औरंगजेब की कब्र पर तुलसी का पौधा क्यों है
औरंगजेब का मकबरा बेहद ही साधारण तरीके से बनाया गया है। यहां केवल मिट्टी है। मकबरा एक साधारण सफेद चादर से ढंका रहता है। कब्र के ऊपर एक सब्जा यानी तुलसी का पौधा लगाया गया है। दरअसल, औरंगजेब ने कहा था कि मेरा मकबरा बहुत सादा होना चाहिए। इसे ‘सब्जे’ के पौधे से ढंका होना चाहिए और इसके ऊपर छत न हो। इस मकबरे के पास एक पत्थर लगा है जिस पर शहंशाह औरंगजेब का पूरा नाम-अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर लिखा है। औरंगजेब का जन्म साल 1618 में हुआ था और उनका निधन 1707 में हुआ।

औरंगाबाद को ही क्यों चुना अपनी कब्र के लिए
औरंगजेब ने अपनी जिंदगी के करीब 37 साल औरंगबाद में बिताए थे। यही वजह थी कि उसे औरंगाबाद से बेहद लगाव था। उसने औरंगाबाद में ही अपनी बेगम की कब्र ‘बीबी का मकबरा’ बनवाया था, जिसे दक्कन का ताज भी कहा जाता है। इसके अलावा, यहीं पर उसके पीर की कब्र भी थी, जिसे वह बहुत मानता था। औरंगजेब ने यह भी कहा था कि मेरी मौत भारत में कहीं भी हो, लेकिन मुझे दफन यहीं सूफी संत जैनुद्दीन शिराजी के पास होना चाहिए।

औरंगजेब ने अपनी कब्र के लिए क्या की थी वसीयत
बादशाह औरंगजेब जीवन भर दक्कन में जूझता रहा। इसी संघर्ष की वजह से उसकी मौत 1707 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुई थी। उसकी मौत के बाद उसके शव को खुल्दाबाद लाया गया था। औरंगजेब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि मौत के बाद उसे उसके गुरु सूफी संत सैयद जैनुद्दीन के पास ही दफनाया जाए। औरंगजेब ने वसीयत में साफ लिखा था कि वो ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन को अपना पीर मानता है। जैनुद्दीन औरंगजेब से बहुत पहले ही दुनिया को विदा कह चुके थे।

औरंगजेब की कमाई उसकी कब्र में ही लगी
औरंगजेब ने वसीयत की थी कि जितना पैसा मैंने अपनी मेहनत से कमाया है, उसे ही अपने मकबरे में लगाऊंगा। उन्होंने अपनी कब्र पर सब्जे का छोटा पौधा लगाने की भी वसीयत की थी। औरंगजेब अपने निजी खर्च के लिए टोपियां सिला करता था। उसने हाथ से कुरान शरीफ भी लिखी थी। हालांकि, इस्लाम को लेकर वह बहुत कट्टर किस्म का था। उसने दरबार में संगीत पर रोक लगा दी थी।
लार्ड कर्जन ने कब्र के पास बनवाई संगमरमरी ग्रिल
औरंगजेब की मौत के बाद उसके बेटे आजम शाह ने खुल्दाबाद में उसके मकबरे का निर्माण कराया था। औरंगजेब की इच्छानुसार उसे एक बेहद सादे मकबरे में सैयद जैनुद्दीन सिराज के पास दफन किया गया। मुगल बादशाहों के मकबरों में भव्यता का पूरा ध्यान रखा जाता था और सुरक्षा के इंतजाम भी होते थे। हालांकि, औरंगजेब का मकबरा लकड़ी से बना था। 1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन यहां आए तो उन्होंने औरंगजेब की कब्र के चारों तरफ संगमरमर की ग्रिल बनवाई और इसकी साज सज्जा करवाई।
औरंगजेब कितना क्रूर था, पहले इसे जान लीजिए
मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को उसके आखिरी दिनों में कैद में रखा था। बादशाह शाहजंहा जब बीमार पड़ गए, तो उनके तीन बेटों दारा शिकोह, औरंगजेब और मुराद बख्श में सत्ता के लिए संघर्ष होने लगा। इसी दौरान औरंगजेब ने शाहजहां को ही बंदी बना लिया। औरंगजेब ने अपने सबसे बड़े भाई दारा शिकोह को पकड़कर पूरे शहर में घुमवाया और उसका सिर काटकर पूरी दिल्ली में घुमाया, ताकि लोग खौफ खाएं। औरंगजेब ने सबसे छोटे भाई मुराद बख्श को जेल में डाल दिया और नशा दे-देकर उसकी मानसिक हालत खराब कर दी। यही काम उसने अपने भतीजे सुलेमान शिकोह के साथ किया। बाद में दोनों की हत्या करवा दी। उसने कई हिंदू मंदिरों को तोड़वाकर वहां मस्जिद बनवा दी। साथ ही बड़े पैमाने पर धर्मांतरण अभियान चलवाया।

शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को कैसे दी टेंशन
इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ‘A Short History of Aurangjeb’ में कहा है कि औरंगजेब भारत को दारूल इस्लाम बनाना चाहता है। ऐसे में छत्रपति शिवाजी महाराज उसके मंसूबे के आड़े आ गए। विजयादशमी यानी दशहरा के शुभ अवसर पर माना जाता है कि भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक रहा था। भगवान राम ने भी रावण से युद्ध के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिंदू धर्म की रक्षा करने और हिंदवी स्वराज कायम करने का बीड़ा उठाया था।
शिवाजी महाराज ने समुद्री सीमाओं को मजबूत किया
शिवाजी महाराज ने समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए कई किले बनवाए थे, जिसमें से एक महाराष्ट्र के मालवन तट पर स्थित सिंधुदुर्ग का किला था। यह एक महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डा भी था। यह कोंकण तटरेखा की रक्षा के लिए शिवाजी महाराज द्वारा बनाए गए कई नौसैनिक किलों में से एक था। शिवाजी ने इसी तरह से कोंकण तट पर विजयदुर्ग का किला भी बनवाया था। यहां पर समुद्री जहाज बनाए जाते थे। शिवाजी ने 300 से अधिक किलों पर विजय प्राप्त की थी। इन किलों ने जमीनी और समुद्री रक्षा दोनों में अहम भूमिका निभाई। 1674 में उन्हें औपचारिक रूप से मराठा साम्राज्य के राजा के रूप में ताज पहनाया गया।
जब संभाजी महाराज का खत औरंगजेब को मिला
शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी ने भी औरंगजेब को बहुत टेंशन दी। 1681 में जब औरंगजेब का चौथा बेटा-मोहम्मद अकबर जब बगावत कर दक्खन में ही कुछ बागी सैनिकों को लेकर अलग हो गया तो औरंगजेब ने उसका पीछा किया और बागी सैनिकों को बुरी तरह परास्त कर दिया। अकबर ने तब संभाजी की शरण ली। संभाजी महाराज ने अकबर की बहन जीनत को एक चिट्ठी लिखी। औरंगजेब तक वह पत्र पहुंचा।
क्या था उस खत में, जो आखिर सच साबित हुआ
पत्र में लिखा था-बादशाह सलामत को दिल्ली लौट जाना चाहिए। एक बार हम और हमारे पिता उनके कब्जे से छूटकर दिखा चुके हैं। अगर वो जिद पर अड़े रहे तो वो हमारे कब्जे से छूटकर दिल्ली नहीं जा पाएंगे। उनकी यही इच्छा है तो उन्हें दक्कन में ही अपनी कब्र के लिए जगह खोज लेनी चाहिए। संभाजी ने औरंगजेब को दक्कन से लौट जाने या दक्कन में ही अपनी कब्र की तैयारी करने से जुड़ी जो बात कही थी, वह आखिर में सही साबित हुई। आखिरकार औरंगजेब को उसी दक्कन के खुल्दाबाद में दफनाया गया था।
अब क्यों औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग हो रही है
औरंगजेब में महाराष्ट्र में सपा विधायक अबू आजमी के बयान के बाद शुरू हुआ। उन्होंने औरंगजेब को अच्छा राजा करार दिया था। उन्होंने कहा था कि औरंगजेब के समय भारत वर्मा से लेकर अफगानिस्तान तक फैला था। औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी महाराज या छत्रपति सांभाजी महाराज में लड़ाई धर्म को लेकर नहीं बल्कि सत्ता और जमीन को लेकर थी। विवाद बढ़ा तो अबू को अपना बयान वापस लेना पड़ा। कुछ समय पहले ही एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने औरंगजेब के मकबरे पर फूल चढाए थे, जिसे लेकर विवाद हुआ था। वहीं, हिंदू संगठन इसे हटाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि औरंगजेब ने संभाजी महाराज को यातना देकर मारा था।
पाकिस्तान में औरंगजेब को हीरो क्यों माना जाता है
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तान बनाने का आइडिया देने वाले शायर और थिंकर अल्लामा इकबाल ने औरंगजेब को भारतीय मुसलमानों की राष्ट्रीयता का फाउंडर करार दिया था। ब्रुकिंग इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, औरंगजेब कट्टरपंथियों का प्रतीक रहा, वहीं, उसका भाई दारा शिकोह उदारवादी छवि का था। पाकिस्तान में औरंगजेब को आदर्श मुस्लिम शासक के रूप में जाना जाता है। उसके बारे में यह पढ़ाया जाता है कि उसने शासन में धर्म को ऊपर रखा।