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नवंबर 2025 में फ़्रांस के बेज़िएर्स शहर में हज़ारों वाइन निर्माता विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर आए.
वाइन की गिरती कीमतें और उत्पादन की बढती लागत से वाइन उद्योग पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं. इसके लिए जलवायु परिवर्तन, प्रतिस्पर्धा और राजनीति को ज़िम्मेदार बताया जा रहा है.
प्रदर्शनकारी वाइन उत्पादन के लिए सरकार से और ज़्यादा मदद की मांग कर रहे हैं.
फ़्रांस ही नहीं बल्कि दूसरे बड़े वाइन उत्पादक देश भी इस समस्या से जूझ रहे हैं.
(शराब का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है)
व्यापार में घाटा
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इन समीक्षक और लेखक जेन एनसन फ़्रांस में रहती हैं. वह कहती हैं कि फ़्रांस में कई तरह की वाइन बनती है और वहां के वाइन ब्रांड दुनिया में मशहूर हैं.
उन्होंने कहा, “दुनियाभर में मशहूर पीनो न्वार फ़्रांस के बर्गंडी क्षेत्र में बनती है. उसी तरह कैबरने सॉविन्यों फ़्रांस के बोर्डू क्षेत्र में तैयार की जाती है. फ़्रांस की स्पार्कलिंग वाइन शैंपेन भी दुनिया में काफ़ी लोकप्रिय रही है. इसी वजह से वाइन उद्योग में फ़्रांस का दबदबा लंबे समय तक बना रहा.”
कई वाइन उत्पादक देशों ने अंगूर की खेती के लिए ज़मीन के संरक्षण से जुड़े क़ानून बना रखे हैं. इसके तहत संरक्षित क्षेत्रों को ऐपेलाशन कहा जाता है. जेन एनसन बताती हैं कि फ़्रांस के बोर्डू क्षेत्र में 60 से अधिक छोटे-बड़े ऐपेलाशन हैं. इन क्षेत्रों में अंगूर की किसी विशिष्ट प्रजाति की खेती ही की जा सकती है. इन वाइन की पहचान इन क्षेत्रों से जुड़ी होती है.
जेन बीस साल पहले फ़्रांस आकर बस गई थीं. वह कहती हैं कि उस समय फ़्रांस में 120 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर अंगूर के बागान थे, जो अब घटकर 85 हज़ार हेक्टेयर तक सिमट गए हैं. वाइन की बिक्री घट रही है, जिससे यह क्षेत्र और सिमट सकता है. वाइन फ़्रांस की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है.
जेन एनसन ने आगे कहा कि 2024 में वाइन ने फ़्रांस की अर्थव्यवस्था में 92 अरब यूरो का योगदान दिया.
मगर यह आय घट रही है.
एनसन बताती हैं, “2023 की तुलना में 2024 में वाइन निर्यात चार प्रतिशत घट गया. इसका एक कारण यह भी है कि पहले चीन में फ़्रांस की वाइन की बड़ी मांग थी जो अब घट गई है. पहले वह सिर्फ़ फ्रांस की – और ख़ास तौर उसके बोर्डू क्षेत्र की वाइन ख़रीदते थे. अब वह दूसरे देशों से भी वाइन ख़रीदने लगे हैं. साथ ही चीन ने मंहगी वाइन ख़रीदना बहुत कम कर दिया है.”
वाइन उत्पादकों के सामने दूसरी बड़ी चुनौती जलवायु परिवर्तन ने खड़ी कर दी है.
जेन एनसन बताती हैं कि अब एक ही मौसम के दौरान कई प्रकार के परिवर्तन आना शुरू हो गए हैं, जिसकी वजह से फ़्रांस में अंगूर की खेती करने वाले सभी किसान प्रभावित हुए हैं और फ़सल का उत्पादन घट गया है.
यह समस्या केवल फ़्रांस में ही नहीं बल्कि इटली और और अमेरिका के कैलीफ़ोर्निया में भी है. फ़्रांस ने वाइन उद्योग की सहायता के लिए 17 करोड़ यूरो के पैकेज की घोषणा की है.
वाइन का इतिहास
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रॉड्रिक फ़िलिप्स कनाडा की कार्लेटन यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर हैं और वाइन इतिहासकार हैं. वह कहते हैं कि वाइन का समाज में एक अलग रुतबा है जो बीयर या दूसरी शराबों से ऊंचा माना जाता है.
अच्छी तरह से स्टोर करने से समय के साथ-साथ वाइन का स्वाद बेहतर होता जाता है लेकिन बीयर का नहीं.
वाइन बनाए जाने की शुरुआत लगभग नौ हज़ार साल पहले शुरू हुई, हालांकि सबसे पहले वाइन कहाँ बनाई गई इस पर विवाद है.
रॉड्रिक फ़िलिप्स ने कहा, “कुछ लोगों की राय है कि सबसे पहले इराक़, अर्मेनिया और जॉर्जिया जैसे देशों में वाइन बनाई जाने लगी थी. लेकिन ऐसे सबूत भी हैं कि उसी दौरान चीन में भी वाइन बनाई जा रही थी.”
फ़िलिप्स के अनुसार पहले माना जाता था कि वाइन में औषधि के गुण भी हैं हालांकि इसके कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं रहे हैं.
मगर 20वीं सदी में औषधि विज्ञान में हुई तरक्की के बाद इसका इस्तेमाल दवा के तौर पर घट गया. साथ ही वाइन पीना एक सामाजिक रुतबे का संकेत भी बन गया.
फ़िलिप्स कहते हैं कि वाइन और बीयर में एक फ़र्क यह है कि बीयर अनाज से बनती है.
बीयर का उत्पादन बड़ी मात्रा में और पूरे साल हो सकता है जबकि वाइन बस साल के एक मौसम में बनती है और वो भी सीमित मात्रा में. इसलिए ये महंगी भी होती है.
एक ज़माना था जब वाइन करेंसी का विकल्प भी बन गई थी. इंग्लैंड और पुर्तगाल के बीच व्यापार में पुर्तगाल की ‘पोर्ट वाइन’ का इस्तेमाल मुद्रा की तरह होने लगा था. आज भी वाइन कई ईसाई धार्मिक कार्यक्रमों और रीति रिवाजों का अभिन्न अंग है.
आजकल वाइन की बिक्री भी स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी के लेबल के साथ होने लगी है. तो क्या समाज में इसके सेवन का चलन घटता जा रहा है?
रॉड्रिक फ़िलिप्स ऐसा नहीं मानते. उनके अनुसार वाइन में अभी भी लोगों की रुचि बरकरार है.
वाइन से जुड़े कई कोर्स होते है जिसमें लोग भाग लेते हैं. कई वेबसाइट हैं जिन पर लोग तरह-तरह की वाइन के बारे में जानकारियां प्राप्त करते हैं.
लेकिन ये भी सच है कि वाइन का सेवन लगातार घट रहा है.
वाइन की अर्थव्यवस्था
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स्टेफ़ानो कैस्ट्रियोटा इटली की पीसा यूनिवर्सिटी में इकॉनॉमिक्स के प्रोफ़ेसर हैं. वह मानते हैं कि वाइन की मांग लगातार घटती जा रही है जिसका असर वाइन उत्पादकों पर पड़ रहा है.
वह कहते हैं, “अस्सी के दशक में विश्व भर में बिकने वाली 80% वाइन इटली और फ़्रांस से आती थी जो अब घट कर 60 से 65 प्रतिशत रह गई है. अब इस उद्योग में अमेरिका, दक्षिण अफ़्रीका और अर्जेंटीना जैसे लातिन अमेरिकी देश भी आ गए हैं. मगर आम तौर पर विश्व में वाइन उत्पादन घट रहा है क्योंकि वाइन की मांग घट रही है.”
कुछ देशों में वाइन का सेवन बढ़ा भी है लेकिन इससे विश्व स्तर पर वाइन की मांग में आई गिरावट की क्षतिपूर्ति नहीं हो रही है. मांग में आ रही गिरावट के कारण क्या हैं?
स्टेफ़ानो कैस्ट्रियोटा बताते हैं कि पहले फ़्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों में वाइन का सेवन बहुत अधिक था जो अब कम हो गया है क्योंकि लोगों के कामकाज का तरीका बदल गया है.
मिसाल के तौर पर अब लोग कंप्यूटरों पर काम करते हैं और उन्हें ध्यान से काम करने की ज़रूरत होती है इसलिए लंच के दौरान वह पहले की तरह वाइन नहीं पीते.
दूसरी ओर शराब से होने वाली हानि के प्रति जागरूकता बढ गई है जिसके चलते वाइन का सेवन कम हो गया है.
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वाइन की मांग में गिरावट जारी रहेगी या इसमें कोई परिवर्तन आ सकता है?
कई वाइन उत्पादकों ने घरेलू बाज़ार से हट कर निर्यात पर ध्यान देना शुरू कर दिया था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के यूरोपीय वाइन और स्पिरिट्स पर 15 प्रतिशत टैरिफ़ लगाए जाने के बाद विदेशी ख़रीदारों के लिए वाइन और महंगी हो जाएगी.
इसका वाइन उद्योग पर क्या असर पड़ेगा?
स्टेफ़ानो कैस्ट्रियोटा के अनुसार अमेरिकी ग्राहकों के लिए टैरिफ़ के बाद यूरोपीय वाइन कहीं अधिक महंगी हो जाएगी और वह उसे ख़रीदने से कतराएंगे.
कई वाइन उत्पादक यूरोपीय नेताओं से आग्रह कर रहे हैं कि वह ट्रंप सरकार से बात कर के केवल वाइन पर से टैरिफ़ हटाने की अपील करें लेकिन ऐसा होना मुश्किल लगता है.
स्टेफ़ानो कैस्ट्रियोटा ने कहा कि कई अमेरिकी आयातकों को पता था कि टैरिफ़ लागू होने के बाद यूरोपीय वाइन महंगी हो जाएगी इसलिए उन्होंने टैरिफ़ लागू होने से पहले ही बड़ी मात्रा में यूरोपीय वाइन के भंडार ख़रीद कर जमा कर लिए हैं.
कैस्ट्रियोटा कहते हैं, “टैरिफ़ लागू होने के बाद से अमेरिका को होने वाला निर्यात 20 से 30 प्रतिशत तक घट गया है. कई लोगों का मानना है कि यह लंबे समय तक जारी रहेगा क्योंकि अमेरिकी आयातकों ने बहुत बड़ी मात्रा में वाइन जमा कर ली है.”
तो आने वाले समय में विश्वभर के वाइन उद्योग का क्या होगा?
आशा की किरण
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पीटर मैकएटैमनी ऑस्ट्रेलिया स्थित वाइन बिज़नेस सोल्यूशंस कंपनी के संस्थापक हैं. यह कंपनी दुनिया की कई बड़ी वाइन उत्पादक कंपनियों को व्यापार से जुड़ी सलाह देती है. उनका कहना है कि लोग आठ हज़ार साल से वाइन पीते आ रहे हैं, इसलिए ऐसा नहीं है कि यह चलन अचानक बंद हो जाएगा.
पीटर मैकएटैमनी कहते हैं, “अगर आप ख़ास किस्म की वाइन को देखें तो भविष्य बेहतर दिखाई देता है. मिसाल के तौर पर शारदोने फ़िलहाल दुनिया में अच्छी बिक रही है. बर्गंडी की वाइन की मांग भी ठीक है. यूके में वाइन की बिक्री घटती दिखाई दी थी, लेकिन वहां अब प्रोसेको वाइन काफ़ी लोकप्रिय हो गई है.”
दुनियाभर में वाइन की बिक्री में निश्चित तौर पर गिरावट आई है, लेकिन प्रोसेको और दूसरी स्पार्कलिंग वाइन की मांग पर इसका ख़ास असर नहीं पड़ा है.
वाइन को दोबारा लोकप्रिय बनाने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि उसके सेवन के पुराने तरीकों में बदलाव कर उसे खाने-पीने की दूसरी चीज़ों से जोड़ा जाए.
पीटर मैकएटैमनी न्यूज़ीलैंड के ऐरो टाउन की मिसाल देते हैं. ऐरो टाउन वाइन उत्पादन का एक बड़ा केंद्र है, जहां करीब चार करोड़ पाउंड का निवेश कर एक ही जगह खाने-पीने की चीज़ों की कई दुकानें खोली गई हैं.
अब वहां लगातार ग्राहकों की भीड़ रहती है और लोग दूसरी चीज़ों के साथ वाइन भी ख़रीदते और पीते हैं.
वाइन को बाज़ार में सबसे बड़ी टक्कर बीयर और दूसरी अल्कोहोलिक और नॉन अल्कोहोलिक यानी अल्कोहल रहित ड्रिंक्स से मिल रही है.
पीटर मैकएटैमनी मानते हैं कि बाज़ार में वाइन उद्योग का बड़ा हिस्सा बीयर और दूसरी स्पिरिट्स ने अपने कब्ज़े में कर लिया है, क्योंकि उनके उत्पादकों ने नॉन अल्कोहोलिक विकल्प बाज़ार में उतारे हैं, जो बिना अल्कोहल के भी काफ़ी सफल साबित हो रहे हैं.
पीटर मैकएटैमनी कहते हैं, “अब नॉन अल्कोहोलिक वाइन बनाने के लिए रिसर्च शुरू हो चुकी है. लेकिन वाइन के नए विकल्प तैयार करने या उसे बेचने के नए तरीके अपनाने में वाइन उद्योग अभी काफ़ी पीछे है. उसे नए सिरे से सोचना होगा और नए ग्राहकों से जुड़ना होगा. हालांकि जब तक दुनिया में पैसे हैं, वाइन का सेवन जारी रहेगा.”
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य सवाल की ओर. क्या दुनिया के सिर से वाइन का नशा उतर रहा है.
इसमें कोई शक नहीं कि घटती मांग, जलवायु परिवर्तन का असर और कई राजनीतिक कारणों से वाइन उद्योग अब तक के सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. दुनिया के कई हिस्सों में वाइन की मांग घटी है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में मांग बनी हुई है.
लोगों की वाइन ख़रीदने की आदत भी बदल रही है. अब लोग सस्ती वाइन ज़्यादा ख़रीदने के बजाय कम मात्रा में ही सही, लेकिन महंगी और बेहतर क्वालिटी की वाइन ख़रीदना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं.
हमारे एक्सपर्ट की राय है कि वाइन उद्योग चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन उसने अभी हार नहीं मानी है और नए सिरे से आगे बढ़ सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.