ग्रेटर नोएडा में विवाहिता निक्की की दर्दनाक मौत का मामला सामने आया है। CCTV फुटेज में उसे आग से जलते हुए देखा गया। NCRB के अनुसार 2022 में दहेज हत्या के 6450 मामले दर्ज हुए। दहेज निषेध अधिनियम 1961 जैसे कानून मौजूद हैं पर जांच में देरी और सामाजिक जागरूकता की कमी के कारण न्याय में बाधा आती है। दहेज प्रथा जो कभी मदद थी अब शोषण बन गई है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जो काफी ज्यादा सुर्खियों में है। यहां निक्की नाम की एक विवाहिता की दर्दनाक मौत हो गई। सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता है कि निक्की आग से जलती हुई सीढ़ियों से नीचे उतर रही है और अपनी जान बचाने के लिए खुद जंग लड़ रही है।
यह मामला सामने आने के बाद एक बार फिर से यह सवाल उठ रहा है कि क्या हमारा कानून और समाज सच में महिलाओं को सुरक्षा देने में सक्षम हैं? भारत में दहेज की लालच ने दशकों से महिलाओं को मौत की आग में झोंका है।
NCRB की रिपोर्ट से खुलासा
NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के अनुसार, 2022 में दहेज हत्या के कुल 6450 मामले दर्ज हुए थे। इस आंकड़े के अनुसार बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और हरियाणा ने अकेले 80% मामलों में योगदान दिया।
इस डेटा के अनुसार, हर तीन दिन में लगभग 54 महिलाएं दहेज प्रताड़ना और हत्या का शिकार होती रही हैं। यह सिर्फ संख्या या आंकड़े नहीं है, ये एक दर्दनाक सच्चाई है।
दहेज हत्या या दहेज की मांग को लेकर प्रताड़ना के मामले सामने तो आते हैं, लेकिन हर साल हजारों महिलाओं का जीवन इसकी भेंट चढ़ रहा है। जांच, मुकदमेबाजी और सजा की धीमी प्रक्रिया आरोपियों को बचाने वाली बन चुकी है।
दहेज के खिलाफ कानून
दहेज के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम 1961, IPC की धारा 304B और 498A और प्रोटेक्शन ऑफ वुमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 जैसे कानून मौजूद हैं। फिर भी न्याय की राह में मुख्य तीन बाधाएं बनी हुई हैं:-
- देर से जांच और सुनवाई
- लॉ फर्मेस की अनुपस्थिति
- सामाजिक जागरूकता का अभाव
गांव से लेकर शहरों तक जारी है दहेज प्रथा
भारत में दहेज प्रथा की शुरुआत मूल रूप से शादी के बाद बेटियों को आर्थिक मदद देने के एक तरीके के रूप में की गई थी। सदियों से चली आ रही यह प्रथा धीरे-धीरे डिमांड के रूप में बदल गई, जिसने परिवारों पर भारी दबाव डाला और शोषण को जन्म दिया।
कब बना दहेज प्रथा पर कानून?
भारत में दहेज को लेकर दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 बना था, जो 1 जुलाई 1961 को लागू किया गया था। यह अधिनियम बताता है कि दहेज लेना या देना कानूनन दंडनीय अपराध है और इसे रोकना या खत्म करना बहुत जरुरी है।
दहेज विरोधी कानूनों को मजबूत करने और किसी महिला के पति या उसके परिवार द्वारा की जाने वाली क्रूरता से निपटने के लिए 1983 में नए प्रावधान जोड़े गए, जैसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 198A।
महिलाओं की सुरक्षा के उपाय
दहेज उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए 2005 में घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम लागू किया गया था। भारत में दहेज को रोकने के लिए कानून में कई सख्त धाराएं जोड़ी गई हैं।
पहले दहेज को सिर्फ सामाजिक बुराई माना जाता था, लेकिन बढ़ते अपराधों की वजह से इसे लेकर खास प्रावधान बनाए गए हैं। IPC की धारा 304B दहेज हत्या से जुड़ी है। इसका मतलब है कि अगर शादी के बाद 7 साल के भीतर किसी महिला की मौत होती है और उसमें दहेज की वजह सामने आती है, तो उसे दहेज हत्या माना जाएगा।
यह कानून भी हैं काफी सख्त
साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B भी इसी से जुड़ी हुई है। इसमें साफतौर पर कहा गया है कि अगर महिला की मौत शादी के 7 साल के भीतर होती है और उसके साथ दहेज उत्पीड़न के सबूत मिलते हैं, तो माना जाएगा कि उसकी मौत दहेज की वजह से हुई है।
सिर्फ इतना ही नहीं, IPC की धारा 498A पति और उसके परिवार द्वारा की गई किसी भी तरह की क्रूरता को अपराध मानती है। यानी अगर महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से परेशान किया जाता है तो उस पर भी कार्रवाई होगी।