11 नवंबर 2024 का दिन भूटान के लिए ख़ास था. इस दिन देश में सार्वजनिक छुट्टी थी. इस दिन भूटान नरेश ज़िग्मे सिंग्ये वांगचुक का जन्मदिन है और सोलह साल पहले इसी दिन उन्होंने भूटान को लोकतांत्रिक देश घोषित किया था.
तत्कालीन भूटान नरेश का यह फ़ैसला असामान्य था और उसके बाद देश ने जिस संविधान को अपनाया वो भी सामान्य नहीं था. उस संविधान के एक अनुच्छेद मे कहा गया है कि सरकार देश की संप्रभुता की रक्षा करेगी, सुशासन और ख़ुशहाली प्रदान करेगी.
एक अन्य अनुच्छेद मे कहा गया है कि सरकार ऐसे कदम उठाने की कोशिश करेगी जिससे समाज में ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ मज़बूत हो यानी सभी तबकों में खुशहाली रहे.
हालांकि, जनता की खुशहाली और संतोष को राष्ट्रीय विकास नीति के केंद्र में रखने से सभी लोग खुश नहीं हैं. भूटान में करोड़ों डॉलर की लागत से एक नया शहर बना कर इस समस्या का समाधान निकालने की भी कोशिश की जा रही है. तो इस हफ़्ते हम दुनिया जहान में यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या भूटान अपनी खुशहाली क़ायम रख सकता है?
खुशहाली के प्रयास
स्विट्ज़रलैंड स्थित यूरेशिया लर्निंग इंस्टीट्यूट फॉर हैप्पीनेस एंड वेलबिइंग के संस्थापक और अध्यक्ष डॉक्टर हा विन थो कहते हैं कि भूटान नरेश की ओर से उन्हें 2012 में ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस का प्रोग्राम डायरेक्टर बनाया गया था. वो छह साल तक वहां रहे.
उन्होंने बताया कि इस सेंटर का उद्देश्य व्यापार, शिक्षा और जीवन के दूसरे क्षेत्रों और नीतियों में खुशहाली का माहौल पैदा करने के लिए दिशानिर्देशों को लागू करना था.
डॉक्टर हा विन थो कहते हैं कि चीन और भारत के बीच बसा भूटान आकार में स्विट्ज़रलैंड जितना बड़ा है, लेकिन उसकी आबादी दस लाख से भी कम है. देश की 75 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्म की अनुयायी है. ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस या राष्ट्रीय खुशहाली की अवधारणा बौद्ध धर्म से ही प्रेरित है लेकिन इसे विकसित करने मे कई दशक लगे हैं.
उन्होंने कहा, “1972 में जब भूटान के तीसरे नरेश का निधन हुआ तब उनके पुत्र केवल 17 साल के थे और वो भूटान की राजगद्दी पर बैठे. उस समय भूटान में राजशाही थी. नए नरेश ने देश के कई हिस्सों की यात्रा की और आम लोगों से बात कर जानना चाहा कि वो उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं. ज़ाहिर है कि लोग अलग-अलग बातें चाहते थे. लेकिन ज्यादातर लोग ख़ुश रहना चाहते थे, दुख और परेशानियों से मुक्ति चाहते थे.”
भूटान कई सदियों तक दुनिया के हिस्सों से एक तरह से कटा रहा. देश में पहली बार 1999 में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत हुई. पहली बार 1974 में विदेशी पर्यटकों को देश में आने की अनुमति दी गयी.
डॉक्टर हा विन थो का कहना है कि भूटान नरेश देश को बाहरी लोगों के लिए खोल कर आधुनिकीकरण करना चाहते थे, लेकिन साथ ही भूटान की बौद्ध संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को बरकरार रखना चाहते थे.
वो कहते हैं कि भूटान एशिया का ऐसा देश है जिसका औपनिवेशीकरण नहीं हुआ था और उसकी संस्कृति सुरक्षित थी. इसलिए उनकी सोच ये थी कि ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस या जीएनएच यानी राष्ट्रीय ख़ुशहाली पर ध्यान केंद्रित हो.
2006 में भूटान नरेश ने देश को राजशाही से बदल कर संसदीय लोकतंत्र में बदलने का सुझाव रखा. 2008 में भूटान लोकतांत्रिक देश बन गया लेकिन इस प्रक्रिया के पूरा होने से पहले ही भूटान के तत्कालीन नरेश ने राज गद्दी छोड़ दी और उनके पुत्र और वर्तमान नरेश भूटान की राजगद्दी पर बैठे.
डॉक्टर हा विन थो के अनुसार, वर्तमान नरेश का भूटान की राजनीति में कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं है और भूटान एक मात्र देश है जिसने देश के संविधान में साफ़ तौर पर जीएनएच को प्राथमिकता दी है. जीएनएच की अवधारणा के चार स्तंभ हैं.
डॉक्टर हा विन थो ने कहा, “इसका प्रमुख स्तंभ भूटान की सुंदर प्रकृति का संरक्षण है. दूसरा स्तंभ उसकी संस्कृति का संरक्षण और विकास है क्योंकि यही देश की पहचान है. तीसरा स्तंभ देश का न्यायसंगत आर्थिक विकास है. और चौथा स्तंभ अच्छा प्रशासन है.”
आम तौर पर किसी देश की अर्थव्यस्था का आकार आंकने के लिए जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद का इस्तेमाल किया जाता है.
2011 में भूटान ने संयु्क्त राष्ट्र महासभा में एक नॉन बाइंडिंग प्रस्ताव पेश कर जीडीपी के बजाय जीएनएच को विकास आंकने के विकल्प के रूप में अपनाए जाने का सुझाव दिया.
डॉक्टर हा विन थो ने कहा कि इस प्रस्ताव को स्वीकार तो कर लिया गया मगर सदस्य देशों ने यह भी कहा कि जीएनएच को आंकने के लिए नई आकलन प्रणाली बनाने की ज़रूरत है. जीएनएच आंकने के लिए जो जीएनएच इंडेक्स बनायी गयी उसमें नौ क्षेत्रों से आंकड़े इकट्ठा किये जाते हैं जिसमें जीवन स्तर और मनौवैज्ञानिक स्वास्थ्य भी शामिल है.
सर्वेक्षण के ज़रिए ये आंकड़े इकट्ठे किये जाते हैं. उसमें जनता से सौ से अधिक सवालों के जरिए विकास का आकलन किया जाता है. डॉक्टर हा विन थो ताज़ा सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहते हैं कि एक दो क्षेत्र में विकास का यह मतलब नहीं है कि सभी क्षेत्रों में विकास हो रहा है.
डॉक्टर हा विन थो ने कहा, “देश में प्रकृति का संरक्षण अच्छा रहा है क्यों कि संविधान के अनुसार देश का सत्तर प्रतिशत हिस्सा वनों के लिए आरक्षित रहेगा जो कि बड़ी सफलता है. लेकिन इससे किसानों के सामने समस्या ये है कि जंगली जानवरों से उनकी फसल को नुकसान हो रहा है. यानि कुछ क्षेत्रो को नुकसान भी हो रहा है.”
भूटान की ख़ुशहाली के सामने कई और चुनौतियां भी हैं.
घरेलू अर्थशास्त्र
नई दिल्ली स्थित थिंकटैंक एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सहायक निदेशक डॉक्टर ऋषि गुप्ता कहते हैं कि भूटान की अर्थव्यवस्था में कोई बड़ा उछाल तो नहीं आया है, लेकिन पिछले चार पांच सालों में उसकी विकास दर स्थिर रही है.
“भूटान की अर्थव्यवस्था के सामने एक बड़ी समस्या यह है कि वो नई नीतियां नहीं अपना पा रहा क्योंकि उसके लिए देश में औद्योगिकीकरण को तेज़ करना होगा. मगर उसकी मुख्य पर्यावरणवादी नीतियों की वजह से यह एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है.”
जीएनएच या खुशहाली की अवधारणा के आधार पर नीतियां बनाने से भूटान को फ़ायदा हो रहा है या वह उसकी तरक्की के रास्ते में बाधा है?
डॉक्टर ऋषि गुप्ता के अनुसार इससे भूटान को फ़ायदा भी हो रहा है और उसके रास्ते में दिक्कत भी खड़ी हो रही है. यहां बता दें कि भूटान जीएनएच इंडेक्स को तरजीह तो देता है लेकिन जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद को भी आंकता है.
डॉक्टर ऋषि गुप्ता ने कहा कि भूटान का सकल घरेलू उत्पाद 265 करोड़ डॉलर के करीब है. भूटान के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 5.5 से 6 प्रतिशत तक है जो कि कई दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है. भविष्य में अगर वो चाहे तो इसमें बड़ी वृद्धि कर सकता है. लेकिन फ़िलहाल उसकी अर्थव्यवस्था विदेशी बाज़ार के लिए लगभग बंद है.
डॉक्टर ऋषि गुप्ता बताते हैं कि कृषि उद्योग और वनों से देश के लगभग 60 प्रतिशत लोगों को रोज़गार मिलता है. इसके अलावा कोयला, तांबा और अन्य खनिज और संगमरमर की खदानों से भी भूटान की अर्थव्यवस्था को फ़ायदा होता है. भूटान रिन्यूएबल एनर्जी का एक बड़ा उत्पादक है और भारत उसका सबसे बड़ा ग्राहक है.
डॉक्टर ऋषि गुप्ता का कहना है कि भूटान और भारत के बीच संबंध मज़बूत रहे हैं. भारत भूटान से हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी ख़रीदता है जिससे भूटान के सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत का योगदान होता है. साथ ही भारत भूटान को आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है.
पर्यटन भूटान का एक महत्वपूर्ण उद्योग है. यहां भूटान ने पर्यटन से पर्यावरण की रक्षा के लिए ख़ास नीतियां बना रखी है जिनका मकसद यह है कि पर्यटक कम आएं लेकिन ऐसे पर्यटक आएं जो ज्यादा पैसे खर्च कर सकते हैं.
भूटान मे वयस्क विदेशी पर्यटकों को प्रतिदिन सौ डॉलर टैक्स देना पड़ता है. इस धन के कुछ हिस्से का इस्तेमाल देश की जनता के लिए मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए किया जाता है. डॉक्टर ऋषि गुप्ता कहते हैं कि भूटान में गरीबी कम है. मगर युवाओं में बेरोज़गारी की दर लगगभग 15 प्रतिशत है. बड़ी संख्या में वहां के युवा ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जा रहे हैं.
डॉक्टर ऋषि गुप्ता कहते हैं कि भूटान नरेश भी देश से प्रतिभाशाली लोगों के विदेश जाकर बसने से चिंतित हैं और इससे भविष्य में बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है. इस समस्या से निपटने के लिए भूटान एक नये शहर के निर्माण की योजना बना रहा है.
सिस्टम अपडेट
भूटान की नए शहरी की योजना के बारे में हमने बात की डॉक्टर लव्हांग यूग्येल से जो भूटान के रहने वाले हैं और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी मे वरिष्ठ लेक्चरर हैं. वो ख़ुशहाली से जुड़ी नीतियों के विशेषज्ञ हैं.
उन्होने कहा कि भूटान ने दिसंबर 2023 में एक विशाल नए शहर माइंडफ़ुलनेस सिटी का निर्माण करने की घोषणा की थी. पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रख कर यह शहर देश के दक्षिण मध्य में बसाया जाएगा.
“माइंडफ़ुलनेस सिटी को देश के मैदानी क्षेत्र में बसाया जाएगा. इसका क्षेत्रफल दो हज़ार वर्ग किलोमीटर होगा जो कि भूटान के कुल क्षेत्रफल का चार प्रतिशत है. यह क्षेत्र यातायात के लिए सुविधाजनक है.”
इस शहर में मंदिरों, अस्पताल, यूनिवर्सिटी के साथ साथ वन्य प्राणियों के लिए आरक्षित वन की योजना बनाई गई है. इस शहर के मकानों को रिन्यूएबल एनर्जी के ज़रिए बिजली मिलेगी. भारत के नज़दीक बसाया जाने वाला यह शहर दक्षिणपूर्व एशिया से आसानी से जुड़ सकेगा.
वहां एक नये हवाईअड्डे का निर्माणकार्य शुरू हो चुका है. डॉक्टर लव्हांग यूग्येलकहते हैं कि यह शहर आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा. इसके लिए विदेशी निवेश भी आएगा. मगर आर्थिक गतिविधियां पर्यावरणवादी राष्ट्रीय ख़ुशहाली की नीति के अनुसार ही चलेंगी. इस प्रोजेक्ट का एक उद्देश्य देश से प्रतिभाशाली लोगों के बाहर जाने पर रोक लगाना और बाहर जा चुके भूटानी लोगों को वापिस लौटने के लिए प्रोत्साहित करना भी है.
डॉक्टर लव्हांग यूग्येल ने कहा, ” इस प्रोजेक्ट का कामकाज स्थानीय लोग संभालेंगे जिसमे देश के प्रतिभाशाली लोग शामिल होंगे और बाहर जा कर बस चुके भूटानी लोग भी लौट कर इसमें शामिल हो सकते हैं. यह प्रोजेक्ट एक नीतिगत प्रयोग है. अगर यह सफल हुआ तो इसे पूरे देश में आज़माया जा सकता है.”
माइंडफ़ुलनेस सिटी के निर्माण का काम कई चरणों में पूरा होगा. अधिकारियों का अनुमान है कि 21 साल में इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से पहले लगभग दस लाख लोग यहां बस जाएंगे. भारत भी इस काम में भूटान को सहायता प्रदान कर रहा है. लेकिन क्या भूटान के लोग इस शहर के निर्माण से ख़ुश हैं?
डॉक्टर लव्हांग यूग्येल का कहना है , ” आमतौर पर लोगों को आशा तो है. अब यह प्रोजेक्ट सफल होगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा. अगर माइंडफ़ुलनेस सिटी योजना के अनुसार बन जाए तो इससे बड़े फ़ायदे हो सकते हैं.”
मुख्य मुद्दा
2012 से संयुक्त राष्ट्र ने 20 मार्च को खुशहाली दिवस घोषित कर रखा है. इसका उद्देश्य विश्व में सार्वजनिक नीतियों में जनता की खुशहाली को प्राथमिकता देने का समर्थन करना है.
संयुक्त राष्ट्र में खुशहाली दिवस का घोषित करने का प्रस्ताव भूटान की पहल पर लाया गया था. हमारे चौथे एक्सपर्ट यान एखाउट स्पेन की पोंपेयो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं. उनकी राय है कि भले ही खुशहाली भूटान की प्राथमिकता हो,मगर वो विश्व अर्थव्यवस्था का हिस्सा है जहां पूंजीवादी प्रक्रिया से असमानता को बाहर रखना मुश्किल है. तो ऐसे में आर्थिक विकास में खुशहाली की कितनी बड़ी भूमिका होती है?
यान एखाउट ने कहा, ” मेरे ख़्याल से आर्थिक विकास की एक मात्र भूमिका खुशहाली लाना है. अर्थशास्त्र में इसी का अध्ययन किया जाता है कि हम किस प्रकार संसाधनों का इस्तेमाल लोगों में खुशहाली लाने के लिए कर सकते हैं. भूटान ने खुशहाली को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता करार दिया है. हालांकि कई देश अधिक व्यापार और अधिक मुनाफ़े को अपनी प्राथमिकता बनाते हैं. जबकि भूटान की सोच है कि एक ऐसा समाज बनाया जाए जिसमें ज्यादातर लोग खुश हों अगर इसके लिए उत्पादकता और मुनाफ़े की बलि देनी पड़ी है तो ठीक है.”
लेकिन क्या ऐसे दूसरे देश भी हैं जो विकास को आंकने के लिए जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद के बजाय दूसरे मापदंड अपनाते हैं?
यान एखाउट का कहना है कि जिस स्तर पर भूटान ने विकास को आंकने के लिए खुशहाली को मुख्य मापदंड बनाया है ,उस स्तर पर दूसरे देश खुशहाली को नहीं आंकते लेकिन अन्य देशों के यही करने के दूसरे तरीके हैं. कई देश आर्थिक समानता और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के लिए अमीरों से ज़्यादा टैक्स वसूला करते हैं. ज़रूरतमंद तबकों को सब्सिडी देते हैं. ग़रीबों को आर्थिक सहायता देते हैं. हर देश में खुशहाली के लिए कुछ ना कुछ कदम ज़रूर उठाए जाते हैं.
वहां भूटान में विशाल माइंडफ़ुलनेस सिटी के निर्माण के ज़रिए कुशल और प्रतिभाशाली लोगों को देश में रहने या विदेशों से वापिस लौटने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
यान एखाउट के अनुसार सवाल यह है कि क्या वो इसमें सफल होंगे? क्योंकि भूटान की अर्थव्यवस्था का ज़ोर भले ही खुशहाली पर हो लेकिन उत्पादकता के महत्व को भी कम नहीं आंका जा सकता.
भूटान के कई लोग ऑस्ट्रेलिया और दूसरे ऐसे देशों में जा कर बस गए है जहां प्रति व्यक्ति आय भूटान की प्रतिव्यक्ति आय से कहीं अधिक है.
यान एखाउट की राय है कि ऐसे में भूटानी लोग अपने देश में खुशहाली के बजाय दूसरे देशों के बेहतर जीवनस्तर की ओर अधिक आकर्षित हो सकते हैं. तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- क्या भूटान अपनी ख़ुशहाली क़ायम रख सकता है?
भूटान में युवाओं की बेरोज़गारी और प्रतिभाशाली लोगों को विदेश का रुख़ करना चिंता का एक बड़ा कारण है. इस समस्या का समाधान विकास के बिना मुश्किल है. भूटान द्वारा सरकारी नीतियों में खुशहाली के लिए पर्यावरणवादी नीतियां अपनाना दूसरे देशों के आर्थिक विकास के तरीकों से काफ़ी अलग तो है लेकिन हमारे एक्सपर्ट्स के अनुसार यह भूटान के आर्थिक विकास में बाधा भी बन सकता है.
दरअसल खुशहाली का मतलब सबके लिए अलग होता है. कुछ लोगो के लिए खुशहाली का मतलब अच्छा जीवन स्तर और अच्छी नौकरी हो सकता है. ऐसे में नई माइंडफ़ुलनेस सिटी के निर्माण से भूटान के लोगों के लिए रोज़गार के नए अवसर तो ख़ुलेंगे लेकिन प्रतिभाशाली लोगों को दूसरे देशों में बेहतर जीवन की तलाश में जाने से रोकने के लिए शायद यह काफ़ी नहीं होगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.