DRDO पड़ोसी देशों के बढ़ते खतरों पर उन्हें सबक सिखाने के लिए भारत रक्षा के क्षेत्र में लगातार काम कर रहा है। यही कारण है कि स्क्रैमजेट इंजन के सफल जमीनी परीक्षण ने हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक में भारत को आगे बढ़ाया है। यह परीक्षण पड़ोसी देशों को बड़ा संदेश है। हाइपरसोनिक मिसाइलों की नेक्स्ट जनरेशन के लिए यह परीक्षण बहुत खास है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत ने रक्षा के क्षेत्र में एक और उपलब्धि हासिल की है। हाईपरसॉनिक मिसाइल तकनीक की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है। हाईपरसॉनिक तकनीक जितनी ज्यादा डेवलप होगी मिसाइल उतनी ही उन्नत और अत्याधुनिक तकनीक से सजी धजी होंगी। ऐसी मिसाइलों की भविष्य में कितनी अहमियत होगी, इसे समझते हुए भारत लगातार इस दिशा में काम कर रहा है।
यही कारण है कि DRDO यानी डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन ने स्क्रैमजेट इंजन का सफल जमीनी परीक्षण किया है। इस उपलब्धि को देश की डिफेंस मिनिस्ट्री ने बड़ी उपलब्धि बताया है। हाईपरसॉनिक मिसाइलों की अगली जनरेशन के लिए यह टेस्ट क्यों खास है, क्या होती है हाईपरसॉनिक तकनीक, यहां जानिए सबकुछ।
DRDO ने हाल ही में स्क्रैमजेट इंजन का सफलतापूर्वक जमीनी टेस्ट किया है। इस उपलब्धि पर रक्षा मंत्रालय ने कहा कि भारत, चीन, रूस और अमेरिका सहित कई देश अपनी ताकत बढ़ाने के लिए इस हाईपरसॉनिक तकनीक पर काम कर रहे हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दी बधाई
‘यह उपलब्धि नेक्स्ट जनरेशन के हाइपरसोनिक मिसाइल अभियानों के विकास में मील का अहम पत्थर है।’
ऐसा पहली बार हुआ हमारे देश में
DRDO यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने स्क्रैमजेट इंजन कि एक्टिव कूल्ड कंबस्टर का 120 सेकंड की अवधि तक जमीन पर सफल टेस्ट किया है। ऐसा देश में पहली बार हुआ है। हाइपरसोनिक मिसाइलें ध्वनि की जो रफ्तार होती है, उससे भी पांच गुना ज्यादा तेजी से उड़ती हैं। यह सफल टेस्ट हाइपरसोनिक मिसाइलों के मिशनों को डेवलप करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।
स्क्रैमजेट इंजन की क्या है खासियत?
DRDO का स्क्रैमजेट इंजन।Source: PIB
- स्क्रैमजेट कंबस्टर में एक फ्लैम स्टेबलाइजेशन टैकनीक का उपयोग होता है। टेस्ट के दौरान फ्लेम होल्डिंग तकनीकों का अध्ययन ग्राउंड टेस्ट के माध्यम से किया गया, जिससे कि स्क्रैमजेट इंजन कॉन्फिगरेशन तक पहुंच सकें।
- स्क्रैमजेट इंजन की खासियत यह है कि यह हवा में घुली ऑक्सीजन का उपयोग करते हुए सुपरसोनिक गति पर फ्यूल जलाने में सक्षम हैं। इनमें कोई मूविंग पार्ट्स नहीं होते।
- स्क्रैमजेट इंजन ने इस टेस्ट के दौरान कई उपलब्धियां दिखाई, जैसे सफल इग्निशन और स्थिर कम्बशन।
यह परीक्षण देश के लिए क्यों है अहम?
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, DRDO ने लंबी अवधि के सुपरसोनिक कंबस्टर, स्क्रैमजेट से संचालित होने वाली हाइपरसोनिक तकनीक को डेवलप करने का काम किया है। ये सफल टेस्ट हाइपरसोनिक मिसाइल की नेक्स्ट जनरेशन को विकसित करने की दिशा में बड़ा कदम है।
हाइपरसोनिक मिसाइलें क्यों हैं दुनिया की पसंद?
- हाइपरसोनिक मिसाइलें इतनी तेज गति से उड़ती हैं कि यह एयर डिफेंस सिस्टम से बचने में पूरी तरह सक्षम होती हैं।
- हाइपरसोनिक मिसाइल आवाज से भी पांच गुना तेज गति से उड़ने वाली मिसाइल है। यह 5400 किमी प्रति घंटे की गति से उड़ान भरती है।
- एटॉमिक हथियार या पारंपरिक हथियार को अपने साथ कैरी करने के लिए इस मिसाइल को डिजाइन किया गया है।
- रास्ते में ही अपना रास्ता बदलने की महारत हासिल है हाइपरसोनिक मिसाइलों को।
- ग्लाइड करने के लिए हाइपरसोनिक मिसाइलें पंख या टेल फिंस पर आश्रित रहती हैं।
हाइपरसोनिक मिसाइलों की स्पीड इतनी ज्यादा होती है कि इसे इंटरसेप्ट करना मुश्किल हो जाता है। शॉर्ट डिस्टेंस में भी। हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक में भारत के बढ़ते कदमों से हमारा डिफेंस स्वाभाविक है कि मजबूत होगा।
-रक्षा विशेषज्ञ, संदीप थापर
1930 से शुरुआत, वक्त के साथ खतरनाक होती गईं मिसाइलें
- 2022 की ग्लोबल पीस इंडेक्स रिपोर्ट की मानें, तो जिस तरह से दुनिया युद्धों के साए में जी रही है। ऐसे में भू-राजनीतिक तनाव को दर्शाने वाला एक क्षेत्र हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणालियों का बढ़ता प्रसार है।
- हाइपरसोनिक हथियारों के विकास पर 1930 के दशक से ही काम शुरू हो गया था, लेकिन पिछले दो दशक में हथियारों की तकनीक को उन्नत बनाने में दुनिया के ताकतवर देश लग गए। ऐसे में इन मिसाइलों की तकनीक पर भी तेजी से काम हुआ। इसलिए समय के साथ मिसाइलें और खतरनाक होती गईं।
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