कनाडा अमेरिका से क्षेत्रफल में एक लाख 51 हज़ार 150 वर्ग किलोमीटर बड़ा है. दूसरी तरफ़ अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कनाडा को अमेरिका का 51वाँ राज्य बनाना चाहते हैं.
अगर ऐसा होता है तो अमेरिका का 51वाँ राज्य क्षेत्रफल के मामले में संपूर्ण मौजूदा अमेरिका से बड़ा होगा.
कनाडा नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो का संस्थापक सदस्य देश है. नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. नेटो ने बनने के बाद घोषणा की थी कि उत्तरी अमेरिका या यूरोप के सदस्य देशों में से किसी एक पर हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे. नेटो में शामिल हर देश एक-दूसरे की मदद करेंगे.
लेकिन अब नेटो के संस्थापक देश अमेरिका दूसरे संस्थापक देश कनाडा को ख़ुद में मिलाने की बात कर रहा है.
दरअसल, ट्रंप यह नहीं कह रहे हैं कि वह कनाडा को जबरन अमेरिका में मिला देंगे, बल्कि वहाँ के नेताओं और लोगों से अपील कर रहे हैं कि कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बना देना चाहिए.
दोनों देश कैसे एक हो सकते हैं?
दोनों देशों को एक होना है तो इसकी क़ानूनी और संवैधानिक प्रक्रिया होगी. कनाडा की न्यूज़ वेबसाइट टोरंटो स्टार ने लिखा है, बुनियादी मुद्दा यह है कि कनाडा में संवैधानिक रूप से राजशाही है और अमेरिका गणतंत्र है.
टोरंटो स्टार से हाउस ऑफ कॉमन्स और इलेक्शन्स कनाडा में लीगल काउंसल रहे ग्रेगरी थार्डी ने कहा, ”अगर आप राजशाही को गणतंत्र में बदलना चाहते हैं तो इस पर किंग के ऑफिस से डील करनी होगी. इस मामले को कनाडा एक्ट ऑफ 1982 के सेक्शन 41 के तहत देखना होगा. इसके लिए संविधान संशोधन करना होगा और पूरी व्यवस्था बदलनी होगी.”
टोरंटो स्टार से कनाडाई फोर्सेज कॉलेज में डिफेंस स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर ऐडम चैपनिक ने कहा, ”सच कहिए तो मुझे नहीं लगता है कि यह संभव है. वो भी तब जब कनाडा के ज़्यादातर लोग अमेरिका में शामिल होने के ख़िलाफ़ हैं. अगर इसे लेकर दोनों देश वाक़ई गंभीरता से सोचेंगे तो इसमें सालों नहीं तो महीनों लगेंगे. मुझे नहीं लगता है कि अमेरिका की यह प्राथमिकता है. मुझे लगता है कि यह खिल्ली उड़ाने से ज़्यादा नहीं है.”
अमेरिका वाक़ई इसे लेकर गंभीर है तो शुरुआत उसे ही करनी होगी. उसे नया राज्य जोड़ने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया शुरू करनी होगी. इस मामले में अमेरिकी कांग्रेस ही केवल फ़ैसला ले सकती है.
वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर मैथ्यू लेबो ने टोरंटो स्टार से कहा, ”अमेरिका में एक नए राज्य को जोड़ने के लिए हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट दोनों से प्रस्ताव पास कराना होगा. दोनों सदनों से प्रस्ताव पास कराने के लिए महाबहुमत की ज़रूरत होगी.”
हालांकि सामान्य तौर पर अमेरिकी क्षेत्र ही नया राज्य बनता है. जैसे पुएर्तो रिको या यूएस वर्जिन आईलैंड्स. यहाँ के लोग अमेरिकी नागरिक तो हैं लेकिन राज्य का दर्जा नहीं मिला है. दशकों से रिको में स्टेटहुड को लेकर राजनीतिक विवाद रहा है.
लेबो कहते हैं कि अगर कनाडा या इसका एक हिस्सा अमेरिका में शामिल होना चाहता है और अमेरिकी कांग्रेस इसके लिए तैयार है, तब भी मुझे नहीं लगता है कि कनाडा की सरकार इसकी अनुमति देगी. अतीत में स्टेटहुड एक ख़ूनी प्रक्रिया रही है. अमेरिका ने टेक्सस को मेक्सिको से लिया था तो चार सालों तक संघर्ष हुआ था और इसमें हज़ारों लोगों की जान गई थी.
विकल्प क्या है?
लेबो कहते हैं, ”मुझे नहीं लगता है कि कनाडा के मामले में कोई युद्ध होगा. अगर कनाडा के लोग अमेरिका का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं तो मुझे नहीं पता है कि और क्या तरीक़ा होगा.”
कहा जा रहा है कि आख़िरी तरीक़ा यही होगा कि दोनों देशों के बीच कोई अच्छी आर्थिक डील होगी. अच्छी डील से मतलब है कि ऐसा आर्थिक समझौता, जिससे ट्रंप को लगेगा कि यह अमेरिका के हित में है.
यूएस सेंसस ब्यूरो के अनुसार, 2014 में अक्तूबर तक कनाडा के साथ द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिका का व्यापार घाटा 50 अरब डॉलर का था. अमेरिका कनाडा से सबसे ज़्यादा कच्चा तेल आयात करता है. अगर कनाडा के तेल को हटा दिया जाए तो अमेरिकी ट्रेड सरप्लस में रहेगा.
ट्रंप इसी व्यापार घाटे को अमेरिका की ओर से कनाडा को दी गई सब्सिडी बता रहे हैं. ट्रंप ने कहा था कि पिछले साल अमेरिका ने कनाडा को 100 अरब डॉलर की सब्सिडी दी. हालांकि 2023 में अमेरिका का कनाडा के साथ व्यापार घाटा 67 अरब डॉलर का था.
पीपल्स पार्टी ऑफ कनाडा के प्रमुख मैक्सिम बर्निअर ने लिखा है, ”एक बात जो मुझे अमेरिका के बारे में हमेशा से नापसंद रही है, वह है वहाँ की नव-रूढ़िवादी सरकारों का सैन्यवादी और साम्राज्यवादी रवैया. यह रवैया डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों में मौजूद है. दशकों से ये दूसरे देशों पर हमला करते रहे हैं, सरकारें बदलते रहे हैं, बमबारी करते रहे हैं और हज़ारों निर्दोषों की जान लेते रहे हैं. अमेरिका ये सब दुनिया को सुरक्षित बनाने के नाम पर करता है. अमेरिका के अब भी 80 देशों में 750 सैन्य ठिकाने हैं ताकि ये अपने साम्राज्य की रक्षा कर सकें.”
मैक्सिम बर्निअर ने लिखा है, ”मैंने ट्रंप का समर्थन इसलिए किया था कि उन्होंने महंगे और अर्थहीन युद्धों का विरोध किया था. यहां तक कि उन्होंने यूक्रेन में रूस के साथ अमेरिका के छद्म युद्ध को भी ख़त्म करने की बात कही थी. ओबामा और बाइडन खुलकर युद्धों को बढ़ावा दे रहे थे. ट्रंप के नेतृत्व में रिपब्लिकन पार्टी शांति की समर्थक लग रही थी. अमेरिका वियतनाम से लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक में अपमानित हुआ है. यूक्रेन में भी चीज़ें उसके हक़ में नहीं जा रही हैं. रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध बैकफायर कर रहा है.”
मैक्सिम बर्निअर ने लिखा है, ”ट्रंप का कहना है कि वह आर्थिक ताक़त का इस्तेमाल करेंगे. मतलब ट्रंप कनाडा से इकनॉमिक वॉर शुरू करना चाहते हैं. ट्रंप हमारी अर्थव्यवस्था को तबाह करना चाहते हैं. ज़ाहिर है, इसका असर अमेरिका पर भी पड़ेगा, लेकिन कनाडा की तुलना में कम पड़ेगा. कनाडा अमेरिका से कोई भी युद्ध जीतने में सक्षम नहीं है. हम अमेरिका से आर्थिक जंग में भी देर तक नहीं टिक पाएंगे. कनाडा आर्थिक रूप से अमेरिका पर निर्भर है. अगर ट्रंप वाक़ई कनाडा को अमेरिका में शामिल करना चाहते हैं तो हम बिल्कुल एक अलग गेम में जा रहे हैं, जो बहुत ही ख़तरनाक होगा. ज़ाहिर है इसका कोई आसान समाधान नहीं होगा.”
ट्रंप चाहते क्या हैं?
ट्रंप ने नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद कनाडा पर 25 फ़ीसदी टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी. इस चेतावनी के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ट्रंप से मिलने अमेरिका गए लेकिन कोई आश्वासन नहीं मिला था. ट्रंप ने इस मुलाक़ात के बाद ही कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य कहना शुरू कर दिया था. शुरू में ट्रंप की इस बात पर कनाडा के नेताओं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी.
लेकिन ट्रंप थमे नहीं. ट्रंप की चेतावनी और ऐसे बयानों का असर ये हुआ कि कनाडा की वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने इस्तीफ़ा दे दिया और आख़िरकार जस्टिन ट्रूडो ने भी इस्तीफ़े की घोषणा कर दी. ट्रंप इसके बावजूद नहीं रुके और कनाडा को अमेरिकी राज्य बनाने की बात दोहराते रहे. लेकिन अब कनाडा के नेता ट्रंप को खुलकर जवाब दे रहे हैं.
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) में ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ का नारा दिया था. कनाडा को अमेरिकी राज्य बनाने की उनकी मंशा को ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की नीति के आईने में ही देखा जा रहा है.
अमेरिकी न्यूज़ नेटवर्क सीएनएन ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है, ”कनाडा हो या पनामा या फिर ग्रीनलैंड, ट्रंप सबसे अपने हक़ में डील करना चाहते हैं. कनाडा के साथ ट्रंप चाहते हैं कि ऐसी डील हो, जिससे अमेरिकी मैन्युफैक्चरर को फ़ायदा हो. ट्रंप को इसमें थोड़ी सी भी कामयाबी मिलती है तो इसे बड़ी जीत के तौर पर पेश करेंगे. जैसे कि पहले कार्यकाल में ट्रंप ने यूएस-मेक्सिको-कनाडा पैक्ट किया था.”
2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा था, ”राष्ट्रपति के रूप में मैंने अतीत की नाकाम नीतियों को ख़ारिज कर दिया है. मैं गर्व के साथ ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की नीति पर आगे बढ़ रहा हूँ. जैसा कि बाक़ी देश अपने हितों की प्राथमिकता दे रहे हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मैं भी करूंगा.”
ट्रंप अपने पहले कार्यकाल की उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह भी गिनाते हैं कि उन्होंने कोई नई जंग नहीं शुरू की थी. ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में भी कहा था कि अमेरिका को नए युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए. ऐसे में ट्रंप पनामा नहर या ग्रीनलैंड पर नियंत्रण के लिए हमला करते हैं तो यह उनकी नीति और वादों के उलट होगा.
ट्रंप ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि कनाडा को अमेरिका में मिलाने के लिए आर्थिक ताक़त का इस्तेमाल करेंगे. ट्रंप ने कहा है कि डेनमार्क ग्रीनलैंड पर अपना नियंत्रण नहीं छोड़ेगा तो बहुत भारी टैरिफ लगाएंगे. ग्रीनलैंड डेनमार्क का स्वायत्त क्षेत्र है और यह क़ीमती खनिज संपदा से भरा है.
कनाडा के लोग क्या चाहते हैं?
डेनमार्क भी नेटो का सदस्य है. अगर ट्रंप ग्रीनलैंड पर नियंत्रण के लिए डेनमार्क से यु्द्ध करेंगे तो नेटो की पूरी अवधारणा ही ध्वस्त हो जाएगी. अमेरिकी मीडिया में कहा जा रहा है कि ट्रंप इन देशों को टैरिफ का डर दिखाकर झुकाना चाहते हैं ताकि अपने हिसाब से फ़ायदे की डील कर सकें.
यह भी कहा जा रहा है कि ट्रंप की विस्तारवादी नीति उनके समर्थकों को रास आ रही होगी, भले इससे कुछ ठोस हासिल ना हो. ट्रंप ने इसी विस्तारवादी मंशा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जल्द ही गल्फ़ ऑफ मेक्सिको का नाम बदलकर ‘गल्फ़ ऑफ अमेरिका’ कर देंगे.
बड़ी संख्या में ट्रंप के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ़ की. रिपब्लिकन नेता और पूर्व सांसद मैट गैज़ ने लिखा- हम अपना गल्फ़ वापस ले रहे हैं.
ट्रंप के बारे में कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी भी नेता के अपमान को लेकर उदार नहीं रहते हैं बल्कि किसी न किसी रूप में बदला लेते हैं. ट्रंप को लगता है कि कनाडा के लोग भी अमेरिका में शामिल होना चाहेंगे.
ट्रूडो के इस्तीफ़े के बाद ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा था, ”कनाडा में ज़्यादातर लोग अमेरिका के 51वां राज्य बनना पसंद करेंगे. जस्टिन ट्रूडो को यह पता है और उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. अगर कनाडा का अमेरिका में विलय हो जाता है तो कोई टैरिफ नहीं होगा, टैक्स बहुत कम हो जाएगा और चीनी-रूसी ख़तरों से पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगा.”
मंगलवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में तो ट्रंप और आक्रामक दिखे. ट्रंप ने कहा, ”हम कनाडा को हर साल 200 अरब डॉलर की सब्सिडी नहीं दे सकते हैं.”
ट्रंप ने यह भी दावा किया है कि कनाडा के हॉकी खिलाड़ी वायनी ग्रेक्सी ने प्रधानमंत्री का चुनाव लड़ने के लिए उनसे संपर्क किया था.
ट्रंप ने कहा, ”वायनी ने मुझसे पूछा- मैं प्रधानमंत्री का चुनाव लड़ने जा रहा हूँ या गवर्नर का? मैंने उनसे कहा कि मुझे नहीं पता है, चलिए इसे गवर्नर ही बना देते हैं. मैं गवर्नर का चुनाव ज़्यादा पसंद करूंगा.”
कनाडा में लेजर पोल डेटा इकट्ठा करने वाली एक संस्था है. ट्रंप ने जब कनाडा को अमेरिका के 51वां राज्य बनने का ऑफर दिया तो लेजर पोल ने कनाडा के भीतर सर्वे किया था कि वाक़ई कनाडाई अमेरिका में शामिल होना चाहते हैं?
लेजर पोल के मुताबिक़ केवल 13 फ़ीसदी कनाडाई नागरिकों ने कहा कि वे अमेरिकी स्टेट बनना पसंद करेंगे. कुल 87 फ़ीसदी लोगों ने ट्रंप के आइडिया को ख़ारिज कर दिया. लेजर ने यह पोल छह से नौ दिसंबर के बीच किया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.