाजिक या राजनीतिक- खुद नहीं ले पा रहे हैं.”
रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि सर्विलांस तकनीक में तरक्की ने इसे संभव बनाने में मदद की.
उत्तर कोरिया से भागे हुए एक शख़्स ने शोधकर्ताओं से कहा कि सरकार की ये कार्रवाई “लोगों की आंख और कान बंद करने के लिए है.”
उन्होंने अपना नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा कि, “यह एक ख़ास तरह का कंट्रोल है, जिसका उद्देश्य असंतोष या शिकायत के छोटे से छोटे संकेत को ख़त्म करना है.”
ज़बरन मज़दूरी से मौतों को कहा जाता है ‘बलिदान’ – यूएन
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संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि यहां की सरकार अब पहले से अधिक लोगों से ज़बरन मज़दूरी करवा रही है.
रिपोर्ट के अनुसार ग़रीब परिवारों के लोगों को “शॉक ब्रिगेड” में भर्ती किया जाता है, जहाँ उनसे निर्माण या खनन जैसी बेहद कठिन और ख़तरनाक परिस्थिति में मज़दूरी करवाई जाती है.
काम करने वाले लोगों को लगता है कि इससे उनके सामाजिक स्तर में सुधार आएगा, लेकिन ये काम ख़तरनाक होता है और इस काम में मौतें होना आम है.
लेकिन सरकार काम की परिस्थिति में बेहतर बनाने की बजाय इन मौतों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती है. इन मौतों को किम जोंग-उन के लिए ‘बलिदान’ की तरह पेश किया जाता है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हाल के वर्षों में यहां हज़ारों अनाथों और सड़कों पर रहने वाले बच्चों को भी इसमें झोंका है.
साल 2014 में संयुक्त राष्ट्र की एक जांच रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें पहली बार यह पाया गया था कि उत्तर कोरियाई सरकार मानवता के ख़िलाफ़ अपराध कर रही है.
इसी रिपोर्ट के बाद अब संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट सामने आई है.
2014 की रिपोर्ट में पाया गया था कि सबसे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन देश के कुख्यात राजनीतिक जेलों (कैम्पों) में हो रहे थे, जहां लोगों को उम्रकैद में रखा जा सकता है और उन्हें “ग़ायब” कर दिया जाता है.
2025 की रिपोर्ट में पाया गया कि इस तरह के कम से कम चार कैम्प अब भी चल रहे हैं. वहीं आम जेलों में भी कैदियों को यातना दी जा रही है और उन्हें शोषित किया जा रहा है.
कई लोग जिनसे शोधकर्ताओं ने बात की उन्होंने बताया कि वे कैदियों के साथ बुरे व्यवहार, ज़रूरत से ज़्यादा मेहनत और कुपोषण से उनकी मौत के गवाह बने हैं. हालांकि संयुक्त राष्ट्र को उत्तर कोरिया की जेलों में गार्ड्स द्वारा हिंसा में “थोड़ी कमी आने” जैसे “कुछ सीमित सुधार किए जाने” की जानकारी मिली.
उत्तर कोरिया को आईसीसी ले जाना चाहता है यूएन
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संयुक्त राष्ट्र ने अपील की है कि इस मामले को हेग स्थित इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में भेजा जाना चाहिए.
लेकिन ऐसा होने के लिए ज़रूरी है कि इसकी सिफ़ारिश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद करे.
साल 2019 से चीन और रूस उत्तर कोरिया पर नए प्रतिबंध लगाने की कोशिशों को बार-बार रोकते रहे हैं. ये दोनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं.
पिछले सप्ताह किम जोंग-उन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मुलाक़ात की. वह बीजिंग में हुई सैन्य परेड में शामिल हुए थे. ये उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम और उसके नागरिकों के साथ व्यवहार को लेकर एक तरह से इन देशों की मौन स्वीकृति का संकेत था.
संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कार्रवाई की अपील की है. साथ ही यूएन उत्तर कोरियाई सरकार से भी अपने राजनीतिक कैम्प को बंद करने, मौत की सज़ा ख़त्म करने और अपने नागरिकों को मानवाधिकारों के बारे में शिक्षा देने के लिए कह रहा है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर तुर्क का कहना है, “हमारी रिपोर्ट साफ़ पर तौर बदलाव की मज़बूत इच्छा दर्शाती है, ख़ास तौर पर (उत्तर कोरिया के) युवाओं के बीच.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.