क्रिप्टोकरेंसी में अमेरिका ने अपनी विदेशी मुद्रा रिजर्व भी बनाने की संभावनाएं तलाशने की बात कही है। इससे भारत में भी क्रिप्टोकरेंसी करने वाले उद्यमी काफी उत्साहित हैं। लेकिन आरबीआई का विचार क्रिप्टो को लेकर बिल्कुल भी नहीं बदला है। साथ ही वित्त मंत्रालय भी क्रिप्टोकरेंसी को वैधानिक मान्यता देने के लेकर कोई कदम जल्दबाजी में उठाने नहीं जा रहा है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्रिप्टोकरेंसी के वैश्विक उद्यमियों से मुलाकात की और अपनी बात दोहराई कि वह अमेरिका को क्रिप्टो दुनिया का सरताज देश बनाएंगे। क्रिप्टोकरेंसी में अमेरिका ने अपनी विदेशी मुद्रा रिजर्व भी बनाने की संभावनाएं तलाशने की बात कही है। इससे भारत में भी क्रिप्टोकरेंसी करने वाले उद्यमी काफी उत्साहित हैं। लेकिन आरबीआई का विचार क्रिप्टो को लेकर बिल्कुल भी नहीं बदला है।
भारत का केंद्रीय बैंक अभी भी मानता है कि वित्त मंत्रालय भी क्रिप्टोकरेंसी को वैधानिक मान्यता देने के लेकर कोई कदम जल्दबाजी में उठाने नहीं जा रही है। इस बारे में कोई भी कदम आरबीआई की तरफ से गठित कार्यसमूह की रिपोर्ट का विस्तार से आकलन के बाद ही किया जाएगा। इस कार्य समूह की रिपोर्ट जल्द ही आने की संभावना है।
क्रिप्टोकरेंसी को लेकर सरकार चिंतित
क्रिप्टोकरेंसी को लेकर सरकार की नीतियों की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत सरकार की या आरबीआइ की इस करेंसी को लेकर जो चिंताएं हैं वह तथावत हैं। जिस आधार पर हम क्रिप्टोकरेंसी को भारत में लागू करने का विरोध कर रहे हैं उसमें कोई बदलाव नहीं आया है। हमारा विरोध है कि क्रिप्टोकरेंसी किसी तरह की करेंसी हैं ही हीं क्योंकि इसको जारी करने वाला कोई नहीं होता और ना ही इसका उत्तरदायित्व लेने वाला कोई होता है। इसलिए इसे ना तो करेंसी माना जा सकता या ना ही वित्तीय परिसंपत्तियां।
क्रिप्टोकरेंसी पूरी इकोनमी को चला सकती है?
शेयर, बांड्स, केंद्रीय बैंकों की तरफ से जारी होने वाले नोट को वित्तीय परिसंपत्तियां या करेंसी इसलिए माना जाता है कि, इसका उत्तरदायित्व किसी न किसी के पास होता है। मसलन, कागत की करेंसी भी केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी होती है।दूसरा, अभी तक कोई ऐसी शोध रिपोर्ट नहीं है जो यह साबित करे कि क्रिप्टोकरेंसी पूरी इकोनमी को चला सकती है। तीसरा, क्या निजी करेंसी के तौर पर इसका इस्तेमाल हो सकता है? हमारे इस विचार में तभी बदलाव होगा जब कोई यह साबित कर दे कि ये पूरी तरह से गलत हैं। वैसे भी दुनिया काफी तेजी से बदल रही है। दरअसल, यह आरबीआइ का यह रूख काफी पुराना है।
क्रिप्टोकरेंसी को भारत के लिए खतरनाक- पूर्व आरबीआइ गवर्नर
पूर्व आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने कई मौकों पर क्रिप्टोकरेंसी को भारत के लिए खतरनाक बताया। अक्टूबर, 2024 में पीटरसन इंस्टटीयूट फॉर इंटरनेशनल इकोनोमिक्स में एक व्याख्यान में कहा था कि, “मेरा विचार है कि क्रिप्टोकरेंसी को कभी भी वित्तीय व्यवस्था में प्रभुत्व नहीं मिलना चाहिए। क्योंकि इसके साथ बहुत ही ज्यादा वित्तीय जोखिम है। इसका मौद्रिक जोखिम काफी ज्यादा है। यह बैं¨कंग व्यवस्था के लिए भी खतरा है। इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि केंद्रीय बैंक का मुद्रा आपूर्ति पर नियंत्रण समाप्त हो सकता है।”
दरअसल, आरबीआइ के कड़े विरोध के कारण ही केंद्र सरकार को भी क्रिप्टोकरेंसी पर अपने विचार बदलने पड़े थे। इसके पहले केंद्र सरकार की तरफ से पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग की अध्यक्षता में गठित एक अंतर-मंत्रालीय समिति ने भी वर्ष 2019 में क्रिप्टोकरेंसी जैसे वर्चुअल मुद्राओं को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाने का सुझाव दिया था।
अमेरिका सरकार की तरफ से क्रिप्टोकरेंसी को बढ़ावा देने पर बात
दैनिक जागरण सरकार के कुछ प्रतिनिधियों से अमेरिका सरकार की तरफ से क्रिप्टोकरेंसी को बढ़ावा देने पर बात की है। सभी यह मान रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों से नहीं सरकार आरबीआइ के सुझाव पर कदम बढ़ाएगी। अब देखना होगा कि अगर आरबीआइ की समिति वर्चुअल करेंसी को लेकर कोई बीच का रास्ता अपनाने का सुझाव देती है या कोई और रास्ता अपनाने का सुझाव देती है।यह भी देखना होगा कि अमेरिका जैसी बड़ी इकोनमी किस तरह से बिटक्वायन या दूसरे वर्चुअल करेंसी को अपने देश में प्रचलन में लाने का रास्ता निकालती है। अमेरिका ने अपने रिजर्व को भी क्रिप्टोकरेंसी में संरक्षित रखने की बात कही है। इस बारे में उक्त प्रतिनिधियों का कहना है कि अभी यह स्पष्ट नहीं है। क्रिप्टोकरेंसी की प्रकृति को देखते हुए इसे किसी देश के विदेशी मुद्रा रिजर्व में कैसे समायोजित किया जा सकता है, यह समझ से परे है।
क्रिप्टोकरेंसी एक वर्चुअल मुद्रा
क्रिप्टोकरेंसी एक वर्चुअल या डिजिटल मुद्रा है। यह डिजिटल रूप में ही होता है। इस पर किसी सरकार या केंद्रीय बैंक या किसी देश की नियामक एजेंसी का कोई जोर नहीं होता। इसे जिस प्रक्रिया से संचालित किया जाता है उसे तकनीकी भाषा में माइनिंग कहा जाता है जो विशेष तौर पर निर्मित सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर पर आधारित होते हैं।
भारत में इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं
बिटक्वायन, डोजक्वायन, इथेरियम इसके उदाहरण हैं। चूंकि इस पर किसी सरकार या नियामक एजेंसी की निगरानी नहीं है, इसलिए इसमें निवेश का जोखिम पूरी तरह से निवेशकों के उपर होता है। भारत में इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं है। केंद्र सरकार ने आय कर अधिनियम के तहत इसकी खरीद-बिक्री से होने वाले मुनाफे पर 30 फीसद का टैक्स लगा रखा है।
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