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साल 2014 में चीन की राजधानी बीजिंग में वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी ख़राब थी कि लोगों को घरों में रहने के लिए कहा गया था.
चीन की सरकारी शोध संस्था शंघाई एकैडमी ऑफ सोशल साइंस ने तब बीजिंग को पर्यावरण के मामले में दुनिया के 40 वैश्विक शहरों में नीचे से दूसरे स्थान पर रखा था.
उस समय बीजिंग में प्रदूषण का स्तर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 15 गुना ज़्यादा था.
बीते कुछ समय से भारत की राजधानी से लेकर उत्तर भारत के कई शहर वायु प्रदूषण के मामले में वैसी ही इमरजेंसी का सामना कर रहे हैं.
वायु प्रदूषण पर नज़र रखने वाली वेबसाइट आईक्यूएयर के अनुसार, वायु प्रदूषण के मामले में दुनिया के प्रमुख 126 शहरों में दिल्ली का स्थान तीसरा है, जहाँ पिछले कुछ दिनों से एयर क्वालिटी इंडेक्स, एक्यूआई यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 के आसपास बना हुआ है.
इसी वेबसाइट के अनुसार, इस सूची में बीजिंग का स्थान 60वां है और वहां एक्यूआई 64 है.
दिल्ली सरकार ने उत्सर्जन मानकों का उल्लंघन करने वाले वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने से लेकर दफ़्तरों में वर्कर फ़्रॉम होम, स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई, कंस्ट्रक्शन और तोड़फोड़ पर रोक समेत कई उपाय किए हैं.
इस बीच भारत में चीन के दूतावास ने दिल्ली को वायु प्रदूषण नियंत्रण में मदद की पेशकश की है और बताया है कि बीजिंग कैसे वायु प्रदूषण की समस्या से निपटा.
भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी रहीं किरण बेदी ने भी इसे साझा करते हुए लिखा, “वायु प्रदूषण से निपटने के लिए भारत को चरणबद्ध मार्गदर्शन देने के लिए चीन तैयार है…”
उन्होंने 14 दिसंबर को एक्यूआई ऐप का एक स्क्रीनशॉट शेयर किया, जिसमें नई दिल्ली के एक इलाक़े में एक्यूआई 912 दिखता है.
चीनी दूतावास ने क्या कहा?
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दिल्ली में चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने एक्स पर एक पोस्ट में 15 दिसंबर 2025 के दिन बीजिंग और दिल्ली दोनों शहरों की एक्यूआई रीडिंग का स्क्रीनशॉट साझा किया.
इसमें दिल्ली का एक्यूआई 447 जबकि बीजिंग का एक्यूआई 67 दिखता है.
इसी पोस्ट में यू जिंग ने लिखा, “चीन और भारत दोनों तेज शहरीकरण के बीच वायु प्रदूषण की चुनौतियों को जानते हैं. कई जटिलताओं के बावजूद बीते एक दशक में चीन के लगातार प्रयासों ने प्रभावी नतीजे दिए हैं.”
इसके साथ ही उन्होंने आने वाले दिनों में ‘स्टेप बाइ स्टेप’ सुझाव देने की बात कही.
चीन ने क्या उपाय सुझाए
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यू जिंग ने 16 दिसंबर को एक्स पर दूसरी पोस्ट में लिखा, “साफ़ हवा एक रात में नहीं मिलती लेकिन यह हासिल की जा सकती है.”
स्टेप-1 में वाहन उत्सर्जन नियंत्रण के तहत चीन में किए गए उपाय सुझाए-
- चीन ने 6एनआई जैसे सख़्त नियम लागू किए, जो यूरो 6 मानकों के बराबर हैं.
- पुराने और ज़्यादा उत्सर्जन करने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीक़े से हटाया गया.
- लाइसेंस प्लेट लॉटरी और ऑड-ईवन या सप्ताहांत के हिसाब से ड्राइविंग नियमों के ज़रिए वाहनों की संख्या को कम किया.
- दुनिया के सबसे बड़े मेट्रो और बस नेटवर्क में से एक तैयार किया गया.
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की तरफ़ तेज़ी से बदलाव किया गया.
- बीजिंग-तियानजिन-हेबेई क्षेत्र के साथ मिलकर उत्सर्जन घटाने पर समन्वित काम किया गया.
17 दिसंबर को अपनी तीसरी पोस्ट में यू जिंग ने स्टेप-2 के तहत औद्योगिक पुनर्गठन के उपाय सुझाए-
- 3,000 से ज़्यादा भारी उद्योगों को बंद किया गया/स्थानांतरित किया गया. चीन की सबसे बड़ी स्टील कंपनियों में से एक शौगांग को हटाने से सांस के ज़रिए अंदर जाने वाले कणों में 20 प्रतिशत की कमी आई.
- ख़ाली हुई फैक्ट्रियों को पार्क, व्यावसायिक इलाक़े, सांस्कृतिक और टेक हब में बदला गया.
- उदाहरण के तौर पर, पुराने शौगांग परिसर को 2022 विंटर ओलंपिक का स्थल बनाया गया.
- थोक बाज़ार, लॉजिस्टिक्स हब और कुछ शैक्षणिक के साथ चिकित्सा संस्थानों को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया.
- क्षेत्रीय तालमेल के तहत सामान्य मैन्युफैक्चरिंग को हेबेई भेजा गया जबकि बीजिंग में हाई वैल्यू रिसर्च डेवलपमेंट और सर्विस सेक्टर को रखा गया.
इसी तरह 18 दिसंबर को अपनी चौथी पोस्ट में उन्होंने स्टेप-3 के बारे में बताया, “बीजिंग-तियानजिन-हेबेई क्षेत्र में पूरी तरह कोयला बैन कर दिया गया. परिणामस्वरूप 2025 तक बीजिंग में कोयले की खपत 2012 के 2.1 करोड़ टन से घटकर छह लाख टन से भी कम रह गई. यह शहर की कुल ऊर्जा खपत का 1 प्रतिशत से भी कम हिस्सा है.”
और 19 दिसंबर को स्टेप-4 में बताया कि धूल पर पूरी तरह नियंत्रण के लिए कई उपाय किए गए जिनमें निर्माण स्थलों पर डस्ट प्रूफ़ जाली लगाना, पानी का छिड़काव और सड़कों की सफ़ाई करना, किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रोत्साहन भत्ता देना, प्रदूषण के पीक समय में निर्माण और तोड़फोड़ पर रोक लगाना और बड़े पैमाने पर पौधे लगाना शामिल है.
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
चीनी दूतावास की ओर से मदद की पेशकश पर सोशल मीडिया पर काफ़ी प्रतिक्रिया आई. कुछ लोगों ने बीजिंग की पेशकश को सराहा तो कुछ लोगों ने इसे तंज़ की तरह लिया.
18 दिसंबर को टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक लेख प्रकाशित किया- ‘व्हाई बीजिंग कैन नॉट बी देल्हीज़ मॉडल’ यानी बीजिंग, दिल्ली का मॉडल क्यों नहीं हो सकता.
इसमें भी कहा गया कि सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे ‘चुटकी लेने’ की तरह ले रहे हैं.
इस लेख में कहा गया कि जिस समय चीन नसीहत दे रहा था “उसी दौरान सालों की कोशिश के बावजूद बीजिंग में एक्यूआई 214 पहुंच गया, वहां स्मॉग जैसे हालात पैदा हो गए.”
यू जिंग ने इसे एक्स पर साझा करते हुए लिखा कि उनका एक घनी आबादी वाले तीसरी दुनिया के देश के लिए इस चुनौती से निपटना काफ़ी मुश्किल रहा है और उनका मक़सद ‘बीजिंग मॉडल को निर्यात करने का नहीं है.’
उन्होंने कहा, “कोई एक जैसा समाधान नहीं है और न ही कोई एक मानक जवाब हो सकता है. हमारा पक्का विश्वास है कि भारत अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप साफ़ आसमान की दिशा में अपना खुद का रास्ता तय करेगा.”
सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) में क्लीन एयर और सस्टेनेबल मोबिलिटी मामलों के कंसल्टेंट और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी के पूर्व अतिरिक्त निदेशक मोहन जॉर्ज का कहना है कि बीजिंग और दिल्ली के बीच तुलना करना ठीक नहीं होगा.
उन्होंने बीबीसी से कहा, “उन्होंने कार्रवाई की और जिन नतीजों का दावा कर रहे हैं, वो ठीक है लेकिन दिल्ली की समस्या अलग है.”
उन्होंने कहा, “दिल्ली की भौगोलिक स्थिति भी एक समस्या है. यह एक लैंडलॉक्ड क्षेत्र है, जहां धूल की बड़ी समस्या है. बीजिंग की समुद्र तट से दूरी बहुत कम (बोहाई सी से क़रीब डेढ़ से दो सौ किलोमीटर) है.”
चीन की व्यापक रणनीति
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बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास की दो साल पहले की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2013 से ही बीजिंग और व्यापक रूप से पूरे चीन ने कई तरह के उपायों के मार्फ़त वायु प्रदूषण के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त अभियान छेड़ रखा है.
चीन ने एक महत्वाकांक्षी एक्शन प्लान के तहत कोयले से चलने वाले नए बिजली संयंत्रों के साथ-साथ रिहाइशी इमारतों को गर्म करने के लिए कोयले के इस्तेमाल पर पूरी तरह बैन लगा दिया.
इन उपायों में डीज़ल ट्रकों पर ईंधन और इंजन मानकों को ऊंचा करने और प्रदूषण पैदा करने वाली कारों को कम करने जैसे उपाय शामिल थे.
लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया और छोटी दूरी के लिए साइकिलों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया.
हेलसिंकी स्थित सेंटर फ़ॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की विश्लेषक लॉरी मिल्लीविर्टा के अनुसार, ‘बीजिंग ने वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की, लेकिन पिछले एक दशक में बड़ा बदलाव तब आया जब प्रयासों को शहर की सीमाओं से बाहर तक बढ़ाया गया.’
उनके अनुसार, औद्योगिक क्लस्टर और शहर से बाहर प्रदूषण पैदा करने वाले स्रोतों को कवर करते हुए एक “की कंट्रोल रीजन” बनाया गया, जिससे ज़्यादा असरदार नतीजे मिले.
वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए साल 2013 में बीजिंग का बजट 430 मिलियन डॉलर था, जो 2017 तक बढ़कर 2.6 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया.
दिल्ली में कहां कमी रह गई?
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हालांकि बीते दो दशकों में दिल्ली ने भी वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय किए, जिनमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों को शहर से बाहर करना, सार्वजनिक यातायात को सुदृढ़ बनाने ख़ासकर इलेक्ट्रिक बसों, मेट्रो, रैपिड रेल आदि का विस्तार करने के उपाय शामिल हैं.
इनमें दिल्ली में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को बंद करना, वाहन उत्सर्जन के कड़े मानदंड लागू करना, पुराने कमर्शियल वाहनों को चलन से बाहर करना भी शामिल है.
दिल्ली एनसीआर में मेट्रो नेटवर्क का कवरेज 423 किलोमीटर से ज़्यादा हो चुका है. इसके अलावा नेशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन (एनसीआरटीसी) के तहत दिल्ली और आस पास के शहरों को रैपिड रेल यातायात से जोड़ने की परियोजना जारी है.
दिल्ली ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन की सात हज़ार बसें इलेक्ट्रिक हैं, लेकिन रेल और बस के बीच कनेक्टिविटी अब भी भी पूरी तरह इंटीग्रेट नहीं हो पाई है.
लेकिन एक बड़ी समस्या दिल्ली शहर के अंदर से पैदा होने वाला उत्सर्जन है.
मोहन जॉर्ज कहते हैं, “आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाने से होने वाले या बाहर से आने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी दिल्ली में 40 से 50 प्रतिशत है. लेकिन दिल्ली के अंदर जो उत्सर्जन होता है, उसकी भी इस प्रदूषण में हिस्सेदारी इतनी ही है. पहले इसे कम करना होगा.”
दिल्ली के पास 11 कोयला आधारित पावर प्लांट
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एक बड़ी चिंता ये भी है कि दिल्ली के आसपास कोयला आधारित बिजली संयंत्र अब भी चल रहे हैं. उनमें वायु प्रदूषण नियंत्रण निगरानी को लेकर भी सवाल उठे हैं.
मोहन जॉर्ज कहते हैं कि ‘दिल्ली के 300 किलोमीटर के घेरे में 11 कोयला आधारित पॉवर प्लांट्स हैं, जिनसे निकलने वाला धुआं हवा में घुलता है.’
शक्ति सस्टनेबल एनर्जी फ़ाउंडेशन की एक रिपोर्ट भी कहती है कि दिल्ली के आसपास कोयला आधारित 11 पॉवर प्लांट्स हैं.
इन संयंत्रों को सबसे अधिक प्रदूषण पैदा करने वाला स्रोत माना जाता है जो सल्फ़र डाई ऑक्साइड का बड़े पैमाने पर उत्सर्जन करते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक़, ये संयंत्र औद्योगिक क्षेत्र के पीएम (पर्टिकुलेट मैटर) उत्सर्जन के 60 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है. यह कुल उत्सर्जन में 45 प्रतिशत सल्फ़र डाई ऑक्साइड (SO2), 30 प्रतिशत नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और 80 प्रतिशत पारे के उत्सर्जन का कारण है.
इस प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दिसंबर 2015 में ऐसे थर्मल पावर प्लांट्स के लिए कड़े मानकों की घोषणा की थी.
अगर इन नए मानकों को सख्ती से लागू किया जाए, तो NOx, SO2 और पीएम के उत्सर्जन में बड़ी कमी आ सकती है.
सीएसई का अनुमान है कि अगर ये मानक लागू हों तो 2026-27 तक पीएम उत्सर्जन को करीब 35 प्रतिशत, NOx उत्सर्जन को करीब 70 प्रतिशत और SO2 उत्सर्जन को 85 प्रतिशत से ज्यादा घटाने में मदद मिल सकती है.
लेकिन कई पर्यावरणीय संस्थाओं ने आरोप लगाया है कि थर्मल पॉवर प्लांटों में इन मानकों का कड़ाई से लागू नहीं किया जा रहा है.
मोहन जॉर्ज ने कहा कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में SO2 उत्सर्जन में कटौती के लिए फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन (एफ़जीडी) सिस्टम लगाने के मानकों में छूट दे दी गई है.
इसी साल जुलाई में पर्यावरण मंत्रालय ने इस छूट की घोषणा की. जबकि थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाली फ्ल्यू गैस में सल्फर डाइऑक्साइड होता है. यह वातावरण में मिलकर सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर बना सकता है.
क्या दिल्ली का वायु प्रदूषण लाइलाज है?
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मोहन जॉर्ज का कहना है कि दिल्ली में नियमों और कड़े मानदंड बनाना एक अच्छी पहल है, लेकिन ‘सबसे बड़ी समस्या है, इन्हें लागू करना.
बीबीसी से उन्होंने बातचीत में कहा, “अधिक प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों को दिल्ली से बाहर करने की पहल की गई लेकिन अब भी दिल्ली के अंदर 32 औद्योगिक क्षेत्र और 25 डेवपलमेंट एरिया हैं. व्यापक रूप से असंगठित क्षेत्र है, जिन पर कोई निगरानी नहीं है.”
उन्होंने कहा, “जब भी हम सिर्फ 1500 वर्ग किलोमीटर के अंदर कार्रवाई करेंगे तो नतीजे नहीं आ पाएंगे. व्यापक भौगोलिक क्षेत्र में यह बहुत छोटा हिस्सा है. जहां तक बीजिंग की बात है, उन्होंने फ़ैसले किए तो तुरंत लागू भी किया. हमारे पास बहुत अच्छी योजनाएं हैं, लेकिन यहां फैसलों को लागू करना उतना प्रभावी नहीं रहा है.”
“पिछले 15 साल से हम पराली जलाने की समस्या से जूझ रहे हैं और सौभाग्य से इस साल यह बहुत मामूली रहा. सिर्फ दो दिन ही इसने कुल वायु प्रदूषण में 22 प्रतिशत तक पहुंचा. लेकिन वाहन से उत्सर्जन की भी एक बड़ी भूमिका है.”
वो कहते हैं कि दिल्ली के 1500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 80 लाख रजिस्टर्ड वाहन हैं, जिनमें 15 से 20 लाख वाहन हमेशा सड़क पर होते हैं.
मोहन जॉर्ज के अनुसार, “दिल्ली को वायु प्रदूषण कम करना है तो प्रदूषण पैदा करने वाले शहर के अंदर के स्रोतों को कम करना होगा और नियमों को ज़मीन पर लागू करना होगा. सड़कों से धूल को हटाना होगा और स्थानीय स्तर पर धुएं के स्रोत को बंद करना होगा.”
उन्होंने कहा, “बेशक चीन और हमारी चुनौतियों में बहुत फ़र्क़ है. लेकिन हमें उनसे सबक लेना चाहिए कि उन्होंने क्या किया और हम क्या कर सकते हैं.”
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