झांग जुंजी 17 साल के थे जब उन्होंने चीनी सरकार के बनाए नियमों को लेकर अपनी यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने फैसला किया.
इसके कुछ दिन बाद ही उन्हें एक मनोचिकित्सालय में भर्ती कराया गया था और उनका स्किज़ोफ़्रेनिया (एक प्रकार की दिमागी बीमारी) के लिए इलाज किया गया.
जुंजी उन दर्जनों लोगों में से हैं, जिन्हें प्रदर्शन करने या प्रशासन के ख़िलाफ़ शिकायत करने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बीबीसी ने इनकी पहचान की है.
जिन लोगों से हमने बात की, उनमें से अधिकांश को एंटी-साइकोटिक दवाएं दी गई थीं, और कुछ मामलों में तो बिना उनकी सहमति लिए बिजली के झटके तक दिए गए थे.
हालांकि दशकों से ऐसी रिपोर्टें रही हैं कि असहमति रखने वाले नागरिकों को बिना अदालत में पेश किए हिरासत में रखने के लिए चीन में अस्पताल में भर्ती करने का तरीक़ा इस्तेमाल किया जाता रहा है.
एक प्रमुख चीनी वक़ील ने बीबीसी को बताया कि ये मामले हाल के दिनों में बढ़े हैं.
झांग जुंजी की कहानी
झांग जुंजी कहते हैं कि ज़बरदस्ती दवा देने के लिए अस्पताल के स्टाफ़ ने उन्हें दबोचा और पिटाई की.
उनकी मुश्किलें 2022 में शुरू हुईं जब उन्होंने चीन के कड़े लॉकडाउन की नीतियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया.
वो कहते हैं कि उनके प्रोफ़ेसरों ने उन्हें प्रदर्शन करते हुए देखा और इसके पांच मिनट के बाद ही उनके पिता से संपर्क किया. इसके बाद पिता उन्हें घर ले गए.
उन्होंने बताया कि उनके पिता ने पुलिस बुला ली और अगले दिन, जो कि उनका 18वां जन्मदिन था, दो लोग आए और उन्हें कोविड टेस्ट सेंटर ले जाने के बहाने एक अस्पताल ले गए.
उन्होंने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस से कहा, “डॉक्टरों ने मुझे बताया कि मुझे एक गंभीर मानसिक बीमारी है. इसके बाद उन्होंने मुझे बेड से बांध दिया. नर्सों और डॉक्टरों ने मुझसे बार बार कहा कि सरकार और पार्टी के बारे में जो मेरे विचार थे, उसका मतलब था कि मैं मानसिक रूप से ज़रूर बीमार रहा होऊंगा. यह बहुत भयानक था.”
वह वहां 12 दिनों तक थे.
जुंजी का मानना है कि उनके पिता ने मजबूरी में उन्हें प्रशासन को सौंपा, क्योंकि वह एक स्थानीय सरकारी विभाग में काम करते थे.
अस्पताल से छुट्टी मिलने के एक महीने बाद फिर से जुंजी को गिरफ़्तार कर लिया गया.
असल में चीनी नव वर्ष पर आतिशबाज़ी पर प्रतिबंध लगा था (वायु प्रदूषण कम करने के लिए) लेकिन जुंजी ने पाबंदी का विरोध करते हुए पटाखे जलाते खुद का वीडियो बना लिया. किसी ने इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया.
इसके बाद उनपर झगड़ालू होने और समस्याएं पैदा करने का आरोप लगाया गया, जोकि चीनी सरकार की आलोचना करने वालों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर लगाए जाते हैं.
जुंजी का कहना है कि उन्हें दोबारा ज़बरदस्ती दो महीने तक अस्पताल में भर्ती किए रखा गया.
डिस्चार्ज के बाद भी एंटी-साइकोटिक दवाएं
अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद, जुंजी को एंटी-साइकोटिक दवाएं लेने के लिए लिखा गया.
हमने ये पर्चा देखा है, जिसमें एरिपिप्राजोल लिखा था, जिसका इस्तेमाल स्किज़ोफ़्रेनिया और बाइपोलर डिसऑर्डर के इलाज में किया जाता है.
वो कहते हैं, “इस दवा को लेने के बाद लगता था कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.” यही नहीं पुलिस उनके घर आती थी ये देखने के लिए वह दवा ले रहे थे कि नहीं.
फिर से अस्पताल में भर्ती होने के डर से जुंजी ने चीन छोड़ने का मन बना लिया. उन्होंने अपने माता पिता से बताया कि वह कमरा खाली करने यूनिवर्सिटी जा रहे हैं, लेकिन वह न्यूज़ीलैंड भाग गए.
उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों को अलविदा भी नहीं कहा.
जुंजी उन 59 लोगों में से एक हैं जिनके बारे में बीबीसी ने उनसे या रिश्तेदारों से बात करके या अदालती दस्तावेजों को देखकर इस बात की पुष्टि की कि उन्हें प्रदर्शन या प्रशासन को चुनौती देने के बाद मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
इस मुद्दे को चीन की सरकार ने भी माना है. ऐसे उत्पीड़न को रोकने के लिए मानसिक स्वास्थ्य क़ानून 2013 बनाया गया, जिसके तहत किसी स्वस्थ व्यक्ति का मानसिक इलाज करना ग़ैरक़ानूनी था.
इसमें साफ़ तौर पर लिखा गया कि मानसिक इलाज़ के लिए अस्पताल में भर्ती स्वेच्छा से होनी चाहिए, जब तक कि बीमार व्यक्ति खुद या दूसरों के लिए ख़तरा नहीं बन जाता.
एक चीनी वकील ने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को बताया कि, असल में, मानसिक अस्पतालों में ज़बरदस्ती भर्ती के मामले हाल के समय में काफ़ी बढ़ गए हैं.
इस क़ानून का मसौदा तैयार करने में शामिल रहे हुआंग शुएताओ इसके लिए नागरिक समाज के कमज़ोर होने और जांच व संतुलन के न होने को ज़िम्मेदार मानते हैं.
वो कहते हैं, “इस तरह के कई मामले मेरे सामने आ चुके हैं. पुलिस बिना जवाबदेही के शक्ति चाहती है. जो भी इस तंत्र की ख़ामियां जानता है, उसका दुरुपयोग कर सकता है.”
एक्टिविस्ट जी लिजियान की कहानी
एक एक्टिविस्ट जी लिजियान ने मुझे बताया कि 2018 में बिना उनकी सहमति के उनका ज़बरदस्ती मानसिक इलाज कराया गया था.
लिजियान का कहना है कि एक फ़ैक्ट्री के बाहर बेहतर तनख्वाह की मांग करने वाले प्रदर्शन में शामिल होने के दौरान उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था. मानसिक अस्पताल ले जाने से पहले पुलिस उनसे तीन दिनों तक पूछताछ करती रही.
जुंजी की तरह ही, लिजियान ने कहा कि उन्हें एंटी-साइकोटिक दवाएं लिखी गईं, जिसने उनकी समझने बूझने की झमता को प्रभावित किया.
अस्पताल में एक सप्ताह रहने के बाद उन्होंने और दवाएं लेने से इनकार कर दिया. स्टाफ़ के साथ झगड़े के बाद उन्हें ‘समस्याएं पैदा करने वाला’ बताया गया, इसके बाद लिजियान को बिजली का झटका देने वाले विभाग में भेज दिया गया.
वो कहते हैं, “सिर से एड़ी तक दर्द था. ऐसा लगता था कि मेरा पूरा शरीर मेरा नहीं है. यह बहुत दर्दनाक था. बिजली के झटके कई बार दिए गए. मैं बेहोश हो गया. मुझे लगा कि मैं मर रहा हूं.”
उन्होंने बताया कि उन्हें 52 दिन बाद डिस्चार्ज कर दिया गया. अभी वो लॉस एंजिलिस में पार्ट टाइम नौकरी कर रहे हैं और अमेरिका में शरण दिए जाने की अपील की है.
साल 2019 में, जिस साल लिजियान को अस्पताल में भर्ती किया गया, उसी साल चाइनीज़ मेडिकल डॉक्टर एसोसिएशन ने अपनी गाइडलाइन को अपडेट किया और कहा कि यह इलाज़ केवल सहमति के बाद और जनरल एनेस्थेसिया के तहत ही दिया जाना चाहिए.
इन मामलों में डॉक्टरों के शामिल होने के बारे में हम और जानना चाहते थे.
लेकिन बीबीसी जैसे विदेशी मीडिया से बात करना उन्हें मुश्किल में डाल सकता था, इसलिए हमने अंडरकवर जांच करने का विकल्प चुना.
बीबीसी की अंडरकवर पड़ताल
हमारे सबूतों के अनुसार ज़बरदस्ती अस्पताल में भर्ती किए जाने के मामले में शामिल रहे चार अस्पतालों में काम करने वालों डॉक्टरों से हमने फ़ोन पर सलाह लेने का समय मांगा.
हमने एक काल्पनिक रिश्तेदार की कहानी गढ़ी जिसे सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी पोस्ट करने के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था और पांच डॉक्टरों से पूछा कि क्या वे और ऐसे मरीजों के बारे में जानते हैं जिन्हें पुलिस ने वहां भेजा था.
चार ने इसकी पुष्टि की.
एक डॉक्टर ने बताया, “मनोचिकित्सा विभाग में भर्तियों का एक अलग प्रकार होता है जिन्हें ट्रबलमेकर्स कहा जाता है.”
जिस अस्पताल में जुंजी को रखा गया था, उसमें काम करने वाला एक डॉक्टर, जुंजी की बात को सही ठहराता लगा कि डिस्चार्ज होने के बाद भी पुलिस उन मरीज़ों पर लगातार निगरानी रखती थी.
उन्होंने कहा, “पुलिस आपको घर पर देखने जाएगी, ये सुनिश्चित करने के लिए कि आप दवा ले रहे हैं. अगर आप दवा नहीं लेते हैं तो यह फिर से क़ानून तोड़ने के दायरे में आ सकता है.”
इस अस्पताल से हमने टिप्पणी मांगी लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया.
एक लोकतंत्र अधिकार कार्यकर्ता सोंग ज़ैमिन को पिछले साल पांचवी बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था, हमें उनके मेडिकल रिकॉर्ड्स देखने का मौका मिला, जो यह साफ़ दिखाता है कि राजनीतिक विचार किस तरह मनोरोग के इलाज़ से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ है.
इसमें कहा गया है, “आज, वह बहुत अधिक बात कर रहा था, बातें अनाप शनाप थीं और कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना थी. इसलिए पुलिस, डॉक्टरों और रेज़िडेंट कमेटी ने उसे इलाज के लिए हमारे अस्पताल में भेजा था. यह बिना सहमति वाली भर्ती थी.”
वर्ल्ड साइकियाट्रिक एसोसिएशन के नव निर्वाचित अध्यक्ष प्रोफ़ेसर थॉमस जी शूल्ज़ से हमने इन रिकॉर्ड्स की जांच करने को कहा था.
उनका जवाब था, “जो कुछ भी इसमें बताय गया है, किसी को भी बिना सहमति के भर्ती करना या उसकी इच्छा के बिना इलाज करना नहीं चाहिए. इसमें राजनीतिक दुरुपयोग की बू आती है.”
क़ानून का दुरुपयोग
चीन में मानसिक स्वास्थ्य क़ानून के दुरुपयोग पर नज़र रखने वाले नागरिक पत्रकारों के एक ग्रुप के अनुसार, साल 2013 से 2017 के बीच 200 से अधिक लोगों ने कहा था कि उन्हें प्रशासन ने ग़लत तरीक़े से अस्पताल में भर्ती कराया.
उनकी रिपोर्टिंग पर 2017 में विराम लग गया जब ग्रुप के संस्थापक गिरफ़्तार हो गए और उन्हें बाद में जेल हो गई.
इंसाफ़ की मांग कर रहे पीड़ितों के लिए क़ानून व्यवस्था भी उनके ख़िलाफ़ ही खड़ाई दिखाई देती है.
मिस्टर ली नाम के एक व्यक्ति को स्थानीय पुलिस के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने के बाद 2023 में भर्ती कराया गया था.
उन्होंने अपनी क़ैद के लिए प्रशासन के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही का सहारा लिया.
जुंजी से उलट, डॉक्टरों ने बताया कि मिस्टर ली बीमार नहीं हैं लेकिन पुलिस ने बाहर के मनोचिकित्सक की व्यवस्था की, जिसने ली को बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित बताया.
मिस्टर ली को 45 दिनों तक अस्पताल में रोके रखा गया.
अस्पताल से बाहर आने के बाद उन्होंने खुद को मानसिक बीमार घोषित किए जाने को चुनौती दी.
वो कहते हैं, “अगर आप पुलिस पर मुकदमा नहीं करते तो ये ऐसे ही है जैसे आपने मान लिया कि मानसिक रूप से आप बीमार हैं. मेरा भविष्य और मेरी आज़ादी पर इसका दूरगामी असर होगा क्योंकि मुझे कभी भी बंद करने के लिए पुलिस को बहाना मिल जाएगा.”
चीन में गंभीर मानसिक बीमारी के रिकॉर्ड्स को पुलिस और स्थानीय रेज़िडेंट कमेटियों के साथ भी साझा किया जा सकता है.
लेकिन ली की अपील को कोर्ट ने ख़ारिज़ कर दिया.
उन्होंने हमें बताया, “हम अपने नेताओं को क़ानून के राज के बारे में बातें करते सुनते हैं. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमें खुद एक दिन मानसिक अस्पताल में बंद किया जा सकता है.”
पोस्ट वायरल होने पर गिरफ़्तारी
बीबीसी ने चीनी अदालतों के फ़ैसलों की आधिकारिक वेबसाइट पर 112 लोगों की सूची देखी है जिन्होंने ऐसे इलाज के लिए 2012 से 2013 के बीच पुलिस, स्थानीय प्रशासन या अस्पतालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही की कोशिश की थी.
इनमें से 40 प्रतिशत वादी प्रशासन के ख़िलाफ़ विरोध करने में शामिल थे. इनमें से केवल दो लोग ही मुकदमा जीत पाए.
और ऐसा लगता है कि इस पर सेंसर भी किया गया है, क्योंकि जिन पांच अन्य मामलों की हमने जांच की थी, वे उसके डेटा बेस से ग़ायब हैं.
लंदन स्थित मानवाधिकार संगठन ‘द राइट्स प्रैक्टिस’ की निकोला मैकबीन के अनुसार, मसला ये है कि ‘ट्रबलमेकर्स’ से निपटने के लिए पुलिस के पास काफ़ी अधिकार हैं.
“किसी को मानसिक अस्पताल में भेजना, प्रक्रियाओं का पालन न करना, स्थानीय प्रशासन के लिए बहुत आसान और बहुत उपयोगी हथियार है.”
अब व्लॉगर ली यीशुई के भविष्य पर नज़रें हैं, जिन पर एक पुलिस अधिकारी ने यौन हिंसा का आरोप लगाया था.
बताया जाता है कि सोशल मीडिया पर उनका एक पोस्ट वायरल हुआ, जिसमें उहोंने अपने अनुभव साझा किए थे. इसके बाद से उन्हें हाल ही में दो बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.
ऐसी ख़बरें हैं कि इस समय एक होटल में वह निगरानी में हैं.
हमने अपनी जांच के नतीजों को ब्रिटेन में चीनी दूतावास से साझा किया. उसने कहा कि पिछले साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ‘फिर से स्पष्ट’ किया कि उसे क़ानून से संबंधित ‘तंत्र में सुधार’ करना चाहिए, जोकि “ग़ैरक़ानूनी हिरासत या नागरिकों की व्यक्तिगत आज़ादी को छीनने या बाधित करने के ग़ैरक़ानूनी तरीके को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है.”
जॉर्जिना लैम और बेट्टी नाइट की अतिरिक्त रिपोर्टिंग
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.