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नीदरलैंड्स की सरकार ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए चीन की एक चिप बनाने वाली कंपनी पर अचानक कब्ज़ा कर लिया है.
यूरोपीय चिप मेकर नेक्सपेरिया अब डच सरकार के नियंत्रण में आ गई है, इस कंपनी की मालिक है चीन की विंगटेक.
डच सरकार ने इस जबरन अधिग्रहण के लिए शीत युद्ध के दौरान बने क़ानून का इस्तेमाल किया है.
सरकार ने दलील दी है कि यूरोप की आर्थिक सुरक्षा, कारों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें बनाने के लिए सेमीकंडक्टर सप्लाई को सुरक्षित रखने के लिए यह क़दम उठाया गया है.
नीदरलैंड्स सरकार ने ये भी कहा है कि कंपनी की गवर्नेंस में गंभीर ख़ामियां हैं. आरोप लगाया गया है कि कंपनी चीन को संवेदनशील सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉज़ी दे सकती है.
हालाँकि नीदरलैंड्स के आर्थिक मंत्रालय ने जो बयान जारी किया है उसमें यह साफ़ नहीं किया गया है कि उसे क्यों लगा कि कंपनी का ऑपरेशन जोखिमभरा है.
क्यों है चिंता?
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चीन की सेमीकंडक्टर एसोसिएशन ने मंगलवार को कहा कि वह डच सरकार के इस फ़ैसले को लेकर ‘गंभीर रूप से चिंतित’ है.
एसोसिएशन ने कहा है कि डच सरकार का यह रवैया चीन की कंपनियों के प्रति ‘भेदभावपूर्ण’ है और इस तरह के क़दम खुले व्यापार की व्यवस्था को कमज़ोर करते हैं.
अब नेक्सपेरिया का सारा ऑपरेशनल और फाइनेंशियल कंट्रोल डच सरकार के पास है. सरकार ने संपत्ति बेचने, शेयर का ढाँचा बदलने, टेक्नोलॉजी का एक्सपोर्ट करने पर बैन लगा दिया गया है.
ऐसा पहली बार है जब किसी यूरोपीय देश ने किसी प्राइवेट प्रॉपर्टी का राष्ट्रीयकरण किया है और वजह बताई है राष्ट्रीय सुरक्षा.
डच सरकार ने जिस क़ानून का इस्तेमाल किया वो 1952 में बनाया गया था. ये क़ानून ‘युद्ध, युद्ध के जोखिम या आपात परिस्थितियों में’ सामानों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है.
ये क़ानून शीत युद्ध के दौरान परमाणु संघर्ष की आशंकाओं को देखते हुए लाया गया था, हालाँकि नेक्सपेरिया के टेकओवर से पहले कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया गया.
चीन का क्या जवाब रहा?
जैसे ही ये ख़बर चीन पहुँची, शंघाई स्टॉक एक्सचेंज में विंगटेक के शेयरों में बिकवाली शुरू हो गई. एक ही कारोबारी सत्र में कंपनी का शेयर 10 फ़ीसदी तक लुढ़क गया.
कंपनी ने कहा है कि वह इस मसले पर बीजिंग में चीन की सरकार से बात करेगी.
स्टॉक एक्सचेंज को दी गई सूचना में कंपनी ने कहा है कि इस मामले में क़ानूनी कार्रवाई करने के लिए वह वकीलों से सलाह-मशविरा कर रही है.
नेक्सपेरिया क्या है और क्या बनाती है?
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नेक्सपेरिया चिप बनाने वाली कंपनी है और इसकी फैक्ट्री नीदरलैंड्स में निजमेंगे शहर में स्थित है, ये जगह जर्मन सीमा के नजदीक है. कंपनी का दावा है कि इसकी चिप दुनियाभर में प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन में फिट बैठ सकती है.
नेक्सपेरिया कार से लेकर, मोबाइल फ़ोन और रेफ्रिजरेटर तक के लिए चिप बनाती है. नेक्सपेरिया कभी नीदरलैंड्स की नामचीन कंपनी फिलिप्स का हिस्सा हुआ करती थी, लेकिन साल 2018 में चीन की कंपनी विंगटेक टेक्नोलॉज़ी ने इसका अधिग्रहण कर लिया.
चीन की कंपनी का हिस्सा बनने के बाद नेक्सपेरिया ने ब्रितानी सेमीकंडक्टर कंपनी न्यूपोर्ट वाफ़र फैब को ख़रीदने की कोशिश की, लेकिन ब्रिटेन की सरकार के दखल देने और इस प्रस्तावित सौदे को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम’ बताने के बाद ये डील नहीं हो सकी.
क्या ट्रंप के इशारे पर हुई कार्रवाई?
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कुछ एक्सपर्ट नीदरलैंड्स सरकार के इस फ़ैसले के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का इशारा मानते हैं. रिसर्च एनालिस्ट आसिफ़ इक़बाल कहते हैं, “ट्रंप चीन को चिप तकनीकी देने से रोकना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि रेयर अर्थ में ताक़तवर चीन को इस मोर्चे पर जो भी संभव तरीका हो, उससे रोका जाए.”
वैसे भी सेमीकंडक्टर्स चीन पर पश्चिमी देशों के बीच व्यापारिक जंग का नया मैदान बना हुआ है.
आसिफ़ कहते हैं, “अमेरिका और नीदरलैंड्स ने एडवांस चिप बनाने वाले उपकरणों का निर्यात चीन को करने पर पाबंदी लगा रखी है. उन्हें डर है कि चीन इनका उपयोग अति उन्नत हथियारों को बनाने में कर सकता है.”
यही वजह है कि नीदरलैंड्स सरकार ने अपनी कंपनी एएसएमएल से कहा कि वह चीन को मशीनों का निर्यात रोक दे.
आसिफ़ कहते हैं, “नेक्सपेरिया यूरोप की ऑटो इंडस्ट्री और मैन्युफैक्चरिंग के लिए बेहद ज़रूरी है. इसीलिए कुछ लोग इसे रेयर अर्थ पर चीन की सख्ती को यूरोप का जवाब भी मान रहे हैं. इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि दूसरे यूरोपीय देश भी चीन की कंपनियों पर ऐसी ही सख्ती करें.”
दरअसल, चीन ने हाल ही में हाई-टेक उत्पादों के निर्माण के लिए ज़रूरी रेयर अर्थ और दूसरी चीज़ों के निर्यात पर नियंत्रण और कड़े कर दिए थे. वह पहले ही प्रोसेसिंग टेक्नोलॉज़ी और बिना आधिकारिक मंज़ूरी वाले विदेशी सहयोग पर प्रतिबंध लगा चुका है.
चीन बनाम पश्चिम!
दुनिया के अधिकतर रेयर अर्थ की प्रोसेसिंग चीन में होती है, जिनका इस्तेमाल सोलर पैनल से लेकर स्मार्टफोन तक में होता है.
रेयर अर्थ मिनरल्स 17 मैटेलिक तत्वों का समूह हैं, जो कई हाई-टेक उत्पादों के लिए अनिवार्य होते हैं. रेयर अर्थ मिनरल्स के बिना स्मार्टफोन्स, इलेक्ट्रिक गाड़ियां और विन्ड टर्बाइन्स जैसे अनेक उत्पाद बनाना संभव नहीं है.
रेयर अर्थ मिनरल्स पर अभी चीन का दबदबा है और चीन जब किसी देश से नाराज़ होता है तो इसकी आपूर्ति कम कर देता है या रोक देता है.
अमेरिका और चीन के बीच राजनीतिक और व्यापारिक लड़ाई के बारे में हम सब जानते हैं, लेकिन अब ये दो विशाल अर्थव्यवस्थाएँ चिप उद्योग में बढ़त बनाने की होड़ में लगी हैं.
चीन अभी अमेरिका से कुछ हद तक पीछे है, लेकिन उसकी रफ़्तार अमेरिका से कहीं तेज़ है.
लेखक क्रिस मिलर ने अपनी किताब ‘चिप वार’ में खुलासा किया है कि चीन हर साल चिप्स खरीदने पर अपना ख़र्च बढ़ा रहा है, इसी तरह चीन जितना पैसा तेल आयात करने में खर्च करता है उससे अधिक सेमीकंडक्टर चिप आयात करने पर लगाता है.
सेमी कंडक्टर सप्लाई अभी दो हिस्सों में बंटी हुई है. एक तरफ अमेरिका, जापान, ताईवान, नीदरलैंड्स जैसे देश हैं, इन देशों के समूह को ‘चिप 4 अलायंस’ भी कहा जाने लगा है तो दूसरी तरफ़ है चीन.
ये देश ग्लोबल सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के अहम खिलाड़ी हैं.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) का अनुमान है कि रेयर अर्थ के प्रोडक्शन में चीन की हिस्सेदारी लगभग 61 प्रतिशत है. वहीं इनकी प्रोसेसिंग में चीन की हिस्सेदारी क़रीब 92 प्रतिशत है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.