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वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की सरकार पर दबाव बढ़ाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बताया कि बुधवार सुबह अमेरिकी सेना ने वेनेज़ुएला के तट के पास एक तेल टैंकर को ज़ब्त कर लिया है.
ट्रंप ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से कहा कि यह टैंकर “अब तक ज़ब्त किया गया सबसे बड़ा टैंकर” है.
मादुरो की सरकार ने इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना करते हुए इसे “खुली चोरी और समुद्री डकैती” क़रार दिया है.
माना जा रहा है कि ज़ब्त किया गया जहाज़ उस तथाकथित “घोस्ट फ़्लीट” का हिस्सा है, जिसका इस्तेमाल वेनेज़ुएला अमेरिकी तेल प्रतिबंधों से बचने के लिए करता है.
सवाल यह है कि इन जहाज़ों के बारे में हम क्या जानते हैं और ये कैसे काम करते हैं?
प्रतिबंधों से बचने का तरीक़ा?
अमेरिकी ऊर्जा विभाग के मुताबिक़, ट्रंप ने 2019 में बतौर राष्ट्रपति अपने पहले कार्यकाल में वेनेज़ुएला के तेल उद्योग पर प्रतिबंध लगाए थे. इसके बाद वेनेज़ुएला का कच्चे तेल का निर्यात आधे से ज़्यादा गिर गया.
जनवरी 2019 में जहां यह तेल निर्यात रोज़ाना क़रीब 11 लाख बैरल था, वहीं साल के अंत तक घटकर लगभग 4.95 लाख बैरल रह गया.
छह साल बाद भी ये प्रतिबंध लागू हैं. लेकिन रॉयटर्स न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, वेनेज़ुएला का तेल निर्यात फिर बढ़कर नवंबर तक क़रीब 9.2 लाख बैरल रोज़ाना हो गया है.
हालांकि यह 1998 में देश के सबसे अधिक, यानी रोज़ाना 30 लाख बैरल से काफ़ी कम है. लेकिन इस आंशिक सुधार से पता चलता है कि वेनेज़ुएला पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंध उसकी उम्मीद के मुताबिक़ असर नहीं कर रहे हैं.
माना जा रहा है कि प्रतिबंधों के बावजूद मादुरो की सरकार ने वेनेज़ुएला का तेल बेचने के नए तरीके खोज लिए हैं.
इसमें सबसे अहम भूमिका “घोस्ट फ़्लीट” की रही है. यह तेल टैंकरों का ऐसा समूह है, जो अपने काम को छिपाने के लिए कई तरह की रणनीतियों का इस्तेमाल करता है.
घोस्ट फ़्लीट का चलन बढ़ रहा है और इसका इस्तेमाल सिर्फ वेनेज़ुएला ही नहीं, बल्कि पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहे दो अन्य तेल उत्पादक देश, रूस और ईरान, भी कर रहे हैं.
फ़ाइनेंस इंटेलिजेंस फ़र्म एसएंडपी ग्लोबल का अनुमान है कि दुनिया के हर पांच में से एक तेल टैंकर का इस्तेमाल प्रतिबंधित देशों से तेल की तस्करी के लिए किया जाता है.
इनमें से 10 प्रतिशत सिर्फ वेनेज़ुएला का तेल ले जाते हैं, 20 प्रतिशत ईरान का तेल, 50 प्रतिशत पूरी तरह रूस के तेल के लिए समर्पित हैं. बाकी 20 प्रतिशत किसी एक देश से नहीं जुड़े होते और कई देशों का तेल ले जा सकते हैं.
तेल पर प्रतिबंध लगाने का मकसद ही यह है कि देश या कंपनियां प्रतिबंधित देशों से कच्चा तेल न खरीदें और न ही उसका व्यापार करें.
अगर कोई कंपनी या देश वेनेज़ुएला जैसे प्रतिबंधित देश से तेल खरीदते पकड़े जाते हैं, तो उन पर भी अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता है.
प्रतिबंधित देश अपना तेल भारी छूट पर बेचते हैं, जिससे कंपनियां या देश यह जोखिम उठाने को तैयार हो जाते हैं. इसके बाद वे तेल की असली पहचान छिपाने के लिए तरह-तरह की चालें चलते हैं.
सबसे आम तरीका यह है कि ये जहाज़ बार-बार अपना नाम या झंडा बदलते हैं, कभी-कभी एक महीने में कई बार. उदाहरण के लिए, इस बुधवार ज़ब्त किया गया टैंकर “द स्किपर” कहलाता है.
‘ज़ॉम्बी शिप्स’
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बीबीसी के न्यूज़ पार्टनर सीबीएस न्यूज़ के अनुसार, इस जहाज़ को 2022 से अमेरिकी ट्रेज़री ने प्रतिबंधित किया हुआ है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक तेल तस्करी नेटवर्क का हिस्सा माना जाता है, जो ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड और लेबनानी मिलिशिया हिज़्बुल्लाह को फंड करता है.
उस समय इस टैंकर का नाम अदीसा था. (इससे पहले इसका नाम द टोक्यो था.) यह उन जहाज़ों में से एक था जिनका संबंध रूसी तेल कारोबारी विक्टर आर्टेमोव से है. आर्टेमोव पर भी अमेरिकी प्रतिबंध है.
द स्किपर 20 साल पुराना जहाज़ है.
बड़ी शिपिंग कंपनियां आमतौर पर 15 साल बाद जहाज़ों को बेच देती हैं और 25 साल बाद उन्हें कबाड़ कर दिया जाता है.
इन जहाज़ों की एक और चाल कबाड़ हो चुके जहाज़ों की पहचान चुराना है.
वे अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) द्वारा दिए गए यूनिक रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तेमाल करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे अपराधी किसी मृत व्यक्ति की पहचान का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे जहाज़ों को “ज़ॉम्बी शिप्स” कहा जाता है.
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पिछले साल अप्रैल में वरदा नाम का एक जहाज़ वेनेज़ुएला से दो महीने की यात्रा के बाद मलेशिया के जल क्षेत्र में पहुंचा.
इस पर शक इसलिए हुआ क्योंकि यह 32 साल पुराना जहाज़ था और उस पर कोमोरोस का झंडा लगा हुआ था. यह पूर्वी अफ्रीका का एक द्वीपीय देश है, जो उन जहाज़ों के बीच लोकप्रिय है जो पकड़े जाने से बचना चाहते हैं.
ब्लूमबर्ग की जांच के अनुसार यह एक ज़ॉम्बी शिप था, क्योंकि असली वरदा को 2017 में बांग्लादेश में कबाड़ कर दिया गया था.
रिपोर्ट में सैटेलाइट तस्वीरों की तुलना पुरानी तस्वीरों से करके चार ज़ॉम्बी शिप्स का पता लगाया गया, जो वेनेज़ुएला का कच्चा तेल ले जा रहे थे.
दूसरी आम चाल में तेल के असली स्रोत को छिपाना शामिल है. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में तेल को दूसरे, क़ानूनी रूप से ठीक, टैंकरों में ट्रांसफर कर दिया जाता है, जिनके झंडे अलग होते हैं.
इसके बाद ये टैंकर तेल को मंज़िल तक पहुंचा देते हैं और ऐसा दर्शाते हैं कि यह किसी ऐसे देश से आया है जिस पर प्रतिबंध नहीं है.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में जब प्रतिबंध कड़े किए गए थे, तब वेनेज़ुएला का तेल इसी तरीके से चीन भेजा गया था.
एक और आम चाल है ऑटोमैटिक आइडेंटिफ़िकेशन सिस्टम (एआईएस) को बंद कर देना. यह सिस्टम जहाज़ का नाम, झंडा, लोकेशन, स्पीड और रूट जैसी जानकारी भेजता है. इसे बंद करके जहाज़ अपनी पहचान और लोकेशन छिपा सकते हैं.
मैरीटाइम रिस्क कंपनी वैनगार्ड टेक का कहना है कि उसे लगता है कि “द स्किपर” लंबे समय तक अपनी लोकेशन के साथ “छल” कर रहा था, यानी गलत सिग्नल भेज रहा था ताकि लगे कि वह किसी और जगह पर है.
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अक्तूबर में एंटी-करप्शन एनजीओ ट्रांसपेरेंसिया वेनेज़ुएला की रिपोर्ट के अनुसार, वेनेज़ुएला की सरकारी तेल कंपनी पीडीवीएसए के बंदरगाहों पर 71 विदेशी टैंकर थे. इनमें से 15 पर प्रतिबंध हैं और 9 घोस्ट फ़्लीट से जुड़े हैं.
रिपोर्ट में पाया गया कि 24 टैंकर अपनी लोकेशन सिग्नल बंद करके गुप्त रूप से काम कर रहे थे.
ट्रांसपेरेंसिया वेनेज़ुएला के अनुसार, इसने पश्चिमी वेनेज़ुएला के जल क्षेत्र में छह जहाज़-से-जहाज़ तेल ट्रांसफर के मामलों का पता लगाया.
इनमें अधिकतर जहाज़ों ने उन देशों के झंडे लगाए हुए थे, जिन्हें प्रतिबंधों को लेकर रवैया ढीला रखने वाला माना जाता है, जैसे पनामा, कोमोरोस और माल्टा.
कई जहाज़ डॉक किए बिना 20 दिन से ज़्यादा बंदरगाहों के पास रहे, जबकि अमेरिकी अनुमति वाले शेवरॉन के जहाज़ छह दिन में लोड करके निकल जाते हैं.
ट्रांसपेरेंसिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “तेल टर्मिनल तक सीधे न पहुंचकर बंदरगाहों के पास लंबे समय तक रुकना इन जहाज़ों के ऑपरेशन पर गंभीर सवाल उठाता है.”
बुधवार को जहाज़ ज़ब्त करने की कार्रवाई दुनिया के सबसे बड़े एयरक्राफ्ट कैरियर जेराल्ड फोर्ड से हुई, जो अब कैरिबियन जल क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य तैनाती का हिस्सा है. इससे मादुरो की घोस्ट फ़्लीट पर निर्भरता काफ़ी कम हो सकती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.