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हॉलीवुड फ़िल्म ‘अवतार’ में जो आसमान के शून्य में तैरते पहाड़ दिखाए गए हैं, वो देखने में भले ही किसी और दुनिया के लगें, लेकिन उनका आइडिया एक बिलकुल असली जगह से लिया गया है, चीन के झांगजाजे नेशनल पार्क से.
ये चीन का पहला राष्ट्रीय उद्यान है, जहां घूमने वालों के लिए कांच के पुल, पहाड़ पर ऊपर ले जाने वाली लिफ्ट, एक बड़ा फूड कोर्ट और यहां तक कि मैकडॉनल्ड्स भी है.
यहां मेरी गाइड थीं शेन होंग यान, जिन्हें सब श्यी कहकर बुलाते हैं. वो बहुत शांत मिजाज़ की थीं, लेकिन जब मैंने एक ही नज़ारे की शायद सौवीं तस्वीर खींचने के लिए फिर से कैमरा उठाया, तो वो भी थोड़ा चिढ़ गईं. उन्हें पता था कि आगे और भी नज़ारे इंतज़ार कर रहे हैं.
लेकिन मैं वहीं अटका रह गया. झांगजाजे के ये ऊंचे-ऊंचे खंभे जैसे दिखने वाले बलुआ पत्थर के पहाड़ मैंने पहले कभी नहीं देखे थे.
फ़िल्म से पहले उतना मशहूर नहीं था ये पार्क
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झांगजाजे नेशनल पार्क की शुरुआत 1982 में हुई थी. ये चीन के हुनान प्रांत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में बसा है. ये जंगल वुलिंगयुआन नाम के एक बड़े प्राकृतिक इलाके का हिस्सा है, जिसे 1992 में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया.
बाद में, 2001 में इसे ग्लोबल जियोपार्क का दर्जा भी मिला.
नाम भले ही थोड़ा मुश्किल हो, लेकिन इसे याद रखने का एक आसान तरीका है, यही वो जगह है, जिससे हॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म ‘अवतार’ में दिखाए गए ‘हैलीलुजाह माउंटेंस’ की कल्पना की गई थी.
सच कहूं तो, जब तक मैं खुद यहां नहीं आया था, तब तक मुझे भी बस इतना ही पता था.
श्यी ने भी यही बताया कि जब तक ‘अवतार’ रिलीज़ नहीं हुई थी, तब तक झांगजाजे को चीन के अंदर भी ज़्यादा लोग नहीं जानते थे.
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‘अवतार’ फ़िल्म की वेबसाइट पर साफ़ लिखा है कि हैलीलुजाह माउंटेन उस काल्पनिक दुनिया पैंडोरा के उड़ते हुए पहाड़ हैं.
हालांकि झांगजाजे के पहाड़ सच में हवा में नहीं तैरते, लेकिन जब वे हल्के कोहरे और बादलों की परत से झांकते हैं, तो वो किसी दूसरी दुनिया से उतरे लगते हैं. इस नज़ारे से नज़र हटाना मुश्किल था.
श्यी ने जो कहा था, वो बिल्कुल सही निकला. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए, नज़ारे और भी ज़्यादा कमाल के होते गए.
एक जगह आई, जो यहां की सबसे मशहूर जगह मानी जाती है — एक अकेला खड़ा ऊंचा पत्थरनुमा पहाड़, जिसे टूरिज़्म डिपार्टमेंट ने नाम दिया है ‘प्रेज़ द लॉर्ड माउंटेन’.
श्यी तो उसे देखकर इतनी खुश हो गईं कि उछल पड़ीं. मुस्कुराकर बोलीं, “यही है वो जगह जिसे देखने सब आते हैं.”
वो जगह भीड़ से भरी थी. लोग अपने छोटे-छोटे कैमरों में उस नज़ारे को कैद करने में लगे थे.
पहले इसे ‘साउथर्न स्काई कॉलम’ कहा जाता था. ये क़रीब 1080 मीटर ऊंचा है. इसके भूरे पत्थरों के बीच-बीच में जहां-तहां हरियाली उगी है, जो इसे और भी अलग दिखाती है.
मैं थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा, उम्मीद लगा कि आसपास का शोर थोड़ा कम हो, ताकि मैं उस पल को पूरी तरह महसूस कर सकूं.
फिर श्यी ने धीरे से बताया, “हम इसे पहले किआनकुन कहते थे.” यानी ‘धरती और आसमान’. और सचमुच, ऐसा लग भी रहा था, जैसे ये चट्टान सीधे ज़मीन से उठकर आसमान से मिलने जा रही हो.
जहां मैं खड़ा था, वहां से ये पहाड़ नीचे से थोड़ा पतला और ऊपर से थोड़ा चौड़ा लग रहा था. लेकिन उसकी मौजूदगी में कोई कमजोरी नहीं थी. वो सदियों से वैसे ही अडिग खड़ा है.
चीन के झांगजाजे नेशनल पार्क की ख़ासियत
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इस पार्क में ऐसी तीन हजार से भी ज़्यादा चट्टानें और नुकीले पहाड़ हैं, जो लाखों साल तक पानी और हवा की मार से धीरे-धीरे बने हैं. यही वजह है कि इनकी शक्ल इतनी अलग और आकर्षक लगती है.
पार्क बहुत बड़ा नहीं है, सिर्फ़ 48 वर्ग किलोमीटर में फैला है और इसे कई हिस्सों में बांटा गया है, ताकि कुछ ही दिनों में इसे अच्छे से देखा जा सके.
सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले इलाके हैं युआनजियाजिये, तियान्ज़ी माउंटेन और येलो स्टोन विलेज, जिसे वहां के लोग हुआंगशिज़्हाई कहते हैं. हम भी घूमने की शुरुआत यहीं से करने वाले थे.
यहां हर तरह के सैलानी के लिए कुछ न कुछ है. जो लोग पैदल ट्रेकिंग करना पसंद करते हैं उनके लिए पगडंडियां हैं और जो कम थकावट में घूमना चाहते हैं उनके लिए शटल बस, केबल कार और यहां तक कि एक सीधी पहाड़ी लिफ्ट का इंतज़ाम है.
यह लिफ्ट, बाइलोंग एलिवेटर, इस पार्क की सबसे बड़ी खासियतों में से एक है. यह दो मिनट से भी कम समय में 50 लोगों को एक साथ 326 मीटर ऊपर पहाड़ की चोटी तक पहुंचा देती है. टूरिस्ट सीज़न में इसे देखने और इसमें बैठने के लिए लंबी लाइन लगती है.
यह मेरी चीन में पहली ट्रैकिंग थी. यूरोप और अमेरिका में जो अनुभव हुआ था, उससे ये बिलकुल अलग था. वहां के मुकाबले यहां रास्तों के किनारे कैफे़ थे, सजावटी सामान की दुकानें थीं, लोग तेज़-तेज़ बोल रहे थे और स्पीकर से ज़ोर का म्यूजिक बज रहा था.
दोपहर में जब श्यी मुझे सीधे पहाड़ की चोटी पर बने एक भीड़भाड़ वाले फूड कोर्ट में ले गईं, तो मैं ज़रा भी हैरान नहीं हुआ. वहां मैकडॉनल्ड्स का एक आउटलेट था और उसके आस-पास दर्जनों स्ट्रीट फूड स्टॉल सजे हुए थे.
भीड़ के बीच भी यहां के नज़ारों में जो बात थी, वो कहीं और देखने को नहीं मिली. हर एक जगह को एक अलग और दिलचस्प नाम दिया गया था – ‘फ़ील्ड्स इन द स्काई’, ‘नंबर वन ब्रिज अंडर हेवन’, ‘थ्री सिस्टर्स पीक’ और ‘एक्स्टसी टेरेस’.
उस दिन मौसम थोड़ा धुंधला था, बादल छाए हुए थे. लंच के बाद जब हम तियान्ज़ी पहाड़ की चोटी पर पहुंचे और ‘फूल देती अप्सरा’ नाम की चट्टान को देखने की कोशिश की, तो कोहरे की वजह से वह ठीक से नज़र नहीं आई.
श्यी थोड़ी निराश थीं, लेकिन मुझे वो सीन बहुत खास लगा. चारों तरफ फैले कोहरे और धुंध के बीच ऐसा लग रहा था जैसे किसी चीनी पेंटिंग में खड़े हों.
‘यहां कुछ अलग है’
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जब तक हम पहाड़ से नीचे लौटे, तब तक कोहरा थोड़ा साफ़ होने लगा था. इसके बाद हम कुछ घंटे एक शांत रास्ते पर चलते रहे, जो एक बहती हुई पतली धारा के साथ-साथ था. इसे ‘गोल्डन व्हिप स्ट्रीम’ कहा जाता है.
ये रास्ता आसान था, लेकिन इसका नज़रिया बिल्कुल अलग. यहां से उन्हीं चट्टानों को नीचे से देखने का मौका मिला. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए, भीड़ पीछे छूटती चली गई.
श्यी भी मेरे साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलने लगीं. हम दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई, सिर्फ़ बहते पानी की आवाज़ और कभी-कभी दूर से आती भूरी मकाक बंदरों की चीखें ही इस खामोशी को तोड़ रही थीं. इन बंदरों ने इंसानों को खाने का ज़रिया समझ लिया है.
अगली सुबह हम झांगजाजे शहर के बीचों-बीच स्थित तियानमेन पर्वत तक पहुंचे. वहां घने बादल छाए हुए थे. यह जगह नेशनल पार्क का हिस्सा नहीं है, लेकिन श्यी ने कहा था, “यहां कुछ अलग है.”
यहां भी, ठीक नेशनल पार्क की तरह, पहाड़ पर चढ़ने-उतरने के लिए केबल कार थी. जैसे ही मैं आठ लोगों की कांच वाली केबल कार में बैठा, मुझे समझ में आ गया कि लोग इससे इतना क्यों प्रभावित होते हैं.
यह दुनिया की सबसे लंबी केबल कार है, जो सात किलोमीटर से ज़्यादा का सफ़र कराती है और क़रीब तीस मिनट में पहाड़ की चोटी पर पहुंचा देती है. ये एकदम खड़ी चढ़ाई पर चलती है और रास्ते में आसपास की ऊंची चोटियों और 99 तीखे मोड़ों वाली पहाड़ी सड़क का शानदार नज़ारा दिखाती है.
थोड़ी ही देर में मुझे समझ आ गया कि तियानमेन के कांच वाले ब्रिज और पहाड़ के किनारे पर बने रास्ते हर किसी के लिए नहीं हैं.
जैसे ही मैंने कोहरे से ढके उस ग्लास ब्रिज पर पहला कदम रखा, दिल की धड़कनें खुद सुनाई देने लगीं. श्यी ने धीमे से बताया, “पहले इसे ‘वॉक ऑफ फेथ’ कहा जाता था,” और उस पल वो नाम पूरी तरह सही लग रहा था.
सुबह का कोहरा अब भी छाया हुआ था, लेकिन दूर-दूर तक पहाड़ों और ऊंची चोटियों की हल्की झलक मिल रही थी, कुछ वैसी ही जैसी हमने पार्क में देखी थी.
फिर हम पहुंचे उस जगह, जिसे यहां सबसे ख़ास माना जाता है—दो पहाड़ियों के बीच एक विशाल दरार, जिसे लोककथा में “स्वर्ग का दरवाज़ा” कहा जाता है. इसी वजह से इस पहाड़ को कहते हैं तियान मेन शान, यानी ‘स्वर्ग का पहाड़’.
कई लोग उस दरवाज़े तक पहुंचने के लिए 999 सीढ़ियां चढ़ रहे थे, लेकिन हम मैदान में खड़े होकर उस धुंध से ढके दृश्य को ऊपर से देख रहे थे.
तभी अचानक बादल हटे, कोहरा छटा और हमारे सामने खुला ‘स्वर्ग का दरवाज़ा’. लोग हैरानी और खुशी से चिल्ला उठे, कुछ ने तालियां बजाईं.
और मैं बस चुपचाप खड़ा रहा, उस दृश्य को पूरी तरह अपने भीतर समेटता हुआ.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित