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भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान करोड़ों लोगों को वैक्सीन लगाई गई थी.
भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से जुड़े CoWIN पोर्टल के मुताबिक दिसंबर 2025 तक, 2 अरब 20 करोड़ से अधिक वैक्सीनेशन डोज़ लगाई जा चुकी हैं.
कोविड वैक्सीन को लेकर एम्स दिल्ली की एक नई स्टडी सामने आई है, जो कहती है “युवाओं में अचानक मौतों का कोविड वैक्सीन या संक्रमण से कोई संबंध नहीं है.”
इस स्टडी को लेकर बीबीसी न्यूज हिन्दी ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात की.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, “2024 के अंत तक दुनिया भर में 13.64 अरब से ज़्यादा कोविड वैक्सीन डोज़ लगाई जा चुकी हैं.”
डब्ल्यूएचओ आज भी वैक्सीन की सिफारिश करता है.
वहीं एम्स की स्टडी में हार्ट अटैक के पीछे दिल की बीमारियों को सबसे बड़ा कारण माना गया.
वैक्सीन और मौतों के बीच संबंध पर की गई स्टडी क्या कहती है?
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एम्स दिल्ली के पैथोलॉजी और फोरेंसिक मेडिसिन विभाग ने मई 2023 से अप्रैल 2024 तक एक साल की ऑटोप्सी आधारित स्टडी की है.
इसका शीर्षक “युवा वयस्कों में अचानक मौतों का बोझ: भारत के एक बड़े अस्पताल में एक साल तक किया गया अध्ययन” है. यह स्टडी इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित हुई है, जो इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का प्रमुख जर्नल है.
स्टडी में ट्रॉमा, सुसाइड, हत्या या ड्रग एब्यूज से हुई मौतों को छोड़कर अचानक मौतों के मामलों का विश्लेषण किया गया है. कुल 94 युवा (19-45 साल) और 68 बुजुर्ग (46-65 साल) मामलों की जांच हुई. युवाओं की औसत उम्र 33.6 साल बताई गई है.
एम्स स्टडी के अनुसार युवाओं की मौत के यह मुख्य कारण बताए गए हैं :
- दिल की बीमारियां (कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़) सबसे बड़ा कारण – युवाओं में करीब दो-तिहाई मौतों का कारण
- इन मौतों में 85% मामलों में एथेरोस्क्लेरोटिक कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ (CAD) पाई गई, यानी दिल की नसों में 70% से ज़्यादा ब्लॉकेज
- सबसे ज्यादा प्रभावित नस – लेफ्ट एंटीरियर डिसेंडिंग आर्टरी, उसके बाद राइट कोरोनरी आर्टरी
- युवाओं की मौत के एक-तिहाई मामलों में दूसरा कारण सांस से जुड़ी बीमारियां जैसे न्यूमोनिया, टीबी है
- युवाओं में शराब और स्मोकिंग की लत
इस स्टडी में करीब 20% मामलों में मौत की कोई साफ वजह नहीं मिल पाई, यानी ऑटोप्सी करने के बाद भी यह समझ नहीं आ सका कि मौत किस कारण से हुई
वैक्सीन पर एम्स ने अपनी स्टडी में दावा किया है कि कोविड संक्रमण का इतिहास या वैक्सीनेशन स्टेटस और अचानक मौतों के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है.
स्टडी पर सवाल
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पुणे के डीवाई पाटिल मेडिकल कॉलेज, कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के डॉक्टर और एमेरिटस के प्रोफेसर, डॉक्टर अमिताभ बनर्जी ने एम्स स्टडी पर सवाल उठाए हैं.
वह कहते हैं “स्टडी में करीब 20% मामलों में मौत का कारण पता नहीं चला (अनएक्सप्लेंड डेथ या नेगेटिव ऑटोप्सी). क्या इन अज्ञात मामलों में कोविड वैक्सीन का कोई रोल तो नहीं? एम्स को इनकी और गहराई से जांच करनी चाहिए थी.”
हालांकि एम्स की स्टडी में बताया गया है कि इन मौतों के मामलों में औसत उम्र सिर्फ 30.5 साल थी. इसमें सबसे ज्यादा मामले 30-40 साल की उम्र के 50% और 20-30 साल की उम्र के 40% लोगों के थे.
आधे मामलों में जब दिल की टिश्यू की बारीक जाँच (हिस्टोपैथोलॉजी) की गई, तो उसमें दिल में कुछ हल्के-मामूली बदलाव दिखे जैसे दिल की मांसपेशियाँ थोड़ी मोटी हो जाना, धमनियों में चर्बी की पतली परत जमना या दिल के छोटे-छोटे हिस्सों में खून की हल्की कमी के निशान का मिलना.
एम्स की यह स्टडी आगे कहती है कि ये बदलाव इतने गंभीर नहीं थे कि मौत का सीधा कारण बन सकें.
डॉक्टर अमिताभ बनर्जी भारत में इस्तेमाल हुई कोविशील्ड वैक्सीन के संदर्भ में कहते हैं “यूरोप के कई देशों ने कोविशील्ड वैक्सीन को दुर्लभ लेकिन गंभीर साइड इफेक्ट्स (जैसे ब्लड क्लॉट्स और VITT) की वजह से अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था, खासकर युवाओं में इन जोखिमों के कारण.”
डॉक्टर अमिताभ बनर्जी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के उत्पादन बंद होने पर भी सवाल उठाते हैं.
कोरोना का टीका बनाने वाली फ़ार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राज़ेनेका ने करीब एक साल पहले इस बात को माना था कि उसके वैक्सीन के ‘गंभीर साइड इफेक्ट्स’ हो सकते हैं.
कंपनी ने ब्रिटेन के हाई कोर्ट में इस बात को माना था कि वैक्सीन के कारण किसी को थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) जैसी स्थिति हो सकती है.
एस्ट्राज़ेनेका ने ही भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर कोविशील्ड को तैयार किया था.
डॉक्टर अमिताभ बनर्जी आगे जोड़ते हैं “इसके साइड इफेक्ट्स बहुत दुर्लभ हैं ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ लेकिन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल जैसे करोड़ों लोगों पर होने से प्रभावित लोगों की संख्या बड़ी हो सकती है.”
एम्स दिल्ली में पैथोलॉजी प्रोफेसर और स्टडी के सह-लेखक डॉक्टर सुधीर अरावा ने कहा, “हमारी शुरुआती स्टडी से साफ है कि युवाओं में अचानक मौतों का कारण कोविड वैक्सीन नहीं है. भारत में युवाओं की ऐसी मौतों पर ज्यादा स्टडीज नहीं हैं. हमने इसे जांचा और पाया कि ये मौतें कोविड से जुड़ी नहीं हैं.”

दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल दिल्ली में सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर मोहसिन वली कहते हैं “यह बात सच है कि कोविड वैक्सीन और अचानक हुई कार्डियक मौतों में एम्स तथा आईसीएमआर की संयुक्त स्टडी ने साबित किया है कि वैक्सीन और युवाओं की अचानक मौतों का कोई संबंध नहीं है. लेकिन मैं बार-बार लोगों से कहता हूँ कि हम कोविड के उस दौर को क्यों भूल जाते हैं? कोविड अभी भी हमारे बीच में है और रहेगा. हम आसान रास्ता तलाशकर वैक्सीन पर आरोप लगाते हैं.”
डॉक्टर मोहसिन वली कहते हैं, “मैं मानता हूँ कि कोविड की वैक्सीन हमने बहुत सारे देशों को मुफ्त में और दान में भी दी है. उन देशों से ऐसी कोई शिकायत नहीं आ रही. यह हमारे देश में ही क्यों हो रहा है? देश में हम बच्चों की दिनचर्या पर कोई ध्यान नहीं देते और खान-पान पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. हम बच्चों का ब्लड प्रेशर चेक नहीं कर रहे हैं, उनकी फास्ट फूड और चीज़ की खपत पर नजरअंदाज़ कर रहे हैं. “
डॉक्टर मोहसिन वली आगे बताते हैं “एम्स ने भले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वैक्सीन का अचानक हुई मौतों से कोई संबंध नहीं है, लेकिन एम्स को अपनी स्टडी में यह बात भी साफ करनी चाहिए थी कि आखिर वे कौन से कारण हैं जिनसे युवाओं की अचानक मौत हो रही है.”
हालांकि एम्स स्टडी में युवाओं की अचानक मौतों का सबसे बड़ा कारण दिल से जुड़ी बीमारियां बताई गई हैं. उसके बाद सांस की समस्याएँ. दिल की मौतों में 85% मामलों में धमनियों में चर्बी जमने (कोरोनरी आर्टरी डिजीज) से हार्ट अटैक होना सबसे प्रमुख वजह बताई गई है.
वह मूलभूत कारणों पर जोर देकर कहते हैं “भारत में पहले भी हार्ट से जुड़ी बीमारियां होती थीं, लेकिन अब वे कम उम्र में हो रही हैं. इसके पीछे तीन “S” शामिल हैं: स्ट्रेस, स्लीप (यानी नींद की कमी) और स्मोकिंग.”
डॉक्टर सुधीर अरावा युवाओं में अचानक मौत की वजह काम करने का तरीका और उससे जुड़ी आदतें बताते हैं. वह आगे कहते हैं “कई युवा शराब और स्मोकिंग करते हैं, जो सीधे कोरोनरी आर्टरी डिजीज का कारण बनता है. इसलिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है.”
डॉक्टर अरावा आगे कहते हैं “लोग वैज्ञानिक स्रोतों पर भरोसा करें, गलत जानकारी से बचें.”
एम्स की यह स्टडी भारत में युवाओं में दिल की बीमारियों के तेजी से बढ़ने के बारे में बताती हैं, जिसके पीछे वह तनाव, खराब खान-पान, कम व्यायाम और जीवनशैली को जिम्मेदार ठहराती है. स्टडी कहती है कि स्वास्थ्य शिक्षा, नियमित जांच और स्क्रीनिंग से इन मौतों को रोका जा सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.