मध्य प्रदेश पुलिस के सिटीजन पोर्टल को ठगों ने उगाही का जरिया बना लिया है। वे ऑनलाइन उपलब्ध FIR की कॉपी से फरियादी का मोबाइल नंबर निकालकर उन्हें फोन करते हैं और केस में धारा बदलने के नाम पर पैसे मांगते हैं। सागर पुलिस के पास कई शिकायतें पहुंची हैं। यूपी में इस ठगी को रोकने के लिए ऑनलाइन FIR से मोबाइल नंबर हटाने का प्रावधान किया गया है।
विष्णु कुमार सोनी, सागर। ठगी करने वालों ने मध्य प्रदेश पुलिस के सिटीजन पोर्टल को ही उगाही का माध्यम बना लिया है और पीड़ितों को भी नहीं छोड़ रहे हैं। पोर्टल से एफआइआर की कॉपी निकालकर ठग फरियादियों से रुपये की मांग कर रहे हैं। सागर पुलिस के पास ऐसी कई शिकायतें आ चुकी हैं।
पुलिस सूत्रों का कहना है ऐसे कई मामले होंगे, जिनमें पीड़ितों ने रुपये दिए होंगे, लेकिन शिकायत नहीं हुई।दरअसल, थाने में जब कोई अपराध की सूचना देता है तो एफआईआर दर्ज होती है। यह क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम्स (सीसीटीएनएस) के जरिये ऑनलाइन होती है। इसके साथ ही पुलिस की सिटीजन पोर्टल पर भी यह अपलोड हो जाती है। कोई भी व्यक्ति केवल अपने फोन नंबर से वेरिफिकेशन कराकर उस पोर्टल पर मौजूद किसी भी थाने में दर्ज एफआइआर का ब्योरा ले सकता है।
FIR में धाराएं बदलने का झांसा
एफआईआर में फरियादी का मोबाइल नंबर भी लिखा होता है। यही नंबर ठगों का हथियार बन गया है। ठग फरियादी को फोन कर खुद को संबंधित थाने या एसपी आफिस में कार्यरत बताते हैं। एफआईआर की जानकारी देकर भरोसा जीतते हैं और केस के कमजोर होने का जिक्र करते कहते हैं कि इससे आरोपित को मामूली सजा होगी। झांसा दिया जाता है कि अगर फरियादी रुपये देने को तैयार है तो वह एफआइआर में धाराएं बदल देगा और आरोपित का जेल से निकलना मुश्किल हो जाएगा।
दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन नईदुनिया के पास ऐसे चार लोगों की जानकारी है, जिन्होंने ऐसी शिकायत पुलिस से की है। हालांकि, ठगी से वे बच गए। अब पुलिस मामले की जांच कर रही है। पुलिस अधीक्षक विकास शाहवाल ने कहा कि पुलिस संबंधी मामलों में इस तरह फोन नहीं करती। स्टेट क्राइम रिकार्ड ब्यूरो को एफआइआर से फरियादी का नंबर छिपाने के लिए पत्र लिखा जाएगा।
उत्तर प्रदेश के थानों में दर्ज एफआइआर की आनलाइन कॉपी में पीडि़त पक्ष का मोबाइल नंबर नहीं दिया जा रहा है। इसी वर्ष जनवरी से ही यह प्रविधान किया गया है। इसके पीछे साइबर ठगों द्वारा पुलिस के यूपी काप एप पर अपलोड एफआईआर की कॉपी का गलत इस्तेमाल किया जाना बड़ी वजह है।साइबर ठग यूपी काप एप पर उपलब्ध एफआइआर की कापी में दर्ज पीड़ितों का नंबर प्राप्त कर उन्हें राहत पहुंचाने के बहाने रुपये ऐंठने लगे थे। हालांकि, थानों और विवेचक को उपलब्ध एफआइआर की कापी में सभी तरह के नंबर जरूर उपलब्ध रहते हैं।
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