उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िला मुख्यालय से महोली कस्बा तकरीबन 22 किलोमीटर दूर है. यहां के विकासनगर मोहल्ले में पत्रकार राघवेंद्र वाजपेयी रहते थे, जिनकी 8 मार्च को हत्या कर दी गई.
उनके परिवार में बूढ़े मां बाप हैं, पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं जबकि एक भाई की पहले ही मौत हो चुकी है.
उनकी पत्नी पत्नी रश्मि वाजपेयी और पूरा परिवार भारी सदमे में है. पत्नी का कहना है कि उन्हें ईमानदारी की क़ीमत चुकानी पड़ी.
पत्रकार की हत्या के ख़िलाफ़ सीतापुर की कई तहसीलों में प्रदर्शन भी हुआ है. प्रदेश के कई ज़िलों में पत्रकारों ने विरोध दर्ज कराया है.
सीतापुर के पुलिस अधीक्षक चक्रेश मिश्रा ने बीबीसी हिंदी से कहा कि घटना की जांच जारी है और अगर कोई नई जानकारी मिलती है तो बताया जाएगा.
हालांकि स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि पुलिस ने राजस्व विभाग के कई कर्मचारियों से पूछताछ की है और तीन लेखपालों समेत आठ लोगों को हिरासत में लिया है.
जबकि पूर्व में महोली में तैनात एक तहसीलदार से भी पूछताछ की गई है.
स्थानीय मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक, हादसे से पहले का सीसीटीवी फुटेज भी मिला है और पुलिस सभी बिंदुओं पर जांच कर रही है.
क्या है पूरा मामला
सीतापुर के महोली कोतवाली क्षेत्र के विकासनगर निवासी 36 वर्षीय राघवेंद्र वाजपेयी एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के तहसील संवाददाता थे.
उनकी पत्नी रश्मि वाजपेयी ने बताया, “थाना दिवस की कवरेज करके बाद लौटे थे, तभी उन्हें एक फ़ोन आया. इस के बाद वह बाइक से सीतापुर के लिए निकले थे. लेकिन लखनऊ-दिल्ली हाइवे पर जैसे ही रेलवे ओवर ब्रिज हेमपुर के पास पहुंचे, उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई.”
पुलिस के मुताबिक़, बाइक जैसे ही इमलिया सुल्तानपुर थानाक्षेत्र में हेमपुर नेरी गांव के नजदीक पहुंची, हमला करने वालों ने पीछे से टक्कर मार कर राघवेंद्र को गिरा दिया.
पुलिस अधीक्षक चक्रेश मिश्रा ने पत्रकारों को बताया था कि प्रारंभिक जांच में स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो सकी है.
वाजपेयी की पत्नी रश्मि का कहना है कि उनके पति की कोई नियमित दिनचर्या नहीं थी, “दिन भर घर आते जाते रहते थे. घटना वाले दिन भी किसी का फ़ोन आया था.”
उन्होंने कहा, “पैसे लेते तो शायद नहीं मारे जाते, ईमानदारी से काम कर रहे थे इसलिए मार दिए गए.”
राघवेंद्र वाजपेयी के रिश्ते के भाई कार्तिक द्विवेदी ने हत्या के पीछे एक सिंडिकेट का हाथ होने का आरोप लगाया.
बीबीसी हिंदी से उन्होंने कहा, “एक सिंडिकेट काम कर रहा है, जिसके ख़िलाफ़ वो लगातार लिख रहे थे. उन्होंने बताया था कि तहसील में ज़मीन की धांधली और धान ख़रीद का खेल चल रहा था, धमकी भी मिल चुकी थी.’
साथी पत्रकारों ने क्या बताया
इस हत्याकांड के विरोध में महोली कस्बे के पत्रकारों नें काली पट्टी बांध कर विरोध किया है. सीतापुर में जगह जगह प्रदर्शन भी हो रहे हैं.
महोली में राघवेंद्र वाजपेयी के साथी पत्रकार संजीव पांडे ने बताया कि ‘वो निडर किस्म के व्यक्ति थे. किसी के दबाव में नहीं आते थे.’
संजीव पांडे के अनुसार, “पुलिस कुछ संदिग्ध सरकारी कर्मचारियों से पूछताछ कर रही है. धान ख़रीद से लेकर भू माफिया के ख़िलाफ़ वो लगातार ख़बरें लिख रहे थे. उनकी एक ख़बर कई सरकारी कर्मचारियों के ख़िलाफ़ थी. संभवत: वे लोग नाराज़ थे.”
पांडे के मुताबिक, “कुछ सरकारी कर्मचारी भूमाफ़िया के साथ मिलकर ज़मीन की ख़रीद फ़रोख्त का काम कर रहे थे जिसमें फ़र्जी बैनामे हो रहे थे और विवादित ज़मीनें ख़रीदी जा रही थीं. बिना धान की फसल लगाए ज़मीनों की रिपोर्ट लगाकर क्रय में धांधली की जा रही थी.”
वहीं सीतापुर में स्थानीय पत्रकार ज़ीशान क़दीर ने कहा, “राघवेंद्र ने कई बड़ी ख़बरें लिखी थीं. वो इससे पहले एक राष्ट्रीय दैनिक में मेरे साथ काम कर रहे थे. मैं अच्छी तरह जानता हूं कि वो ख़बर के मामले में दबते नहीं थे.”
ज़ीशान ने कहा, “सीतापुर में ज़मीन का खेल तक़रीबन 20 साल से चल रहा है. इससे पहले भी ज़मीन के चक्कर में कई जानें जा चुकी हैं. राघवेंद्र ने ज़मीन और खाद्यान्न को लेकर छापा था.”
“इससे पहले हम एक अख़बार में साथ काम करते थे और धान ख़रीद को लेकर काफ़ी कुछ महोली से लिखा था. उसके बाद दूसरे अख़बार में गए तो ख़बरें लिखीं जिससे कई प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले भी हुए थे.”
ज़ीशान क़दीर के अनुसार, “सीतापुर में कई बड़े घोटाले हुए हैं. खाद्यान्न से लेकर कारतूस घोटाला हुआ, ज़मीन को लेकर यहां हेरा फेरी कोई नई बात नहीं है.”
सीतापुर के एडिशनल एसपी प्रवीन कुमार सिंह ने पत्रकारों को बताया था कि वह “आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकार थे’ और इस घटना की जांच की जा रही है.”
विपक्ष ने सरकार को घेरा
दिन दहाड़े हुए इस घटना के बाद से सरकार के ऊपर क़ानून व्यवस्था को लेकर गंभीर आरोप लग रहे हैं. अपना दल कमेरावादी की विधायक पल्लवी पटेल ने पीड़ित पक्ष से मिलने के बाद कहा, “प्रदेश में क़ानून व्यवस्था की स्थिति गंभीर है.”
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि पूरे प्रदेश में एक भय का माहौल है, कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं है, “ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है कि वह इस बीच लगातर धान खरीद में हो रही गड़बड़ियों के लिए लिख रहे थे.”
वहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मृतक के परिवार को तत्काल 1 करोड़ का मुआवजा जाने और आरोपियों को दंड देने की मांग की है.
उधर, उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा, “इस मामले में अपराधी बख़्शे नहीं जाएंगे. सबकी गिरफ़्तारी होगी और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा चलाया जाएगा.”
हालांकि सरकारी कर्मचारियों और भूमाफ़िया के गठजोड़ पर पुलिस फिलहाल खामोश है. सीतापुर के एसपी कह रहे हैं कि जांच चल रही है.
सीतापुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय अवस्थी ने इस हत्या के पीछे भ्रष्टाचार को वजह बताया.
उन्होंने कहा, “भ्रष्टाचार की कोई भी शिकायत होती है तो जांच से पहले शिकायतकर्ता का नाम सार्वजनिक कर दिया जाता है.”
प्रशासन और भूमाफ़िया के गठजोड़ पर ज़िले के अधिकारियों का कहना है कि इस तरह के मामले में ‘ज़िला प्रशासन सजग है.’
सीतापुर में सिटी मजिस्ट्रेट केएन तिवारी ने कहा, “इस तरह के मामले सामने आने पर उच्च स्तर पर जांच हुई है और पहले भी कार्रवाई की गई है. आगे जैसे ही पता चलेगा कार्रवाई की जाएगी. पहले भी भूमाफ़िया के ख़िलाफ़ कार्यवाई की गई है.”
उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमले
लखनऊ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस का कहना है कि इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं लेकिन हालात बदले नहीं.
उन्होंने कहा, “असहिष्णुता इतनी बढ़ गई है कि पत्रकारों को काम करना मुश्किल हो रहा है. पत्रकार सुरक्षा क़ानून कई राज्यों में बनाया गया है. यूपी में इस तरह का कानून नहीं बन पा रहा है. पत्रकारों के मामले में सख़्त एक्शन लिया गया हो, ऐसी कोई नज़ीर नहीं मिलती है. इसलिए तहसील स्तर के पत्रकारों को ख़तरा बना रहता है.”
वो कहते हैं, “पहले एक कमेटी बनती थी लेकिन अब सरकार अब अपने ढंग से कमेटी बनाने लगी है जिससे पत्रकारों को शिकायत के लिए कोई फोरम नहीं मिल पा रहा है. छोटी जगह का पत्रकार या तो खुद लड़ता है या फिर राघवेंद्र वाजपेयी की तरह उसका हश्र हो जाता है.”
कमेटी अगेंस्ट असाल्ट ऑन जर्नलिस्ट के मुताबिक साल 2017 -2022 के बीच उत्तर प्रदेश में 12 पत्रकारों की हत्या हुई है.
इस दौरान 138 पत्रकारों पर हमले भी हुए हैं. पिछले साल अक्तूबर 2024 में फतेहपुर में एक पत्रकार दिलीप सैनी की भी हत्या की गई थी.
अकेले 2020 में ही कुल सात पत्रकार राज्य में मारे गये- राकेश सिंह, सूरज पांडे, उदय पासवान, रतन सिंह, विक्रम जोशी, फराज़ असलम और शुभम मणि त्रिपाठी.
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से आईजी प्रशांत कुमार ताज़ा घटना की जांच की निगरानी कर रहे हैं. एसटीएफ़ भी जांच पड़ताल में जुटी है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.