सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वकीलों का यह कर्तव्य है कि वे याचिकाएं दायर करते समय सतर्क और सावधान रहें और अगर वे याचिकाओं में केवल अपना नाम देंगे तो इससे कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि ऐसे वकील पेशेवर आचरण के उच्च मानक बनाए रखने के लिए बाध्य हैं।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वकीलों का यह कर्तव्य है कि वे याचिकाएं दायर करते समय सतर्क और सावधान रहें और अगर वे याचिकाओं में केवल अपना नाम देंगे तो इससे कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
पीठ ने कही ये बात
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि ऐसे वकील पेशेवर आचरण के उच्च मानक बनाए रखने के लिए बाध्य हैं एवं अगर वे किसी और द्वारा तैयार याचिकाओं, अपीलों या जवाबी हलफनामों पर सिर्फ अपना नाम देते हैं तो एडवोकेट आन रिकार्ड्स (एओआर) की स्थापना का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
पीठ ने यह टिप्पणी एओआर के लिए आचार संहिता और वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम की प्रक्रिया के मामले में दी। कोर्ट के समक्ष मामले में अदालत ने पाया कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता एओआर ने अनेक क्षमा याचिकाओं में तथ्यों को दबाया है।
एओआर वह वकील होता है जो सुप्रीम कोर्ट में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिकृत होता है। पीठ ने कहा कि सिर्फ एओआर के जरिये ही याचिकाकर्ता इस अदालत से न्याय की मांग कर सकता है जब तक कि वह व्यक्तिगत रूप से पेश न होना चाहता हो। इसलिए उसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।
वरिष्ठ पदनाम देने की प्रक्रिया में आत्मनिरीक्षण की जरूरत
पीठ ने कहा कि वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने की प्रक्रिया के मामले में गंभीर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है। साथ ही इस बात का फैसला करने के लिए मामला प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को संदर्भित कर दिया कि क्या इस पर बड़ी पीठ को सुनवाई करनी चाहिए।
प्रक्रिया पर आपत्ति व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा कि इस बात में संदेह है कि किसी उम्मीदवार का साक्षात्कार लेने से वास्तव में उसके व्यक्तित्व या उपयुक्तता का परीक्षण किया जा सकता है।
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