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चीन चाहे जो कर ले भारत के इस ‘त्रिनेत्र’ से नहीं बच पाएगा, अंडमान से लक्षद्वीप तक GSAT-20 बनेगा पहरेदार – whatever china does it wonot be able to escape indias gsat20 guardian from andaman to lakshadweep

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Nov 19, 2024


नई दिल्ली: भारत की एडवांस कम्यूनिकेशन सैटेलाइट GSAT-N2 यानी GSAT-20 एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट से अंतरिक्ष में रवाना कर दिया गया है। सैटेलाइट ने अपनी तय जगह पर पहुंचकर चक्कर लगाना शुरू कर दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने अब इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। इस मिशन की लॉन्चिंग फ्लोरिडा के केप केनवरल से हुई। जानते हैं इस मिशन में लगे KA बैंड्स के बारे में, जो इसे मिशन को खास बनाता है। इसरो के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव से इस मिशन के स्ट्रैटेजिक पहलू को समझते हैं।

GSAT-N2 यानी परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा

GSAT-N2 यानी GSAT-20 KA बैंड्स उपग्रह है जिसके 32 यूजर बीम बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर में अंडमान-निकोबार द्वीप और अरब सागर में लक्षद्वीप समेत पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर नजर रखेंगे। इसके चलते समंदर में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा। इनमें से 8 नैरो स्पॉट बीम पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जबकि, 24 वाइड बीम शेष भारत के लिए समर्पित हैं। यह सैटेलाइट कार्बन फाइबर रीएन्फोर्स्ड पॉलीमर बेस पर बनाया गया है। इन बैंड्स के होने का मतलब है कि सिग्रल का दायरा ज्यादा व्यापक होना।

GSAT-20 उपग्रह का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, सीएमएस-02 उपग्रह की संपूर्ण क्षमता डिश टीवी को पट्टे पर दी गई थी। जीसैट-20 संचार उपग्रहों की जीसैट श्रृंखला की अगली कड़ी है। उपग्रह का उद्देश्य भारत के स्मार्ट सिटी मिशन के लिए आवश्यक संचार बुनियादी ढांचे में डेटा ट्रांसमिशन क्षमता जोड़ना है।

चीन की चाल भांप लेगा, समंदर पर नजर रखेगा

विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, इस सैटेलाइट का स्ट्रैटेजिक पहलू यही है कि इससे अरब सागर से लेकर हिंद महासागर तक चीन जैसे देशों की हरकतों पर नजर रखी जा सकेगी। कम्यूनिकेशन के अलावा इसका फायदा सेना भी उठा सकेगी। इससे उन रडारों को मजबूती मिलेगी, जिनमें KA बैंड्स लगे होते हैं।

GSAT-20

क्या है KA बैंड्स, क्या होती है इसकी आवृत्ति लिमिट

इसरो के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, KA बैंड्स इलेक्ट्रो मैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के माइक्रोवेव हिस्से में एक आवृत्ति रेंज है, जिसका इस्तेमाल सैटेलाइट कम्यूनिकेशन और स्ट्रैटेजिक रूप से किया जा सकता है। इस बैंड की सीमा 27 से 40 गीगाहर्ट्ज तक होती है, जिसकी वेबलेंथ 1.1 से 0.75 सेंटीमीटर होती है। यानी इससे इंटरनेट स्पीड मौजूदा स्पीड से दोगुनी हो जाएगी।

KA बैंड्स का इस्तेमाल सैन्य विमानों और दूरबीनों में

विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि KA बैंड्स का इस्तेमाल उपग्रह संचार के अलावा सैन्य विमानों और अंतरिक्ष दूरबीनों वगैरह में किया जा सकता है। यह बाकी बैंडों की तुलना में हाईस्पीड डेटा देता है। इसमें स्पेक्ट्रम नियम कम कड़े होते हैं। यह छोटे एंटिना के इस्तेमाल की भी अनुमति देता है।

KA बैंड्स कहां से आया और किससे निकला

हालांकि, KA बैंड्स वाले सैटेलाइट होने की वजह से बारिश और नमी के दौरान सिग्नल खराब हो सकते हैं, जिससे कम्यूनिकेशन की क्वॉलिटी पर असर पड़ सकता है। KA बैंड्स का नाम जर्मन शब्द कुर्ज से आया है, जिसका मतलब है छोटा। यह K-बैंड की ही एक सब कैटेगरी है।

Vinod Kumar Srivastava ISRO Scientist

सैटेलाइट कम्यूनिकेशन की दुनिया में लाएगा क्रांति

विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, KA बैंड्स सैटेलाइट हाई स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल वीडियो और ऑडियो ट्रांसमिशन प्रदान कर सकते हैं। इससे इंटरनेट की स्पीड और बढ़ेगी, जिससे ओटीटी पर फिल्में देखना या डाउनलोड करना और आसान होगा।

अंतरग्रहीय मिशन के लिए एकदम परफेक्ट यह बैंड

विनोद श्रीवास्तव के अनुसार, KA बैंड्स अंतरग्रहीय मिशनों के लिए एकदम परफेक्ट माना जाता है। दरअसल, परवलयिक एंटिना हाई फ्रीक्वेंसी पर समान डिश एंटिना के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं।

कानून लागू कराने वाले रडार के लिए बेहतर

KA बैंड्स कानून प्रवर्तन रडार में इस्तेमाल किया जाता है। यह बैंड जिन रडार आवृत्तियों का उपयोग करता है, वह आमतौर पर 33.04 गीगाहर्ट्ज और 36 गीगाहर्ट्ज के बीच होता है।

KA बैंड्स को लगाने में आसानी

KA बैंड्स उपकरण छोटा होता है, जिससे इसे शीघ्रता से तैनात और स्थापित किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल वाहनों की गति पता लगाने में और अंतरिक्ष दूरबीनों में किया जा सकता है।

इसलिए चुना गया मस्क के रॉकेट को

उपग्रह का स्वामित्व और संचालन ISRO की वाणिज्यिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की ओर से किया जाएगा। ISRO ने GSAT-20 को प्रक्षेपित करने के लिए स्पेसएक्स को इसलिये चुना क्योंकि भारत के स्वदेशी भारी रॉकेट प्रक्षेपण यान मार्क-3 में इतने भारी उपग्रह को उठाने की क्षमता नहीं है।

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