इमेज स्रोत, AFP via Getty Images
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के आत्मसमर्पण के 80 साल पूरे होने के मौक़े पर चीन ने भव्य विक्ट्री डे परेड का आयोजन किया था.
इस दौरान उसने अपने अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन किया, जिसे पश्चिमी देशों, ख़ासकर अमेरिका में पश्चिम के ख़िलाफ़ ‘डेटरेंट’ के रूप में देखा जा रहा है.
इस परेड में कई देशों के प्रमुख भी शामिल हुए लेकिन सबसे अधिक चर्चा रही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मौके पर द्वितीय विश्वयुद्ध में चीन को दी गई ‘अमेरिकी मदद और अमेरिकी सैनिकों की कुर्बानी’ की याद दिलाई.
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया, “सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन के राष्ट्रपति शी इसका ज़िक्र करेंगे या नहीं कि अमेरिका ने चीन को उसकी आज़ादी सुरक्षित करने के लिए कितना बड़ा समर्थन और ख़ून दिया था.”
उन्होंने लिखा, “चीन की जीत के लिए कई अमेरिकी मारे गए. मुझे उम्मीद है कि उनकी बहादुरी और बलिदान के लिए उन्हें सही तरह से सम्मानित और याद किया जाएगा!”
इसके बाद उन्होंने तंज़ किया, “कृपया मेरी ओर से व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन को भी शुभकामनाएं दें, जबकि आप अमेरिका के ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे हैं.”
असल में ट्रंप ने अमेरिकी सैनिकों की जिस बहादुरी की बात कही, उसका ज़िक्र करने से चीन की कम्युनिस्ट सरकार कई वजहों से बचती रही है.
इतिहास के जानकार बताते हैं कि चीन जापान युद्ध में अमेरिका ने सैन्य रसद के रूप में अहम मदद की थी.
चीन और जापान का युद्ध
इमेज स्रोत, AFP via Getty Images
1931 में जापान ने चीन के मंचूरिया में आक्रमण किया और कई चीनी इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया.
जापान चीन पर अपनी पकड़ मजबूत बनाता गया, जबकि उस समय चीन कम्युनिस्टों और राष्ट्रवादियों के गृह युद्ध में फंसा था.
1931 में जापान ने बड़ा हमला करके चीन में मंचूरिया पर क़ब्ज़ा किया था.
लेकिन 1937 में नानजिंग में जापानी सैनिकों ने जो कत्लेआम किया उसके बाद व्यापक युद्ध छिड़ गया.
चीन के राष्ट्रवादी नेता च्यांग काई-शेक ने नानजिंग को राष्ट्रीय राजधानी घोषित किया था. जापानी आक्रमण के ख़िलाफ़ प्रतिद्वंद्वी कम्युनिस्ट पार्टी और कोमिंतांग ने हाथ मिला लिया.
जापानी सैनिकों ने नानजिंग शहर को अपने क़ब्ज़े में लेकर हत्या, रेप और लूट का व्यापक अभियान चलाया. यह क़त्लेआम 1937 में दिसंबर महीने में शुरू हुआ था और 1938 में मार्च महीने तक चला था.
नानजिंग में उस वक़्त के इतिहासकारों और चैरिटी संगठनों के अनुमान के मुताबिक़, ढाई से तीन लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. बड़ी संख्या में महिलाओं से रेप भी हुआ था.
जापान ने कभी भी उन अत्याचारों को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया जो उसने अपने कब्ज़े वाले इलाक़ों में किए थे जिनमें सिर्फ़ चीन ही नहीं, बल्कि कोरिया जोकि उस समय का मलाया था, फ़िलिपींस और इंडोनेशिया भी था.
इमेज स्रोत, AFP via Getty Images
द्वितीय विश्वयुद्ध साल 1939 में शुरु हुआ. जर्मनी की नाज़ी सेना, इटली और जापान का गठबंधन, जिसे एक्सिस या धुरी गुट कहा जाता है एक तरफ़ था और फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ और चीन समेत मित्र देश का गठबंधन दूसरी तरफ़ था.
कोमिंतांग के नेता च्यांग काई-शेक मित्र देशों के साथ थे.
उधर, अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध में तब घोषित रूप से शामिल हुआ जब प्रशांत महासागर के बीच एक द्वीप समूह पर्ल हार्बर में एक अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर 7 दिसंबर 1941 को जापान ने भारी बमबारी की.
सवा घंटे की बमबारी में अमेरिका के 2400 जवान मारे गए, 8 जंगी जहाज समेत 19 युद्धपोत नष्ट हुए और 328 अमेरिकी विमान नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए थे.
दुनिया भर में फैले द्वितीय विश्वयुद्ध से तब तक दूर रहा अमेरिका इस घटना के बाद जंग में सीधे तौर पर शामिल हो गया.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार क़मर आगा कहते हैं, “हिंद प्रशांत क्षेत्र रणनीतिक रूप से अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण था और जापान उसके लिए ख़तरा बन गया था.”
वो कहते हैं, “अमेरिका ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में जापान को हराने के लिए उन सभी शक्तियों का साथ दिया जो जापान के ख़िलाफ़ लड़ रही थीं.”
चीन को अमेरिकी सैन्य रसद, 600 अमेरिकी ट्रांसपोर्ट विमान नष्ट हुए
इमेज स्रोत, AFP via Getty Images
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रसद पहुंचाने के दौरान हिमालयी क्षेत्रों में कई अमेरिकी विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए थे.
बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास ने दो साल पहले ऐसे मुश्किल और जोखिम भरे अमेरिकी हवाई ऑपरेशनों का ब्यौरा जुटाया था.
उनकी रिपोर्ट के मुताबिक़, एक अनुमान है कि रसद पहुंचाने वाले अमेरिका के क़रीब 600 मालवाहक विमान हिमालय के दुर्गम इलाक़ों में क्रैश हुए थे. अमेरिकी और भारतीय टीमों ने मिलकर 2009 में इन दुर्गम इलाक़ों में खोज शुरू की और जो मलबा मिला, उसका संग्रहालय साल 2023 में अरुणाचल प्रदेश में बनाया गया.
इसमें क़रीब 1500 वायुसैनिकों और यात्रियों की मौत हो गई थी.
यह अभियान भारत में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान क़रीब 42 महीने तक चला था. इन हादसों के हताहतों में अमेरिकी और चीनी पायलट, रेडियो ऑपरेटर और सैनिक शामिल थे.
इस ऑपरेशन ने कुनमिंग और चंकिंग (जिसे अब चोंगकिंग कहा जाता है) में चीनी सेना का समर्थन करने के लिए भारतीय राज्य असम और बंगाल से एक महत्वपूर्ण हवाई परिवहन मार्ग को बनाए रखा.
अप्रैल 1942 में शुरू हुए अमेरिकी सैन्य अभियान ने पूरे रास्ते में 650,000 टन युद्ध सामग्री को सफलतापूर्वक पहुँचाया.
इन अभियानों में चीनी सैनिकों को पैराशूट से ड्रॉप करना भी शामिल था.
अमेरिकी पायलट ग्रुप- फ़्लाईंग टाइगर्स
इमेज स्रोत, Air Force History Museum Program
ब्रैक्स्टन लिखते हैं कि साल 1941 में लगभग तीन सौ अमेरिकी सैनिक और कुछ महिला नर्सों को देशभर के सैन्य अड्डों से भर्ती किया गया, जिन्हें अमेरिकन वॉलंटियर ग्रुप (एवीजी) या फ़्लाईंग टाइगर्स कहा गया और उन्हें मोर्चों पर भेजा गया.
एवीजी उस समय का एक तरीक़ा था जिससे अमेरिका इस भीषण युद्ध का अनुभव ले सकता था और धुरी राष्ट्रों के ख़िलाफ़ लड़ रहे मित्र देशों के समर्थन को मज़बूत कर सकता था.
ब्रैक्स्टन के मुताबिक़, 1932 में भी अमेरिका ने कर्नल जैक जोएट के नेतृत्व में चीन में पहले एयर फ़ोर्स फ़्लाईंग मिशन की शुरुआत की थी.
उस समय की च्यांग काई-शेक सरकार ने अमेरिका से स्थानीय विद्रोहियों को निशाना बनाने का आग्रह किया था लेकिन आदेश न मिलने के बावजूद कर्नल जैक ने मदद की और यही इस मिशन के ठप होने का कारण बना.
इसके बाद 1937 में अमेरिका को फिर से आमंत्रित किया गया, जब नानजिंग में संघर्ष तेज़ था. अमेरिका ने कैप्टन क्लेयर शेनॉल्ट को तैनात किया जिन्होंने पूरे चीन में कई हवाई अड्डों के निर्माण, पायलट ट्रेनिंग, रसद आपूर्ति, कमांड ढांचा बनाने में मदद की और चीन की एयर फ़ोर्स को खड़ा किया.
यही वक़्त था जब सोवियत संघ ने चीन की मदद के लिए कई स्क्वाड्रन भेजे थे, लेकिन 1941 में नाज़ी जर्मनी के आक्रमण के बाद उन्होंने ये मदद बंद कर दी.
ऐसे में एवीजी ने अहम भूमिका निभाई. लड़ाकू विमानों को बर्मा के रंगून और भारत से होकर चीन तक उड़ाया जाता था. हिमालयी क्षेत्र में ऊंचे दर्रों और फिर चीन के पठारी इलाक़ों में कई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए और कई पायलट मारे गये.
यह द्वितीय विश्वयुद्ध का चीन बर्मा इंडिया (सीबीआई) युद्ध क्षेत्र था और यहां तीखी लड़ाई चल रही थी. जापान बर्मा से होते हुए भारत की ओर बढ़ रहा था.
ब्रैक्स्टन ने शेनॉल्ट की आत्मकथा के हवाले से बताया है कि इस अभियान में एवीजी के 12 पी-40 विमान युद्ध में नष्ट हुए और 61 ज़मीन पर नष्ट कर दिए गए थे. एवीजी ने 299 जापानी लड़ाकू विमान नष्ट किए जबकि संभवतः 153 और नष्ट हुए.
चीन ज़िक्र क्यों नहीं करता
इमेज स्रोत, AFP via Getty Images
क़मर आगा के अनुसार, अमेरिका प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल नहीं था और द्वितीय विश्वयुद्ध में भी देरी से शामिल हुआ. वह अपनी औद्योगिक शक्ति विकसित करने पर अधिक जोर दे रहा था.
वो कहते हैं, “जापान ने चीन पर कब्ज़ा कर रखा था और चीन उनसे लड़ रहा था. अमेरिका ने जापानी सेना के ख़िलाफ़ चीन को सैन्य रसद पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी.”
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार चीन-जापान युद्ध में अमेरिका की सकारात्मक भूमिका का ज़िक्र नहीं करती है.
दरअसल, 1949 से पहले चीन में राष्ट्रवादी कोमिंतांग पार्टी (केएमटी) की सरकार थी और इसके नेता च्यांग काई-शेक ने मित्र देशों से मदद की अपील की थी और काहिरा में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और अमेरिकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट से मुलाक़ात की थी.
क़मर आगा कहते हैं, “लेकिन इतिहास को झुठलाया नहीं जा सकता, अमेरिका ने चीन की काफ़ी मदद की थी. ये ऐतिहासिक तथ्य है.”
जापान के कब्ज़े के ख़िलाफ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और कोमिंतांग एक साथ आ गए थे. लेकिन 1945 में जापान के आत्मसमर्पण के बाद उन दोनों के बीच फिर से लड़ाई शुरू हो गई.
इस गृह युद्ध में कोमिंतांग की हार हुई और उसके समर्थक पीछे हट गए और ताईवान में शरण ली.
ताईवान और चीन में तनाव की जड़ें उस गृह युद्ध से जुड़ी हैं. साथ ही अमेरिका के साथ प्रतिद्वंद्विता की जड़ें भी वहीं जाकर मिलती हैं.
क़मर आगा कहते हैं, “कम्युनिस्ट पार्टी शुरू से ही अमेरिका विरोधी रही थी. इसमें ताज्जुब की बात नहीं कि कम्युनिस्ट सरकार बनने के बाद अमेरिका से चीन के तल्ख़ और नरम दोनों तरह के रिश्ते रहे हैं.”
चीन ने जापान के साथ आठ वर्षों तक युद्ध लड़ा, उत्तर-पूर्व में मंचूरिया से लेकर दक्षिण-पश्चिम में चोंगकिंग तक. अनुमान है कि इस दौरान 1 से 2 करोड़ चीनी नागरिकों की मौत हुई. जापानी सरकार का कहना है कि उस समय उसके लगभग 4.8 लाख सैनिक मारे गए.
दिलचस्प बात है कि चीन को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में जापान का नाम शामिल है.
चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने राष्ट्रवाद को अपनी घरेलू नीति का प्रमुख अंग बना लिया है. जापान के युद्ध अपराधों के ख़िलाफ़ आक्रोश, राष्ट्रीय एकता का एक तत्व बन गया है.
शी जिनपिंग ने जापान के साथ युद्ध की शुरुआत की तारीख़ भी बदल दी है, जिससे अब इस युद्ध की गणना आठ की बजाय 14 साल हो गई है.
सवाल है कि क्या चीन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी योगदान को कभी जगह देगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित