कांग्रेस ने पूजा स्थल अधिनियम कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की। पार्टी ने मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। इसमें कहा गया है कि कानून में बदलाव धार्मिक ताने-बाने के लिए नुकसानदेह हो सकता है। पार्टी ने कहा कि पूजा स्थल कानून लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणा पत्र का हिस्सा था। इसलिए वह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करती है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून 1991 के समर्थन में कांग्रेस पार्टी सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। कांग्रेस ने संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के जरिए हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर पूजा स्थल कानून के प्रविधानों को चुनौती देने वाली याचिका का विरोध किया है और मामले में पक्ष रखने का मौका दिये जाने का अनुरोध किया है।
सबसे पहले अश्वनी उपाध्याय ने दाखिल की याचिका
सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल कानून से जुड़ी सभी याचिकाओं पर 17 फरवरी को सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट में सबसे पहले वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने 2020 में याचिका दाखिल की थी जिसमें पूजा स्थल कानून के विभिन्न प्रविधानों, धारा दो, तीन और चार की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। इसके बाद और भी कई याचिकाएं दाखिल हुईं जिसमें कानून को चुनौती देते हुए उसे रद करने की मांग की गई।
ओवैसी ने भी दाखिल की याचिका
बाद में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने याचिका दाखिल की जिसमें कानून का समर्थन करते हुए उसे लागू करने की मांग की गई। जमीयत के अलावा असदउद्दीन ओवैसी व कई अन्य लोगों ने भी हस्तक्षेप अर्जियां दाखिल कीं जिसमें कानून का समर्थन किया गया है।
कानून के समर्थन में कांग्रेस
सुप्रीम कोर्ट ने मुद्दे को महत्वपूर्ण मानते हुए सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की बात कही थी और 17 फरवरी की तारीख तय की थी। अब कांग्रेस भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है और कांग्रेस ने भी कानून का समर्थन करते हुए अश्वनी उपाध्याय की याचिका का विरोध किया है।
धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए आवश्यक
कांग्रेस ने अर्जी में कहा है कि जब यह कानून पारित हुआ था उस समय पार्टी सत्ता में थी। यह कानून लोकसभा चुनाव में पहले से कांग्रेस के घोषणापत्र का हिस्सा था। कहा है कि यह कानून भारत में धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए बहुत आवश्यक है। कानून को चुनौती देने वाली याचिका प्रेरित और उद्देश्यपूर्ण लगती है। कांग्रेस ने कहा है कि उसे मामले में हस्तक्षेप करने की इजाजत दी जाए ताकि वह इस कानून के संवैधानिक और सामाजिक महत्व को बता सके।
बदलाव से धार्मिक ताने-बाने को होगा नुकसान
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