केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. हालांकि अभी इस बारे में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कोई घोषणा नहीं की है.
रायपुर में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने साफ़ किया और कहा, “पार्टी अभी इसका मूल्यांकन कर रही है. अगर पार्टी और एनडीए गठबंधन को इससे फ़ायदा होगा तो मैं ये चुनाव ज़रूर लड़ूंगा.”
चिराग पासवान के इस बयान के बाद से बिहार में नए राजनीतिक समीकरण साधे जाने को लेकर चर्चा तेज़ है.
इसे बिहार के तीन दशक से ज्यादा के ओबीसी नेतृत्व ( बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी) को दलित नेतृत्व की तरफ़ शिफ्ट करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है.
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चिराग की एंट्री: ओबीसी से दलित नेतृत्व तक
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कुछ दिनों पहले लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के बिहार प्रभारी और सांसद अरुण भारती ने एक्स पर एक पोस्ट किया था.
इस पोस्ट में लिखा था, “चिराग जी को अब बिहार में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. कार्यकर्ताओं में ये भावना है कि वो आरक्षित सीट से नहीं बल्कि सामान्य सीट से लड़ें.”
इससे पहले प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में भी चिराग पासवान के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की मांग का प्रस्ताव पारित किया था.
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यहां ये सवाल अहम हो जाता है कि चुनाव लड़ने की इस मांग के मायने क्या हैं?
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा कहते हैं, “बिहार का नेतृत्व सवर्णों और ओबीसी के हाथ में रहा है लेकिन अब आरएसएस और बीजेपी इसे दलित नेतृत्व की तरफ़ शिफ़्ट करना चाहती है, जिसकी आबादी बिहार में तकरीबन 19 फ़ीसदी है. एनडीए में तेजस्वी के बरक्स कोई युवा नेता नहीं है. ऐसे में बीजेपी के पास बिहार में चिराग पासवान एक अच्छा ऑप्शन हैं. चिराग पासवान का अतीत देखें तो घर, पार्टी और बंगला छिनने के बावजूद वो मोदी के हनुमान बने रहे.”
वहीं इसके अलावा एक तथ्य ये भी है कि चिराग पासवान की बिहार की सत्ता में रुचि रही है.
रामविलास पासवान के बेहद करीबी रहे और वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं, “चिराग ने पिता के जीवित रहते हुए बिहार फ़र्स्ट, बिहारी फर्स्ट का नारा दिया था. उन्हें बिहार प्रिय है और वो सामान्य सीट से चुनाव लड़कर बताना चाहते हैं कि वो सबके हैं. चिराग की पार्टी का संगठनात्मक ढांचा बहुत इंक्लूसिव (समावेशी) है. संसदीय बोर्ड में हुलास पांडेय, प्रदेश में राजू तिवारी, पार्टी के कोषाध्यक्ष शमीम हवा मुस्लिम हैं. यानी वो सिर्फ दलितों को ही नहीं बल्कि अपनी राजनीति के घेरे में अन्य समूहों को लाना चाहते हैं.”
क्या चिराग पासवान चुनाव लड़ेंगे?
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चिराग पासवान के चुनाव लड़ने को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.
आरजेडी सांसद मीसा भारती ने उनके चुनाव लड़ने को लेकर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “क्या दिक्कत है? सांसदी से इस्तीफ़ा दें और चुनाव लड़ें. कार्यकर्ता के साथ-साथ विपक्ष की यही पुकार है. लेकिन नीतीश कुमार और बीजेपी को इस बारे में सोचना पड़ेगा.”
वहीं जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा ने बीबीसी से कहा, “वो अगर चुनाव लड़ेंगे तो एनडीए मज़बूत होगा. जहां तक मुख्यमंत्री पद की बात है तो चिराग कह चुके हैं कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा और इस पद पर कोई वैकेंसी नहीं है.”
चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस जो अब महागठबंधन के साथ जाएंगे, उन्होंने बीबीसी से कहा, “ये किसी का भी अपना अधिकार है. इस पर मेरी टिप्पणी का कोई मतलब नहीं.”
चिराग के चुनाव लड़ने को लेकर विश्लेषकों की राय भी बंटी हुई है. पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं, “चिराग पासवान चुनाव लड़ेंगे. वो वैशाली, नवादा या हाजीपुर से चुनाव लड़ सकते हैं. पार्टी इस पर विचार कर रही है.”
लेकिन पत्रकार अरविंद शर्मा कहते हैं, “ये चिराग की खुद को चर्चा में रखने और सीटों के लिए बारगेन की कोशिश है. वो चुनाव नहीं लड़ेंगे. इलेक्शन और नीतीश के जाने के बाद अगर एनडीए उन्हें बिहार की सत्ता में मुख्यमंत्री के तौर पर लाएगा तो उसके और भी बहुत तरीके हैं.”
रामविलास की राह से अलग चिराग
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बिहार में समाजवादी राजनीति के तीन चेहरे रहे हैं लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान.
लालू और नीतीश दोनों ही बिहार के मुख्यमंत्री रहे लेकिन रामविलास केंद्र की राजनीति में ही रहे, जबकि फ़रवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में 29 सीट जीतकर वो बिहार में किंगमेकर की भूमिका में थे.
रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी के दामाद अनिल साधु बिहार आरजेडी में दलित प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं.
वह बीबीसी से कहते हैं, “फरवरी 2005 के नतीज़ों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और नीतीश कुमार दोनों ने ही रामविलास को सीएम बनने को कहा था, लेकिन उन्हें केंद्र की राजनीति ही अच्छी लगी. लेकिन चिराग को बिहार में राजनीति करनी है और बिहार की राजनीति का मतलब ही मुख्यमंत्री बनने की कोशिश है.”
राजनीति विश्लेषक बताते हैं कि बीजेपी की तरफ़ से चिराग पासवान पर दबाव रहा है कि वो अपनी पार्टी लोजपा का विलय कर लें. लेकिन चिराग पासवान इसके लिए तैयार नहीं हुए हैं.
ये सवाल पूछे जाने पर बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा इससे इनकार करते हैं.
वो कहते हैं, “उनका स्वतंत्र अस्तित्व है जिसका बीजेपी बहुत सम्मान करती है. अगर वो चुनाव लड़ेंगे तो लोजपा के साथ-साथ बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बढ़ेगा और गठबंधन को फ़ायदा होगा.”
वरिष्ठ पत्रकार फैज़ान अहमद कहते हैं, “रामविलास पासवान के वक्त पार्टी इससे कहीं ज्यादा मज़बूत थी तब भी वो मुख्यमंत्री नहीं बने. चिराग की अभी दलितों के भीतर वो स्वीकार्यता नहीं है जो रामविलास पासवान की थी या मायावती की रही है. फिर बिहार की झारखंड या नार्थ ईस्ट जैसे छोटे राज्यों से तुलना नहीं कर सकते जहां निर्दलीय भी मुख्यमंत्री बन जाते हैं.”
नीतीश के साथ खट्टे-मीठे रिश्ते
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साल 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से बाहर जाकर चुनाव लड़ा था. उस वक्त उन्होंने 137 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से सिर्फ मटिहानी सीट पर राजकुमार सिंह जीते थे. चुनाव जीतने के बाद राजकुमार सिंह ने भी जेडीयू का दामन थाम लिया था.
साल 2020 के चुनाव में आरजेडी और बीजेपी के बाद जेडीयू, तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी. जेडीयू को महज़ 43 सीटें मिली थी. अखबार दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, लोजपा के 35 प्रत्याशी जेडीयू उम्मीदवारों के वोट में सेंध लगाने वाले साबित हुए और पार्टी को 35 सीट का नुकसान उठाना पड़ा.
हालांकि अब जेडीयू के साथ लोजपा ने अपने रिश्तों को सामान्य बनाया है. हाल ही में नीतीश सरकार ने लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव धनंजय मृणाल पासवान को अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया है. धनंजय मृणाल पासवान, चिराग पासवान के जीजा लगते हैं. वो राजकुमारी देवी की बेटी ऊषा के पति हैं.
अरविंद शर्मा कहते हैं, “रामविलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था. चिराग उनसे ज्यादा शार्प हैं. वो रिश्तों को सामान्य करना जानते हैं.”
लेकिन खुद को नीतीश के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे चिराग को बिहार की दलित पॉलिटिक्स के भीतर कैसे देखा जा सकता है?
इस सवाल पर सामाजिक कार्यकर्ता और दलितों के साथ हो रही हिंसा पर लंबे समय से काम कर रहीं प्रतिमा पासवान कहती हैं, “चिराग पासवान के चुनाव जीतने की वजह सीट का समीकरण है. थोड़ी सी भी राजनीतिक चेतना के लोग उन्हें दलितों का नेता नहीं मानते क्योंकि दलितों के मुद्दे से उनका सरोकार नहीं है. उनकी पूरी पॉलिटिक्स में बॉलीवुड की चकाचौंध और बॉडी लैंग्वेज है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित