रबी फसलों की बुआई का मौसम चल रहा है लेकिन लाल सागर में संकट की वजह से किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट डीएपी का है। देश को प्रत्येक वर्ष खरीफ एवं रबी दोनों फसलों के लिए 90 से सौ लाख टन डीएपी की जरूरत पड़ती है जिसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। बाकी के लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गेहूं समेत रबी फसलों की बुआई का मौसम चल रहा है, लेकिन लाल सागर में संकट की वजह से किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट डीएपी का है। देश को प्रत्येक वर्ष खरीफ एवं रबी दोनों फसलों के लिए 90 से सौ लाख टन डीएपी की जरूरत पड़ती है, जिसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। बाकी के लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस वर्ष भी देश में लगभग 93 लाख डीएपी की जरूरत बताई गई है, लेकिन घरेलू उत्पादन एवं आयात दोनों को मिलाकर उपलब्धता लगभग 75 लाख टन डीएपी की है।
इन देशों से आती है डीएपी
हाउती विद्रोहियों ने बढ़ाई टेंशन
बढ़ती जा रही डीएपी की मांग
पंजाब-हरियाणा से ज्यादा मांग
डीएपी की ज्यादा मांग पंजाब एवं हरियाणा से आ रही है, जहां रबी फसलों की बुआई प्रारंभ हो चुकी है। बाकी राज्यों में अभी धान की फसलें पूरी तरह नहीं कटी हैं। मध्य नवंबर और दिसंबर से अन्य राज्यों में भी मांग बढ़ने वाली है। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने दावा किया है कि खाद की कमी नहीं होने दी जाएगी। पंजाब में डीएपी की कमी के आरोपों को खारिज करते हुए ब्योरा भी दिया है कि केंद्र ने अक्टूबर में पंजाब को 92 हजार टन डीएपी एवं 18 हजार टन एनपीके की आपूर्ति की है।
नवंबर के पहले हफ्ते में भी केंद्र द्वारा 50 हजार टन डीएपी पंजाब को भेजा जाना है। हरियाणा का भी ऐसा ही हाल है। केंद्र की रिपोर्ट बताती है कि सितंबर में हरियाणा की ओर से 60 हजार टन डीएपी की मांग आई थी। मगर केंद्र की तरफ से 64 हजार 708 टन डीएपी की आपूर्ति की गई, जो मांग से ज्यादा है।यह भी पढ़ें: ‘LAC से पीछे हटे सैनिक लेकिन…’, चीन के साथ संबंधों में आए बदलाव पर क्या बोले एस जयशंकर?
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