चीन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना से भारत और बांग्लादेश के लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक़, चीन ने तिब्बत में एक विशाल जल विद्युत परियोजना को मंज़ूरी दे दी है, जिसे यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर बनाया जाएगा.
तिब्बत में इस नदी को यारलुंग ज़ांग्बो के नाम से भी जाना जाता है.
इस परियोजना के तहत नदी पर एक बांध बनाया जाएगा जो दुनिया का सबसे बड़ा बांध होगा.
अभी दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत पॉवर स्टेशन ‘थ्री गॉर्जेस’ डैम मध्य चीन के हुबेई प्रांत में यांग्ज़ी नदी पर बना है और इसकी क्षमता सालाना 88 बिलियन किलोवाट-घंटा है.
चीन ने परियोजना के ज़रिए पर्यावरण को प्रभावित न होने की बात कही है लेकिन मानवाधिकार समूहों और जानकारों ने इस घटनाक्रम के दुष्परिणामों के बारे में चिंता जताई है.
बांध क्यों बना रहा है चीन?
इस प्रोजेक्ट की चर्चा पहली बार चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना के सामने आने के दौरान हुई थी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2021 में अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान एक मेगा बांध के निर्माण की बात कही थी.
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले बांध का लक्ष्य सालाना 300 बिलियन किलोवाट-घंटा बिजली पैदा करना है जो कि थ्री गॉर्जेस बांध की क्षमता से तीन गुना से भी ज़्यादा है. इसे तिब्बत पठार के पूर्वी छोर पर बनाया जाएगा.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बुधवार को बताया कि यह परियोजना चीन के कार्बन पीकिंग, कार्बन न्यूट्रलिटी के लक्ष्यों को पूरा करने और वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रमुख भूमिका निभाएगी.
साथ ही इंजीनियरिंग से संबंधित उद्योगों को प्रोत्साहित करेगी और तिब्बत में रोज़गार पैदा करेगी.
हालांकि रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि निर्माण कब से शुरू होगा और निर्माण की सटीक जगह नहीं बताई है.
साल 2020 में, चीन की सरकारी स्वामित्व वाली पावर कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष यान झियोंग ने कहा था कि यारलुंग सांगपो का स्थान दुनिया के सबसे अधिक जलविद्युत समृद्ध क्षेत्रों में से एक है.
यारलुंग सांगपो नदी लगभग 50 किलोमीटर के एक हिस्से में लगभग दो हज़ार मीटर की ऊंचाई से गिरती है. इस ढलान की मदद से जलविद्युत उत्पादन में मदद मिलती है लेकिन इसमें इंजीनियरिंग की चुनौतियां भी हैं.
निर्माण की लागत के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है लेकिन हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक़, इस परियोजना में कुल निवेश 1 ट्रिलियन युआन यानी 137 बिलियन डॉलर से अधिक हो सकता है.
चीन की तरफ़ से यह साफ़ नहीं किया गया है कि इस परियोजना से कितने लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा और इसका ईकोसिस्टम पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
भारत-बांग्लादेश पर क्या होगा असर?
ब्रह्मपुत्र (यारलुंग सांगपो) नदी तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास एंग्सी ग्लेशियर से निकलती है और यह लगभग तीन हज़ार किलोमीटर तक फैली हुई है.
भारत में यारलुंग सांगपो ब्रह्मपुत्र नदी बन जाती है और इसके बाद यह असम होते हुए बांग्लादेश पहुंचती है, जहां इसे जमुना कहते हैं और ये फिर गंगा नदी के साथ मिल जाती है.
बांग्लादेश का 90 फ़ीसद से ज़्यादा पानी सीमा पार से आता है. सूखे के मौसम में ब्रह्मपुत्र नदी अकेले 70 प्रतिशत तक पानी लाती है. इससे स्पष्ट है कि ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश की लाइफ़लाइन है.
मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि इस विशाल प्रोजेक्ट के लिए नमचा बरवा पर्वत के आस-पास कम से कम चार 20 किलोमीटर लंबी सुरंगें खोदने की ज़रूरत होगी, जिससे तिब्बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग सांगपो की धारा को मोड़ दिया जाएगा.
इसलिए इस बांध को भारत और बांग्लादेश के लिए एक बड़ी चिंता के रूप में देखा जा रहा है.
डॉ. वाई नित्यानंदम, तक्षशिला इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु में प्रोफ़ेसर हैं और जियोस्पेशियल रिसर्च प्रोग्राम के प्रमुख हैं.
भारत-बांग्लादेश की चिंता के सवाल पर प्रोफ़ेसर नित्यानंदम चीन में मेकांग नदी पर बने बांधों का उदाहरण देते हैं.
प्रोफ़ेसर नित्यानंदम कहते हैं, “चीन ने मेकांग नदी पर बांध बनाए हैं और हमने बांध के आगे निचले इलाक़ों की स्टडी की थी. इससे हमें पता चला था कि चीन ने बांध में पानी इकट्ठा किया और समय पर इसे छोड़ा नहीं. इसके अलावा आधी से ज़्यादा गाद को बांधों ने रोक लिया है. गाद आगे कैसे बहेगी इसको लेकर कोई इंतज़ाम नहीं है. इसलिए इस बात की आशंका है कि कहीं भारत-बांग्लादेश के साथ भी ऐसा न हो.”
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य और बांग्लादेश पहले से ही भयंकर बाढ़ की घटनाओं का सामना कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें और अधिक चुनौतियों जैसे- भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ आदि का सामना करना पड़ सकता है.
अरुणाचल प्रदेश भूस्खलन के लिहाज़ से अति संवेदनशील है और अक्सर यहां भूकंप का ख़तरा भी बना रहता है. ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध का निर्माण ईकोसिस्टम पर दबाव डाल सकता है और विनाशकारी घटनाओं का कारण बन सकता है.
हालांकि, चीन की सिंघुआ यूनिवर्सिटी के हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा 2023 में की गई एक स्टडी में कहा गया है कि अगर चीन, भारत और बांग्लादेश सहयोग करें तो इस परियोजना से उन्हें लाभ हो सकता है.
स्टडी के मुताबिक़, बाढ़ की स्थितियों के प्रबंधन के लिए बांध का उपयोग करने से भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 32.6 प्रतिशत और बांग्लादेश में 14.8 प्रतिशत तक कमी आ सकती है.
भारत का क्या कहना है?
भारत ने आधिकारिक तौर पर इस मामले पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
ऑस्ट्रेलिया स्थित थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “इन नदियों (तिब्बत में) पर नियंत्रण प्रभावी रूप से चीन को भारत की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण प्रदान करता है.”
साल 2020 में जब चीन ने इस बांध की घोषणा की थी तब भारत सरकार में जल शक्ति मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी टी. एस. मेहरा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत की थी.
टी. एस. मेहरा ने कहा था, “चीनी बांध परियोजनाओं के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए अरुणाचल प्रदेश में बढ़ा बांध बनाना समय की मांग है.”
चीन के बाद अगर भारत भी ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाता है तो बांग्लादेश का क्या होगा? इसका सीधा सा जवाब कि बांग्लादेश सबसे ज़्यादा प्रभावित होगा क्योंकि वो सबसे निचले इलाके़ में है.
बड़े बांध के निर्माण से रिहाइशी इलाक़ों के साथ जंगल और जंगली जानवरों पर भी इसका असर पड़ता है. नदी के बहाव के साथ गाद आती है जो खनिजों से भरपूर होने के साथ खेती और तटीय इलाक़ों की स्थिरता के लिए ज़रूरी है.
बांध का निर्माण गाद के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है और अरुणाचल प्रदेश की जैव विविधता प्रभावित हो सकती है.
प्रोफ़ेसर डॉ. वाई नित्यानंदम का मानना है कि पानी को हथियार की तरह भी इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
प्रोफ़ेसर नित्यानंदम कहते हैं, “चीन इस तरह के प्रोजेक्ट में कहता है कि वो इसे क्लीन एनर्जी के सोर्स के रूप में इस्तेमाल करेगा लेकिन चीन पानी को एक हथियार की तरह भी इस्तेमाल कर सकता है. ख़ासतौर पर विवाद बढ़ने की स्थिति में जैसा कि हम साल 2020 में भारत और चीन की सीमा पर देख चुके हैं.”
बांध बनाकर पानी के बहाव को कम करने और सीमित भंडारण क्षमता के कारण निचले इलाक़ों को पानी और गाद की कमी का सामना करना पड़ सकता है.
पानी की भरपाई के लिए लोग भू-जल स्रोतों पर पहले से ज़्यादा निर्भर हो जाते हैं और जल स्तर धीरे-धीरे घटता चला जाता है. नतीजा, ज़मीन धंसने लगती है और भूजल खारा होने लगता है.
उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में फरक्का बैराज के निर्माण के बाद गंगा नदी में अधिकतम प्रवाह काफी कम हो गया था. प्रवाह में कमी के कारण भारत और बांग्लादेश में कई समस्याएं पैदा हुईं. जिनमें मछली की प्रजातियों का नुक़सान, पद्मा (गंगा नदी को बांग्लादेश में पद्मा नदी कहा जाता है) की सहायक नदियों का सूखना और भूजल का खारा होना शामिल है.
हालांकि, चीन ने अतीत में कहा था कि उनका बनाया हुआ बांध पानी नहीं रोकेगा.
बांध बनाने का चीनी जुनून
दुनिया की लगभग 20 फ़ीसदी आबादी चीन में रहती है और उसके पास दुनिया के पीने योग्य जल संसाधनों का लगभग सात फ़ीसदी हिस्सा मौजूद है.
उसे खेती और दूसरी आर्थिक ज़रूरतों के लिए और अधिक पानी की ज़रूरत है. चीन की एक बड़ी आबादी उत्तर में रहती है और यह इलाक़ा सूखे से जूझ रहा है. उत्तर चीन की प्यास बुझाने के लिए चीन दक्षिण के पानी को उत्तर में मोड़ने की कोशिश में लगा है. इसके लिए उसने अपनी नदियों पर कई बांध बनाए हैं.
चीन की इस कोशिश की एक बड़ी क़ीमत तिब्बत के लोग चुका रहे हैं. 1950 के दशक में क़ब्ज़ा होने के बाद तिब्बत पर चीन का कड़ा नियंत्रण रहा है और चीन ने तिब्बत में कई बांधों का निर्माण किया है.
बीते दिनों तिब्बत में बांध के कारण तिब्बतियों के दुर्लभ विरोध को लेकर बीबीसी ने विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी.
प्रदर्शनकारियों ने बीबीसी को बताया था कि बांधों का निर्माण बीजिंग द्वारा तिब्बतियों और उनकी ज़मीन के शोषण का ताज़ा उदाहरण है. मुख्य रूप से बौद्ध बहुल तिब्बत में पिछले कुछ सालों में दमन देखा गया, माना जाता है कि इसमें हज़ारों लोग मारे गए हैं.
इस साल की शुरुआत में, चीनी सरकार ने सैकड़ों तिब्बतियों को हिरासत में लिया था जो एक और जलविद्युत बांध के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे.
बीबीसी को सूत्रों और सत्यापित फु़टेज के ज़रिए पता चला कि इस विरोध प्रदर्शन में गिरफ़्तारियां और मारपीट की गई. इसके अलावा कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
वे गंगटू बांध और हाइड्रोपावर प्लांट बनाने की योजना का विरोध कर रहे थे, जिससे कई गांव विस्थापित हो जाएंगे और पवित्र अवशेषों वाले प्राचीन मठ डूब जाएंगे.
हालांकि, चीन ने कहा कि उसने स्थानीय लोगों को स्थानांतरित करने के साथ उन्हें मुआवज़ा दिया है और प्राचीन भित्ति चित्रों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित