50 फ़ीसदी तक जुड़वाँ बच्चे एक-दूसरे से बातचीत करने के लिए संवाद का अपना तरीका विकसित कर लेते हैं. इनमें से ज़्यादातर जुड़वाँ बच्चे समय के साथ इसे भूल भी जाते हैं.
मगर योल्डेन जुड़वाँ भाइयों के लिए संवाद का यह सामान्य तरीका बन चुका है. दरअसल, जुड़वाँ भाई मैथ्यू और माइकल योल्डेन 25 भाषाएँ बोल लेते हैं.
26वीं भाषा है उमेरी, जिसे ये दोनों भाई अपनी सूची में शामिल नहीं करते. अगर आपने उमेरी के बारे में नहीं सुना है, तो इसकी एक अच्छी वजह है.
और वो यह कि माइकल योल्डेन और मैथ्यू योल्डेन ही वो दो लोग हैं, जो इसे बोलते हैं. पढ़ते हैं और लिखते हैं. क्योंकि इस भाषा को उन दोनों भाइयों ने बचपन के दौरान बनाया था.
हालांकि, दोनों भाई उमेरी भाषा के गुप्त होने के मामले पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि उमेरी को जानबूझकर गुप्त भाषा बनाया गया है.
एक ईमेल में वे कहते हैं, “उमेरी ऐसी भाषा नहीं है, जिसका इस्तेमाल बातों को निजी रखने के लिए किया जाता है.”
वो कहते हैं, “बल्कि यह हमारे लिए निश्चित तौर पर भावनात्मक तौर पर महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि, यह हम दोनों भाइयों के बीच साझा किए जाने वाले गहरे रिश्ते को दर्शाती है.”
वैसे एक अनुमान के मुताबिक़, 30 से 50 फ़ीसदी जुड़वाँ आपसी बातचीत के लिए अपनी भाषा विकसित कर लेते हैं या फिर संवाद का ऐसा तरीका बना लेते हैं, जो केवल उन दोनों को समझ आता है, इसे क्रिप्टोफ़ेसिया कहा जाता है. इसमें शब्दों को ग्रीक से सीधे गुप्त भाषा में अनुवादित कर दिया जाता है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
नैंसी सीगल कैलिफ़ोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के ट्विन स्टडीज़ सेंटर की निदेशक हैं. वह मानती हैं कि अब इस तरह के संवाद के लिए और भी शब्द आ चुके हैं, जिनका इस्तेमाल गुप्त बातचीत के लिए किया जाता है.
उन्होंने अपनी किताब ट्विन मिथकंसेप्शन्स में लिखा है कि जुड़वाँ अक्सर आपसी संवाद और समझ के लिए इन तरीकों का उपयोग करते हैं.
उन्होंने लिखा, “मौजूदा स्टडीज़ के आधार पर, यह कहना सही होगा कि 40 फ़ीसदी जुड़वाँ बच्चे इस तरह की बातचीत में शामिल होते हैं, जो केवल उन दोनों को समझ आ रही होती है.”
वह लिखती हैं, “मगर यह आंकड़ा यह नहीं बताता है कि जुड़वाँ बच्चों में भाषा का विकास कितना जटिल होता है.”
जैसे नीदरलैंड्स में रहने वाले रॉय जोहन्निक के जुड़वाँ बच्चे मेर्ली और स्टीन अब टीनेजर हो चुके हैं.
13 साल पहले, जब ये दोनों जुड़वाँ बच्चे थे, तब जोहन्निक ने उन दोनों बच्चों का एक वीडियो बनाया था.
इस वीडियो में ये दोनों बच्चे एक-दूसरे से बड़बड़ाते-तुतलाते नज़र आए थे. जोहन्निक ने इस वीडियो को यूट्यूब पर शेयर किया, तो इसे 3 करोड़ व्यूज़ मिले थे.
दरअसल, यह पहली बार था, जब इन जुड़वाँ बच्चों ने एक-दूसरे से बातचीत करना शुरू की थी, और उस समय इत्तेफ़ाक से जोहन्निक के हाथ में उनका कैमरा था.
जोहन्निक ने कहा, “मैं थोड़ा हैरान था क्योंकि उन दोनों ने एक-दूसरे को देखा. और दोनों ने सोचा कि आह! इस पल में मैं अकेला नहीं हूं. मेरे जैसा कोई और भी है. और हम दुनिया के सामने हैं.”
