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कांग्रेस ने देश में बढ़ते गोल्ड लोन पर मोदी सरकार को घेरा है.
पार्टी ने आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘मोदी सरकार की नीतियों की वजह से पैदा संकट’ में गहरे फंस चुकी है.
आरबीआई की ओर से 28 फरवरी को जारी आंकड़ों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2024-25 के नौ महीनों में बैंकों के गोल्ड लोन पोर्टफोलियो में 71.3 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस दौरान ज्वैलरी समेत गोल्ड लोन बढ़कर 1.72 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.
इसके पिछले वित्त वर्ष (2023-24) की इस अवधि के दौरान इसमें सिर्फ 17 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई थी.
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जयराम रमेश ने बढ़ते गोल्ड लोन को अर्थव्यवस्था के गहरे संकट की निशानी बताते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ”भारत की अर्थव्यवस्था मोदी-निर्मित संकट में गहराई से फंसी हुई है. 2024 तक लगातार आर्थिक सुस्ती के कारण बीते 5 वर्षों में गोल्ड लोन में 300 फ़ीसदी की वृद्धि हुई, जो पहली बार 1 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है.”
जयराम रमेश ने लिखा, ”भारत की महिलाओं के लिए बुरी ख़बरें लगातार बढ़ रही हैं. फरवरी 2025 में आरबीआई के आंकड़ों में पता चला कि गोल्ड लोन में 71.3 फ़ीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है.”
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आख़िर पिछले लगभग नौ महीनों के दौरान गोल्ड लोन ग्रोथ में तेज़ इजाफे की वजह क्या है?
इसकी वजह समझाते हुए क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर अजित वेलोनी ने ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ से कहा, ”अप्रैल 2024 से लेकर दिसंबर 2024 तक गोल्ड लोन में 68 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस दौरान गोल्ड की कीमतों में भी 21 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन इस दौरान अनसिक्योर्ड लोन से जुड़े नियम कड़े हुए हैं. लिहाजा बैंकों का गोल्ड लोन जैसे सिक्योर्ड लोन का पोर्टफोलियो बढ़ा है. यानी बैंक ज्यादा गोल्ड लोन दे रहे हैं.”
सिक्योर्ड लोन किसी एसेट की गारंटी में दिया जाता है. जैसे- घर, कार या ज्वैलरी. जबकि पर्सनल लोन अनसिक्योर्ड होते हैं बगैर गारंटी के दिए जाते हैं.
वेलोनी ने बताया, ”अप्रैल 2024 से दिसंबर 2024 के दौरान पर्सनल लोन में पांच से छह फ़ीसदी की ग्रोथ हुई है. वहीं इसके पिछले साल इस अवधि के दौरान इसमें 16.5 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई थी.”
दरअसल आरबीआई ने अनसिक्योर्ड लोन पर रिस्क वेट (जोख़िम भार) 25 पर्सेंटेज प्वाइंट बढ़ा कर 125 फ़ीसदी कर दिया था. इसी वजह से बैंक अनसिक्योर्ड लोन देने में सख्ती कर रहे हैं.
दिसंबर 2023 में पर्सनल लोन ग्रोथ 20.8 फ़ीसदी रही, लेकिन दिसंबर 2024 में ये घटकर 9.7 फ़ीसदी रही. दिसंबर 2023 में क्रेडिट कार्ड लोन की ग्रोथ 32.6 फ़ीसदी थी लेकिन दिसंबर 2024 में ये ग्रोथ घट कर 15.6 फ़ीसदी पर आ गई.
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जयराम रमेश ने लिखा है कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को संभालने में बुरी तरह नाकाम रही है. इसकी सबसे बड़ी कीमत भारत की महिलाओं को चुकानी पड़ रही है.
उनका इशारा इस बात की ओर था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कथित संकट की वजह से परिवारों को अपने घर की महिलाओं के गहने बेचकर कर्ज लेना पड़ रहा है.
क्या गोल्ड लोन का बढ़ना सचमुच अर्थव्यवस्था के संकट में फंसने की ओर इशारा कर रहा है?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र का प्रदर्शन तो अच्छा है. लेकिन असंगठित क्षेत्र का हाल ख़राब है. जबकि हक़ीकत ये है कि देश के 94 फ़ीसदी कामकाजी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. यहां ग्रोथ बेहद धीमी है और इसमें काम करने वाले लोगों का वेतन नहीं बढ़ रहा है. उन पर महंगाई का दबाव बना हुआ है. शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी सेवाओं की कीमतें बढ़ी हैं. इसलिए लोगों को अपने पास मौजूद गोल्ड के एवज में लोन लेना पड़ रहा है.”
उन्होंने कहा, ”असंगठित क्षेत्र के ख़राब प्रदर्शन का सबसे ज़्यादा असर निम्न मध्य वर्ग और इससे थोड़े से ऊपर के दर्जे पर रह रहे लोगों की कमाई पर पड़ा है. वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें में बढ़ोतरी उनकी कमाई खा रही है. बच्चों की शिक्षा, कोचिंग और मेडिकल के खर्चों के लिए लोगों को लोन लेना पड़ रहा है. गोल्ड पर आसानी से लोन मिलने की वजह से लोग सोना देकर कर्ज़ ले रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि असंगठित क्षेत्र ही नहीं संगठित क्षेत्र में काम करने वालों का वेतन नहीं बढ़ रहा है. इस साल बजट से पहले आए आर्थिक सर्वे में भी कहा गया है कि कंपनियां मुनाफ़ा तो कमा रही हैं, लेकिन कर्मचारियों का वेतन नहीं बढ़ रहा है.
रेलिगेयर ब्रोकिंग में रिटेल रिसर्च के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डॉ. रवि सिंह का कहना है कि बैंकों का गोल्ड लोन पोर्टफोलियो बढ़ना अर्थव्यवस्था में किसी संकट की निशानी नहीं है.
उन्होंने कहा, ”गोल्ड के दाम बढ़े हुए हैं. ऐसे में गोल्ड लोन का मार्केट आकर्षक हो गया है. छोटे कारोबारी बिजनेस के विस्तार के लिए पारंपरिक लोन की तुलना में गोल्ड लोन ले रहे हैं. अर्थव्यवस्था जब अच्छा प्रदर्शन कर रही हो तो लोन बाज़ार भी बढ़ता है. इसलिए गोल्ड लोन पोर्टफोलियो का बढ़ना अर्थव्यवस्था में संकट की निशानी नहीं कहा जा सकता.”
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लेकिन बढ़ते गोल्ड लोन ने बैंकों और वित्तीय कंपनियों की चिंता भी बढ़ाई है. दरअसल, पिछले कुछ महीनों में कई ऐसी रिपोर्ट सामने आई हैं जिनमें कहा गया है कि गोल्ड लोन डिफॉल्ट में भारी बढ़ोतरी हुई है. मतलब गोल्ड लोन लेने वाले समय पर इसे अदा नहीं कर पा रहे हैं.
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़ अप्रैल से जून 2024 के दौरान गोल्ड लोन डिफॉल्ट में 30 फ़ीसदी का इजाफ़ा दर्ज किया गया.
इस दौरान बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का गोल्ड लोन डिफॉल्ट 5149 करोड़ रुपये से बढ़कर 6696 करोड़ रुपये पर पहुंच गया .
आरबीआई ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के आरटीआई के जवाब में बताया था कि मार्च 2024 में बैंकों का गोल्ड लोन एनपीए 1513 करोड़ रुपये का था जो जून तक 62 फ़ीसदी बढ़ कर 2445 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का गोल्ड एनपीए मार्च 2024 में 3,636 करोड़ रुपये था लेकिन जून तक आते-आते ये 24 फ़ीसदी बढ़ कर 4251 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.
एनपीए उस कर्ज को कहा जाता है कि जिस पर बैंक को मूलधन या ब्याज मिलना बंद हो जाता है. आम भाषा में इसे ‘डूबा हुआ कर्ज’ कहते हैं.
सिबिल और नीति आयोग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 से 2024 के बीच गोल्ड लोन लेने वाली महिला ग्राहकों की संख्या में सालाना 22 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. इस दौरान चार करोड़ नई महिला ग्राहकों ने गोल्ड लोन लिया था. इन महिलाओं ने अपने गहनों के बदले 4.7 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित