इसरो के वैज्ञानिक अभिषेक सिंह ने बताया कि इस टेस्ट का मकसद था भारतीय प्रक्षेपण एजेंसी की ताकत को जानना। उन्होंने कहा कि तमकुही क्षेत्र के जंगली पट्टी में शाम को 5 बजकर 14 मिनट और 33 सेकंड पर पहला रॉकेट छोड़ा गया। ये रॉकेट 1.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक गया।इसके बाद रॉकेट से एक छोटा सा उपग्रह बाहर आया। जब ये उपग्रह 5 मीटर नीचे गिरा, तो उसका पैराशूट खुल गया।
पैराशूट की मदद से उपग्रह 400 मीटर के अंदर धरती पर आ गया। रॉकेट भी पैराशूट के सहारे धीरे-धीरे धरती पर वापस आ गया। इस रॉकेट का वजन 15 किलो था और इसमें 2.26 किलो ईंधन डाला गया था। लॉन्च के समय 2.6 सेकंड के लिए ईंधन जला और रॉकेट सैटेलाइट को ऊपर लेकर गया।
वैज्ञानिकों ने बताया कि इसरो की टीम ने फरवरी के महीने में इस जिले का दौरा किया था।तभी उन्होंने इस जगह को चुना था।अक्टूबर से नवंबर के बीच देश भर के लगभग 900 युवा वैज्ञानिकों ने मिलकर सैटेलाइट बनाए हैं।इन सैटेलाइट का टेस्ट इसरो की निगरानी में होगा।
इन-स्पेस मॉडल रॉकेट्री, कैनसैट इंडिया छात्र प्रतियोगिता 2024-25 का आयोजन एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) कर रही है।इसमें भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस), इसरो और कुछ और संस्थाएं भी मदद कर रही हैं।इसका मकसद है कि छात्रों के बीच अंतरिक्ष विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बारे में जानने की इच्छा पैदा हो।
इन-स्पेस मॉडल रॉकेट्री, कैनसैट इंडिया स्टूडेंट कॉम्पिटिशन 2024-25 में देश के अलग-अलग कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र हिस्सा लेंगे।वे मॉडल रॉकेट और कैन के आकार के उपग्रह को डिजाइन करेंगे, बनाएंगे और लॉन्च करेंगे। ये लॉन्च साइट से 1000 मीटर की ऊंचाई पर होगा।इसी को ध्यान में रखते हुए तमकुही राज तहसील के जंगली पट्टी में ये टेस्ट किया गया, जो सफल रहा।
कई सारे लॉन्चर विकल्पों को देखने के बाद, इन कैनसैट को लॉन्च करने के लिए थ्रस्ट टेक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को चुना गया।ये टेस्ट कंपनी के मोटर का भी था कि वो ठीक से काम कर रहा है या नहीं। निदेशक विनोद कुमार ने बताया कि प्री लॉन्चिंग में 4 रॉकेट का इस्तेमाल दो दिनों में किया जाना है।उन्होंने ये भी कहा कि इसरो की टीम के फैसले के बाद लॉन्चिंग की जिम्मेदारी थ्रस्ट टेक इंडिया की टीम को दी गई है। इस आयोजन का मकसद है कि इस क्षेत्र और पूरे भारत के बच्चों की स्पेस टेक्नोलॉजी में रुचि बढ़े।
वैज्ञानिकों ने एक और खास बात बताई। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद में रॉकेट लॉन्च करने के बाद ड्रोन से सैटेलाइट भेजा गया था। लेकिन यहां पहली बार है कि रॉकेट से ही सैटेलाइट भेजा गया। ये टेस्ट पूरी तरह से सफल रहा और सैटेलाइट की लॉन्चिंग भी सफल रही।
टेस्ट के दौरान इसरो स्पेस के निदेशक विनोद कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक केके त्रिपाठी, विजयाश्री, अनंत मधुकर, बृजेश सोनी, युधिष्ठिर और थ्रस्ट टेक इंडिया लिमिटेड के अमन अग्रवाल, अद्वैत सिधाना, सुभद्र गुप्त, जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर, देवरिया सांसद शशांक मणि त्रिपाठी भी मौजूद थे।
ये टेस्ट इसलिए भी खास है क्योंकि इससे बच्चों को स्पेस टेक्नोलॉजी में रुचि लेने का मौका मिलेगा।जब बच्चे देखेंगे कि रॉकेट कैसे लॉन्च होता है और सैटेलाइट कैसे काम करता है, तो वे भी वैज्ञानिक बनने के लिए प्रेरित होंगे। इसरो और थ्रस्ट टेक इंडिया लिमिटेड ने मिलकर ये टेस्ट करके एक बहुत अच्छा काम किया है। इससे भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी और भी आगे बढ़ेगी और बच्चों को विज्ञान के बारे में जानने का मौका मिलेगा।