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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक मस्जिद को गिराने को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है.
गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने शहर के घोष चौराहे पर बनी मस्जिद को गिराने का आदेश दिया है.
मस्जिद के ज़िम्मेदारों ने कोर्ट में इस नोटिस के ख़िलाफ़ अपील की है.
स्थानीय लोगों और मस्जिद समिति का दावा है कि पिछले साल यानी 2024 में इस ज़मीन पर ब्रिटिश काल की बनी एक पुरानी मस्जिद को नगर निगम ने गिरा दिया था.
इस मामले पर 3 मार्च को कमिश्नर कोर्ट में सुनवाई भी हुई है. हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
ये मस्जिद क़रीब 1200 वर्ग फ़ीट पर बनी थी.
जब इस मामले पर विवाद बढ़ा, तो निगम के नगर आयुक्त ने मुस्लिम समुदाय के साथ बैठक कर उन्हें पास में ही 520 वर्ग फ़ीट ज़मीन मस्जिद बनाने के लिए दे दी थी.
लेकिन अब जीडीए ने नोटिस में कहा है कि नगर निगम की ज़मीन पर अवैध तरीक़े से मस्जिद बनाई गई है. इसको गिराने के लिए 15 दिनों का समय दिया गया है.
जीडीए का कहना है कि बिना नक्शा पास कराए मस्जिद का निर्माण कराया गया है.
दूसरी ओर मस्जिद के पक्ष के लोग कह रहे हैं कि 100 वर्गमीटर से कम पर किसी भी निर्माण के लिए नक्शा पास कराना ज़रूरी नहीं है.
वैसे उत्तर प्रदेश में इस तरह का पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी प्रशासन ने कई जगह अतिक्रमण की बात कहकर धर्मस्थलों को गिराया है.
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गोरखपुर नगर निगम ने दावा किया था कि पिछले 50 वर्षों से घोष कंपनी चौराहे के पास ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा था.
नगर निगम ने 25 फरवरी 2024 को एक अभियान चलाकर ज़मीन पर बनी 31 दुकानों और 12 आवासीय परिसरों को हटाया था.
इनमें एक पुरानी मस्जिद भी शामिल थी. जब इस मामले पर विवाद बढ़ा, तो नगर निगम ने मस्जिद निर्माण के लिए 520 वर्ग फ़ीट ज़मीन दक्षिण पूर्वी कोने पर देने की सहमति जताई थी.
लेकिन वहाँ मस्जिद का निर्माण हो जाने के बाद जीडीए ने कहा कि इसका नक्शा पास नहीं कराया गया.
हालाँकि इससे पहले जीडीए ने मस्जिद कमेटी को नोटिस देकर अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. फिलहाल, गोरखपुर की मस्जिद समिति ने शनिवार से ख़ुद ऊपरी मंज़िल के हिस्से को तोड़ना शुरू कर दिया है.
इस मामले पर 3 मार्च को कमिश्नर कोर्ट में सुनवाई भी हुई है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
इस मामले में जीडीए के वाइस चेयरमैन आनंदवर्धन ने कहा, “क्योंकि अब ये मामला न्यायालय में है तो उसके निर्णय के बाद ही कोई टिप्पणी की जा सकती है.”
मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल हामिद कासमी ने मीडिया से बातचीत में कहा था, “हमारी सौ-सवा सौ साल पुरानी एक मस्जिद थी, जिसे नगर निगम ने तोड़ दिया था. उसके बाद हम लोग नगर निगम और ज़िलाधिकारी कार्यालय गए”.
“इसके बाद हम लोगों को एक किनारे साइड में ज़मीन दी गई थी. जिसका नक्शा बनवाने के लिए हम लोग ऑफ़िस गए थे. तब वहाँ बोला गया कि 1000 स्क्वायर फ़ीट के ऊपर नक्शा पास होता है. उन लोगों ने कहा कि आप लोग अपना निर्माण कर लें, हम लोगों को कोई परेशानी नहीं है.”
उन्होंने बताया, “अब यह मस्जिद बनकर तैयार हो गई है. उसके बाद जीडीए ने नोटिस भेजा है और उसमें लिखा है कि यह आप लोगों का जो निर्माण है, वह ग़लत है. इसका नक्शा पास नहीं है. इसको लेकर जीडीए ने 15 दिन का समय दिया है. मस्जिद को ख़ुद ध्वस्त कर लें, नहीं तो 15 दिन के बाद जीडीए ख़ुद इसे ध्वस्त कर देगी और उसका ख़र्चा भी हमसे लेगी.”
जीडीए ने 15 फरवरी को मस्जिद के दिवंगत मुतवल्ली के बेटे शोएब अहमद को नोटिस देकर 15 दिन में ख़ुद ही निर्माण हटाने को कहा था.
हालाँकि नगर निगम के आयुक्त गौरव सिंह सोगरवाल ने कहा, “ये मामला जीडीए के दायरे में आता है.”
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जमात ए इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोहतशिम ख़ान का आरोप है कि बुलडोज़र को मुसलमानों और उनके धार्मिक स्थल के ख़िलाफ़ हथियार बना दिया गया है.
उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में ख़ास तौर से मुसलमानों के धार्मिक स्थल निशाने पर हैं.
उन्होंने कहा, “अगर सरकार आँकड़ा जारी करे, तो पता चलेगा कि किस तरह से मुसलमानों को निशाना बनाकर कार्रवाई की जा रही है. कितने धार्मिक स्थल निशाने पर हैं. प्रशासन एकतरफ़ा ये कैसे तय कर सकता है कि ज़मीन उनकी है. जब तक क़ानूनी प्रावधान का प्रयोग बाक़ी रहा गया हो. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि किसी भी इमारत का ध्वस्तीकरण ही रास्ता नहीं है.”
जमात ए इस्लामी हिंद के इस आरोप को समाजवादी पार्टी ने भी जायज़ ठहराया है. समाजवादी पार्टी ने सरकार पर एक समुदाय के ख़िलाफ़ काम करने का आरोप लगाया है.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फख़रूल हसन चांद ने कहा, “बीजेपी की नीयत सिर्फ़ हिंदू-मुस्लिम की है. जिस तरह पहले मुसलमानों के घर निशाने पर थे. अब उनके धर्मस्थल भी निशाने पर हैं. प्रशासन सिर्फ़ सरकार की सुन रहा है. सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अवहेलना कर रही है.”
उन्होंने कहा, “समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव इस मामले पर जल्दी ही कोई फ़ैसला करने वाले हैं. पार्टी अदालत का रुख़ कर सकती है क्योंकि बीजेपी को संविधान पर विश्वास नहीं है.”
हालांकि इस मामले पर प्रदेश बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली का कहना है कि प्रशासन कोई एकतरफ़ा कार्रवाई नहीं कर रहा है.
उन्होंने कहा, “सभी पक्षों को सुना जा रहा है. पहले काग़ज़ भी मांगा जा रहा है. न्यायसंगत काम किया जा रहा है. जो धार्मिक स्थल रास्ते या विकास में बाधा बन रहे हैं, उनको आपसी सहमति से हटाया जा रहा है. किसी के साथ ज़्यादती नहीं की जा रही है. गोरखपुर में योगी महाराज (योगी आदित्यनाथ) ने सड़क निर्माण के लिए मठ के एक हिस्से को हटाया है. ये प्रदेश की उन्नति के लिए किया जा रहा है.”
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हालांकि उत्तर प्रदेश में ये ऐसी पहली घटना नहीं है.
इससे पहले कुशीगर में 9 फरवरी को मदीना मस्जिद के एक हिस्से को अवैध बताकर गिरा दिया गया था. ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
18 फरवरी को कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश सभी पक्षों को दिया है. ये मस्जिद निजी ज़मीन पर बनी है.
