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इमेज कैप्शन, दिवाली के बाद दिल्ली में प्रदूषण में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. ‘क्लाउड सीडिंग’ के ज़रिए बारिश करवा कर बढ़े हुए प्रदूषण से लड़ने की कोशिश की गई थी. ….में
वायु प्रदूषण की मार झेल रही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के मक़सद से मंगलवार को कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश की गई लेकिन ये प्रयास नाकाम रहा.
सेसना विमान ने आईआईटी कानपुर की हवाई पट्टी और फिर बाद में मेरठ की हवाई पट्टी से उड़ान भरी और दिल्ली में ‘क्लाउड सीडिंग’ की.
इन विमानों ने खेकड़ा, बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग़, मयूर विहार, सादकपुर, भोजपुर और अन्य इलाक़ों में क्लाउड सीडिंग के लिए हाइग्रोस्कोपिक नमक के फ्लेयर छोड़े.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इन प्रयासों की पुष्टि करते हुए बताया कि अलग-अलग आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) की स्थिति में बारिश की संभावना के लिए जानकारी इकट्ठा करने के लिए प्रयोग किए गए. उन्होंने कहा कि वातावरण में आर्द्रता बारिश होने के लिए ज़रूरी मात्रा से काफ़ी कम थी.
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सिरसा ने इसे शहरी इलाक़ों में हवा की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा में विज्ञान आधारित क़दम बताया.
हालांकि, दिल्ली में सर्दियों के मौसम में स्मॉग की वजह से वातावरण में आर्द्रता अकसर कम ही रहती है.
सिरसा ने कहा कि दिल्ली सरकार भविष्य में इस तरह के प्रयासों से प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहती है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर ये प्रयोग कामयाब रहते हैं तो फ़रवरी तक ऐसा किया जाएगा.
दिल्ली सरकार ने इसके लिए 3.21 करोड़ रुपये के बजट की पुष्टि भी की है.
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का ये प्रयास भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर की टीम ने किया.
क्यों विफल रहे प्रयास?
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इमेज कैप्शन, फ़्लेयर्स के ज़रिए बारिश करवाने की कोशश करता विमान
वातावरण में आर्द्रता की कमी को इन प्रयोगों के नाकाम होने का कारण बताया जा रहा है.
हालांकि दिल्ली सरकार ने अपने बयान में दावा किया कि जिन क्षेत्रों में क्लाउड सीडिंग की गई थी, वहां पार्टिकुलेट मैटर (प्रदूषण तत्वों) में कमी देखी गई.
लेकिन 28 अक्तूबर के सीपीसीबी (सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) के रियल टाइम डेटा के मुताबिक़ इसमें कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं आई थी.
बीबीसी से बात करते हुए आईआईटी कानपुर के निदेशक मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि अगर बारिश होने को सफलता का पैमाना माना जाए तो दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम बारिश करवाने का प्रयास विफल रहा है.
उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि दिल्ली में कल बादलों में आर्द्रता बहुत कम थी और इसी वजह से क्लाउड सीडिंग के नतीजे उम्मीद के मुताबिक़ नहीं रहे.
उन्होंने कहा, “हम अपने प्रयास नज़दीकी भविष्य में भी जारी रखेंगे. हमें आज (बुधवार) भी क्लाउड सीडिंग करनी थी लेकिन आज भी बादलों में आर्द्रता कल के मुक़ाबले कम थी. अगर भविष्य में हमें अच्छी आर्द्रता दिखती है तो हम निश्चित रूप से इस प्रयोग को फिर से करेंगे.”
यह भारत में घरेलू तकनीक के ज़रिए क्लाउड सीडिंग और कृत्रिम बारिश कराने का अपनी तरह का पहला प्रयास भी था.
प्रोफ़ेसर मणींद्र अग्रवाल कहते हैं, “यह प्रदूषण नियंत्रण के मक़सद से किया गया क्लाउड सीडिंग का पहला घरेलू प्रयास था. हम ये भी कह सकते हैं कि यह क्लाउड सीडिंग का पहला घरेलू प्रयास है क्योंकि इससे पहले सूखा नियंत्रण के लिए क्लाउड सीडिंग की गई है लेकिन तब एक निजी कंपनी ने इसका ठेका लिया था और उपकरण देश से बाहर से मंगवाए गए थे.”
क्लाउड सीडिंग से कृत्रिम बारिश कैसे होती है?
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इमेज कैप्शन, रॉकेट दाग कर भी क्लाउड सीडिंग की जाती है
बारिश की कमी और सूखे की स्थिति से निबटने के लिए वैज्ञानिक हस्तक्षेप से क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम बारिश कराई जाती है.
क्लाउड सीडिंग के लिए सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और नमक जैसे पदार्थों के बेहद सूक्ष्म कण वातावरण में छोड़े जाते हैं.
प्रोफ़ेसर मणींद्र अग्रवाल कहते हैं कि वैज्ञानिक नज़रिए से देखा जाए तो यह एक सरल प्रक्रिया है.
प्रोफ़ेसर अग्रवाल बताते हैं, “हम नमक का बहुत महीन मिश्रण बादलों में स्प्रे करते हैं. अगर बादलों में पर्याप्त आर्द्रता होती है तो संघनन यानी कंडनसेशन होता है और अगर पर्याप्त मात्रा में हो जाए तो बारिश हो जाती है. क्लाउड सीडिंग इसी को कहते हैं.”
आईआईटी कानपुर में क्लाउड सीडिंग पर पिछले सात-आठ साल से शोध हो रहा है. प्रोफ़ेसर मणींद्र अग्रवाल के मुताबिक़ इस टीम में क़रीब दस लोग हैं.
दिल्ली में हुई क्लाउड सीडिंग के लिए फंड दिल्ली सरकार की तरफ़ से दिया गया था. इसकी पुष्टि प्रोफ़ेसर अग्रवाल ने बीबीसी से की है.
कौन से देश हैं आगे?
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इमेज कैप्शन, चीन के हेबेई प्रांत के शीज़ीयाज़ूआंग के स्थानीय मौसम विज्ञान ब्यूरो का एक कर्मचारी 15 मई, 2021 को बारिश कराने के प्रयास में क्लाउड-सीडिंग रॉकेट दागता हुआ.
चीन इस क्षेत्र में सबसे आगे है और वहां अब इसके लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीक का भी इस्तेमाल होता है. चीन में दसियों लाख वर्ग किलोमीटर इलाक़े में ऐसा किया जाता है.
वहीं संयुक्त अरब अमीरात के रेगिस्तानी इलाक़ों में भी क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम बारिश करवाई जाती है.
अमेरिका के सूखाग्रस्त राज्यों में भी कृषि संबंधित उद्देश्यों के लिए बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग की जाती है.
कई बार जंगलों की आग को बुझाने के लिए भी क्लाउड सीडिंग के ज़रिए बारिश करवाई जाती है.
सऊदी अरब ने हाल ही में भूमि को बंजर होने से बचाने के लिए क्लाउड सीडिंग शुरू की है.
चीन में सरकार के नेतृत्व में मौसम को ज़रूरत के हिसाब से बदलने का कार्यक्रम चल रहा है. चीन ने साल 2025 तक 55 लाख वर्ग किलोमीटर इलाक़े को इस कार्यक्रम के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा था. हालांकि ये लक्ष्य अभी पूरा नहीं किया जा सका है.
इसके लिए चीन बड़े पैमाने पर ड्रोन, विमानों, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और आयोडाइड जैसे रसायनों का इस्तेमाल करता है.
चीन के इस कार्यक्रम का मक़सद सूखे से राहत, कृषि उत्पादकता को बढ़ाना और जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है. इसके लिए कई सार्वजनिक और प्रमुख कार्यक्रमों के दौरान मौसम को नियंत्रित करने के लिए भी ऐसा किया जाता है.
चीन ने यूं तो 1950 के दशक से ही इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए थे. साल 2008 में बीजिंग में हुए ओलंपिक खेलों के दौरान शहर की हवा को साफ़ करने के लिए चीन ने बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया था. इसके अलावा सूखाग्रस्त उत्तरी इलाक़ों में इसके ज़रिए बर्फबारी भी करवाई गई.
हाल के सालों में चीन के ये प्रयास और तेज़ हुए हैं. साल 2025 में पिछले साल के मुक़ाबले क्लाउड सीडिंग में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
क्लाउड सीडिंग के ज़रिए बारिश कराने को लेकर आशंकाओं के बावजूद चीन ने इस क्षेत्र में भारी निवेश किया है. मौजूदा समय में मौसम में हस्तक्षेप का सबसे बड़ा और सबसे विकसित कार्यक्रम चीन का ही है.
इसराइल ने 2021 में बंद किया कार्यक्रम
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इमेज कैप्शन, इसराइल ने 1960 के दशक से ही इस तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया था
इसराइल ने भी क्लाउड सीडिंग के ज़रिए बारिश कराने और सूखे से निबटने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए हैं.
यूं तो इसराइल ने 1960 के दशक से ही इस तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया था लेकिन देश में पहला बड़ा क्लाउड सीडिंग कार्यक्रम साल 2014 में शुरू हुआ.
इसराइल ने सात साल तक यानी साल 2021 तक ये प्रयोग किया और फिर उत्साहवर्धक नतीजे न आने के बाद इसी साल इसे निलंबित कर दिया.
इन प्रयोगों के दौरान इसराइल ने सिर्फ़ विमानों से ही नहीं बल्कि ज़मीन पर बने स्टेशनों से भी हवा में रसायन छोड़े. हालांकि शोध में पता चला कि इन प्रयासों के बावजूद बारिश की मात्रा में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं हुई है.
इस कार्यक्रम पर जितना ख़र्च आ रहा था, उस हिसाब से कृत्रिम बारिश नहीं हो पा रही थी. शोध के बाद पाया गया कि ये महंगा कार्यक्रम है और फिर इसे बंद कर दिया गया.
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