सीगल इसी बात को विस्तार से समझाते हुए कहती हैं कि जैसे मेर्ली और स्टीन (जब उन दोनों बच्चों ने डच भाषा सीखी थी, तो वो बचपन में संवाद के लिए इस्तेमाल की गई उनकी भाषा को भूल गए थे)
ज़्यादातर जुड़वाँ बच्चे समय के साथ संवाद के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उनकी गुप्त भाषा से दूर होते जाते हैं, क्योंकि घर के बाहर उनका सामना कई तरह के लोगों और बातों से होता है.
मगर योल्डेन जुड़वाँ भाइयों के लिए यह मामला ऐसा नहीं था. उन्होंने अपनी भाषा को खुद से दूर नहीं होने दिया, बल्कि इसके उलट उन दोनों ने वर्षों तक अपनी भाषा को पूर्ण और समृद्ध बनाया.
उमेरी की शुरुआत कब हुई?
योल्डेन जुड़वाँ भाइयों की परवरिश यूनाइटेड किंगडम के मैनचेस्टर में कई संस्कृतियों और जातियों के बीच हुई थी. इस दौरान उन दोनों में भाषा के प्रति प्रेम पनपा था.
हालांकि, उमेरी की भाषा दोनों के बीच कब शुरू हुई? इसे लेकर दोनों को कुछ ठीक से याद नहीं है.
लेकिन, इतना याद है कि जब वो दोनों भाई एक-दूसरे को उमेरी भाषा में कोई चुटकुला सुनाते थे, तो उस समय उनके दादाजी को यह समझ में नहीं आता था और वो चकरा जाते थे.
इसके बाद वो दोनों भाई उनकी पहली विदेश यात्रा पर स्पेन गए थे. तब वो दोनों आठ साल के थे. तब दोनों ने तय किया था कि वो स्पेनिश सीखेंगे.
क्योंकि, वो दोनों यह मान चुके थे कि अगर उन्होंने स्पेनिश नहीं सीखी तो उनको आइस्क्रीम ऑर्डर करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ेगा.
फिर उन्होंने एक शब्दकोष लिया और उससे थोड़ी समझ विकसित की, कि किसी भाषा की व्याकरण किस तरह काम करती है.
इसके बाद दोनों ने वाक्यों का शब्द के आधार पर अंग्रेज़ी से स्पैनिश में अनुवाद करना शुरू किया. इसके बाद दोनों ने इतालियन भाषा सीखी और अपना ध्यान स्कैंडिनेवियाई भाषा पर लगाना शुरू किया.
फिर एक से ज़्यादा भाषाओं के व्याकरणों को सीखने-समझने के बाद दोनों को यह लगा कि इस तरह तो उमेरी भी अपने आप में एक पूर्ण भाषा बन सकती है.
यह घटनाक्रम सीगल की टिप्पणियों से मिलता-जुलता है.
उनके अनुसार, सामान्य तौर पर जुड़वाँ बच्चे कोई नई भाषा का आविष्कार नहीं करते हैं, बल्कि वे जिस भाषा के संपर्क में आते हैं, उससे ही कुछ तरीके संवाद के लिए निकाल लेते हैं.
यह हो सकता है कि ये दूसरों के लिए अस्पष्ट हों, लेकिन फिर भी वो एक-दूसरे की ओर इससे जुड़े इशारे करते रहते हैं.
इसी के चलते योल्डेन जुड़वाँ भाइयों ने उमेरी को भाषा के तौर पर विकसित करने के लिए कोशिश शुरू की. एक पड़ाव पर दोनों ने उमेरी की वर्णमाला बनाने का प्रयास भी किया.
मगर फिर दोनों को महसूस हुआ कि (जब उनको उनका पहला कंप्यूटर मिला था, उसमें उमेरी भाषा नहीं थी) उनके कंप्यूटर में उमेरी फॉन्ट नहीं है, ऐसे में इसका इस्तेमाल बहुत सीमित हो सकेगा.
अब उमेरी लैटिन वर्णमाला का उपयोग करके लिखी जाती है. हालांकि, कुछ लोगों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा को संरक्षित करने की अपनी कुछ चुनौतियाँ होती हैं.