मेरठ में भी 21 फरवरी को एक मस्जिद को गिरा दिया गया था.
अधिकारियों के मुताबिक़ ये मस्जिद दिल्ली-मेरठ-ग़ाज़ियाबाद आरआरटीएस के रास्ते में आ रही थी, इस वजह से इसको गिराया गया है.
पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में ये मस्जिद गिराई गई.
मेरठ के एडीएम सिटी ब्रजेश कुमार सिंह ने मीडिया से कहा कि मस्जिद आरआरटीएस के लिए अधिग्रहित ज़मीन पर बनी हुई थी.
उन्होंने कहा कि एनसीआरटीसी मेरठ रैपिड मेट्रो का काम कर रही है. मस्जिद रास्ते में आ रही थी. तो सभी की सहमति से मस्जिद को हटाया गया है. अब ट्रैफ़िक भी सुचारू रूप से चल सकेगा.
हालांकि मस्जिद समिति के प्रतिनिधि हाजी स्वालेहीन ने मीडिया से कहा कि ये मस्जिद 1857 की थी और इसका एक ऐतिहासिक महत्व भी था.
उन्होंने बताया, “प्रशासन ने हमें इसको हटाने का नोटिस दिया था. अब हम चाहते हैं कि इसके लिए प्रशासन अलग से ज़मीन आवंटित करे ताकि हम मस्जिद का निर्माण कर सकें.”
मस्जिद समिति की इस मांग पर अधिकारियों का कहना है कि वरिष्ठ अधिकारियों को इस बारे में सूचित कर दिया गया है.
11 दिसंबर 2024 को उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर में नूरी जामा मस्जिद के एक हिस्से को प्रशासन ने अवैध बताकर गिरा दिया था.
फतेहपुर के एडीएम अविनाश त्रिपाठी ने मीडिया से उस समय कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ही कार्रवाई की गई है.
उन्होंने बताया था कि मस्जिद समिति को पर्याप्त समय दिया गया था और उसके बाद सिर्फ़ अतिक्रमण वाले हिस्से को गिराया गया है.
अधिकारियों ने बताया कि बांदा-बहराइच मार्ग के निर्माण में ये अतिक्रमण आड़े आ रहा था.
हालांकि मस्जिद समिति के मौलाना सादिक़ का कहना था कि ये मस्जिद 1839 की बनी थी और इलाहाबाद हाई कोर्ट में सरकार के नोटिस के ख़िलाफ़ वाद भी दायर था.
उन्होंने आरोप लगाया कि इसके बावजूद प्रशासन ने सामान हटाने तक मौक़ा नहीं दिया.
बाराबंकी के तहसील परिसर में गिराई गई थी मस्जिद
बाराबंकी ज़िले में ‘तहसील वाली मस्जिद’ के नाम से मशहूर मस्जिद को 2021 में प्रशासन ने गिरा दिया था.
उस समय ज़िला प्रशासन ने मस्जिद के निर्माण को अवैध बताया था.
बीजेपी का दावा सार्वजनिक काम के लिए मंदिर भी हटाए गए
हालांकि मुस्लिम समुदाय मस्जिद को गिराने के नोटिस से नाराज़ है. लेकिन बीजेपी का दावा है कि सार्वजनिक हित के लिए मंदिर भी हटाए गए हैं.
बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली का कहना है कि प्रदेश के विकास के लिए कई जगह मंदिर भी हटाए गए हैं.
मुज़फ्फरनगर में पानीपत-खटीमा मार्ग पर बने दो मंदिर और एक मकबरे को अक्तूबर 2022 में हटाया गया है.
तत्कालीन एसडीएम परमानंद झा ने कहा था कि सरकारी जगह पर अतिक्रमण करके निर्माण किया गया था. मार्ग के चौड़ीकरण के लिए इन सब को हटाया गया है.
राज्य सरकार पर ये भी आरोप लगा है कि काशी और अयोध्या में मार्ग को चौड़ा करने के लिए कई मंदिरों को हटाया गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित