भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विवाह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. शादी को पुरुषों और महिलाओं के लिए जीवन में हासिल करने का एक अहम लक्ष्य माना जाता है.
यह भी कहा जा सकता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर शादी करने का ज़्यादा दबाव होता है.
भारत में अकेले रहने वाली महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन में 2011 की जनगणना के आंकड़ों का हवाला दिया गया.
इसमें बताया गया कि अकेले रहने वाली महिलाओं की संख्या 7.14 करोड़ थी, जो भारत में महिलाओं की कुल संख्या का 12 प्रतिशत था.
एकेडेमिया जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया कि 2001 में यह संख्या 5.12 करोड़ थी, जो दस वर्षों में 39 फ़ीसदी तक बढ़ गई है. लेकिन, समाज में अकेले रहने वाली महिलाओं को सामाजिक तौर पर बुरा समझा जाता है.
तो यह समाज एक निश्चित उम्र के बाद अविवाहित रहने वाले लोगों को और विशेषकर महिलाओं को कैसे देखता है? ऐसी महिलाओं को किस तरह के सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है?
अकेले रहने और अकेलेपन के साथ रहने में क्या अंतर
40 वर्षीय ज्योति शिंगे यह सवाल करती हैं, “यह समाज शादी नहीं करने की बात को एक पाप के समान मानता है. सिर्फ़ इसलिए कि मैंने शादी नहीं की है, तो मेरी आर्थिक स्थिति, शिक्षा और कौशल को देखे बिना, मेरे साथ एक अपराधी जैसा व्यवहार करने का क्या औचित्य है?”
ज्योति मुंबई की रहने वाली हैं. वर्तमान में उत्तराखंड के चकराता कस्बे में खुदका गेस्ट हाउस और कैफ़े चलाती हैं.
उन्होंने बताया, “मैंने उन सभी समस्याओं का सामना किया है और अब भी कर रही हूं, जिनका सामना भारत में अधिकांश अविवाहित महिलाएं करती हैं.”
“जब मैं कुछ साल पहले दिल्ली में काम कर रही थी, तो मुझे रहने के लिए घर नहीं मिला था.”
ज्योति ने कहा, “एक मकान मालिक ने मुझसे सीधे कहा था कि हम अविवाहित पुरुषों को भी घर देते हैं, लेकिन हम अविवाहित महिलाओं पर भरोसा नहीं कर सकते.”
“मैं यह नहीं भूल सकती कि यह बात कहने के बाद वो कैसे हंस रहे थे. उस समय मैं एक प्रतिष्ठित निजी आईटी कंपनी में अच्छे वेतन पर काम कर रही थी.”
ज्योति का कहना है कि घर की तलाश के दौरान उनको हुए ख़राब अनुभवों ने उनको खुदका गेस्टहाउस शुरू करने के लिए प्रेरित किया.
अब भी कई लोग उनसे ऐसे सवाल पूछते हैं कि ‘तुम शादी कब करोगी?’, ‘ऐसे रहकर तुम्हें क्या हासिल होगा?’, ‘क्या तुममें कोई दोष है?’ वह कहती हैं कि मगर, मैं इन सवालों को गंभीरता से नहीं लेती.
ज्योति ने कहा, “मैं अपने निजी जीवन पर ध्यान केंद्रित कर रही हूं. मैं हिमालय के पास एक खूबसूरत शहर चकराता में शांति से रह रही हूं. मैं जल्द ही एक नया होटल शुरू करने जा रही हूं.”
“लेकिन, मुझ पर सवाल उठाने वालों को यह समझ में नहीं आता है. क्योंकि, उनका मानना तो ऐसा है कि अविवाहित महिला बिल्कुल भी महिला नहीं है.”
स्टडी क्या कहती है?
अध्ययन में 35 वर्ष से अधिक उम्र की चार प्रकार की महिलाओं की पहचान की गई, जिन्हें ‘अकेली रहने वाली महिलाएं’ कहा जाता हैः
- वो महिलाएं, जिनका पति नहीं है
- तलाक़शुदा महिलाएं
- अविवाहित महिलाएं
- पति से अलग हो चुकीं महिलाएं
इस अध्ययन में यह भी सामने आया कि भले ही अकेले जीवन बिताने वाली महिलाएं ज़िंदगी के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखती हैं और आर्थिक रूप से संपन्न हैं, लेकिन उन्हें जीवन में हारा हुआ ही माना जाता है.
ज्योति कहती हैं, “समाज में यह धारणा है कि जो लोग अकेले रहते हैं, वे दुखी रहते हैं. कई लोगों ने मुझसे यह बात कही है.”
वह कहती हैं कि अकेले रहने और अकेलेपन के साथ रहने में अंतर है.
उन्होंने कहा, “मुंबई में मेरा भी एक बड़ा परिवार है. जैसे पिता, भाई, भाभी और उनके बच्चे. मैं कभी भी कोई पारिवारिक समारोह में शामिल होना नहीं छोड़ती हूं.”
”इसी तरह, चकराता में भी मेरे बहुत सारे दोस्त हैं. मैं अकेली नहीं हूं. मैं खुश हूं और संतोषप्रद तरीके से अपना जीवन जी रही हूं.”
‘जीवन खाली है’
हालांकि, कोयंबटूर के रहने वाले 43 वर्षीय विनोद कुमार (बदला हुआ नाम) इस मामले में अलग राय रखते हैं. वह कहते हैं, “मैं जितना संभव हो सके, पारिवारिक समारोहों से बचने की कोशिश करता हूं.”
”क्योंकि, मैं रिश्तेदारों के सवालों का जवाब नहीं दे सकता. वो लोग शादी नहीं करने को एक बड़े अपराध के रूप में देखते हैं.”
विनोद कहते हैं, “मैं इस बात का बहुत ध्यान रखता हूं कि मुझे कभी बुखार या अन्य कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या न हो. अगर मुझे ऐसा होता भी है, तो मैं किसी को बताने में बहुत शर्माता हूं.”
”अगर मैं उनको बताऊंगा, तो मुझे कहने लगेंगे कि मुझे जल्द ही शादी कर लेनी चाहिए.”
विनोद बताते हैं कि भले ही उनके मन में शादी करने की इच्छा हो भी, मगर उनसे ऐसे सवाल पूछ लिए जाते हैं, जो उनके मन में हीन भावना पैदा कर देते हैं.
जैसे- ‘शादी करने के बाद आप क्या करेंगे?’, ‘आप बच्चों के लिए पैसे कैसे बचाएंगे?’, ‘आपको लड़की कैसे मिलेगी?’
वह कहते हैं, “मैं हर किसी को जवाब देते-देते थक गया हूं. मुझे यह समझ आ चुका है कि जो लोग सवाल पूछते हैं और सलाह देते हैं, वे हमारे लिए कुछ नहीं करेंगे.”
”इसलिए, मैं ऐसे लोगों से मिलने से बचता हूं. मैं कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मुझे जीवन में एक तरह का खालीपन महसूस होता है.”
साइंस मैग़ज़ीन ‘नेचर’ में प्रकाशित एक अध्ययन में यह कहा गया है कि जो लोग बिना शादी के रहते हैं, वे शादीशुदा लोगों की तुलना में अधिक उदास रहते हैं.
इसके लिए सात देशों के एक लाख़ 6 हज़ार 556 वॉलंटियर्स पर एक स्टडी की गई.
इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, मैक्सिको, आयरलैंड, कोरिया, चीन और इंडोनेशिया शामिल थे. इस स्टडी में पाया गया कि तलाक़शुदा लोगों के डिप्रेशन से पीड़ित होने की आशंका 99 फ़ीसदी ज़्यादा थी.
अकेले रहने वाले लोगों को यह समाज कैसे देखता है?
लेखक राजसंगीतन का कहना है कि हमारे समाज के पास उन समस्याओं के लिए कोई जवाब नहीं है, जिनका सामना अकेले रहने वाले लोगों को करना पड़ता है.
उन्होंने कुछ किताबें लिखीं हैं. इनमें ‘द अल्टीमेट हीरोज़’, ‘लव एंड सम क्वेश्चंस’ और ‘द चोकट्टन देसम’ शामिल हैं.
वह कहते हैं, “यहां कोई भी उन लोगों की यौन जरूरतों के बारे में बात नहीं करता है, जो समाज में अकेले रहते हैं, या फिर तलाक़शुदा हैं या फिर जो अपना साथी खो चुके हैं.”
”सभी आपको एक समाधान बताते हैं. और वो यह होता है कि ‘शादी कर लो’. दरअसल, यह समाज इस बात को लेकर सतर्क है कि एक पुरुष और एक स्त्री के बीच विवाह के अलावा और कोई दूसरा संबंध नहीं होना चाहिए.”
लेखक राजसंगीतन का कहना है कि सिर्फ़ इसलिए कि किसी को शादी या इसके आसपास के दायित्व और प्रतिबंध पसंद नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि किसी का कोई साथी नहीं होना चाहिए या वह एक साथी नहीं चाहता है.
वह कहते हैं, “गांव के साथ-साथ शहर में भी एक प्रथा है, जिसमें अकेली रहने वाली महिला यदि किसी पुरुष से बात करती है, तो उसको अलग नज़र से देखा जाता है.”
”एक व्यक्ति, जिसने कई व्यक्तिगत कारणों से शादी नहीं करने का फ़ैसला किया है. मगर, उसके पास इस समाज में किसी के साथ दोस्ती, प्यार या यौन ज़रूरतों के हिसाब से जुड़ने का कोई मौका नहीं है.”
राजसंगीतन का कहना है कि ऐसा जरूरी नहीं है कि एक महिला या पुरुष के अकेले रहने की वजह उनकी कोई ग़लती हो.
हो सकता है कि उन्होंने यह फ़ैसला पारिवारिक जिम्मेदारियों या किसी दूसरे प्रकार के सामाजिक दबाव के कारण लिया हो.
वह कहते हैं, “कई लोग पारिवारिक दबाव के कारण शादी न करने का फ़ैसला करते हैं.”
“जब तक उनकी पारिवारिक स्थिति कुछ हद तक ठीक होती है, तब तक वे इस समाज द्वारा शादी के लिए निर्धारित उम्र को पार कर चुके होते हैं. इस समाज को उनकी ज़रूरतों की परवाह नहीं है.”
राजसंगीतन का कहना है कि समाज में अकेले रहने की इच्छा रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है.
अगर उन्हें समाज द्वारा नज़रअंदाज कर दिया जाता है या फिर उन्हें एक दाग समझा जाता है, तो यह स्थिति उनको गंभीर डिप्रेशन में धकेल सकती है या फिर वो कई विसंगतियों से घिर सकते हैं.
सामाजिक दबाव का प्रभाव
मनोचिकित्सक पूर्णा चंद्रिका कहती हैं, “जो लोग अकेले रहते हैं और उनके माता-पिता को हर दिन बार-बार याद दिलाया जाता है कि ‘आप इस समाज का हिस्सा नहीं हैं.’ इससे उनमें अपराध बोध पैदा हो सकता है.”
पूर्णा चंद्रिका बताती हैं कि कुछ अभिभावकों ने मुझसे कहा, “उन्हें बहुत सारी सलाह मिलती हैं. जैसे- इस मंदिर में जाओ, वह उपाय करो, उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाओ.”
फिर कुछ अभिभावक अपने बच्चों को मेरे पास ले आते हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनके बच्चों को कोई मानसिक समस्या तो नहीं है. दरअसल, यह सबकुछ सिर्फ़ इस डर के कारण है कि ‘मेरा पड़ोसी क्या सोचेगा?’
वह कहती हैं कि उन्होंने उन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा परामर्श दिया है, जो सामाजिक दबाव के कारण जल्दबाज़ी में शादी करने और ग़लत साथी के साथ रहने के लिए मजबूर हो गए थे.
पूर्णा चंद्रिका कहती हैं, “अविवाहित रहना हर किसी का व्यक्तिगत अधिकार है.”
”हमारे समाज में लंबे समय से एक अंधविश्वास चला आ रहा है और वो यह है कि ‘शादी कर लो, सब बदल जाएगा. जब तक यह धारणा नहीं बदलेगी, कुछ भी नहीं बदलेगा.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.