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- Author, प्रेरणा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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‘छूट जाएंगे मैम…?’
‘छूट जाएंगे क्या? ‘
यह सवाल 24 साल की उन्नाव रेप सर्वाइवर…अपने ठीक बगल में बैठी महिला अधिकार एक्टिविस्ट योगिता भयाना से पूछती हैं. जवाब मिलता है – ‘नहीं, अभी तुम इंटरव्यू पर फ़ोकस करो. ज़्यादा मत सोचो.’
सर्वाइवर हमारी ओर मुड़ती हैं…दोबारा बात करने की कोशिश करती हैं लेकिन आंखों में डर और घबराहट के भाव के साथ.
सर्वाइवर से बातचीत करने के लिए हम उनके ही वकील महमूद प्राचा के दफ़्तर में बैठे थे.
दफ़्तर के अंदर घुसते ही एक बड़ा हॉल है और हॉल के बीचोबीच लंबी-चौड़ी एक टेबल, जिसके चारों तरफ़ वकीलों की टीम बैठी है.
चर्चा हो रही है कि दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब उनकी आगे की रणनीति क्या होनी चाहिए.
इसी हॉल के ठीक सामने के कमरे में सर्वाइवर, उनकी मां, दूसरे मीडियाकर्मी और योगिता भयाना की टीम बैठी है.
हमने यहीं बैठकर सर्वाइवर से बातचीत शुरू की.
हमने पूछा, ”आपको पता चला कि सीबीआई दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने जा रही है?”

जवाब में सर्वाइवर ने कहा , ”सीबीआई उस टाइम क्या कर रही थी…जिस टाइम बहस चल रही थी. अब तो हर बेटी की हिम्मत टूट चुकी है. रेप होगा तो या तो मार दी जाएंगी या फिर दोषी को सज़ा होगी और वो पांच साल बाद बाहर आ जाएगा. इस ऑर्डर को देखते हुए तो हर बेटी की हिम्मत टूट चुकी है.”
बीते आठ सालों में उन्नाव की इस रेप सर्वाइवर की ज़िंदगी कई कठिनाइयों से होकर गुज़री है.
रेप, गैंगरेप, पुलिस कस्टडी में पिता की मौत, सड़क हादसे में दो रिश्तेदारों और वकील की मौत और फिर अस्पताल में छह महीने लंबी चली अपनी ज़िंदगी बचाने की जंग.
इन्हीं आठ सालों में अभियुक्तों की गिरफ़्तारी भी हुई, मुक़दमे चले, फ़ैसले आए और सज़ा भी सुनाई गई. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले से सर्वाइवर की नाराज़गी साफ़ झलक रही है.
बहस हिन्दी में होती तो ये नौबत नहीं आती
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वह कहती हैं, ”अगर यही बहस हिन्दी में होती न तो अपना केस मैं ख़ुद ही लड़ लेती. थोड़ी इंग्लिश कमज़ोर है मेरी…पर कुछ-कुछ चीज़ें समझ आती है. जैसे जब उन्होंने ‘अलाउ’ बोला न…तो मैं समझ गई. उन्होंने बोला, विक्टिम की मदर और विक्टिम के पांच किलोमीटर के दायरे में कुलदीप सिंह सेंगर नहीं जाएंगे, पर पांच किलोमीटर क्या मैम…पांच हज़ार किलोमीटर भी उसके लिए कुछ नहीं है.
”अगर उसको मारना ही होगा न, खुद नहीं करेगा…वो अपने आदमियों से सारा कांड करवा देगा क्योंकि मैं देश में अपनी आंख से देखती हूं…रेप होता है, मार दिया जाता है. वो तो किस्मत थी, जो मैं बच गई. छह महीने वेंटीलेटर पर थी. मैंने भी मौत की लड़ाई लड़ी है. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज साहब मेरा बयान हॉस्पिटल में लेने आते थे. वह भी देखते थे कि मैंने कैसे संघर्ष किया है. आवाज़ नहीं निकलती थी, बेहोश होती थी फिर भी बयान देती थी.”
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साल 2017 में जब पीड़िता ने बीजेपी नेता और तत्कालीन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर रेप का आरोप लगाया था, तब उनकी उम्र महज़ 17 साल थी.
ऐसे में साल 2019 में जब दिल्ली की निचली अदालत ने बलात्कार के मामले में फ़ैसला सुनाया तब कुलदीप सिंह सेंगर को पॉक्सो के ‘एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट‘, यानी गंभीर यौन हिंसा के प्रावधान के तहत उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई.
जब कोई ‘पब्लिक सर्वेंट’ यानी लोक सेवक बलात्कार का अपराध करता है, तब आईपीसी की धारा 376(2)(बी) और पॉक्सो की धारा 5(सी) के प्रावधानों के तहत सज़ा दी जाती है. इन्हीं धाराओं के तहत कुलदीप सेंगर को भी सज़ा दी गई थी.
लेकिन सेंगर के वकीलों का कहना था कि ट्रायल कोर्ट ने उन्हें लोक सेवक मानने में ग़लती कर दी क्योंकि आईपीसी के तहत विधायक को लोक सेवक नहीं माना जा सकता.
दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंगर के वकीलों के तर्क से सहमति जताई और कहा कि उन पर लोक सेवक की परिभाषा लागू नहीं होती.
अदालत ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के 1984 के उस फ़ैसले का आधार लिया, जिसमें कहा गया था कि निर्वाचित प्रतिनिधि आपराधिक क़ानून की परिभाषा के अंदर लोक सेवक नहीं हैं.
‘आठ सालों में परिवार ने तीन सदस्यों को खोया’
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सर्वाइवर का कहना है कि वह तब तक अपना संघर्ष जारी रखेंगी जब तक कि सेंगर की ज़मानत ख़ारिज नहीं हो जाती.
उन्होंने कहा, ”अपना परिवार खोकर संघर्ष कर रही हूँ. पिता को खोया, चाची को खो दिया, अपनी मौसी को खो दिया. साथ में गांव के वकील, अपने एडवोकेट को खोया. मैं भी चली जाती लेकिन भगवान ने मुझे बचा लिया.”
वह बताती हैं कि अपनी सुरक्षा के लिए साल 2017 में ही उन्नाव छोड़ना पड़ा था.
”इतना डर था…रेप किया, धमकी दी कि अगर बता दिया किसी से तो जान से मार दूंगा. कुलदीप सिंह सेंगर ने मेरे पिता को मारने के बाद पूरे परिवार को उठाने की प्लानिंग बना ली थी. तय कर लिया था कि एक तरफ़ लेकर जाओ और ख़त्म कर दो लेकिन मेरे परिवार को ख़बर मिल गई और परिवार वहां से निकल गया.”
सर्वाइवर ने हमें बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद उन्नाव में रह रहे उनके परिवार के बाक़ी सदस्य डरे हुए हैं. उन्हें डर है कि सेंगर अब बाहर आ जाएंगे.
लेकिन कुलदीप सिंह सेंगर को लड़की के पिता के ग़ैर इरादतन हत्या के लिए भी दोषी पाया गया था और वह इस मामले में फ़िलहाल दस साल की सज़ा काट रहे हैं.
पर सर्वाइवर का कहना है कि इतने बड़े मामले में जब सेंगर को ज़मानत मिल सकती है, तो ये मामला तो उनके लिए कुछ भी नहीं है.
कुलदीप सिंह सेंगर ने इस मामले में भी सज़ा को निलंबित करने की अर्ज़ी दाख़िल की थी लेकिन साल 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे यह कहते हुए ठुकरा दिया कि सर्वाइवर की सुरक्षा भी एक अहम मुद्दा है.
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हालांकि दिसंबर 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने सर्वाइवर, उसके रिश्तेदार और वकील को मारने की साज़िश रचने के मामले में सेंगर को आरोपमुक्त कर दिया था. कोर्ट का कहना था कि उनके ख़िलाफ़ प्रथम दृष्टया कोई सबूत नहीं है.
दरअसल, साल 2019 में सर्वाइवर जब अपनी चाची, मौसी और वकील के साथ रायबरेली जा रही थीं, तब बिना नंबर प्लेट वाले एक ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मार दी.
इस घटना में सर्वाइवर की दोनों ही रिश्तेदार और वक़ील की मौत हो गई जबकि सर्वाइवर छह महीने वेंटिलेटर पर रहीं.
‘लड़ाई जारी रखेंगे’
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इस घटना को याद करते हुए वह कहती हैं, ”जब एक्सीडेंट हुआ मेरा, तब मैंने अपने आप को खड़ा किया. निडर हुई और ख़ुद से कहा कि हिम्मत नहीं हारूंगी. चारों तरफ़ से सीआरपीएफ़ की सुरक्षा रहते हुए भी धमकियां मिलती थीं…फिर भी हम डरते नहीं थे. हमने कहा… जो होगा देखा जाएगा…सामने आके धमकी दे देंगे…उस दिन मैं साबित कर लूंगी कि ये हमें मार देंगे. लेकिन ऐसा नहीं है कि वह अभी नहीं मार सकते. बस सामने से वार नहीं कर सकते. पीठ पीछे अपने सहयोगियों से करवा ज़रूर सकते हैं.
उन्होंने कहा, ”कुलदीप सिंह सेंगर और उनका परिवार मुझे फूलन देवी बनने को मजबूर कर रहे हैं. मैं तो कहती हूं कि बेल ख़ारिज कर के सारे मुजरिमों को जेल भेजा जाए.”
सर्वाइवर आज दो बच्चों की मां हैं. हमसे बातचीत के दौरान ही उनके पति का फ़ोन आता है, वह कहती हैं उन्हें यह कॉल उठानी होगी क्योंकि उन्हें नहीं पता उनके परिवार के साथ कब क्या हो जाए.
हमने उनसे पूछा कि उनकी ही इस लड़ाई में क्या उन्हें अपने पति का सहयोग मिल रहा है?
जवाब में वह कहती हैं, ”पति की नौकरी छूट गई है, उनको निकाल दिया गया है. वह घर पर बच्चे देख रहे हैं. मेरे बच्चों ने कभी मेरा दूध नहीं पिया. मैंने आदत ही नहीं लगाई क्योंकि मैं संघर्ष ही करती रह गई. अभी वो घर पर हैं लेकिन इतनी सुरक्षा होने के बावजूद भी डर है…सोचिए…बाहर निकलेंगे तो क्या होगा. कहां जाऊंगी…ये हम सोच ही नहीं सकते, लेकिन हिम्मत नहीं हारेंगे…लड़ाई लड़ेंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित