सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता द्वारा बच्चों को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड को लेकर अहम फैसला सुनाया है जिसके अनुसार माता-पिता की देखभाल न करने पर वे बच्चों को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद करा सकते हैं और उन्हें संपत्ति से बेदखल करा सकते हैं। कोर्ट ने एक मामले में मां की याचिका पर ये फैसला सुनाया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बुर्जुग माता-पिता की देखभाल न करने पर और उनकी उपेक्षा करने पर माता-पिता बच्चों को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद करा सकते हैं और उन्हें संपत्ति से बेदखल करा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में मां की याचिका पर बेटे को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने गिफ्ट डीड रद करते हुए 28 फरवरी तक मां को संपत्ति पर कब्जा देने आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 एक लाभकारी कानून है और इस कानून में स्थापित ट्रिब्यूनल वरिष्ठ नागरिकों के संरक्षण के लिए जरूरी होने पर बेदखली का आदेश दे सकती हैं।
मां ने लगाई थी कोर्ट में गुहार
न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और संजय करोल की पीठ ने गत दो जनवरी को दिये फैसले में वरिष्ठ नागरिक कानून की धारा 23 की व्याख्या करते हुए कहा कि इस धारा के तहत वरिष्ठ नागरिक को उपलब्ध राहत का कानून के उद्देश्य और कारण से संबंध है। कहा कि कुछ मामलों में हमारे देश के बुर्जुगों की देखभाल नहीं होती। ऐसे में ये चीज सीधे तौर पर कानून के उद्देश्य से जुड़ी हुई है।
पीठ ने कहा कि अगर वरिष्ठ नागरिक देखभाल करने की शर्त पर संपत्ति हस्तांतरित करते हैं तो यह कानून उन्हें अधिकारों का संरक्षण करने की शक्ति देता है। मध्य प्रदेश के इस मामले में मां ने याचिका दाखिल कर बेटे पर देखभाल न करने और उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उसे उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद करने की मांग की थी।
हाईकोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
मां ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की खंडपीठ के 31 अक्टूबर 2022 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। खंडपीठ ने अपने आदेश में हाई कोर्ट की एकलपीठ का, छतरपुर के कलक्टर का और सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट व चेयरमैन का आदेश रद कर दिया था, जिसमें सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत आदेश दिया गया था और माता-पिता की देखभाल न करने पर बेटे के हक में की गई गिफ्ट डीड रद कर दी गई थी।
मां का कहना था कि उसने देखभाल करने की शर्त पर बेटे को संपत्ति उपहार में दी थी, लेकिन बेटे ने उनकी देखभाल नहीं की बल्कि उन पर हमला किया, इसलिए गिफ्ट डीड रद कर उन्हें संपत्ति वापस कराई जाए। उनका कहना था कि गिफ्ट डीड के साथ एक वचनपत्र भी बेटे से लिया गया था कि वह देखभाल करेगा। छतरपुर के सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने मां की अर्जी स्वीकार करते हुए गिफ्ट डीड शून्य घोषित कर दी थी।
खंडपीठ ने बेटे के हक में सुनाया था फैसला
इसके बाद बेटे की अपीलें उच्च अथारिटी और हाई कोर्ट की एकलपीठ से खारिज हो गईं, लेकिन हाई कोर्ट की खंडपीठ ने निचली अथारिटी और एकलपीठ का फैसला पलटते हुए बेटे के हक में फैसला दिया और कहा कि गिफ्ट डीड में देखभाल करने की कोई शर्त नहीं थी। खंडपीठ ने वचनपत्र को नहीं माना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कई पूर्व फैसलों में वरिष्ठ नागरिक कानून के उद्देश्यों और प्रविधानों की व्याख्या का उल्लेख करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश को गलत ठहराते हुए खारिज कर दिया।
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