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गोवा में हुए नाइट क्लब हादसे के सिलसिले में गोवा पुलिस ने अजय गुप्ता नाम के एक अभियुक्त को दिल्ली से हिरासत में ले लिया है.
अजय गुप्ता के ख़िलाफ़ लुक आउट नोटिस जारी हुआ था.
पुलिस ने बताया कि, “जब उनके (अजय गुप्ता के) घर पर छापा मारा गया तो वो फ़रार होने की कोशिश में थे.”
शनिवार, 6 दिसंबर की रात गोवा के ‘बर्च बाय रोमियो लेन’ नाइट क्लब में भीषण आग लगने से कम से कम 25 लोगों की जान चली गई थी. पुलिस को संदेह है कि आग सिलेंडर विस्फोट के कारण लगी.
उत्तरी गोवा के अर्पोरा इलाक़े में स्थित इस नाइट क्लब में मारे गए लोगों में कुछ पर्यटक भी शामिल हैं. माना जा रहा है कि मृतकों में से अधिकांश इसी क्लब के कर्मचारी थे.
इसके पहले गोवा पुलिस ने ही दावा किया था कि इस हादसे के मुख्य अभियुक्त और इस नाइट क्लब के मालिक सौरभ लूथरा और गौरव लूथरा के ख़िलाफ़ इंटरपोल ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया गया है.
गोवा पुलिस ने एक्स पर पोस्ट किया, “ये नोटिस अभियुक्तों तक पहुंचने में मदद करेगा साथ ही उन्हें वो जहां हैं वहां से कहीं और जाने से रोका जा सकेगा.”
सोमवार को गोवा पुलिस की उप महानिरीक्षक (डीआईजी) वर्षा शर्मा ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा था, “उनके फ़ुकेट (थाईलैंड) में होने की जानकारी मिली थी.”
वर्षा शर्मा ने कहा था, “ये एक दर्दनाक हादसा था. घटना के ज़िम्मेदार लोगों को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया. हमने क्लब के मालिकों के ख़िलाफ़ भी फ़ौरन एक्शन लेना शुरू कर दिया. हमें जानकारी मिली है कि वो फ़ुकेट में हैं और हम सीबीआई और इंटरपोल की मदद से उन तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.”
फ़ुकेट द्वीप थाईलैंड में है जहां बड़ी संख्या में टूरिस्ट जाते हैं.
सवाल ये उठता है कि अगर लूथरा बंधु थाईलैंड में है तो उनको वहां से भारत लाना कितना चुनौतीपूर्ण है?और क्या भारत और थाईलैंड के बीच प्रत्यर्पण संधि है?
भारत और थाईलैंड के बीच प्रत्यर्पण संधि
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गृह मंत्रालय की जानकारी के मुताबिक़ भारत और थाईलैंड के बीच साल 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बैंकॉक यात्रा के दौरान प्रत्यर्पण संधि हुई थी.
इसके मुताबिक़ दोनों देश एक-दूसरे को क़ानूनी जानकारियां और दूसरा ज़रूरी सहयोग मुहैया कराएंगे.
ताक़ि फ़रार अपराधियों के प्रत्यर्पण में एक-दूसरे की मदद की जा सके.
संधि के मुताबिक़ इसमें आर्थिक अपराध से संबंधित अभियुक्तों का भी प्रत्यर्पण शामिल है.
विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ भारत की कुल 48 देशों से प्रत्यर्पण संधि हैं जिसमें बांग्लादेश, भूटान, नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के अलावा इसराइल, सऊदी अरब, रूस, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देश भी शामिल हैं.
क्या प्रत्यर्पण संधि होना ही काफ़ी है?
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प्रत्यर्पण एक क़ानूनी प्रक्रिया है, जिसमें राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय समझौता ज़रूरी होता है.
आसान शब्दों में कहें तो प्रत्यर्पण के तहत किसी अपराधी को उस देश को वापस लौटाया जाता है जहां से वो अपराध करके भागा होता है.
दो देशों के बीच ये तभी हो सकता है जब उनके बीच इस संबंध में द्विपक्षीय समझौता हो.
भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार जिन मामलों की जांच चल रही है या जो मामले विचाराधीन हैं, उनमें प्रत्यर्पण की मांग की जा सकती है. जिन मामलों में सज़ा मिल चुकी है उनमें भी अपराधियों के प्रत्यर्पण की मांग की जा सकती है.
जिन मामलों में जांच चल रही है उनमें क़ानूनी जांच एजेंसियों को इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि विदेशी न्यायालयों में आरोप सिद्ध करने के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत हों.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में फ़ैकल्टी ऑफ़ लॉ के प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के जानकार डॉ. अजेंद्र श्रीवास्तव ने बीबीसी संवाददाता सौरभ यादव से बात करते हुए बताया था, “ऐसा नहीं है कि यहां की पुलिस ने दूसरे देश की पुलिस से कहा कि आप इस व्यक्ति को हमें सौंप दीजिए और उन्होंने सौंप दिया. यह एक क़ानूनी प्रक्रिया है, जिसमें दोनों देशों के कोर्ट शामिल होते हैं. प्रत्यर्पण के लिए दोनों देशों के बीच संधि होती है और एक क़ानून होता है, जिसके तहत प्रत्यर्पण किया जाता है.”
ये सवाल मन में आ सकता है कि जब अपराध हुआ है, मुकदमा दर्ज है और जांच एजेंसियों के पास सबूत भी हैं तो भी अभियुक्तों का प्रत्यर्पण क्यों नहीं हो पाता है या इतना लंबा समय क्यों लगता है?
इस पर डॉ. अजेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, “जिस व्यक्ति के प्रत्यर्पण की मांग कर रहे हैं. उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ देश में कोई केस होना चाहिए. तब आप उस केस को दूसरे देश के सामने रखते हैं. उस देश का भी अपना एक क़ानून होता है, जिसमें यह बताया गया होता है कि जब कोई देश किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण की मांग करता है तो हम उस व्यक्ति को सौंपेंगे या नहीं.”
प्रोफ़ेसर अजेंद्र कहते हैं, “उस देश के कोर्ट के सामने आपको मामले को रखना पड़ता है और कहना पड़ता है कि संबंधित व्यक्ति ने हमारे देश में प्रथम दृष्टया अपराध किया है. आपको उस देश के कोर्ट में अपराध को साबित करना होता है. यह सुनिश्चित करना होता है कि उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ मुक़दमा क़ानूनी प्रक्रिया के तहत चलाया जाएगा. जब उस देश का कोर्ट संतुष्ट हो जाएगा कि वास्तव में अपराध किया गया है तो ही वह देश प्रत्यर्पण की अनुमति देगा.”
इन बड़े मामलों में प्रत्यर्पण करा चुका है भारत
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साल 2008 में मुंबई में हुए चरमपंथी हमले के अभियुक्त में से एक तहव्वुर राना का भारत ने इस साल अप्रैल में अमेरिका से प्रत्यर्पित कराया है.
अमेरिका में तहव्वुर राना को वर्ष 2013 में अपने दोस्त डेविड कोलमैन हेडली के साथ मुंबई और डेनमार्क में हमले की योजना बनाने के आरोप में दोषी पाया गया था. इन मामलों में तहव्वुर हुसैन राना को अमेरिकी अदालत ने 14 साल जेल की सज़ा सुनाई थी.
अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर ख़रीद मामले में कथित तौर पर बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले क्रिश्चियन मिशेल को साल 2018 में दुबई से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया था.
अगस्ता वेस्टलैंड से 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टर ख़रीदने का सौदा कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए-1 सरकार के कार्यकाल में हुआ था.
साल 2015 में इंटरपोल के रेड कॉर्नर नोटिस के बाद इंडोनेशिया पुलिस ने छोटा राजन को ऑस्ट्रेलिया से आने के बाद गिरफ़्तार किया था. 6 नवंबर 2015 को छोटा राजन को भारत लाया गया था.
मुंबई में साल 1993 में हुए बम ब्लास्ट के दोषी अबू सलेम को साल 2005 में पुर्तगाल से भारत प्रत्यर्पित कराया गया था.
अबू सलेम के भारत प्रत्यर्पण के लिए भारत की तरफ से बीजेपी के नेता देश के तत्कालीन गृह मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी ने लिखित तौर पर पुर्तगाल सरकार और कोर्ट को ये आश्वासन दिया था कि वो सलेम को 25 साल से अधिक जेल में नहीं रखेंगे और मौत की सज़ा नहीं देंगे.
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)