हरियाणा प्रदेश की राजनीति में चौधरी ओम प्रकाश चौटाला का अपना नाम है. एक बार सबसे कम समय मुख्यमंत्री रहने वाले ओम प्रकाश चौटाला प्रदेश की राजनीति में कार्यकर्ताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय रहे हैं.
जींद उनकी राजनीतिक कर्मभूमि रही है. हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ने के अलावा वह जींद ज़िले की नरवाना विधानसभा सीट से विधायक बनकर मुख्यमंत्री भी बने और उन्होंने जींद ज़िले की उचाना विधानसभा सीट से भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया.
ओम प्रकाश चौटाला को हरियाणा की राजनीति में हलचल पैदा करने वाला नेता भी माना जाता है. वह अक्सर अपने कड़े फैसलों के लिए जाने जाते रहे.
वह हरियाणा के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्हें जेल भी जाना पड़ा. उनके जेल जाने वाले मामले में ख़ास बात यह भी है कि इसमें शिकायतकर्ता को भी उतनी ही सज़ा हुई जितनी पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को.
वह जेल जाने के बावजूद अक्सर कहा करते थे, ”अगर कार्यकर्ताओं के काम करने और जनता को सुख- सुविधा देने के लिए उन्हें जेल जाना पड़ता है तो वह ऐसी जेल जाने के लिए हमेशा तैयार हैं.”
शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप तो भले ही लगे हों लेकिन अदालत में भ्रष्टाचार साबित नहीं हो पाया.
इसके बाद ओम प्रकाश चौटाला अपनी इच्छाशक्ति के दम पर आगे बढ़ रहे थे. वह राजनीति में दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के दुश्मन भी थे. वह दोस्ती निभाते हुए कभी यह नहीं देखते थे कि इसमें उन्हें नुकसान होगा.
कार्यकर्ताओं के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे चौटाला
जब आदमी की उम्र 80 से ज्यादा हो जाती है तो वो अपने परिवार के बारे में अधिक चिंतित रहता है.
ओमप्रकाश चौटाला ने अपनी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को ज़िंदा रखने के लिए अपने परिवार को एकजुट रखने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए.
जननायक जनता पार्टी के नाम से एक नई पार्टी का जन्म हो गया. यहां से उन्होंने परिवार से नाता तोड़ लिया.
पिछले विधानसभा चुनाव से पहले परिवार के एकजुट होने की बात शुरू हुई, लेकिन ओमप्रकाश चौटाला ने कभी इसके लिए अपनी ओर से प्रयास नहीं किया क्योंकि वह यह मानते थे कि जो व्यक्ति आज सत्ता के लिए परिवार को ठोकर मार सकता है, वह कल ये दोबारा नहीं करेगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है.
वो ऐसा नेता रहे जिन पर चुनाव में हार और जीत का कभी कोई असर नहीं पड़ा. यहां तक कि जेल में जाने पर भी जहां अक्सर दूसरे नेता टूट जाते हैं, वो क़ैद में कभी मायूस नहीं हुए और उन्हें मंच पर कभी दुखी नहीं देखा गया.
चुनाव प्रचार के दौरान वह अक्सर यह कहते थे कि अगर कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाना अपराध है तो वह यह अपराध बार-बार करते रहेंगे.
चौटाला की पहचान ऐसे नेता की रही जिसने कार्यकर्ता को काम हो जाने की हामी भर दी हो तो वो काम सही हो या गलत हो, उसे करवा कर दम लेते थे.
वो अपने कार्यकर्ताओं के काम को किस गंभीरता से लेते थे, इसका एक बेहद दिलचस्प क़िस्सा मेरे सामने का है.
एक बार चौटाला के एक ख़ास कार्यकर्ता ने अपने लड़के को विश्वविद्यालय में किसी पोस्ट के लिए सिफारिश करने के लिए कहा. तुरंत उन्होंने वीसी को फोन लगाने के लिए बोला.
उधर से वीसी साहब का जबाब आया कि साहब लगा तो दूं, नॉर्म्स पूरे नहीं हैं. चौटाला साहब बोले “जब तू वीसी लाया मनै तो नोर्मस तो तेरे भी पूरे ना थे.”
वे एक ऐसे नेता थे जिसने शायद ही कभी ऐसा कहा हो, ‘मेरे कहने का ये मतलब नहीं था, मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है.’
पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला का जन्म एक जनवरी 1935 को सिरसा के गांव चौटाला में हुआ था. चौटाला पांच बार हरियाणा के सीएम बने.
दो दिसंबर 1989 को चौटाला पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे. वे 22 मई 1990 तक इस पद पर रहे.
12 जुलाई 1990 को चौटाला ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद को शपथ ली थी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता को दो माह में ही पद से हटा दिया गया था.
हालांकि चौटाला को भी पांच दिन बाद ही पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. 22 अप्रैल 1991 को तीसरी बार चौटाला ने सीएम पद संभाला.
लेकिन दो हफ्ते बाद ही केंद्र सरकार ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था.
1996 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने हरियाणा लोक दल (राष्ट्रीय) के नाम से नई पार्टी बनाई.
1998 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में बसपा से गठबंधन कर हरियाणा में पांच लोकसभा सीटें जीती.
इसके बाद उनके दल को मान्यता मिली. इसके बाद उनकी पार्टी का नाम बदलकर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) कर दिया गया.
24 जुलाई 1999 में चौटाला ने चौथी बार सीएम पद संभाला. दिसंबर 1999 में उन्होंने विधानसभा भंग करवा दी और विधानसभा चुनाव के बाद दो मार्च 2000 को चौटाला पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने.
उसके बाद चौटाला पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे. जेबीटी शिक्षक घोटाले के कारण उन्हें जेल की सज़ा हो गई थी लेकिन सज़ा पूरी होने के बाद भी वो 89 वर्ष की उम्र में सक्रिय राजनीति कर रहे थे.
चौटाला साहब के निधन से रहबर-ए-आज़म छोटूराम व देवीलाल की विचारधारा का एक सच्चा सिपाही चला गया.
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