जस्टिन ट्रूडो ने पिछले काफ़ी समय से जारी अटकलों को विराम देते हुए सोमवार को कनाडा के प्रधानमंत्री के साथ ही सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नेता के पद से भी इस्तीफ़ा दे दिया.
सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नए नेता चुने जाने तक ट्रूडो पीएम के पद पर बने रहेंगे.
ट्रूडो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने इस्तीफ़े की घोषणा की. अगला नेता चुने जाने के बाद वो पीएम पद छोड़ देंगे. इस्तीफ़े के पीछे चुनाव से पहले पार्टी और देश भर में ट्रूडो की बढ़ती अलोकप्रियता को अहम कारण बताया जा रहा है.
कनाडा में इसी साल चुनाव होने हैं. जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफ़े के बाद ये चर्चा ज़ोरों पर है कि अब उनकी जगह कौन लेगा.
कनाडाई मीडिया में ट्रूडो के इस्तीफ़े पर मिली-जुली प्रतिक्रिया है. किसी रिपोर्ट में ट्रूडो के जाने को देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से सकारात्मक क़दम के तौर पर देखा जा रहा है. वहीं, कुछ ख़बरों में इसे अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद कनाडा में बढ़ी बेचैनी से भी जोड़ा गया है.
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‘ट्रूडो ने आख़िरकार लिया सही फ़ैसला’
कनाडा के प्रतिष्ठित अख़बार टोरंटो स्टार ने एक ओपिनियन पीस की हेडिंग ही यही दी है कि कनाडा के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर ट्रूडो ने आख़िरकार एकदम ठीक फ़ैसला लिया है.
इस लेख में कहा गया है कि कनाडा के 23वें प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को ये फ़ैसला और पहले ले लेना चाहिए थे क्योंकि बीते दिसंबर महीने से ही ये साफ़ हो गया था कि ट्रूडो इस्तीफ़ा देंगे.
इस लेख में ये भी कहा गया है कि ट्रूडो चाहते तो वह पार्टी के भीतर अपनी आलोचना को कुछ और हफ़्ते झेल सकते थे और देश में तत्काल चुनाव करवाने का एलान भी कर सकते थे. लेकिन ये दोनों ही फ़ैसले उन्हें तकलीफ़ ही देते, उन्हें और अपमानित होना पड़ता.
लेख के अनुसार,अपने इस्तीफ़े की योजना का एलान करना ट्रूडो के लिए सबसे बेहतर विकल्प था. ये न केवल उनके बल्कि पार्टी और देश के हित में भी था.
अख़बार लिखता है कि बीते साल जून में टोरंटो-सेंट पॉल के उपचुनावों में मिली हार के बाद ही ट्रूडो को इस्तीफ़े की पेशकश कर देनी चाहिए थी.
अख़बार ने लिखा है कि कोरोना महामारी के दौरान देश को संभालना और ट्रंप के पहले कार्यकाल से निपटना ट्रूडो की उपलब्धियों में गिना जाएगा. हालांकि, प्रवासियों और शरणार्थियों के मुद्दे पर उन्हें भारी आलोचना भी झेलनी पड़ेगी.
लेकिन अब जब ट्रूडो जा रहे हैं तो उनकी लोकप्रियता घटी है. हालिया सर्वे में उनकी अप्रूवल रेटिंग महज़ 22 फ़ीसदी रह गई है. कनाडाई लोगों को अब ऐसा नेता चाहिए जो आशावादी हो, जो स्पष्ट रुख़ वाला हो और इन सबसे भी ऊपर एक नया चेहरा हो.
वे वजहें जिनसे तय हुई ट्रूडो की विदाई
कनाडाई अख़बार नेशनल पोस्ट ने अपने लेख की शुरुआत ही उस सवाल से की है जो पिछले कुछ सालों में हज़ारों बार पूछा जा चुका है.
‘क्या वो पद पर बने रहेंगे’? यहां ये स्पष्ट है कि सवाल ट्रूडो से ही जुड़ा है.
इस लेख में कहा गया है कि अब तक इस सवाल का जवाब हमेशा हां होता था और जस्टिन ट्रूडो ही लिबरल पार्टी के चुनावों में अगुवाई करते रहे हैं. लेकिन सोमवार को ये जवाब बदल गया. लेकिन हालात यहां तक कैसे पहुंचे, इसके लिए लेख में आठ बड़े मौकों का ज़िक्र किया गया है.
