डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। संसद का शीतकालीन सत्र आज यानी शुक्रवार को खत्म हो गया है। साल 2047तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा पैदा करने की क्षमता करने के एक बड़े लक्ष्य के साथ संसद के दोनों सदनों में शांति विधेयक 2025 पास हो गया। अब सवाल यह है कि परमाणु शक्ति संपन्न देश होने के बावजूद भारत न्यूक्लियर एनर्जी में पीछे क्यों है और अब सरकार इसे क्यों आगे बढ़ाना चाहती है?
इस सवाल का जवाब पढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि न्यूक्लियर एनर्जी होती क्या है?
परमाणु ऊर्जा (Nuclear energy) वह ऊर्जा होती है, परमाणु के केंद्र यानी न्यूक्लियस से निकलती है। आज दुनिया में बिजली उत्पादन के लिए जिस परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है, वह न्यूक्लियर फिशन (विखंडन) से पैदा होती है। इसमें यूरेनियम जैसे भारी परमाणु टूटते हैं और बड़ी मात्रा में ऊष्मा निकलती है।
यह ऊष्मा पानी को भाप में बदलती है। भाप से टर्बाइन घूमती हैं और फिर बिजली पैदा होती है। प्रक्रिया वही है जो कोयला या गैस प्लांट में होती है, फर्क सिर्फ इतना है कि यहां ईंधन परमाणु होता है और कार्बन उत्सर्जन बेहद कम होता है।
भारत को न्यूक्लियर एनर्जी की जरूरत क्यों है?
दरअसल, भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। ऐसे में उसकी ऊर्जा जरूरतें तेजी से बढ़ रही हैं। देश की बड़ी आबादी आज भी पर्याप्त बिजली से वंचित है। वहीं सरकार 8–9 प्रतिशतकी आर्थिक विकास दर बनाए रखना चाहती है, जो बिना भरोसेमंद ऊर्जा के संभव नहीं है।
ऊर्जा के अभी जो स्रोत हैं, उनका क्या?
- कोयला- प्रदूषण बढ़ाता है।
- तेल-गैस – आयात करनी होती है।
- सौर-पवन ऊर्जा – मौसम पर निर्भर हैं।
इस लिहाज से परमाणु ऊर्जा एक ऐसा विकल्प है, जो 24×7 बिजली देता है और प्रदूषण भी नहीं करता। बता दें कि भारत ने 2070 तक नेट जीरो एमिशन का लक्ष्य रखा है, जिसमें परमाणु ऊर्जा मददगार साबित हो सकता है।
न्यूक्लियर एनर्जी के मामले में भारत पीछे कैसे रह गया?
वर्तमान में भारत अपनी कुल बिजली जरूरत का सिर्फ 3.1 प्रतिशत ही परमाणु ऊर्जा से पूरा करता है। यानी देश में इस्तेमाल होने वाली ज्यादातर बिजली अब भी कोयला, तेल, गैस और अन्य स्रोतों से पैदा होती है, परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी बेहद कम है।
इसकी बड़ी वजह यह रही है कि यह पूरा सेक्टर दशकों तक सिर्फ सरकार के नियंत्रण में रहा। निजी कंपनियों और विदेशी निवेश को परमाणु क्षेत्र में आने की अनुमति नहीं थी। इससे न तो पर्याप्त पूंजी आई और न ही नई तकनीक। नतीजा यह हुआ कि जितना विस्तार हो सकता था, उतना नहीं हो पाया। इसलिए न्यूक्लियर एनर्जी के मामले में भारत पिछड़ गया।
शांति बिल क्या है?
शांति बिल 2025 का पूरा नाम- ‘सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ (Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India) है। यह बिल भारत की नागरिक परमाणु ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव लाने के लिए लाया गया है।
शांति बिल क्यों लाया गया?
SHANTI Bill 2025 को लेकर केंद्र सरकार का कहना है, ‘ साल 1962 के परमाणु ऊर्जा कानून को आज की तकनीक और जरूरतों के हिसाब से अपडेट करना जरूरी था।’
मौजूदा सिस्टम में सुरक्षा नियम पूरे चक्र में समान नहीं थे। नियामक संस्थाओं की शक्तियां सीमित थीं। शांति बिल 2025निजी क्षेत्र की भागीदारी का रास्ता खोलता है। सरकार का कहना है कि इससे भारत और विदेशी कंपनियां मिलकर नए परमाणु संयंत्र लगाएंगी और 2047 तक 100 गीगावॉट का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा। एनपीसीआईएल स्वदेशी तकनीक से रिएक्टर लगाएगी, जबकि कुछ परियोजनाएं विदेशी सहयोग से होंगी।
विपक्ष क्यों कर रहा था बिल विरोध?
विपक्ष का कहना है कि परमाणु ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में निजी कंपनियों को लाना जोखिम भरा है। उनका सवाल है कि अगर कोई बड़ा हादसा हुआ तो जिम्मेदारी किसकी होगी? विपक्ष ने 1986 में चेर्नोबिल और 2011 में फुकुशिमा जैसी घटनाओं का हवाला देकर दायित्व सीमा, सुरक्षा नियमों और परमाणु कचरे के निपटान पर सवाल उठाए हैं।
शांति बिल 2025 लागू होने के बाद 10 बड़े बदलाव क्या हैं?
- परमाणु ऊर्जा का विस्तार: 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन का रास्ता साफ होगा। भारत की ऊर्जा जरूरतों को लंबे समय तक पूरा करने में मदद मिलेगी।
- निजी क्षेत्र की एंट्री: निजी कंपनियों को पहली बार परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में काम करने की अनुमति मिलेगी। इससे निवेश, नई तकनीक और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
- विदेशी सहयोग आसान: अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे देशों की कंपनियों के साथ जॉइंट वेंचर में काम हो सकेगा। आधुनिक रिएक्टर तकनीक भारत में आ सकेगी।
- ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा: कोयला, तेल और गैस के आयात पर निर्भरता कम होगी। भारत ऊर्जा के मामले में ज्यादा आत्मनिर्भर होगा।
- 24×7 स्वच्छ बिजली: परमाणु ऊर्जा से लगातार बिजली मिलेगी। कार्बन उत्सर्जन कम होगा, जिससे नेट जीरो मिशन में मदद मिलेगी।
- सुरक्षा व्यवस्था कानूनी रूप से मजबूत होगी: परमाणु संयंत्र के पूरे जीवन चक्र में सुरक्षा अनिवार्य की गई है। रेडिएशन से जुड़ी हर गतिविधि पर सख्त निगरानी होगी।
- परमाणु नियामक की ताकत में इजाफा: AERB को वैधानिक दर्जा मिलेगा। जांच, कार्रवाई और लाइसेंस रद्द करने की शक्ति मिल जाएगी।
- ट्रांसपेरेंट लाइसेंस सिस्टम: कौन संयंत्र बनाएगा और चलाएगा, यह स्पष्ट होगा। जवाबदेही तय होगी, मनमानी कम होगी
- अलग ट्रिब्यूनल बनेगा: परमाणु ऊर्जा से जुड़े हादसे, मुआवजे और कानूनी मामलों का तेजी से निपटारा करने के लिए अलग ट्रिब्यूनल बनेगा।
- नई तकनीकों को बढ़ावा: छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) जैसी सुरक्षित और कम लागत वाली तकनीकों में निवेश बढ़ेगा।
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