साझा भाषा
भाषा की चुनौतियों को लेकर मैथ्यू कहते हैं, “जुड़वाँ बच्चों की यह साझा भाषा होती है. एक मौका आता है, जब वो इसका इस्तेमाल करना बंद कर देते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर उनको शर्म महसूस होती है. जुड़वाँ बच्चों की भाषा को लेकर होने वाली यह कोई अनोखी बात नहीं है.”
वह कहते हैं, “अगर कोई व्यक्ति ऐसी किसी भाषा का इस्तेमाल संवाद के लिए करता है, जो ज़्यादा लोगों द्वारा नहीं बोली जाती है, तो इसे बोलने वालों की संख्या और भी कम हो सकती है.”
मैथ्यू कहते हैं, “खासकर तब, जब आपकी परवरिश ऐसी किसी भाषा में हुई है, तो स्कूल में आपका मज़ाक बनाया जा सकता है या फिर आपको बहिष्कृत किया जा सकता है. हम सौभाग्यशाली रहे कि हमारे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ.”
वह बताते हैं कि इसके उलट हमारे घर में हमारे माता-पिता ने हम दोनों भाइयों के बीच उमेरी भाषा का इस्तेमाल बढ़ने को नकारात्मक नहीं माना.
मैथ्यू याद करते हुए बताते हैं कि जब कभी भी परिवार में हम दोनों भाई अपनी भाषा में बात करने लग जाते थे, तो परिवार की प्रतिक्रिया होती थी कि हमने फिर अपनी भाषा पर काम करना बंद कर दिया है.
भाषा का विकास
यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वींसलैंड में क्वींसलैंड ब्रेन इंस्टीट्यूट में चाइल्ड डेवलपमेंट, एजुकेशन एंड केयर रिसर्च की विशेषज्ञ हैं केरन थोर्प. वह जुड़वाँ बच्चों में भाषा के विकास पर व्यापक अध्ययन कर चुकी हैं.
वह कहती हैं, “निजी भाषा उन लोगों के लिए बेहद खूबसूरत चीज़ है, जो वो अपने किसी बेहद क़रीबी के साथ साझा करते हैं. बजाए इसके कि इसे अजीब और ग़ैरउपयोगी माना जाए, मेरे लिए यह एक बहुत क़रीबी रिश्ते जैसा है.”
वह कहती हैं कि, “मगर क्या ये केवल जुड़वाँ तक ही सीमित हैं? ऐसा मुझे नहीं लगता. मेरा मानना है कि यह हर खास और क़रीबी रिश्ते के साथ होती है.” वह इसे सामान्य विकसित लक्षण भी मानती हैं.
जैसा कि उन्होंने साल 2010 में पेश किए गए रिसर्च पेपर में लिखा था कि “बात केवल इतनी है कि छोटे बच्चे, जिन्होंने बोलना बस शुरू ही किया है, वो एक-दूसरे को अपने माता-पिता या अन्य किसी वयस्क की तुलना में बेहतर जानते हैं.”
दूसरों के लिए, जैसे योल्डेन भाइयों के लिए उनकी भाषा क़रीबीपन और बौद्धिक जिज्ञासा का संयोजन है. हालांकि, थोर्प कहते हैं कि निजी भाषा का ऐसा विकास अपेक्षाकृत दुर्लभ है.
सीमित केस स्टडीज़
क्रिप्टोफ़ेसिया या जुड़वाँ बच्चों की भाषा पर सीमित केस स्टडीज़ ही उपलब्ध हैं. उनमें से कुछ जो सबसे ज़्यादा चर्चित हैं, वो मनोचिकित्सा का हिस्सा हैं.
जून और जेनिफ़र गिबन्स का उदाहरण ऐसा ही है. दोनों जुड़वाँ बहनों का जन्म बाजन में साल 1970 में हुआ. दोनों की परवरिश वेल्स में हुई थी.
उनमें से एक बहन ने बीबीसी को बताया कि उनको बोलने में दिक्कत थी और इसके लिए उनको स्कूल में परेशान किया जाता था.
इसका नतीजा ये हुआ कि दोनों ने दूसरों से बात करना ही बंद कर दिया था. वो दोनों केवल एक-दूसरे से बातचीत किया करती थीं.
दरअसल, दूसरों के साथ-साथ उनके माता-पिता को भी उनकी बातचीत समझ नहीं आती थी.
19 साल की उम्र में उनको आगजनी और चोरी जैसे अपराधों के लिए गिरफ़्तार करके उन्हें इंग्लैंड के उच्च सुरक्षा वाले मनोरोग अस्पताल ब्रॉडमूर में भेज दिया गया था. वहां ये दोनों सबसे कम उम्र की मरीज़ थीं.
जून ने बीबीसी पॉडकास्ट में उनकी ज़िंदगी के बारे में बात करते हुए बताया कि, “हम बहुत हताश थे. हम अपने जुड़वाँपन और अपनी भाषा में फंस गए थे. हमने खुद को अलग करने के लिए हरसंभव कोशिश की थी.”
अब क्या करते हैं ये जुड़वाँ भाई?
अधिकांश जुड़वाँ बच्चे उस भाषा को भूल जाते हैं, जो उन्होंने बचपन में संवाद के तौर पर इस्तेमाल की होती है.
इस बारे में थोर्प कहते हैं कि मगर कुछ जुड़वाँ बच्चे कुछ शब्दों और कुछ इशारों को याद रख लेते हैं, यहां संवाद के बजाए इशारे से ही काम चल जाता है.
वह कहते हैं, “हो सकता है कि उनके पास कुछ ऐसा न हो, जिसे आप और हम विशिष्ट भाषा माने, लेकिन उनके पास कुछ तो ऐसा है, जो खास है.”
हालांकि, उनके ऐसा करने से यह पता चलता है कि जुड़वाँ बच्चों में भाषा सीखने में देरी होने का ख़तरा बना रहता है, और उनकी निजी भाषा इसमें कोई योगदान नहीं कर पाती है.
वैसे जुड़वाँ बच्चों के भाषा सीखने में देरी होने की वजह वयस्कों का जुड़वाँ पर कम ध्यान देना होता है. समय से पहले जन्म होना, गर्भावस्था और जन्म के दौरान आई दिक्कतें भी इसकी वजह हो सकती हैं.
सीगल कहती हैं, “एक बात जो मैं माता-पिता से कहती हूं, और वो यह है कि माता-पिता सुनिश्चित करें कि अपने बच्चों से बातचीत करते रहे, ताकि जुड़वाँ बच्चे भाषा से रूबरू हों.”
वह कहती हैं, “आमतौर पर होता यह है कि अभिभावक जुड़वाँ बच्चों को अकेला छोड़ने लगते हैं, यह मानकर कि वो दोनों एक-दूसरे का मनोरंजन कर लेंगे, लेकिन इस स्थिति में दोनों के सामने वयस्कों की भाषा नहीं आ पाती है.”
जैसे योल्डेन जुड़वाँ भाइयों के लिए, उमेरी को बनाना एक सकारात्मक अनुभव के अलावा और कुछ नहीं रहा है. मगर उनकी भाषा विकसित हो रही है, क्योंकि दोनों भाई आधुनिक जीवन से जुड़ी बातों के लिए नए-नए शब्दों के बारे में सोचते रहते हैं.
इस बारे में मैथ्यू कहते हैं, “आईपैड हो या लाइटनिंग केबल, ये सभी शब्द आज से 20-30 साल पहले नहीं हुआ करते थे.”
अब योल्डेन जुड़वाँ भाई खुद की लैंग्वेज़ कोचिंग कंपनी चलाते हैं, जो व्यक्तियों, शिक्षण संस्थानों और निजी कंपनियों को भाषा सीखने में मदद करती है.
माइकल ग्रैन कैनरिया में रहते हैं और मैथ्यू बास्क देश में रहते हैं. वो दोनों अभी भी एक-दूसरे से उमेरी भाषा में ही बात करते हैं.
इस भाषा को किसी बच्चे को सौंपने की उनकी कोई योजना नहीं है. उनको इस भाषा को किसी और के साथ साझा करने में बहुत अजीब लगता है.
माइकल कहते हैं, “यह एक अनोखी भाषा है, जो दो लोगों द्वारा बोली जाती है. यह उन चीजों में से एक है, जिसकी समाप्त होने की भी तारीख है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित