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ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ईरान पर बमबारी करने की धमकी का जवाब दिया है.
ईद-उल-फ़ितर की नमाज़ के दौरान अपने भाषण में उन्होंने कहा है, कि “धमकियाँ हमें बुराई की ओर ले जाएंगी.”
ख़ामेनेई ने कहा, “हमें नहीं लगता कि कोई बाहरी ताक़त ईरान पर हमला करेगी.”
दरअसल बीते कई दिनों अमेरिका और ईरान के बीच एक बार फिर ज़ुबानी जंग छिड़ी हुई है. दोनों के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं.
रविवार को डोनाल्ड ट्रंप ने धमकी दी कि अगर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिका के साथ समझौता नहीं करता है तो उस पर बमबारी की जाएगी और अतिरिक्त टैरिफ़ लगाए जाएंगे.
ईरान ने अमेरिका से सीधी बातचीत को ख़ारिज कर दिया है.
राजधानी तेहरान में ईरान के सर्वोच्च नेता ने कहा, “वे हमारे साथ बुरा करने की धमकी देते हैं, लेकिन हमें लगता नहीं कि वो ऐसा कुछ करेंगे. हम नहीं समझते हैं कि बाहर से कोई हमारे साथ कुछ ग़लत करेगा. लेकिन अगर कोई ऐसा करता है तो उन्हें भी गंभीर झटका लगेगा.”
ख़ामेनेई ने आगे कहा, “अगर वे ईरान के भीतर ही बग़ावत करवाने की योजना बना रहे हैं तो ईरान ख़ुद उन्हें जवाब देगा. हम पहले भी ऐसी हरकतों पर जवाब दे चुके हैं.”
हाल ही में ईरान की सरकारी न्यूज़ एजेंसी इरना ने बताया था कि ईरान ने ओमान के ज़रिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पत्र का जवाब भेजा है जिसमें उन्होंने तेहरान से एक नए परमाणु समझौते पर पहुंचने का आग्रह किया था.
ईरान का कहना है कि जब तक अमेरिका अपनी ‘अधिकतम दबाव’ की नीति नहीं बदलता, तब तक बातचीत असंभव है.
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ईरान पर बमबारी करेंगे: ट्रंप
मार्च महीने की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को चिट्ठी लिखकर परमाणु कार्यक्रम पर नए सिरे से समझौते के लिए आमंत्रित किया है.
इरना के मुताबिक़, यह पत्र 12 मार्च को संयुक्त अरब अमीरात के एक दूत के ज़रिए ईरान को भेजा गया था.
ट्रंप ने कहा था कि अगर ईरान वार्ता में शामिल नहीं होता है तो अमेरिका उसको परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए कुछ करेगा.
ट्रंप के दावे के तुरंत बाद ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की जेद्दा में बैठक से इतर कहा था, “अमेरिका के साथ हम तब तक कोई वार्ता नहीं करेंगे जब तक वह अधिकतम दबाव की नीति को जारी रखता है.”
हालांकि, बीते हफ़्ते ईरान ने वॉशिंगटन से सीधी बातचीत से इनकार कर दिया था.
अमेरिकी न्यूज़ चैनल एनबीसी न्यूज़ को टेलीफ़ोन पर दिए इंटरव्यू में ट्रंप ने ईरान के बारे में कहा, “अगर वे समझौता नहीं करते हैं, तो बमबारी होगी. यह ऐसी बमबारी होगी जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी होगी.”
ट्रंप ने बताया कि फिलहाल अमेरिकी और ईरानी अधिकारी बातचीत कर रहे हैं.
अमेरिका से सीधी बातचीत नहीं: ईरान
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ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने रविवार को कहा कि ईरान अपने तेज़ी से बढ़ते परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिका के साथ सीधी बातचीत को सिरे से ख़ारिज करता है.
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक़, यह अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के देश के सर्वोच्च नेता को भेजे गए पत्र पर तेहरान की पहली प्रतिक्रिया है.
राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने कहा कि ओमान के ज़रिए ईरान ने अमेरिका के साथ अप्रत्यक्ष बातचीत की संभावना को खुला छोड़ दिया है.
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 2018 में ईरान के साथ साल 2015 में हुए परमाणु समझौते को रद्द कर दिया था. इसके बाद उन्होंने ईरान पर अपनी “अधिकतम दबाव” रणनीति के तहत प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया.
2015 के समझौते के अनुसार, ईरान अपनी संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को आने की अनुमति दी थी. इसके बदले में ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को ख़त्म किया गया था.
ट्रंप ने इस समझौते को ख़त्म करते हुए कहा था कि वह ईरान से नया समझौता करना चाहते हैं जो उसके परमाणु कार्यक्रम और बैलिस्टिक मिसाइल के विकास पर अनिश्चितकालीन रोक लगाएगा.
इसके बाद ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत में कोई ख़ास प्रगति नहीं देखी गई है. लेकिन 2018 की तुलना में अब हालात काफ़ी बदल चुके हैं.
ग़ज़ा पर हमले के बाद का माहौल
ग़ज़ा में इसराइल और हमास के बीच जंग हुई. इस दौरान इसराइल के निशाने पर ईरान रहा, जिसने ख़ुद को ‘प्रतिरोध की धुरी’ बताया.
वहीं, अमेरिका यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों को निशाना बनाकर हवाई हमले कर रहे रहा है. इसके अलावा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाकर सैन्य कार्रवाई का ख़तरा अभी भी बना हुआ है.
अपने बयान में राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने कहा, “हम बातचीत से नहीं बचते हैं. यह वादा ख़िलाफ़ी है जिसकी वजह से अब तक हमारे लिए समस्याएं पैदा हुई हैं. उन्हें (अमेरिका) यह साबित करना होगा कि वे भरोसा क़ायम कर सकते हैं.”
उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई का हवाला देते हुए कहा कि सर्वोच्च नेता ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि अप्रत्यक्ष वार्ता अभी भी जारी रह सकती है.
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक़, अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने पेज़ेश्कियान का जवाब देते हुए कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट कहा है: संयुक्त राज्य अमेरिका ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं दे सकता है.”
इसमें आगे कहा गया, “राष्ट्रपति ने ईरान के साथ समझौते पर चर्चा करने की इच्छा व्यक्त की है. अगर ईरानी शासन समझौता नहीं चाहता है, तो राष्ट्रपति स्पष्ट हैं. वह दूसरों विकल्पों की तरफ़ देखेंगे, जो ईरान के लिए बहुत बुरा होगा.”
ट्रंप का ईरान पर ‘अधिकतम दबाव’ अभियान
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व्हाइट हाउस में दूसरी बार कार्यभार ग्रहण करने के एक महीने के अंदर, पांच फ़रवरी को ट्रंप ने ईरान पर ‘अधिकतम दबाव’ बनाने से जुड़े के एक आदेश पर हस्ताक्षर किया था.
टाइम्स ऑफ़ इसराइल के अनुसार, ट्रंप ने न्यूयॉर्क पोस्ट से कहा था, “परमाणु अप्रसार को लेकर ईरान के साथ समझौता करना पसंद करूंगा….वे मरना नहीं चाहते…कोई भी मरना नहीं चाहता. अगर हम समझौता कर लेते हैं, इसराइल उन पर बमबारी नहीं करेगा.”
हालांकि, खामेनेई और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने पहले से ही अमेरिका के साथ किसी तरह के समझौते से इनकार करते आए हैं.
फ़रवरी 2025 में आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने कहा था कि अमेरिकी सरकार के साथ वार्ता ‘समझदारी भरा और सम्मानजक नहीं’ है.
अतीत में ट्रंप की धमकी पर ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा था कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम किसी सैन्य हमले से नष्ट नहीं किया जा सकता है.
ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी इरना में छपी आठ मार्च की रिपोर्ट के मुताबिक़, अब्बास अराग़ची ने कहा, “ईरान का परमाणु कार्यक्रम किसी सैन्य हमले से नष्ट नहीं किया जा सकता. इस टेक्नोलॉजी को हमने हासिल कर लिया है और दिमाग में मौजूद टेक्नोलॉजी को बम से नष्ट नहीं किया जा सकता.”
अराग़ची ने ईरान पर इसराइल के हमले को लेकर चेतावनी देते हुए कहा था कि यह पूरे मध्य-पूर्व को व्यापक संघर्ष की ओर ले जाएगा.
ईरान कई मौक़ों पर कह चुका है कि अधिकतम दबाव डालना क़ानून का उल्लंघन है और इंसानियत के ख़िलाफ़ अपराध है.
अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने अब तक कितने पत्र लिखे?
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ईरान और अमेरिका के बीच अतीत में भी गुप्त वार्ताएं हुई हैं और उनके बीच गोपनीय पत्राचार भी हुए हैं.
लेकिन बीते डेढ़ दशक में ईरानी और अमेरिकी नेताओं के बीच कुछ पत्राचार सार्वजनिक हुए हैं.
मई 2009 में बराक ओबामा ने आयतुल्लाह ख़ामेनेई को पहली चिट्ठी लिखी थी, इसका ज़िक्र 10 जून 2009 को जुमे की नमाज़ के दौरान ख़ामेनेई ने ख़ुद किया था. ईरान के सर्वोच्च नेता ने ओबामा को जवाब दिया था.
इसके बाद सितंबर 2009 में ख़ामेनेई को बराक ओबामा का दूसरा पत्र मिला.
टैबनक वेबसाइट के अनुसार, पत्र का विवरण स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसके माध्यम से अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान के साथ बातचीत का रास्ता तलाश रहे थे. जबकि वॉशिंगटन टाइम्स ने लिखा कि ओबामा दोनों देशों के बीच “बेहतर सहयोग” की मांग कर रहे थे.
ओबामा ने तीसरा पत्र 2011 में लिखा. संसद में तेहरान के प्रतिनिधि अली मोताहारी ने जनवरी 2011 के अंत में इस पत्र के बारे में बताया कि इसका पहला हिस्सा धमकी भरा था, जबकि दूसरा हिस्सा दोस्ताना संबंधों के बारे में था.
इसके तीन साल बाद अक्तूबर 2014 में ओबामा ने चौथा पत्र लिखा. वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, बराक ओबामा ने ईरान और अमेरिका के बीच “साझा हितों” का ज़िक्र किया और तथाकथित इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के ख़िलाफ़ अमेरिकी हमलों के बारे में टिप्पणी की थी.
इससे पहले फ़रवरी 2014 में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बराक ओबामा को पत्र लिखा, जिसमें कोई वादा नहीं किया गया था.
ट्रंप ने ख़ामेनेई को 13 जून 2019 को पत्र लिखा था. इस पत्र को देने के लिए जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ख़ुद ईरान गए थे. इस बैठक में भी ख़ामेनेई ने अमेरिका से वार्ता करने से इनकार किया था.
अब इस साल 2025 में ट्रंप का पत्र ऐसे समय में आया है जब इसराइल और अमेरिका दोनों ने चेतावनी दी है कि वे ईरान को कभी भी परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देंगे. इससे सैन्य टकराव की आशंका पैदा हो गई है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित