हमारे जीवन काल में हर पांच में से एक व्यक्ति को कैंसर की बीमारी हो सकती है और यह संख्या बढ़ती जा रही है.
एक अनुमान के अनुसार साल 2025 तक दुनियाभर में किसी न किसी प्रकार के कैंसर से पीड़ित लोगों की संख्या दो करोड़ तक पहुंच सकती है.
लेकिन जैसे-जैसे औषधि विज्ञान ने वैक्सीन के ज़रिए कई बीमारियों को रोकने में सफलता पाई है, वैसे ही यह आशा भी जगी है कि इनके ज़रिए कैंसर का इलाज भी संभव हो पाएगा.
इस दिशा में तरक्की की ख़बरें भी आ रही हैं.
अप्रैल 2024 में ब्रिटेन में पहली बार ट्रायल के तौर पर मेलानोमा कैंसर वैक्सीन मरीज़ों को दी गई.
फेफड़ों के कैंसर से लड़ने के लिए बनाई गई एक वैक्सीन का सात देशों में प्रयोग या ट्रायल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.
वहीं फ़्लोरिडा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी वैक्सीन बनाई है जिससे सबसे सामान्य किस्म के ब्रेन कैंसर की रोकथाम हो सकती है.
दरअसल इलाज के इन नए तरीकों की शुरुआत कोविड महामारी के दौरान बनाई गई वैक्सीन से हुई है. ख़ास तौर पर वो वैक्सीन जो एमआरएनए (mRNA) तकनीक पर आधारित है.
इस तकनीक से बनी वैक्सीन पारंपरिक तकनीक से बनी वैक्सीन से अधिक प्रभावशाली हैं. अब कई प्रकार की कैंसर वैक्सीन के ट्रायल चल रहे हैं, तो इस हफ़्ते दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या कैंसर की वैक्सीन जल्द आ सकती है?
कैंसर क्या है?
भविष्य में वैक्सीन के ज़रिए कैंसर का इलाज कैसे हो सकता है. इसे समझने के लिए पहले यह जानने की ज़रूरत है कि यह बीमारी क्या है और हमारे शरीर पर क्या असर डालती है? इस बारे में हमने बात की मैरेडिथ मैक्कीन से जो टेनीसी स्थित सारा कैनन रिसर्च इंस्टीट्यूट में मेलानोमा एंड स्किन कैंसर रिसर्च की निदेशक हैं.
वो बताती हैं कि हमारा शरीर अरबों कोशिकाओं या सेल से बना है. कैंसर की बीमारी में कुछ कोशिकाएं अनियंत्रित तरीक़े से बनने लगती हैं और बढ़ती जाती हैं. विभिन्न प्रकार के कैंसर की सेल का स्वरूप अलग होता है.
हमारे शरीर में लगभग 200 प्रकार की सेल या कोशिकाएं होती हैं जिससे हमारे शरीर के विभिन्न अंग बने होते हैं. ये सेल उन्हें मिलने वाले संकेतों के आधार पर काम करती हैं जिन्हें डीएनए कहा जाता है.
जब भी नई सेल बनती हैं तो इनकी डीएनए की कॉपी भी बनती है लेकिन कभी कभी डीएनए की कॉपी सही तरीके से नहीं बनती.
यह ख़राब हो चुकी कोशिकाएं ग़लत संकेतों के आधार पर काम करने लगती हैं जिससे इनकी तादाद अनियंत्रित तरीके से बढ़ जाती है और शरीर के भीतर ट्यूमर यानि गांठें पैदा हो जाती हैं.
मगर सामान्य ट्यूमर और कैंसरयुक्त ट्यूमर में क्या अंतर होता है?
मैरेडिथ मैक्कीन ने कहा कि हमारे शरीर में कई प्रकार के ट्यूमर पैदा हो सकते हैं. सामान्य ट्यूमर से शरीर को नुकसान नहीं पहुंचता लेकिन जिन ट्यूमर की सेल डीएनए संकेतों के अनुसार काम नहीं करतीं वो कैंसरस कहलाती हैं. “माइक्रोस्कोप के ज़रिए देखा जा सकता है कि इन सेल का स्वरूप उनके मूल रूप से काफ़ी बदल चुका होता है.”
अगर कोशिकाएं नियमानुसार काम करना बंद कर दें तो शरीर के कई अंगों पर इसका असर पड़ता है और वो सही तरीके से काम नहीं कर पाते. मगर ऐसा क्यों होता है?
इसके कई कारण हो सकते हैं. उम्र, खानपान के तरीके, पर्यावरण के प्रभाव, वायरस, धूम्रपान, अनुवांशिक प्रभाव और हमारे जींस भी कैंसर की बीमारी का कारण हो सकते हैं.
कैंसर का इलाज कैसे हो सकता है?
मैरेडिथ मैक्कीन का कहना है कि कैंसर की बीमारी का जल्द पता लग जाए तो इलाज में मदद मिलती है.
उनके अनुसार, “कई प्रकार के कैंसर का जल्द पता लगने से सर्जरी के ज़रिए इलाज संभव होता है. साथ ही दवाई, कीमो थेरेपी, रेडिएशन और इम्यून थेरेपी से भी कैंसर का इलाज किया जाता है.”
मगर कीमो थेरेपी या रेडिएशन से कैंसरस सेल की रोकथाम की कोशिश तो होती है लेकिन इसके कई साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव भी होते हैं. इससे शरीर के स्वस्थ टिशूज़ या उत्तकों को भी नुक़सान पहुंचाता है.
मगर क्या हमारे शरीर का प्रतिरक्षातंत्र या इम्युनिटी सिस्टिम इसमें कोई भूमिका निभा सकता है?
इस सवाल पर मैरेडिथ मैक्कीन ने कहा कि कैंसर की सेल शरीर की इम्युनिटी सिस्टिम या प्रतिरक्षातंत्र से छिपने के लिए अपनी सतह पर ऐसे प्रोटीन चढ़ा लेती हैं जिससे शरीर का प्रतिरोधक तंत्र उन्हें पहचान कर नष्ट नहीं कर पाता.
मगर इम्यूनोथेरेपी की ज़रिए यह तंत्र कैंसरस सेल की पहचान कर सकता है और उन्हें वहां से भी नष्ट कर सकता है जहां सर्जरी या कीमो थेरेपी के ज़रिए उन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता.
पर्सनलाइज़्ड इलाज
कैंसर की कोशिकाएं या सेल भी कई किस्म की होती हैं. लेकिन क्या हम कैंसरस सेल की पहचान करके केवल उन्हीं को निशाना बना सकते हैं?
कैंसर विशेषज्ञ और इंस्टीट्यूट ऑफ़ कैंसर रिसर्च की प्रोफ़ेसर समरा टूरालिच कहती हैं कि प्रीसीजन मेडिसिन का यह उद्देश्य है कि कैंसर के मरीज़ को उसकी बीमारी और शरीर के अनुसार दवा दी जाए. इसे पर्सनलाइज़्ड मेडिकेशन भी कहा जाता है.
उनके मुताबिक़, “कैंसर सैंकड़ों प्रकार के होते हैं और हर प्रकार के कैंसर का अपना अलग स्वरूप होता है.”
अगर हर प्रकार की कैंसर सेल की पहचान हो पाए तो उसका इलाज आसान हो सकता है. दरअसल लगभग 25 साल पहले मनुष्य के शरीर में मौजूद कोशिकाएं या सेल किस पदार्थ से बनी हैं इसका विस्तृत डाटा तैयार किया गया था जिसे मैप ऑफ़ ह्यूमन जीनोम कहा जाता है.
इसी की सहायता से उन सेल की पहचान होने लगी जो कैंसरस होती हैं.
समरा टूरालिच ने कहा, “जीनॉमिक टेक्नॉलॉजी के इस्तेमाल से हमने पता लगाया कि कैंसरस सेल में होने वाला जेनेटिक परिवर्तन केवल कैंसरस सेल में ही होता है. सामान्य सेल में वो बदलाव नहीं होता. इन बदलावों के ज़रिए ही कैंसर वाले सेल शरीर में जीवित रह सकते हैं.”
अगर हम इन कैंसरस सेल का जेनेटिक सीक्वेंस या संरचना समझ पाएं तो यह भी जान लेंगे कि कैसे विभिन्न प्रकार के कैंसर की सेल हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र से बच जाती हैं या उसे ठप्प कर देती हैं.
इस जानकारी के आधार पर हम ऐसी दवा बना सकते हैं जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को इन कैंसर सेल की पहचान करने के लिए दोबारा तैयार कर सकेगी.
समरा टूरालिच ने कहा, “इम्यूनोथेरेपी में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब इस बात का पता लगा कि कैंसर सेल किस प्रकार हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र से छिप जाती हैं. इसी जानकारी के आधार पर इम्यून चेकपॉइंट ब्लॉकर दवाइयां बनाई गईं. ये दवाइयां हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को कैंसर सेल की निशानदेही करने में मदद करती हैं ताकि वो इन कैंसर सेल को नष्ट कर सके.”
इम्यून चेकपॉइंट ब्लॉकर दवाइयों का कई प्रकार के कैंसर के इलाज में इस्तेमाल हो सकता है. लेकिन हर प्रकार के कैंसर के लिए ख़ास तौर पर ऐसी दवा बनाई जाए तो वो अधिक प्रभावशाली हो सकती है.
इसे पर्सनलाइज़्ड मेडिकेशन भी कहा जाता है. समरा टूरालिच ने कहा कि इस दिशा में काफ़ी तरक्की भी हुई है और कैंसर की कई उपश्रेणियां या सब कैटेगरी बना ली गई हैं जिनके इलाज के लिए ख़ास दवाइयां बनाने के लिए काम चल रहा है.
मगर विभिन्न प्रकार के कैंसर की ख़ास दवाइयां बड़े पैमाने पर उपलब्ध होने में समय लगेगा.
प्रतिरक्षा तंत्र की ट्रेनिंग
कैंसर हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को ठप्प कर देता है. लेकिन वैक्सीन के इस्तेमाल से हम उसे दोबारा ठीक करके कैंसर का मुकाबला करने के लिए तैयार कर सकते हैं.
कैंसर के पनपने में मदद करने वाले कई वायरस की रोकथाम के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल पहले से हो रहा है.
मिसाल के तौर पर ह्यूमन पैपीलोमा वायरस या एचपीवी का गर्भाशय-ग्रीवा यानि सर्विक्स के कैंसर सहित कई प्रकार के कैंसर के साथ संबंध पाया गया है.
वहीं हेपिटाइटिस बी लिवर या यकृत के कैंसर का एक मुख्य कारण माना जाता है.
टेक्सास यूनिवर्सिटी के एमडी कैंसर सेंटर में इसकी रोकथाम संबंधी विषय के प्रोफ़ेसर एडुआर्डो विलार सांचेज़ कहते हैं कि ऐसी वैक्सीन भी बनाई जा रही हैं जो कैंसर सेल के शरीर में संक्रमण होने के बाद भी इस्तेमाल की जा सकती हैं.
उनके अनुसार, “कई प्रकार से कैंसर की सेल मनुष्य के प्रतिरक्षा तंत्र को अंधा कर देती हैं और वह कैंसर की सेल का पता लगा कर उन्हें नष्ट नहीं कर पाता. वैक्सीन के ज़रिए हम प्रतिरक्षा तंत्र को कैंसर की सेल को पहचानने के लिए दोबारा प्रशिक्षित कर सकते हैं और सक्षम बना सकते हैं.”
हमने इससे पहले इम्यूनोथेरेपी की चर्चा की थी जिसका इस्तेमाल शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कैंसर सेल की पहचान करके लड़ने के लिए किया जा सकता है.
मगर इम्यूनोथेरेपी और वैक्सीन के ज़रिए यह हासिल करने में अंतर है क्योंकि वैक्सीन के ज़रिए प्रतिरक्षा तंत्र को दोबारा नए तरीके से प्रशिक्षित किया जाता है. हालांकि इनका इस्तेमाल अलग अलग या एक साथ भी किया जा सकता है.
एडुआर्डो विलार सांचेज़ का कहना है कि जब कैंसर की बीमारी शुरुआती दौर में होती है तब उसके सेल में वो मॉलीक्यूल या पदार्थ सक्रिय नहीं होता जो प्रतिरक्षा तंत्र को धोखा दे सके. यानी उस समय तक प्रतिरक्षा तंत्र सामान्य रूप से काम कर रहा होता है.
उन्होंने आगे कहा, “उस समय हम इम्यूनोथेरेपी के बिना मरीज़ को वैक्सीन दे सकते हैं. साथ ही ऐसी वैक्सीन भी आ रही हैं जो लोगों में कैंसर की बीमारी को पनपने से रोकेगी. उस समय यह वैक्सीन सबसे अधिक प्रभावशाली होगी.”
हम यहां दो प्रकार की वैक्सीन के बारे में बात कर रहे हैं. एक तो वह जो उन वायरस की रोकथाम करती है जो कैंसर के पनपने में सहायता करते हैं. और दूसरी वो वैक्सीन जो कैंसर के शरीर में संक्रमण के बाद उसकी रोकथाम के लिए इस्तेमाल होती हैं.
मगर क्या यह वैक्सीन जेनेरिक हैं या उन्हें कैंसर के ख़ास किस्म के ट्यूमर के लिए बनाया जा रहा है?
एडुआर्डो विलार सांचेज़ ने कहा कि एक तो जेनेरिकी वैक्सीन बनाई जा रही है जिसका इस्तेमाल कैंसर से लड़ने के लिए होगा. दूसरी कुछ ऐसी वैक्सीन भी बनाई जा रही हैं जो कैंसर के सेल द्वारा शरीर में किए जा रहे बदलावों को रोकने में मदद करेंगी.
उम्मीद की किरण
डाना-फ़ार्बर इंस्टीट्यूट के मेलानोमा डिसीज़ सेंटर में क्लीनिकल डायरेक्टर पैट्रिक ओट का मानना है कि वैक्सीन कैंसर से लड़ने के लिए लंबे समय तक के लिए प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी प्रदान कर सकती है.
क्या वैक्सीन इसलिए भी बेहतर विकल्प है क्योंकि उनसे कीमोथेरेपी या रेडिएशन के ज़रिए इलाज से पैदा होने वाले साइड इफ़ेक्ट्स का ख़तरा नहीं है?
पैट्रिक ओट के अनुसार, “यह बिल्कुल सही है. वैक्सीन का यही काम होता है कि वो प्रतिरक्षा तंत्र को केवल उस एंड्रोजेन को निशाना बनाने के लिए तैयार करती हैं जो केवल कैंसर के ट्यूमर में होता है. ठीक उसी तरह जैसे वैक्सीन शरीर में किसी ख़ास वायरस को ही निशाना बनाती है. जबकि कैंसर के इलाज के दूसरे तरीकों में स्वस्थ टिशूज़ को भी नुकसान पहुंचता है.”
मगर मिसाल के तौर पर किसी मरीज़ को ब्लड कैंसर है तो उसके इलाज में वैक्सीन का इस्तेमाल कैसे और कब होगा?
पैट्रिक ओट का कहना है कि यह अभी यह बताना मुश्किल है, “कई वैज्ञानिकों का मानना है कि वैक्सीन का सबसे प्रभावी इस्तेमाल तब होगा जब सर्जरी के ज़रिए डॉक्टर कैंसरस सेल को शरीर से हटा देंगे. हालांकि सर्जरी के बाद भी कैंसर की कुछ सेल शरीर में छिपी रह सकती हैं. वैक्सीन उन बची खुची कैंसर सेल को दोबारा बढ़ने और कैंसर को लौटने से रोक सकती है.”
लेकिन ऐसा नहीं लगता कि कैंसर के इलाज के लिए सिर्फ़ वैक्सीन काफ़ी होगी. इसकी एक वजह है. पैट्रिक ओट का कहना है कि वैक्सीन शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कैंसर से लड़ने के तैयार करने में समय लेती है.
इसलिए जिस मरीज़ के शरीर में कैंसर फैल रहा है उसके लिए इलाज का यह माध्यम सही नहीं होगा. क्योंकि उसे ऐसे इलाज की ज़रूरत है जिससे कैंसर को फैलने से फ़ौरन रोका जा सके.
पैट्रिक ओट यह भी कहते हैं कि कैंसर की जो सेल शरीर में छिपी हुई हैं, मगर सक्रिय नहीं हुई हैं उन्हें वैक्सीन के ज़रिए ख़त्म किया जा सकता है.
साथ ही वैक्सीन से शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कैंसर सेल की पहचान करके नष्ट करने का प्रशिक्षण मिल जाता है जो दशकों तक कायम रहता है.
यानी शरीर को दशकों तक दोबारा कैंसर की चपेट में आने से बचाया जा सकता है.
कैंसर की वैक्सीन कितनी जल्द आ सकती है?
तो आने वाले पांच या दस सालों में वैक्सीन कैंसर से लड़ने में कितना बड़ा बदलाव ला सकती है?
पैट्रिक ओट ने कहा, “फ़िलहाल निश्चित तौर पर कुछ कहना मुश्किल है लेकिन कैंसर के मरीज़ों के इलाज की संभावना बढ़ सकती है. साथ ही कैंसर के दोबारा पनपने के ख़तरे को कम किया जा सकता है.”
“मुझे लगता है कि सैद्धांतिक तौर पर यह संभावना है कि कैंसर होने से पहले अगर वैक्सीन दी जा सके तो कैंसर से लड़ने में मदद मिलेगी. मैं यह नहीं कह रहा कि ऐसा जल्द होने जा रहा है. मगर इस दिशा में वैज्ञानिक काम ज़रूर कर रहे हैं.”
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर. क्या कैंसर की वैक्सीन जल्द आ सकती है?
कैंसर से संबंधित कुछ वायरस को निशाना बनाने वाली वैक्सीन पहले से मौजूद हैं.
मिसाल के तौर पर एचपीवी और हेपिटाइटिस बी वायरस की रोकथाम के लिए वैक्सीन मौजूद हैं. लेकिन कैंसर के ट्यूमर अलग अलग प्रकार के होते हैं और एक वैक्सीन से सबका इलाज नहीं हो सकता.
हालांकि इस प्रकार की दवा बनाने के लिए भी तेज़ी से काम चल रहा है.
विडंबना तो यह है कि इस काम में तेज़ी कोविड महामारी के चलते आई है.
उस दौरान एमआरएनए तकनीक से बनी वैक्सीन कई प्रकार की बीमारियों की रोकथाम के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं.
कैंसर की रोकथाम के लिए कुछ एमआरएनए वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है. तो हम कह सकते हैं कि कैंसर की वैक्सीन जल्द ही आ सकती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित