एओर्टिक स्टेनोसिस एक लंबे समय तक चलने वाली स्थिति हो सकती है, इसलिए इसे तीन स्तरों में बांटा जाता है: हल्का, मध्यम और गंभीर.
एनएचएस की वेबसाइट पर लिखा है, “इस बीमारी की प्रगति धीरे-धीरे होती है और कई मरीज़ सालों तक बिना लक्षण के रहते हैं. फ़ॉलो-अप का अंतराल आपकी स्थिति और बीमारी की प्रगति के आधार पर डॉक्टर तय करते हैं. हल्के एओर्टिक स्टेनोसिस में आमतौर पर बहुत कम अंतराल पर जांच की ज़रूरत होती है.”
किन टेस्टों के ज़रिए इसका पता लग सकता है?
एओर्टिक स्टेनोसिस वाले अधिकतर लोगों का ईकोकार्डियोग्राम और ईसीजी किया जाता है.
कुछ और टेस्ट भी किए जा सकते हैं जैसे सीटी स्कैन टेस्ट के दौरान आप सीधा लेटकर एक बड़े रिंगनुमा स्कैनर से गुज़रते हैं, जो दिल की विस्तृत एक्स-रे तस्वीरें लेता है. इसमें इंजेक्शन दिया जाता है और यह टेस्ट कुछ मिनटों में पूरा हो जाता है.
वहीं ईकोकार्डियोग्राम (ईको या कार्डियक अल्ट्रासाउंड) टेस्ट में एक अल्ट्रासाउंड प्रोब को छाती पर रखा जाता है और दिल की चलती हुई तस्वीरें ली जाती हैं. यह टेस्ट लगभग 30 मिनट का होता है.
इसके अलावा एंजियोग्राम टेस्ट भी होता है जिसमें हृदय की धमनियों का एक्स-रे होता है.
कार्डियोपल्मनरी एक्सरसाइज़ टेस्ट से भी हृदय की सेहत का पता लगाया जा सकता है. इसमें मरीज़ को ट्रेडमिल पर या साइकल चलवाकर यह देखा जाता है कि उसका हृदय और लिवर एक्सरसाइज़ पर किस तरह रिस्पॉन्स कर रहा है.
साथ ही डॉक्टर इस बीमारी में हेल्दी लाइफ़स्टाइल पर ध्यान देने की बात कहते हैं. साथ ही वज़न को नॉर्मल रेंज में रखने के लिए कहा जाता है.
अगर कोई धूम्रपान करता है तो उसे तुरंत बंद कर देना चाहिए, साथ ही अधिकतर मरीज़ों के एक्सरसाइज़ करने पर कोई पाबंदी नहीं होती है. लेकिन फिर भी इस पर डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.