बौद्धिक संपदा नष्ट करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित कपल के पक्ष में फैसला सुनाया है। यह मामला 2018 की एक घटना का है जब कपल के लैपटॉप जिसमें बेहद अहम दस्तावेज थे उसे उनके मकान मालिक के बेटे ने चारी करके नष्ट कर दिया। इस पर कोर्ट में उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी। इस केस में आखिरकार उनके पक्ष में फैसला आया।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कानून पर भरोसा होना चाहिए। जीत आखिरकार न्याय की ही होती है। 2018 में नागपुर के एक ऐसे ही मामले ने इस बात को साबित कर दिया। यह मामला साल 2018 का है। दलित विद्वान क्षिप्रा कमलेश उके और शिवशंकर दास का रिसर्च लैपटॉप 2018 में चोरी करके नष्ट कर दिया गया। इस मामले में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बौद्धिक संपदा अधिकारों को शामिल करने के लिए एससी/एसटी एक्ट के तहत ‘संपत्ति के नुकसान का विस्तार किया।
सुप्रीम कोर्ट ने पक्ष में दिया फैसला
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार यह मामला कोर्ट पहुंचा। यहां इस बात पर फैसला हुआ कि क्या एससी एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम में ‘संपत्ति को नुकसान’ में बौद्धिक संपदा यानी आईपी शामिल है? 24 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय दिया। बॉम्बे हाईकोर्ट के 2023 के आदेश को कायम रखते हुए अधिनियम में ‘बौद्धिक संपदा’ की परिभाषा का विस्तार किया। और उन्हें मुआवजे के लिए पात्र बना दिया।
केस लड़ने के अलावा हमारे पास नहीं था कोई विकल्प
- उके ने बताया कि ‘हम शून्य पर थे। हमारे पास अदालत में जाकर केस लड़ने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था। हमने कानून का रास्ता चुना। उन्होंने कहा कि हम जिस समुदाय और कास्ट से आते हैं, वहां सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक कोई अन्य सुरक्षा नहीं है।
- उके ने बताया कि 2015 में वे और दास दोनों ने जेएनयू से पीएचडी की है और राजनीति विज्ञान में विशेषज्ञता है। उन्होंने बताया कि नागपुर में दीक्षाभूमि के पास किराए पर मकान लिया।
घर क्यों खाली करना पड़ा?
उके ने कहा कि मकान मालिक से पहले तो अच्छे संबंध थे। लेकिन 2016 में परिस्थितियां बदल गई। हमने रोहित वेमुला मामले पर एक विरोध रैली निकाली। 10 हजार प्रतिभागियों के साथ यह रैली निकाली गई थी।
उसी साल जेएनयू के स्टूडेंट्स की गिरफ्तारी का भी हमने विरोध किया। कुछ दिन बाद ही मकान मालिक के बेटे ने हमें कहा कि हम 24 घंटे में घर खाली कर दें। लेकिन हमने नियमित किराया देकर रहना जारी रखा।
क्या हुआ था उनके साथ?
कपल ने की मुआवजे की मांग
कुछ महीनों बाद उके और दास ने बौद्धिक संपदा के नुकसान के लिए मुआवजे की डिमांड की। उके ने बताया कि ‘उन्होंने हमारी अधिकांश संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। हमारे लैपटॉप व पासपोर्ट चोरी कर लिए। इसकी शिकायत पुलिस भी दर्ज करने को तैयार नहीं थी। हमारे लिए वे दस्तावेज महत्वपूर्ण थे। इस घटना ने उन्हें शहर छोड़ने और ट्रेनिंग स्कूल की योजनाओं को ठंडे बस्ते में डालने के लिए विवश कर दिया।
2021 में गए बॉम्बे हाईकोर्ट
- कपल ने 3.91 करोड़ रुपये से अधिक के मुआवजे की मांग की। इसमें शोध डेटा का अनुमान 1.90 करोड़ रुपये और अन्य संपत्तियों को नुकसान का अनुमान 2.01 करोड़ रुपये था। उन्होंने 127.55 करोड़ रुपये की भी मांग की जिसे उन्होंने अपनी संपत्ति का ‘आंतरिक मूल्य’ बताया।
- मामले में कोई प्रगति नहीं हुई तो 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट गए। उन्होंने कोर्ट से एससी आयोग को उनकी शिकायत पर कार्रवाई के निर्देश की मांग की। मार्च 2022 में शिकायत पर 6 सप्ताह में कार्रवाई का आश्वासन दिया।
- साल 2022 में आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने आपराधिक मामले और मुआवजे के दावों की जांच के लिए एक SIT का गठन किया।
5 लाख रुपये की दी राहत
उके और दास की मुआवजे की मांग पर जिला अधिकारियों ने 15 जून, 2022 को उन्हें अधिनियम के तहत कुछ नियमों के तहत 5 लाख रुपये की राहत दी।इसके बाद कपल ने उस साल के अंत में एक नई याचिका के साथ फिर से हाई कोर्ट का रुख किया। कलेक्टर को बौद्धिक संपदा को नुकसान के लिए मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की।
शोधकर्ताओं के पक्ष में दिया बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला
- हाई कोर्ट में अपने मामले के साथ कपल ने खुद कोर्ट में मामला लड़ने का फैसला किया। 10 नवंबर 2023 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने शोधकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया।
- चूंकि एससी/एसटी अधिनियम में ‘संपत्ति’ की स्पष्ट परिभाषा का अभाव था, अदालत ने भारतीय दंड संहिता से उधार लिया डेटा को ‘चल संपत्ति’ के रूप में वर्गीकृत किया और याचिकाकर्ताओं के आईपी नुकसान के लिए मुआवजे के अधिकार की पुष्टि की।
महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में की अपील
कोर्ट ने कलेक्टर को भी निर्देश में कहा कि दावों का आकलन कर तीन महीने में विद्वान कपल को हुए IP नुकसान की मात्रा तय करें। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। लेकिन 24 जनवरी को इस मामले को खारिज कर दिया गया। उके और दास ने मुआवजे का मामला जीता।