इमेज कैप्शन, इंडियन ओशियन कॉन्फ़्रेंस में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भाग लिया, इस दौरान उन्होंने ओमान के विदेश मंत्री से भी मुलाक़ात की
ओमान की राजधानी मस्कट में इंडियन ओशियन कॉन्फ़्रेंस का आज दूसरा और आख़िरी दिन है. इस कॉन्फ़्रेंस के आठवें संस्करण में हिंद महासागर के देशों के विदेश मंत्रियों समेत 60 देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं.
रविवार को इस कॉन्फ़्रेंस के उद्घाटन समारोह में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भाग लिया. इस कॉन्फ़्रेंस से अलग जयशंकर ने ईरान, मालदीव, मॉरिशस, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों के विदेश मंत्रियों के साथ मुलाक़ात की.
भारतीय विदेश मंत्री ने बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन के साथ भी मुलाक़ात की है. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को इस कॉन्फ़्रेंस के लिए न्योता नहीं दिया गया था जबकि वो भी हिंद महासागर में ही है.
इस कॉन्फ़्रेंस को ओमान और इंडिया फ़ाउंडेशन ने मिलकर आयोजित किया है. इसके आयोजन में एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ इन सिंगापुर ने भी मदद की है.
इंडिया फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष राम माधव हैं. राम माधव बीजेपी संगठन में काम कर चुके हैं और आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के भी सदस्य हैं. इंडिया फाउंडेशन को भी आरएसएस का ही थिंक टैंक माना जाता है.
इंडिया फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष राम माधव का हिंद महासागर को लेकर एक आलेख 15 फ़रवरी को इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में प्रकाशित हुआ है. इस लेख में उन्होंने हिंद महासागर के रणनीतिक महत्व और इस क्षेत्र के विकास पर प्रकाश डाला है.
जयशंकर ने क्या कहा?
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इमेज कैप्शन, जयशंकर ने स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए समझौतों का पालन करने के महत्व पर ज़ोर दिया है
साल 2016 से आयोजित हो रही इस कॉन्फ़्रेंस का मक़सद हिंद महासागर में मौजूद देशों के सामने आ रही चुनौतियों का सामना करना और समुद्र, आर्थिक सुरक्षा के क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना है.
उद्घाटन भाषण के दौरान एस जयशंकर ने स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए समझौतों का पालन करने के महत्व पर ज़ोर दिया. उन्होंने ख़ासकर पश्चिम एशिया से लेकर हिंद-प्रशांत तक भू-राजनीति में उथल-पुथल का ज़िक्र किया.
इस कॉन्फ़्रेंस में चीन शामिल नहीं था और जयशंकर ने चीन का नाम लिए बिना चीन की क़र्ज़ नीति और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की ओर इशारा किया.
उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में क़र्ज़ गंभीर चिंता है, इनमें से कुछ अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के दबाव की वजह से पैदा होती हैं लेकिन कुछ मामलों में बेपरवाह उधारी और अव्यवहार्य परियोजनाओं से भी ऐसा होता है.
चीन पाकिस्तान और अफ़्रीकी देशों में कई परियोजनाओं में पैसा लगा रहा है और उन्हें उधार भी दे रहा है. इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में उसके दबदबे की ओर भी जयशंकर ने बिना चीन का नाम लिए इस ओर इशारा किया.
उन्होंने कहा कि एक दूसरी चिंता का विषय यथास्थिति में एकतरफ़ा बदलाव भी है.
पाकिस्तान में क्या है चर्चा?
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इमेज कैप्शन, पाकिस्तानी विश्लेषक कॉन्फ़्रेंस में न बुलाए जाने को कूटनीतिक नाकामी मान रहे हैं
हिंद महासागर में होने के बावजूद पाकिस्तान में इसको न बुलाए जाने पर कई पाकिस्तानी विश्लेषकों ने टिप्पणी की है.
इस्लामाबाद में रणनीतिक विश्लेषक डॉक्टर क़मर चीमा ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें वो बता रहे हैं कि भारत और ओमान ने इस कॉन्फ़्रेंस को काफ़ी विस्तृत कर दिया है.
उन्होंने बताया कि इस कॉन्फ़्रेंस में ब्रिक्स, इंडियन ओशियन रिम एसोसिएशन जैसे संगठनों के सदस्य शामिल हुए हैं लेकिन इसमें पाकिस्तान को नज़रअंदाज़ किया गया है.
चीमा ने कहा कि राम माधव ओमान को लेकर कहते हैं कि भारत का उसके साथ संबंध पांच हज़ार साल पुराना है और भारत ने खाड़ी देशों में ओमान को बहुत महत्वपूर्ण समझा है क्योंकि ये उसको मध्य-पूर्व और फिर यूरोप से जोड़ता है.
ग़ौरतलब है कि भारत इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (आईएमईसी) परियोजना में अहम साझेदार है. इस परियोजना का ज़िक्र जयशंकर ने अपने उद्घाटन भाषण में भी किया था.
वहीं राम माधव ने अपने इंडियन एक्सप्रेस के लेख में बताया है कि पहली सहस्राब्दी में हिंद महासागर ने भारत को अग्रणी आर्थिक शक्ति बनाया था और समुद्री ताक़त में गिरावट से उसकी आर्थिक गिरावट भी आई.
क़मर चीमा ने कहा कि भारत के मुक़ाबले ओमान का मज़बूत संबंध और नज़दीकी पाकिस्तान से ज़्यादा रही है और ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान ने ही ओमान से ख़रीदा था.
उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात ये है कि बांग्लादेश से लेकर ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील तक इसमें भाग ले रहे हैं लेकिन पाकिस्तान नहीं है, इसका मतलब ये है कि ये पाकिस्तान की कूटनीतिक नाकामी है.
इस्लामाबाद की पत्रकार आरज़ू काज़मी ने अपने यूट्यूब चैनल पर कहा कि भारत ने पाकिस्तान को इस कॉन्फ़्रेंस का हिस्सा नहीं बनने दिया है क्योंकि भारत चाहता है कि पाकिस्तान चरमपंथ पर लगाम लगाए.
उन्होंने कहा, “पाकिस्तान अगर चाहता है कि विश्व पटल पर उसकी आवाज़ को सुना जाए तो उसे अपनी अर्थव्यवस्था, सुरक्षा सिस्टम और आतंकवाद पर काम करना पड़ेगा. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के समिट में भी पाकिस्तान नहीं था और वहां भारत को-चेयर था और अब ओमान में पाकिस्तान नहीं है. इस पर पाकिस्तान के राजनेताओं को सोचना होगा.”
इसी महीने फ़्रांस की राजधानी पेरिस में एआई समिट का आयोजन किया गया था. इसमें शामिल होने दुनिया भर के नेता आए थे लेकिन पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं था. इसे लेकर भी पाकिस्तान के लोग चिंता जता रहे हैं. भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने कहा है कि पाकिस्तान को सोचना होगा कि ऐसा क्यों हो रहा है. इस समिट में शामिल होने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए थे.
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इमेज कैप्शन, भारत और ओमान के विदेश मंत्रियों ने एक किताब का भी विमोचन किया है
मुस्लिम देशों से दूर हो रहा है पाकिस्तान?
क़मर चीमा कहते हैं कि भारत की विदेश नीति पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रही है लेकिन ओमान ने भी नहीं चाहा कि पाकिस्तान इसमें शामिल हो.
बांग्लादेश से संबंध बहुत अच्छे न रहने पर भी उसे इस कॉन्फ़्रेंस में बुलाया गया है, जिसको लेकर चीमा ने कहा कि भारत चाहता है कि बांग्लादेश से रिश्ते बेहतर हों इसलिए उसे बुलाया गया, दूसरी ओर भारत पाकिस्तान को मुस्लिम देशों से दूर करने में कामयाब हुआ है.
चीमा कहते हैं कि पाकिस्तान को इस पर बात करनी चाहिए कि ओमान जैसे मुल्क ने किस तरह से उसे नज़रअंदाज़ किया है, हिंद महासागर में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को पाकिस्तान भी संरक्षित करता है.
उद्घाटन समारोह के दौरान एस जयशंकर ने ओमान के विदेश मंत्री बदर अलबू सईदी के साथ मिलकर एक किताब का विमोचन किया जिसका शीर्षक ‘मांडवी टू मस्कट: इंडियन कम्युनिटी एंड द शेर्ड हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया एंड ओमान’ है.
क़मर चीमा ने कहा, “भारत ने चतुराई भरा फ़ैसला किया और 1400 साल पुराने इस्लामी इतिहास से भी पीछे जाकर पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता की बात की. ओमान की आज भारत के लिए बहुत प्रासंगिकता है. ओमान का बंदरगाह कल पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भी इस्तेमाल हो सकता है. ओमान का पाकिस्तान के लिए न बोलना उसके लिए बहुत बड़ा झटका है.”
दूसरी ओर इस कॉन्फ़्रेंस में पाकिस्तान का दूसरा पड़ोसी देश ईरान भी शामिल है. ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बार अरागची ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ मुलाक़ात की है.
ईरान के विदेश मंत्रालय ने एक्स पर एक बयान जारी किया है. इसमें ईरान ने बताया कि दोनों विदेश मंत्रियों ने ईरान-भारत संबंधों के विभिन्न पहलुओं की भी समीक्षा की, जिसमें राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यापार सहयोग शामिल हैं. उन्होंने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों पर बात की है, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान के हालात पर ख़ासतौर पर ध्यान दिया गया.
यहां ये भी जान लेना ज़रूरी है कि भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित किया है जो हिंद महासागर में व्यापार के लिए अहम कड़ी है.
विश्लेषकों का अनुमान है कि चाबहार बंदरगाह और आईएमईसी कोरिडोर के पूरी तरह विकसित हो जाने के बाद भारत हिंद महासागर में एक मज़बूत ताक़त बन जाएगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.