अख़बार ने जून 2024 में टोरंटो सेंट पॉल के उपचुनावों में मिली हार को लिबरल पार्टी के लिए पहला बड़ा झटका बताया है. ये सीट देशभर में लिबरल पार्टी के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती थी और यहां 1993 से लिबरल का कब्ज़ा था. लेकिन हैरान करने वाले नतीजों में 24 जून को यहां कंज़र्वेटिव पार्टी की जीत हुई.
यह चुनावी नतीजा इतना बड़ा झटका था कि लिबरल पार्टी के अहम नेताओं के बीच ही जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व के ऊपर सवाल उठने लगा. नतीजों के तीन दिन बाद ही न्यू ब्रंसविक से लिबरल पार्टी के सांसद वेन लॉन्ग ने अपने अन्य सहयोगियों को चिट्ठी लिखकर जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफ़े की मांग की थी.
सितंबर 2024 में क्यूबेक में एक और अहम उपचुनाव से पहले ही एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को झटका देते हुए गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया था. भारतीय मूल के जगमीत सिंह की पार्टी ने बीते आम चुनावों में 24 सीटें जीती थीं और वो किंगमेकर की भूमिका में थे.
इसी महीने में लिबरल पार्टी क्यूबेक उपचुनाव भी हार गई.
इसके बाद बीती 17 अक्तूबर को ट्रूडो की कैबिनेट के चार वरिष्ठ मंत्रियों ने ये घोषणा कर दी कि अब उन्हें अगले चुनाव में नहीं जाना.
अक्तूबर में ही लिबरल पार्टी के दो दर्जन से अधिक सांसदों की ओर से हस्ताक्षर किया गया एक पत्र जस्टिन ट्रूडो को भेजा गया, जिसमें उनके इस्तीफ़े की मांग की गई थी. हालांकि, किसी भी कैबिनेट मंत्री ने इस मांग का खुलकर समर्थन नहीं किया.
हालांकि, दिसंबर में ही प्रधानमंत्री अपनी नीतियों की वजह से वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ़्रीलैंड के आमने-सामने आ गए.
दोनों के बीच रिश्ते इतने ख़राब हुए कि ये भी ख़बरें आईं कि ट्रूडो ने क्रिस्टिया को पद से हटाने का फ़ैसला ले लिया था. हालांकि, आख़िर में क्रिस्टिया ने इस्तीफ़ा दिया और चिट्ठी में लिखा कि उन्होंने ट्रूडो पर भरोसा खो दिया है. इसके बाद ट्रूडो का इस्तीफ़ा मांगने वाले पार्टी के नेताओं की संख्या बढ़ती गई.
हालांकि, ट्रूडो की उस वक़्त भी इस्तीफ़े की कोई योजना नहीं थी. ट्रूडो बार-बार इस बात पर ज़ोर दे रहे थे कि वह कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पॉलिवेर को आम चुनाव में हरा देंगे. लेकिन तभी 2024 के बचे चुनिंदा दिनों में ही एंगस रीड इंस्टिट्यूट ने एक सर्वे की रिपोर्ट जारी की.
इस रिपोर्ट से पता चला कि लिबरल्स को मतदाताओं का समर्थन गिरकर 16 फ़ीसदी पर आ गया है. वहीं, कंज़र्वेटिव पार्टी को 45 फ़ीसदी वोटरों का साथ है. केवल 16 फ़ीसदी लोग ही ट्रूडो को सत्ता में बने रहने देना चाहते थे जबकि सर्वे में शामिल क़रीब आधे लोग उनका इस्तीफ़ा चाह रहे थे.
ट्रूडो के इस्तीफ़े का ट्रंप से नाता?
इधर जस्टिन ट्रूडो ने इस्तीफ़े का एलान किया और उसके कुछ देर बाद ही अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक पुराने प्रस्ताव को दोहरा दिया.
उन्होंने ट्रूथ सोशल पर लिखा कि कनाडा को अमेरिका के 51वां राज्य बनना चाहिए. ट्रंप इससे पहले भी कई बार ये कह चुके हैं. ट्रंप के पिछले कार्यकाल में भी ट्रूडो के साथ उनके रिश्ते ख़राब रहे थे.
इस बार भी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद ट्रंप ने कनाडा से आयात पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की चेतावनी दी थी. ऐसा माना जा रहा था कि कनाडा ने भी बदले के लिए अपनी योजना तैयार कर ली है. हालांकि, अब इस योजना पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं.
ट्रूडो ने साल 2016 में अमेरिका के लिए डेविड मैकनॉटन को राजदूत नियुक्त किया था. सीबीसी न्यूज़ ने अब मैकनॉटन के हवाले से एक लेख में लिखा है कि ट्रूडो के इस्तीफ़े का मतलब है कि अब ट्रंप के इस क़दम से निपटने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे.
मैकनॉटन ने सीबीसी न्यूज़ से कहा, “असलियत ये है कि, आप जब पद छोड़ने की घोषणा करते हैं तो आपकी शक्ति, आपका प्रभाव लगभग तभी ख़त्म हो जाते हैं.”
उनका कहना है कि ट्रूडो को ये क़दम महीनों पहले ही उठा लेना चाहिए था ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि सरकार व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी के लिए तैयार है.
उन्होंने कहा, “अभी अगले कुछ महीने अनिश्चितता से भरे हैं…और इस बीच ट्रंप इन दिनों में काफ़ी दबदबा बनाने की कोशिश कर सकते हैं.”
वहीं सीबीसी ने एक अन्य लेख में बताया है कि कैसे ट्रूडो के हटने के बाद भी पार्टी के लिए आगे के समीकरण आसान नहीं रहने वाले हैं.
इसमें लिखा गया है कि अगला नेता चुने जाने तक ट्रूडो प्रधानमंत्री बने रहेंगे. इसका मतलब है कि 20 जनवरी यानी ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के समय भी वही कनाडा के पीएम रहेंगे.
इसका मतलब है कि ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के शुरुआती दिनों और हफ़्तों में कनाडा पर जो फ़ैसले लिए जाएंगे, उसपर पहली प्रतिक्रिया ट्रूडो को ही देनी है.
लेख के अनुसार आगे क्या होगा इसपर अभी स्पष्टता नहीं है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि ट्रंप टैरिफ़ पर कोई कदम उठा सकते हैं.
कनाडाई अर्थव्यवस्था के लिए ट्रूडो के इस्तीफ़े के मायने?
ग्लोबल न्यूज़ ने अपने एक लेख में बताया है कि प्रधानमंत्री पद से ट्रूडो के इस्तीफ़े के एलान के बाद कनाडाई डॉलर के प्रदर्शन में सुधार देखा गया. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इससे नए नेतृत्व के साथ कनाडाई अर्थव्यवस्था पर अधिक भरोसे की झलक मिलती है.
कनाडाई मुद्रा लूनी पिछले कई महीनों से कमज़ोर होता जा रहा था लेकिन सोमवार को ट्रूडो के इस्तीफ़े की ख़बरों के ज़ोर पकड़ने के बाद इसका मूल्य अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले एक फ़ीसदी तक बढ़ गया. वहीं, कनाडाई डॉलर में भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मज़बूती देखी गई.
लेख के अनुसार बीते नवंबर में ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उनकी ओर से दी गई धमकियों के कारण भी लूनी कमज़ोर हुआ है. लेकिन वॉशिंगटन पोस्ट की ख़बरों के अनुसार ट्रूडो के इस्तीफ़े के बाद ट्रंप भी कनाडा से आयात पर टैरिफ़ की घोषणा से पीछे हट सकते हैं.
निवेश सलाहकार ऐलन स्मॉल ने ग्लोबल न्यूज़ से कहा कि लूनी के मज़बूत होने के पीछे कई अन्य कारक भी हैं लेकिन कनाडाई डॉलर का तेज़ी पकड़ना पूरी तरह से देश की अर्थव्यवस्था में भरोसे की झलक है.
उन्होंने कहा, “लूनी वाकई ऊंचा गया, जिससे मुझे ये संकेत मिले कि निवेशक ख़ासतौर पर विदेशी निवेशकों का मानना है कि ये (ट्रूडो का इस्तीफ़ा) अच्छा कदम है. देश के नेतृत्व और इसे जिस तरह से चलाया जा रहा था उसकी वजह से हमारा डॉलर अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले गिरता जा रहा था.”
कनाडा के अर्थशास्त्री टू गुएन की राय अलग है.
उन्होंने ग्लोबल न्यूज़ से कहा कि ट्रूडो का इस्तीफ़ा कनाडा की अर्थव्यवस्था के लिए अस्थिरता भी ला सकता है.
उन्होंने कहा, “करीब एक दशक से कनाडा की राजनीतिक स्थिरता ने विदेशी निवेशकों को यहां लाने में मदद की है. ट्रूडो का इस्तीफ़ा कनाडा के आर्थिक क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर सकता है, जिससे कनाडा में कुछ वक्त के लिए निवेश बाधित हो सकता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित