“मैं आज इस तिरंगे के नीचे खड़े होकर बड़े गर्व के साथ ये कह सकता हूं कि अरविंद केजरीवाल आधुनिक स्वतंत्रता सेनानी हैं.”
अरविंद केजरीवाल के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल दिल्ली के पूर्व परिवहन मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता रहे कैलाश गहलोत ने किया था.
तीन महीने पहले 15 अगस्त 2024 को कैलाश गहलोत ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में झंडा फहराया और कहा कि ‘लोकतंत्र विरोधी ताक़तों’ ने केजरीवाल को जेल भेजकर उन्हें रोकने की साज़िश की है.
इस बयान के तीन महीने बाद रविवार को कैलाश ने मंत्री पद छोड़ा और आप की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफ़ा दे दिया. उन्होंने पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर ‘जनता से किए वादे पूरे न करने’ का आरोप लगाया है.
अब कैलाश गहलोत भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं.
रविवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अरविंद केजरीवाल से जब कैलाश गहलोत पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने चुप्पी साध ली और माइक बगल में बैठे विधायक दुर्गेश पाठक की तरफ़ खिसका दिया.
दुर्गेश पाठक ने कहा, “बीते कुछ महीनों से कैलाश जी को ईडी हर दिन बुलाती थी, उनको आईटी और ईडी की रेड का सामना करना पड़ रहा था. तो उनके पास कोई रास्ता नहीं था, उन्हें भारतीय जनता पार्टी में ही जाना था.”
हालांकि बीजेपी में शामिल होते समय कैलाश गहलोत ने कहा कि ईडी या सीबीआई की बात ग़लतफ़हमी है.
इस्तीफ़े के पीछे की कहानी
15 सितंबर 2024. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल से बाहर आने के बाद एक कार्यक्रम में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे.
केजरीवाल समेत मंच पर एक दर्जन से ज़्यादा नेता मौजूद थे. तभी अचानक केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफ़े की घोषणा कर दी. इस दौरान आतिशी, सौरभ भारद्वाज और कैलाश गहलोत भी मौजूद थे.
केजरीवाल के इस्तीफ़े के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए इन तीनों नाम की चर्चा हो रही थी लेकिन अंत में आतिशी मुख्यमंत्री बनीं.
इस्तीफ़े की घोषणा के पहले केजरीवाल ने एक ज़रूरी बात कही थी जिसे कैलाश गहलोत के इस्तीफ़े की एक अहम कड़ी बताया जा रहा है.
केजरीवाल ने कहा था, “15 अगस्त के तीन दिन पहले मैंने एलजी साहब को चिट्ठी लिखी थी कि मैं चूंकि जेल में हूं, मेरी जगह आतिशी जी को झंडा फहराने की इजाज़त दी जाए. वो चिट्ठी एलजी साहब तक नहीं पहुंचाई गई थी और मुझे वॉर्निंग जारी की गई थी.”
केजरीवाल के इस बयान के बाद संजय सिंह समेत बाकी नेता ‘शेम-शेम’ कहने लगे, लेकिन संजय सिंह के ठीक पीछे बैठे कैलाश गहलोत चुप थे.
केजरीवाल आतिशी का नाम चाहते थे, लेकिन उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने झंडा फहराने के लिए कैलाश गहलोत को नामित किया और गहलोत गए भी थे. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि इस घटना को पार्टी के भीतर अविश्नवास की भावना की तरह देखा गया.
एक तरफ़ आम आदमी पार्टी के साथ उपराज्यपाल का टकराव लगातार बढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ गहलोत अपने चिर-परिचित ख़ामोशी वाले अंदाज़ में वीके सक्सेना के साथ मिलकर काम करते हुए दिखाई दे रहे थे.
इस दौरान गहलोत कैब एग्रीगेटर और प्रीमियम बस सेवा जैसी नीतियों को पारित करवाने में सफल रहे जबकि उनके सहयोगी उपराज्यपाल के ऊपर काम न करने का आरोप लगा रहे थे.
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, “एक चीज़ बड़ी साफ़ दिखाई पड़ती है कि रिश्ते अच्छे रहे हैं. झंडा फहराने की घटना एलजी के गहलोत के साथ रिश्ते को दिखाती है. पार्टी के भीतर कैलाश गहलोत उस धारा के व्यक्ति हैं कि केंद्र सरकार के साथ टकराव न किया जाए और उन्होंने अपने इस्तीफ़े में भी यह बात कही है. ये सारी चीज़ें इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि शायद बीजेपी के प्रति उनका एक सॉफ़्ट कॉर्नर रहा था.”
फ़रवरी 2023 में मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन ने दिल्ली की कैबिनेट से इस्तीफ़ा दिया था. तब दोनों कथित शराब घोटाले के आरोप में जेल में थे. इसके बाद आतिशी और सौरभ भारद्वाज को कैबिनेट में शामिल किया गया.
जून, 2023 में आतिशी को राजस्व, प्लानिंग और वित्त विभाग की ज़िम्मेदारी दे दी गई, जिसे इससे पहले कैलाश गहलोत संभाल रहे थे. मार्च, 2023 में गहलोत ने दिल्ली विधानसभा में बतौर वित्त मंत्री बजट भी पेश किया था.
दिसंबर 2023 में आतिशी को क़ानून विभाग की भी ज़िम्मेदारी मिल गई जिसकी ज़िम्मेदारी भी कैलाश गहलोत के पास थी और इस साल आतिशी को मुख्यमंत्री बना दिया गया.
इन घटनाक्रमों को सियासी गलियारों में कैलाश गहलोत की नाराज़गी के रूप में देखा गया था. बीजेपी में शामिल होते समय कैलाश गहलोत ने भी कहा है कि यह कोई एक दिन का फ़ैसला नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण मोहन मिश्रा इसके पीछे दो प्रमुख वजह बताते हैं.
कृष्ण मोहन मिश्रा कहते हैं, “पहली वजह है अरविंद केजरीवाल की तानाशाही क्योंकि आम आदमी पार्टी में कैडर और पद के हिसाब से हैसियत जैसी बात नहीं है. जो अरविंद केजरीवाल को पसंद आएगा, उसी हिसाब से सरकार चलेगी. दस साल से गहलोत मंत्री थे और वो सीनियर हो गए थे लेकिन आपने आतिशी की लैटरल एंट्री करा दी और मुख्यमंत्री बना दिया. जो भी आदमी आपके साथ शिद्दत से काम कर रहा था उसे तकलीफ़ होगी. यही वजह है कि उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया.”
“दूसरी वजह है आम आदमी की लोकप्रियता का गिरता ग्राफ़ और खिसकता जनाधार. गहलोत दिमाग़ से तेज़ हैं. उन्हें शायद लग गया होगा कि यह पार्टी चुनाव नहीं जीत पाएगी इसलिए संभव है कि वो मंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर बीजेपी में चले गए.”
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आम आदमी पार्टी को कितना बड़ा झटका?
कुछ हफ़्ते पहले कैलाश गहलोत अरविंद केजरीवाल को फिर से सीएम बनाने की बात कर रहे थे और ख़ुद को ‘केजरीवाल का हनुमान’ बताते हुए लंबित कामों को पूरा करने की बात कह रहे थे.
सोमवार को अरविंद केजरीवाल से एक बार फिर जब कैलाश गहलोत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “वो फ़्री हैं जहां मर्जी जाएं.”
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, “पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व केजरीवाल से नाराज़ था और ऐसा पहली बार नहीं था. पार्टी को पता था कि गहलोत पार्टी छोड़ सकते हैं और जाट समाज से ही उनका विकल्प खोज लिया गया था.”
रिपोर्ट में आप के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से लिखा, “2020 का विधानसभा चुनाव, 2017 का एमसीडी चुनाव और हालिया लोकसभा चुनाव तीनों में ही गहलोत अपनी सीट पर प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं कर पाए थे. इसके बाद झंडे वाले विवाद से बात और आगे बढ़ गई थी.”
जाट समाज से आने वाले कभी केजरीवाल के ख़ास रहे कैलाश गहलोत के पार्टी छोड़ने पर क्या नुक़सान हो सकता है?
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी का कहना है, “राजनीति में परसेप्शन बहुत मायने रखता है और परसेप्शन के स्तर पर आप को बड़ा झटका लगा है क्योंकि एक वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री ने पार्टी छोड़ दी है. केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद पार्टी पहले से ही परसेप्शन के मोर्चे पर जूझ रही है. इससे पहले राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल का प्रकरण भी चल रहा है. इस बीच अगर एक और कोई छोड़ गया तो चुनाव से पहले आप के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी.”
इस्तीफ़ा देने के 24 घंटे के भीतर सोमवार को कैलाश गहलोत ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. गहलोत दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा, केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर और बैजयंत पांडा सरीखे नेताओं की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुए.
कैलाश गहलोत के बीजेपी में शामिल होने से उन्हें क्या फ़ायदा होगा?
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष कहते हैं, “कैलाश गहलोत कोई जन नेता नहीं है इसलिए बीजेपी को कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होगा. जहां से गहलोत चुनाव लड़ते हैं, हो सकता है कि वहां बीजेपी को फ़ायदा मिल जाए. हालांकि चुनाव के समय ये आप के लिए तो झटका है. अगर मनीष सिसोदिया छोड़ें या संजय सिंह, गोपाल राय छोड़ें तो बात अलग होती. ये तो एक विधायक थे और मंत्री बन गए थे.”
ईडी और आईटी के कौन से मामले हैं?
कैलाश गहलोत ने जब से इस्तीफ़ा दिया है तब से ही आम आदमी पार्टी के नेता उन पर ईडी और सीबीआई के दवाब में इस्तीफ़ा देने की बात कह रहे हैं.
इस पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा, “जो नेता पार्टी छोड़ता है या सवाल पूछता है, केजरीवाल की टीम इसी तरह चरित्र हनन करती है.”
2018 में आयकर विभाग ने गहलोत से जुड़ी संपत्तियों पर छापा मारा था और 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा की कर चोरी का दावा किया था. तब कैलाश ने इसका खंडन किया था. 2019 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कैलाश गहलोत के भाई हरीश गहलोत की 1.46 करोड़ की संपत्ति कुर्क की थी.
2021 में बीजेपी ने 1000 लो-फ़्लोर एसी बसों के रखरखाव के लिए दिए गए ठेकों में अनियमितता का आरोप लगाया था. इसके बाद तत्कालीन उपराज्यपाल अनिल बैजल द्वारा गठित एक समिति ने कई खामियों को उजागर किया था. समिति की रिपोर्ट के बाद, गृह मंत्रालय ने सीबीआई द्वारा प्रारंभिक जांच की सिफारिश की. तब गहलोत के पास परिवहन मंत्री का प्रभार था.
2024 के मार्च में कैलाश गहलोत से ईडी ने कथित शराब घोटाले को लेकर पूछताछ की थी. ईडी ने तब कहा था कि मामले में गिरफ़्तार हुए विजय नायर कथित तौर पर कैलाश गहलोत के सरकारी आवास पर रुके थे.
इस पर गहलोत का कहना था कि ‘विजय नायर मेरे नाम पर आवंटित हुए घर पर रुके ज़रूर थे, लेकिन मैं कभी उस बंगले में रहा ही नहीं. मैं अपने ख़ुद के वसंत कुंज वाले घर में रहता हूं.’
बीजेपी में शामिल होते ही कैलाश गहलोत ने ईडी-सीबीआई के दवाब वाले आरोपों पर कहा, “कुछ लोग सोचते हैं कि यह फ़ैसला रातों-रात लिया है या किसी के दवाब में मैंने यह फ़ैसला लिया है. हर एक व्यक्ति जो यह सोच रहा है कि किसी के दवाब में ये फ़ैसला लिया है, मैं कहना चाहता हूं कि मैंने आज तक किसी के दवाब में आकर कोई काम नहीं किया है. मुझे सुनना में आ रहा है कि ऐसा नैरेटिव बनाने की कोशिश की जा रही है कि इन्होंने इस्तीफ़ा ईडी या सीबीआई के दवाब मे दिया है. ये सारी गलतफ़हमी है.”
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कौन हैं कैलाश गहलोत?
22 जुलाई 1974 को दिल्ली में नजफ़गढ़ के मितरांव गांव में जन्मे कैलाश गहलोत राजनीति में आने से पहले वक़ालत करते थे. गहलोत का परिवार पिछली नौ पीढ़ियों से यहां रह रहा है.
कैलाश गहलोत ने दिल्ली हाई कोर्ट में 16 साल से ज़्यादा समय तक बतौर वकील क़ानूनी प्रैक्टिस की है. 2005 से 2007 के बीच गहलोत दिल्ली हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन में कार्यकारी सदस्य चुने गए थे.
2015 में कैलाश गहलोत ने नजफ़गढ़ से आम आदमी पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा और इंडियन नेशनल लोक दल के भरत सिंह को नज़दीकी मुक़ाबले में 1555 वोटों से हराया था.
केजरीवाल सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे गहलोत के पास वित्त, राजस्व और परिवहन जैसे अहम मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी दी थी.
2020 में भी कैलाश गहलोत इसी सीट से चुनाव लड़े और बीजेपी के अजीत सिंह को हराया था. तब जीत-हार का अंतर 6,231 वोट था.
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