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इमेज कैप्शन, अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक ने कहा है कि यह नियम केवल नए आवेदनों पर लागू होगा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा के लिए नया एलान किया है, जिसके बाद अमेरिका, भारत समेत कई देशों में यह बड़ा मुद्दा बन गया है.
इस एलान के तहत हर नए एच-1बी वीज़ा आवेदक को अमेरिकी सरकार को एक लाख डॉलर (क़रीब 88 लाख रुपये) फ़ीस चुकानी होगी. यह नियम 21 सितंबर 2025 से लागू होगा.
घोषणा के बाद से ही इसके ब्योरे को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई. भारत का विदेश मंत्रालय भी इस मामले पर सक्रिय हुआ और उसने कहा कि वह एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम पर प्रस्तावित पाबंदियों से जुड़ी ख़बरों को देख रहा है और असर को समझने की कोशिश कर रहा है.
शनिवार देर रात यूएस सिटीज़नशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज़ (यूएससीआईएस) की ओर से जारी बयान में साफ़ किया गया है, ”राष्ट्रपति ट्रंप की नई एच-1बी वीज़ा आवश्यकता केवल उन नए संभावित आवेदनों पर लागू होती है जो अभी तक दायर नहीं किए गए हैं. 21 सितंबर 2025 से पहले दायर किए गए आवेदन इससे प्रभावित नहीं होंगे.”
कुल मिलाकर इस पूरे फ़ैसले ने दुनियाभर में बहस छेड़ दी है. ऐसे में देखते हैं कि अमेरिका के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने ट्रंप प्रशासन की इस घोषणा पर क्या कहा है.
‘उम्मीद है यह क़दम कोर्ट में चुनौती झेलेगा’
अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट की वेबसाइट की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ”राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा के अनुसार नए एच-1बी वीज़ा आवेदकों पर एक लाख डॉलर फ़ीस लगाने से कंपनियां उलझन में पड़ गईं और अस्थायी श्रमिकों में चिंता बढ़ गई.”
रिपोर्ट के मुताबिक़, ”कई इमीग्रेशन एक्सपर्ट और कॉरपोरेट अधिकारियों ने आदेश की ‘अस्पष्ट शब्दावली’ पर चिंता जताई, जिसके बाद कंपनियों ने एच-1बी वीज़ा धारकों को अपनी यात्रा योजनाएं तुरंत सीमित करने की चेतावनी दी.”
वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, ”कई कंपनियां डर गई थीं कि अगर मौजूदा वीज़ा धारक एक लाख डॉलर फ़ीस नहीं देंगे तो उन्हें देश में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी.”
राष्ट्रपति जो बाइडन के समय यूएस सिटीज़नशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज़ के निदेशक के वरिष्ठ सलाहकार डग रैंड का बयान इस रिपोर्ट में शामिल है. उनका कहना है, ”मुझे उम्मीद है कि यह क़दम कोर्ट में चुनौती झेलेगा और लगभग निश्चित रूप से पलट दिया जाएगा.”
वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक़, ”अगर यह नियम कायम रहता है तो इससे वैध इमिग्रेशन के लिए एक अहम रास्ता बंद हो जाएगा.”
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इमेज कैप्शन, कुछ एक्सपर्ट मान रहे हैं कि ट्रंप का यह नया एलान अमेरिका के लिए सकारात्मक साबित नहीं होगा (प्रतीकात्मक तस्वीर)
‘हम कर्मचारियों, उनके परिवारों और अमेरिकी एंप्लॉयर्स पर असर को लेकर चिंतित हैं’
लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि कई कॉर्पोरेट समूह और उद्योग संगठन इससे चिंतित हैं. रिपोर्ट में चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के प्रवक्ता मैट लेतोर्नो के हवाले से लिखा गया है, ”हम कर्मचारियों, उनके परिवारों और अमेरिकी एंप्लॉयर्स पर असर को लेकर चिंतित हैं.”
चैंबर ऑफ़ प्रोग्रेस के संस्थापक एडम कोवाचेविक ने कहा, ”मेरा मानना है कि इसका मतलब होगा कि हम चीन के ख़िलाफ़ एआई की जंग एक हाथ पीछे बांधकर लड़ रहे होंगे. एआई में टॉप टैलेंट की संख्या सीमित है और उनमें से कुछ विदेशी मूल के हैं.”
रिपोर्ट में अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जेफ़ जोसेफ़ का एक बयान भी है, जिसमें उन्होंने कहा है, ”हम दूसरे संगठनों के साथ मिलकर इस वीकेंड तक अस्थायी रोक की मांग के लिए कोर्ट में याचिका दाख़िल करने की तैयारी कर रहे हैं.”
इसी एसोसिएशन के एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर बेंजामिन जॉनसन ने कहा, ”हमारे सदस्य अव्यवस्था का सामना कर रहे हैं. मैं सिर्फ़ भ्रम और दहशत सुन रहा हूं.”
‘यह अचानक बिना किसी संकेत के आया और भयानक रहा है’
अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल की वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, ”ट्रंप प्रशासन की इमिग्रेशन सिस्टम को बदलने की कोशिश से इस हफ़्ते चिंता और भ्रम की लहर दौड़ गई, क्योंकि कर्मचारी और एंप्लॉयर रविवार की तय डेडलाइन से पहले प्रतिक्रिया देने के लिए भाग-दौड़ करने लगे.”
रिपोर्ट में कहा गया है, ”अमेज़न, गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट और अन्य कंपनियों ने एच-1बी वीज़ा धारकों को देश छोड़ने से बचने की चेतावनी दी और विदेश में काम कर रहे कर्मचारियों से कहा कि वे शनिवार तक अमेरिका लौट आएं, क्योंकि बाद में दोबारा प्रवेश करना मुश्किल हो सकता है.”
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है, ”मानव संसाधन कर्मचारी कर्मचारियों की सूची बनाकर उनकी लोकेशन पता लगाने में जुटे थे ताकि ज़रूरत पड़ने पर उनकी उड़ानें बुक कराई जा सकें. वहीं इमिग्रेशन वकील कंपनियों और वीज़ा धारकों को बुलेटिन भेज रहे थे, लेकिन अक्सर उनके पास भी जवाब नहीं थे.”
रिपोर्ट के मुताबिक़, व्हाइट हाउस ने सफ़ाई दी कि ”यह बदलाव मौजूदा वीज़ा धारकों पर लागू नहीं होता और नई नीति उनके अमेरिका से आने-जाने की क्षमता को प्रभावित नहीं करती. 100,000 डॉलर एकमुश्त फ़ीस है, सालाना नहीं.”
क़ानूनी फ़र्म फ़िशर फ़िलिप्स की इमिग्रेशन प्रैक्टिस ग्रुप की को-चेयर शैनन आर. स्टीवेन्सन ने इस फ़ैसले को लेकर कहा, ”यह अचानक बिना किसी संकेत के आया और भयानक रहा है.”
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है, ”कई एंप्लॉयर अभी भी इस घोषणा को समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन तब तक व्हाइट हाउस सफ़ाई दे चुका था. उस समय तक कंपनियां नई योजनाएं बना चुकी थीं और कई कर्मचारियों की यात्रा योजनाएं बदल चुकी थीं.”
‘यह कोई सालाना फ़ीस नहीं है, यह सिर्फ़ एक बार की फ़ीस है’
अमेरिकी बिज़नेस मीडिया फॉक्स बिज़नेस की वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, ”राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक आदेश पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत एच-1बी वीज़ा पर एक लाख डॉलर की एकमुश्त फ़ीस लगेगी. इससे यह बदलेगा कि अमेरिका में विदेशी कर्मचारियों को कैसे नौकरी मिलती है.”
वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक ने कहा, ”पूरा विचार यही है कि अब बड़ी टेक कंपनियां या अन्य बड़ी कंपनियां विदेशी श्रमिकों को ट्रेनिंग नहीं देंगी. उन्हें सरकार को 100,000 डॉलर देना होगा, फिर कर्मचारी को भुगतान करना होगा, तो यह आर्थिक रूप से संभव ही नहीं है.”
उन्होंने आगे कहा, ”सभी बड़ी कंपनियां इस पर सहमत हैं.”
रिपोर्ट में बताया गया है, ”एक लाख डॉलर की यह फ़ीस सिर्फ़ नए एच-1बी आवेदन पर लागू होगी और यह अगली लॉटरी साइकिल से प्रभावी होगी. यह नवीनीकरण या मौजूदा वीज़ा धारकों पर लागू नहीं होगी.”
व्हाइट हाउस प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कहा, ”यह कोई सालाना फ़ीस नहीं है. यह सिर्फ़ एक बार की फ़ीस है, जो आवेदन पर लागू होगी. जिनके पास पहले से एच-1बी वीज़ा है और जो इस समय अमेरिका से बाहर हैं, उनसे देश में दोबारा आने पर एक लाख डॉलर नहीं लिया जाएगा.”
“एच-1बी वीज़ा धारक पहले की तरह देश से बाहर जाकर वापस आ सकते हैं, इस पर राष्ट्रपति के आदेश का कोई असर नहीं पड़ेगा. यह नियम सिर्फ़ नए वीज़ा पर लागू होगा, नवीनीकरण या मौजूदा वीज़ा धारकों पर इसका असर नहीं होगा. यह पहली बार अगले एच-1बी वीज़ा लॉटरी साइकिल में लागू होगा.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित