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“भारत में कुछ लोगों ने नफ़रत की दुकान खोल रखी है. ये लोग संख्या में तो नगण्य हैं, लेकिन ये हर दिन आग लगाने का काम कर रहे हैं.”
ये कहना है ख़ुल्दाबाद के एक दुकानदार शेख़ इक़बाल का. ख़ुल्दाबाद शहर छत्रपति संभाजीनगर (पहले औरंगाबाद) से 25 किलोमीटर दूर स्थित है.
औरंगज़ेब की मज़ार इसी शहर में स्थित है. आजकल औरंगज़ेब की मज़ार को ध्वस्त करने की मांग ज़ोर पकड़ रही है.
शेख़ इक़बाल की इस इलाक़े में की फूल और प्रसाद की दुकान है. उनका कहना है कि औरंगज़ेब की कब्र को संरक्षित किया जाना चाहिए.
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पुलिस की तैनाती
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13 मार्च को जब हम ख़ुल्दाबाद में औरंगज़ेब की मज़ार वाले इलाके़ में पहुंचे तो वहां भारी संख्या में पुलिस बल तैनात था.
पुलिस ने हमें बताया कि मज़ार का फिल्मांकन प्रतिबंधित है. औरंगज़ेब की मज़ार के प्रवेश द्वार पर एक बोर्ड लगा हुआ था.
इस बोर्ड पर लिखा है – यह एक संरक्षित स्मारक है और जो कोई भी इसे नष्ट या नुक़सान पहुंचाएगा, उसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अधिनियम के तहत तीन महीने की कैद या 5000 रुपये का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा.
पुलिस ने हमारा नाम, मोबाइल नंबर, पते और आधार नंबर अपने रजिस्टर में नोट किया. इसके बाद उन्होंने हमारा सारा सामान, जिसमें मोबाइल फ़ोन और बैग भी शामिल थे, ले लिया. इसके बाद ही हमें कब्र देखने की इजाज़त दी गई.
औरंगज़ेब की मज़ार को बड़ी सादगी से बनाया गया है. वहाँ एक मिट्टी की कब्र है, जिसके ऊपर एक सब्ज़ा का पेड़ है.
मज़ार के इस क्षेत्र में कई दुकानें हैं. इनमें से एक दुकान शेख़ इक़बाल की है.
जब हम उनकी दुकान पर पहुंचे, वो माला बना रहे थे. उनका कहना है कि औरंगज़ेब के बारे में बयानबाज़ी राजनीतिक मकसद से की जाती है.
हमने उनसे सवाल किया, औरंगज़ेब की मज़ार को ध्वस्त किए जाने की जो मांग की जा रही, उस पर आप क्या सोचते हैं?
इस पर शेख़ इक़बाल ने कहा, “अल्लाह ही बेहतर जानता है कि 300 साल पहले क्या हुआ था. हम जानते हैं कि अफ़ज़ल खान की कब्र को छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके वंशजों ने अब तक सुरक्षित रखा है. फिर औरंगज़ेब की कब्र भी 300 साल से सुरक्षित रखी गई है, इसलिए इसे भी संरक्षित किया जाना चाहिए.”
‘विवादास्पद बयानों का चलन’
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यहीं पर हमारी मुलाकात ख़ुल्दाबाद के पूर्व मेयर एडवोकेट खैसरुद्दीन से हुई.
मौजूदा विवाद के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “औरंगज़ेब को लेकर पहले भी विवाद हुआ है और अब भी हो रहा है. लेकिन जिस तरह के बयान दिए जा रहे हैं, ऐसा लगता है कि यह एक राजनीतिक स्टंट है.”
वो कहते हैं, “जो भी नेता बनना चाहता है, वह विवादित बयान दे रहा है और तुरंत रातोंरात लोकप्रिय हो रहा है, हीरो बन रहा है. आजकल यही चलन है.”
जब हम इस क्षेत्र के निवासियों से बात कर रहे थे, तो कुछ देशी, विदेशी पर्यटक औरंगज़ेब की कब्र देखने आ रहे थे. हालाँकि, दोपहर के समय मौसम शुष्क होने लगा था.
हमने पाया कि ख़ुल्दाबाद में कुछ लोग मीडिया से बात करने को तैयार नहीं थे. उनका कहना था, “हम कहते कुछ हैं और मीडिया कुछ और दिखाता है.”
उनमें से एक ने मीडिया के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया. पूछने पर उन्होंने बताया कि मीडिया में हिंदुओं और मुसलमानों को जिस तरह से दिखाया गया, वह उन्हें पसंद नहीं आया.
‘राजनेता सिर्फ हिंदू-मुस्लिम करते हैं’
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ख़ुल्दाबाद निवासी शेख़ सादिक़ के अनुसार, राजनेता, औरंगज़ेब के बारे में बात करके राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
शेख़ सादिक़ कहते हैं, “लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाने के लिए इस तरह के बयान देना राजनेताओं का काम है.”
वो आगे कहते हैं, “वे (राजनेता) सिर्फ़ हिंदू-मुस्लिम करते हैं. अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो वोट कैसे पाएँगे? वे धर्मनिरपेक्ष चीज़ों के बारे में बात नहीं करेंगे. वे शिक्षा व्यवस्था, रोज़गार, उद्योग के बारे में बात नहीं करेंगे क्योंकि हिंदू-मुस्लिम करने से ही उन्हें फ़ायदा होता है.”
ख़ुल्दाबाद में हिंदू-मुस्लिम एकता
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ख़ुल्दाबाद के बारे में कहा जाता है कि ये एक धार्मिक और ऐतिहासिक परंपराओं वाला गांव है. प्राचीन काल में ख़ुल्दाबाद को ‘स्वर्ग’ कहा जाता था.
प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भद्रा मारुती यहीं स्थित है. यहां पास में एक गिरिजी देवी मंदिर और एक दत्त मंदिर है.
दक्षिण भारत में इस्लाम का गढ़ और सूफी आंदोलन का केंद्र होने के कारण देश-विदेश से सूफी यहां आते रहे हैं. उन सभी सूफी संतों की कब्र ख़ुल्दाबाद में है.
यहां के मुस्लिम व्यापारियों का कहना है कि ख़ुल्दाबाद में हिंदू-मुस्लिम एकता की महान परंपरा रही है.
शेख़ इक़बाल कहते हैं, “ख़ुल्दाबाद में 52 वाडे हैं. इनमें ब्राह्मण वाडा, भील वाडा, कुंभार वाडा, चमार वाडा, धोबी वाडा, साली वाडा, इमाम वाडा शामिल हैं. हम सभी मिलजुल कर रहते हैं.”
“जब शिवाजी जयंती की सवारी (जुलूस) यहां से गुजरती है, तो हम उन्हें फूल और पानी देकर स्वागत करते हैं. जब उर्स होता है, तो वे (हिंदू) हमें बधाई देते हैं. हमारे आपसी संबंध बहुत अच्छे हैं.”
शर्फुद्दीन रमज़ानी 30 वर्षों से 22 ख्वाज़ा दरगाह कमिटी के अध्यक्ष हैं. उनका कार्यालय औरंगज़ेब की मज़ार के पास स्थित है.
वो कहते हैं, “ख़ुल्दाबाद बहुत पुराना गांव है. यहां हिंदू और मुसलमानों के बीच एकता है. हम सभी त्योहार एकसाथ मनाते हैं. हम शिवाजी जयंती, अंबेडकर जयंती, होली पर उनका स्वागत करते हैं और ईद पर उन्हें आमंत्रित करते हैं.”
व्यवसाय पर प्रभाव
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पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक हलकों में औरंगज़ेब और औरंगज़ेब की कब्र को लेकर विवादास्पद बयान दिए जा रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि इसका ख़ुल्दाबाद के हिंदू, मुस्लिम और दलित व्यापारियों पर सीधा असर पड़ रहा है.
