इमेज स्रोत, Getty Images
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया को अपनाने का फ़ैसला कर लिया है.
उन्होंने एक नए क़ानून को मंज़ूरी दी है, जिसके तहत क्रिप्टोकरेंसी को मुख्यधारा की आर्थिक व्यवस्था का हिस्सा बनाया जाएगा.
ट्रंप के परिवार के सदस्यों ने क्रिप्टोकरेंसी पर आधारित कारोबार शुरू कर दिए हैं और उससे काफ़ी मुनाफ़ा भी कमाया है.
लेकिन अमेरिका को क्रिप्टो जगत में आगे रखने और डॉलर की पहुँच बढ़ाने के इन क़दमों में जोखिम भी कम नहीं है.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
बिटकॉइन की शुरुआत
इमेज स्रोत, Getty Images
इस कहानी की शुरुआत हुई लगभग पंद्रह साल पहले जब दुनिया आर्थिक संकट से उबरने की कोशिश कर रही थी.
एक तरफ़ सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के प्रयास कर रही थीं, तो दूसरी तरफ़ एक नई सोच उभर रही थी. कुछ लोग ये मान रहे थे कि सरकारी वित्तीय तंत्र का एक विकल्प भी होना चाहिए.
यह कहना है मॉली व्हाइट का, जो साइटेशन नीडेड न्यूज़लेटर के लिए लिखती हैं और क्रिप्टोकरेंसी पर नियमित रूप से लिखती रही हैं. उनके अनुसार, कुछ लोगों की सोच थी कि मुद्रा पर केवल सरकारी तंत्र का नियंत्रण क्यों होना चाहिए?
मॉली व्हाइट कहती हैं, “2008 के आर्थिक संकट के बाद 2009 में बिटकॉइन बनने शुरू हुए. यह एक डिजिटल संपत्ति है. जिस प्रकार उस वक्त सरकारें आर्थिक संकट से निपटीं, उससे कई लोग नाराज़ थे. उन्होंने क्रिप्टोकरेंसी बनाई क्योंकि उन्हें लगा कि एक ऐसी मुद्रा होनी चाहिए जो किसी केंद्रीय बैंक द्वारा जारी न हो और न ही उस पर किसी सरकार का नियंत्रण हो. इस तरह बिटकॉइन बने जो पहली क्रिप्टोकरेंसी थे. अब तो हज़ारों किस्म की क्रिप्टोकरेंसियां आ चुकी हैं.”
क्रिप्टोकरेंसी को लेनदेन का माध्यम बनाने के लिए एक ऐसी व्यवस्था की ज़रूरत थी जो इसका पूरा रिकॉर्ड सुरक्षित रखे. यानी यह किसी केंद्रीय बैंक या किसी एक व्यक्ति के नियंत्रण में नहीं था.
इसके लिए एक नई तकनीक की ज़रूरत थी जिसे ब्लॉकचेन कहा जाता है.
मॉली व्हाइट कहती हैं कि यह एक तरह का डिजिटल लेजर या बहीखाता होता है, जिसे क्रिप्टोग्राफ़ी के ज़रिए सुरक्षित रखा जाता है. लोगों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी भेजे जाने और उसके ज़रिए किए गए हर लेनदेन का रिकॉर्ड इसमें रखा जाता है, जो विकेंद्रित होता है.
मगर इसका विकेंद्रीकरण इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
मॉली व्हाइट कहती हैं कि यह विकेंद्रीकरण ही क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल पैसे के बीच मुख्य अंतर है.
लोग जो डिजिटल मनी बैंकों के ज़रिए एक-दूसरे को भेजते हैं, उसका रिकॉर्ड बैंकों के पास होता है, जबकि क्रिप्टोकरेंसी का रिकॉर्ड किसी एक जगह पर नहीं रखा जाता. इस डेटा पर किसी एक संस्था या व्यक्ति का नियंत्रण नहीं होता.
शुरुआत में क्रिप्टोकरेंसी ख़रीदना या बेचना जटिल था. इसलिए क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज बने, जिनके ज़रिए निवेशक आसानी से पैसे लगा सकते थे और लेनदेन कर सकते थे.
लेकिन इन एक्सचेंजों पर कोई नियंत्रण नहीं था. ऐसा ही एक एक्सचेंज एमटी गॉक्स जापान के टोकियो शहर में था. इसके ज़रिए दुनिया के लगभग 70 प्रतिशत बिटकॉइन का लेनदेन होता था.
2014 में यह एक्सचेंज डूब गया, जिससे निवेशकों को करोड़ों डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ा.
इसके बाद 2022 में क्रिप्टोकरेंसी एफ़टीएक्स भी डूब गया, जिससे अरबों डॉलर का नुक़सान हुआ. इसमें सैम बैंकमैन फ़्रीड की मुख्य भूमिका थी.
मॉली व्हाइट का कहना है कि एफ़टीएक्स एक्सचेंज ने निवेशकों के पैसे हथिया कर उनका ग़लत इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से यह एक्सचेंज डूब गया.
इस धोखाधड़ी के जुर्म में सैम बैंकमैन फ़्रीड को जेल की लंबी सज़ा सुनाई गई.
इन घटनाओं और अनिश्चितता की वजह से यह धारणा बन गई कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेश ख़तरनाक है.
मॉली व्हाइट ने कहा, “क्रिप्टो जगत में कभी कोई नियम या नियंत्रण नहीं रहे हैं. नियंत्रण करने वाली वित्तीय संस्थाओं ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया और न ही वे यह तय कर पाईं कि कौन-सी मौजूदा नीतियां और नियम क्रिप्टोकरेंसी पर लागू हो सकते हैं. इसके अलावा कई अन्य कारण भी रहे हैं.”
इन कई कारणों में से एक है ब्लॉकचेन टेक्नॉलॉजी. मॉली व्हाइट कहती हैं कि क्रिप्टो जगत की एक ख़ामी यह है कि इसमें हुए लेनदेन को रद्द कर के पैसे वापस नहीं लिए जा सकते.
अगर कोई आपके क्रेडिट कार्ड का नंबर पाकर उसका ग़लत इस्तेमाल कर ले, तो उस पैसे को वापस लेने के तरीके हैं. लेकिन अगर कोई आपके बिटकॉइन चुरा ले, तो वो पैसे वापस पाना मुश्किल है.
इस साल से पहले तक अमेरिका में क्रिप्टो उद्योग के लिए कोई ख़ास नियम नहीं थे. अमेरिका की वित्तीय नियंत्रण संस्था सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन अन्य क्षेत्रों पर लागू नियमों से क्रिप्टो उद्योग को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी, जिससे अनिश्चितता और भ्रम फैला हुआ था.
इसी वजह से निवेशक अमेरिकी क्रिप्टो उद्योग में निवेश करने से कतरा रहे थे.
इस अनिश्चितता के बावजूद अब बीस हज़ार से अधिक क्रिप्टोकरेंसियां हैं और पिछले साल इनकी कुल क़ीमत दोगुनी बढ़कर चार खरब डॉलर तक पहुंच गई.
इसका एक कारण यह है कि कई व्यवसायी और अब ख़ुद अमेरिकी राष्ट्रपति इसमें शामिल हो गए हैं.
ट्रंप का क्रिप्टो साम्राज्य
इमेज स्रोत, Getty Images
पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन स्कूल की लेक्चरर फ़्रांसीन मैकेना याद दिलाती हैं कि कई अमेरिकी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की तरह अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ट्रंप भी क्रिप्टोकरेंसी के ख़िलाफ़ थे.
लेकिन दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव प्रचार के दौरान, नवंबर 2024 में, उनकी राय पूरी तरह बदल गई.
क्रिप्टो उद्योग के कई प्रभावशाली लोगों ने ट्रंप के चुनाव प्रचार के लिए भारी चंदा दिया.
हालांकि उन्होंने क्रिप्टोकरेंसी का समर्थन करने वाले डेमोक्रेटिक नेताओं को भी चंदा दिया. “इन चुनाव प्रचारों के लिए बड़े स्तर पर पैसे खर्च किए गए. इसके पीछे मंशा यह थी कि अगर ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बन जाते हैं, तो उनकी सरकार द्वारा क्रिप्टो उद्योग पर बाइडन सरकार की पाबंदियों में बड़ी ढील दी जाएगी.”
राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में उनके शपथ ग्रहण से पहले, क्रिप्टो जगत के प्रभावशाली लोगों ने उनके चुनाव अभियान के लिए और अधिक धन दिया. तो क्या यह धन राजनीतिक समर्थन हासिल करने और क्रिप्टो जगत को वैधता देने के बदले दिया गया था?
फ़्रांसीन मैकेना का कहना है, “यह प्रभाव बढ़ाने के लिए चलाया गया अभियान था. क्रिप्टो उद्योग ने देखा कि अगर हम इससे ट्रंप, उनके परिवार के सदस्यों और क़रीबी लोगों को लाभ पहुँचा सकें और उन्हें इस उद्योग में शामिल कर लें, तो उनका समर्थन मिल जाएगा.”
ट्रंप के जनवरी में सत्ता संभालने से पहले ही उनके परिवार के लोग इस उद्योग में शामिल हो चुके थे.
पदभार संभालते ही ट्रंप सरकार ने क्रिप्टो के समर्थन में नीतियां लागू करना शुरू कर दिया और क्रिप्टो तथा डिजिटल संपत्ति को अमेरिका के आर्थिक भविष्य का हिस्सा करार देना शुरू कर दिया.
ट्रंप ने यह स्वीकार किया है कि उन्होंने क्रिप्टो उद्योग से मुनाफ़ा कमाया है. फ़ोर्ब्स पत्रिका के अनुसार, ट्रंप की क्रिप्टो संपत्ति एक अरब डॉलर से अधिक है, जो उनके मार-आ-लागो रिज़ॉर्ट और ट्रंप टॉवर की संयुक्त संपत्ति से भी अधिक है.
फ़्रांसीन मैकेना कहती हैं कि अब वह यह सब बड़े स्तर पर कर रहे हैं. सरकार बनने के बाद उन्होंने क्रिप्टो से जुड़ी गतिविधियों में तेज़ी से भागीदारी शुरू की और नए कारोबार भी शुरू किए.
नई कंपनियां रजिस्टर की गई हैं, जिनमें अमेरिकन बिटकॉइन माइनर और वर्ल्ड लिबर्टी, जो स्टेबलकॉइन व्यापार से जुड़ी है, प्रमुख हैं.
वो कहती हैं, “ट्रंप के बेटे इस व्यापार में निवेश कर रहे हैं. उनके एक सलाहकार भी इसमें शामिल हैं. इस सरकार के लोगों के पास अब इस स्थिति का फ़ायदा उठाने का बड़ा अवसर आ गया है. इन उद्योगों की निगरानी के लिए बने नियंत्रण काफ़ी ढीले पड़ गए हैं.”
ट्रंप भले ही क्रिप्टो से लाभ कमाने वाले पहले राष्ट्रपति हों, लेकिन वे पहले ऐसे राष्ट्रपति नहीं हैं जो इस उद्योग की ओर आकर्षित हुए हों.
अल सल्वाडोर की कहानी
इमेज स्रोत, Getty Images
अल सल्वाडोर अपनी प्राकृतिक ख़ूबसूरती और नशीले पदार्थों से जुड़ी हिंसा के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन 2019 में राष्ट्रपति नाइब बुकेली के सत्ता में आने के बाद हालात बदलने लगे.
बुकेली ख़ुद को दुनिया का “सबसे कूल तानाशाह” या “दुनिया का सबसे सही डिक्टेटर” कहकर पेश करते हैं.
उन्होंने हिंसा पर नियंत्रण के लिए कई सख़्त कदम उठाए, जिसके बाद अल सल्वाडोर लैटिन अमेरिका के सबसे सुरक्षित देशों में से एक बन गया.
साल 2021 में यह बिटकॉइन को वैध मुद्रा का दर्जा देने वाला पहला देश बना. राष्ट्रपति बुकेली का कहना था कि क्रिप्टोकरेंसी से देश के नागरिकों को बिना बैंक खाता खोले वित्तीय सेवाओं तक पहुँच मिल सकेगी.
साथ ही, विदेशों में काम करने वाले अल सल्वाडोर के नागरिक कम लागत में पैसे घर भेज पाएंगे.
बीबीसी के मेक्सिको और मध्य अमेरिका संवाददाता विल ग्रांट के अनुसार, “बुकेली की योजना थी कि देश के सभी लोग रोज़मर्रा के लेनदेन और ख़रीदारी के लिए बिटकॉइन का इस्तेमाल करें और यह मुद्रा मध्य अमेरिका की साझा मुद्रा बन जाए.”
उनका मानना था कि क्रिप्टोकरेंसी के समर्थक निवेशक और कंपनियाँ अल सल्वाडोर की ओर आकर्षित होंगी, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी.
इसी दौरान बुकेली ने “चिवो वॉलेट” नाम का एक डिजिटल ऐप लॉन्च किया. इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने घोषणा की कि ऐप डाउनलोड करने वाले हर व्यक्ति के वॉलेट में 30 डॉलर जमा किए जाएंगे, ताकि लोग बिटकॉइन के प्रयोग के लिए प्रेरित हों.
विल ग्रांट बताते हैं कि ज़्यादातर लोगों ने उस खाते से 30 डॉलर निकाल लिए और ऐप का इस्तेमाल बंद कर दिया — नतीजतन यह योजना असफल हो गई.
दो साल बाद बिटकॉइन का लेनदेन देश के कुल लेनदेन का एक प्रतिशत से भी कम रह गया.
दरअसल, राष्ट्रपति बुकेली अल सल्वाडोर को क्रिप्टोकरेंसी जगत का केंद्र बनाना चाहते थे. उनका सपना था एक “क्रिप्टो सिटी” बसाने का — ऐसा शहर जहाँ सभी लेनदेन बिटकॉइन के ज़रिए हों.
विल ग्रांट के मुताबिक़, “योजना थी कि इस शहर के लिए कॉनचागुआ ज्वालामुखी की थर्मल ऊर्जा से बिजली बनाई जाएगी. वहाँ टैक्स में भारी छूट दी जाएगी और क्रिप्टोकरेंसी के निर्माण की सुविधाएँ विकसित की जाएँगी. लेकिन तीन साल बाद भी इस शहर का निर्माण कार्य ढंग से शुरू नहीं हो पाया.”
अल सल्वाडोर एक ग़रीब देश है, जिसकी लगभग एक चौथाई आय विदेशों में काम करने वाले नागरिकों से आती है.
आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए देश ने 2025 की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) से क़र्ज़ लेने का समझौता किया.
विल ग्रांट बताते हैं कि इस समझौते के तहत आईएमएफ़ ने अल सल्वाडोर को 1.4 अरब डॉलर का ऋण देने पर सहमति जताई, लेकिन शर्त रखी कि राष्ट्रपति बुकेली बिटकॉइन को क़ानूनी मुद्रा बनाने की नीति समाप्त करें.
नतीजतन, इस ऋण के बदले अल सल्वाडोर को अपनी क्रिप्टो नीति से पीछे हटना पड़ा.
विल ग्रांट के अनुसार, देश के आम नागरिकों ने कभी भी पूरी तरह बिटकॉइन को नहीं अपनाया.
लोग नकद पैसे या बैंक खाते को अधिक सुरक्षित मानते हैं — उन्हें बिटकॉइन पर वैसा भरोसा नहीं है.
क्रिप्टो का भविष्य
इमेज स्रोत, Getty Images
जिलियन टेट कैंब्रिज के किंग्स कॉलेज की प्रोवोस्ट हैं. उनका मानना है कि वित्तीय जगत में जब भी कोई नई सोच या व्यवस्था आती है, तो लोग उससे आकर्षित होकर उसे अपनाते हैं. लेकिन कई बार वो व्यावहारिकता के पैमाने पर सफल नहीं हो पाती.
वो कहती हैं कि लेकिन अगर बाद में उसी विचार में सुधार करके उसे दोबारा पेश किया जाता है, तो वह सफल भी हो जाता है.
जिलियन टेट ने कहा कि पिछले पाँच से दस वर्षों में क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में कई नई बातें हुई हैं, जिनमें से ज़्यादातर प्रयोग अमेरिका से बाहर हुए. अब पहली बार इसे अमेरिका में लागू किया जा रहा है, जो अपने आप में एक बड़ा बदलाव है.
जिलियन टेट कहती हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप की पहल पर क्रिप्टोकरेंसी की ओर जो रुझान बढ़ रहा है, उसका उद्देश्य केवल ट्रंप और उनके परिवार की संपत्ति बढ़ाना नहीं है, बल्कि अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को बनाए रखना भी है.
वह कहती हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अमेरिकी मुद्रा डॉलर दुनिया की सबसे प्रमुख मुद्रा रही है, जिसका लाभ अमेरिका को लगातार मिलता रहा है. मगर अब क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी अनिश्चितता का हल निकालने के लिए अमेरिका ने स्टेबलकॉइन का इस्तेमाल बढ़ाने की दिशा में कदम उठाया है. ये स्टेबलकॉइन सरकार के नियंत्रण से बाहर नहीं होंगे, बल्कि इन्हें अमेरिकी डॉलर के साथ जोड़ा जाएगा.
जिलियन टेट के अनुसार, ट्रंप की यह सोच हो सकती है कि डॉलर का दबदबा बनाए रखने और उसे और मज़बूत करने के लिए डॉलर से जुड़े स्टेबलकॉइन लॉन्च किए जाएं. लेकिन चीन और दूसरे देश इससे संतुष्ट नहीं होंगे.
वो कहती हैं कि वे अपनी मुद्रा को प्रभावी बनाने के नए तरीके खोजेंगे और यह खींचतान लंबे समय तक चल सकती है और आने वाले सालों में कंपीटिशन का नया दौर शुरू कर सकती है.
अमेरिका को क्रिप्टोकरेंसी का केंद्र बनाने के लिए इस साल जुलाई में जीनियस एक्ट पारित किया गया. यह क़ानून विशेष रूप से स्टेबलकॉइन और डॉलर से जुड़ी क्रिप्टोकरेंसी को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है. इस क़ानून के बाद अब क्रिप्टोकरेंसी अमेरिका की मुख्यधारा की आर्थिक व्यवस्था का हिस्सा बन चुकी है.
जिलियन टेट आगाह करती हैं कि अगर क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाली कोई बड़ी वित्तीय संस्था या कोई निवेशक असफल हो जाता है, तो इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी अस्थिरता आ सकती है.
वह कहती हैं, “नज़दीकी भविष्य में शायद ऐसा न हो, लेकिन इसका ख़तरा ज़रूर है. स्टेबलकॉइन या दूसरी क्रिप्टोकरेंसी को डॉलर से जोड़ने से दुनियाभर में लेनदेन में डॉलर का इस्तेमाल बढ़ सकता है. लेकिन अगर डॉलर से जुड़ी क्रिप्टोकरेंसी किसी घोटाले का शिकार हो जाए, तो इसका बुरा असर भी हो सकता है. इससे दुनिया रातोंरात नहीं बदलेगी, लेकिन इसके इस्तेमाल को लेकर अत्यधिक चिंता भी सही नहीं है.”
तो सवाल ये है कि क्या ट्रंप सचमुच क्रिप्टो अर्थव्यवस्था बना रहे हैं?
क्रिप्टोकरेंसी कोई नई चीज़ नहीं है. बिटकॉइन पंद्रह साल पहले अस्तित्व में आ गए थे, लेकिन वित्तीय संस्थाओं ने अब तक उन्हें पूरी तरह नहीं अपनाया था क्योंकि नियंत्रण की कमी के कारण इस क्षेत्र में कई बड़े घोटाले हो चुके थे.
मगर अब शायद समय आ गया है कि देश इस पर नए सिरे से सोचें कि क्या डिजिटल संपत्ति वास्तव में फायदेमंद हो सकती है?
पिछले साल यूरोप और अमेरिका ने क्रिप्टोकरेंसी संबंधी नियम लागू किए जिसके बाद इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा है. ऐसा लगा कि डोनाल्ड ट्रंप इसका लाभ उठाना चाहते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.