इस बारे में एडवोकेट खैसरुद्दीन कहते हैं, “ख़ुल्दाबाद की आबादी हिंदू, मुसलमान और दलितों को मिलाकर 1.40 लाख है. जब भी इस तरह के विवाद उठे हैं, हमारे 1.40 लाख हिंदुओं, मुसलमानों, दलितों या किसी और ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है और यह हमारा सौभाग्य है.”
खैसरुद्दीन कहते हैं, “जब इसे बार-बार निशाना बनाया जाता है तो इससे यहां के स्थानीय लोगों को बहुत नुक़सान होता है. यहां जितने भी पर्यटन स्थल हैं, जितने मंदिर, गुफाएं, दरगाह हैं, वहां 4 से 5 हजार हिंदू, मुस्लिम और दलित युवा काम करते हैं. इससे क़रीब 25 से 30 हजार लोगों की रोज़ी-रोटी चलती है. विवादित बयान देने वालों को बोलने की आजादी है, लेकिन इससे स्थानीय लोगों को नुक़सान होता है.”
वहीं शेख़ इक़बाल कहते हैं, “वेरुल गुफा से लेकर औरंगज़ेब की मज़ार तक पर्यटक यहां आते हैं. लेकिन इस तरह के विवादास्पद बयानों से पर्यटकों पर असर पड़ता है और हमारे व्यापार पर भी असर पड़ता है.”
विश्व प्रसिद्ध वेरुल गुफा ख़ुल्दाबाद से तीन किलोमीटर दूर स्थित है.
‘युवा लोग, ग़लत स्टेटस पोस्ट ना करें’
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दोपहर क़रीब दो बजे हमारी मुलाक़ात शेख़ शाजेब नाम के एक युवक से हुई. 26 साल के शाजेब दोपहर की नमाज़ अदा करने आए थे.
उन्होंने कहा, “जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, हम सब सुनते और देखते हैं, औरंगज़ेब, औरंगज़ेब, औरंगज़ेब. क्या कोई और सवाल नहीं है? राजनेताओं को विकास पर ध्यान देना चाहिए. उन्हें शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए.”
“मैं युवाओं से कहना चाहता हूं कि ऐसी विवादास्पद चीजों पर ज़्यादा ध्यान ना दें. अपने मोबाइल और व्हाट्सएप पर किसी के लिए ग़लत स्टेटस न डालें. सभी को शांतिपूर्ण तरीके से रहना चाहिए.”
महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर औरंगज़ेब का व्हाट्सएप स्टेटस पोस्ट करने को लेकर विवाद हुआ है.
ख़ुल्दाबाद के लोग शासकों से क्या उम्मीद करते हैं?
इस सवाल पर शेख़ इक़बाल कहते हैं, “मेरी अपील है कि हमें आपसी भाईचारे को कायम रखना चाहिए. हमें मोहब्बत की बात करनी चाहिए. हमें युवाओं के लिए रोज़गार की बात करनी चाहिए. हम इंसान हैं और हमारी इंसानियत बरकरार रहेगी.”
शर्फुद्दीन रमज़ानी कहते हैं, “मौजूदा सरकार को विकास की बात करनी चाहिए. उसे शिक्षा, रोज़गार और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए. राजनेताओं को विवादित बयान नहीं देने चाहिए. हमारे गांव में शांति है और हम चाहते हैं कि यह शांति बनी रहे.”
औरंगज़ेब ने ख़ुल्दाबाद को क्यों चुना?
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मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु 1707 में अहिल्यानगर (तत्कालीन अहमदनगर) में हुई. उसके बाद उनका पार्थिव शरीर ख़ुल्दाबाद लाया गया.
इतिहासकारों का कहना है कि औरंगज़ेब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी कब्र उनके गुरु सैयद ज़ैनुद्दीन शिराजी की कब्र के बगल में हो.
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उनके बेटे आजम शाह ने ख़ुल्दाबाद में उनकी कब्र बनवाई.
औरंगज़ेब की कब्र ज़ैनुद्दीन शिराजी की कब्र के पास स्थित है, जिन्हें औरंगज़ेब अपना गुरु मानते थे.
ऐसा कहा जाता है कि उस समय इस कब्र के निर्माण में 14 रुपये 12 आने की लागत आई थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित